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डिजिटल खतरों में निहत्थे

“दुनिया की बड़ी इकोनॉमी में शुमार होती हमारी अर्थव्यवस्था और अथाह डेटा पैदा करने वाले देशों में से...
डिजिटल खतरों में निहत्थे

“दुनिया की बड़ी इकोनॉमी में शुमार होती हमारी अर्थव्यवस्था और अथाह डेटा पैदा करने वाले देशों में से एक होने के बावजूद हम डिजिटल दुनिया में निहत्थे खड़े हैं। बेशक, इसका खामियाजा भी हमें भुगतना पड़ सकता है।”

पिछले दिनों राजनैतिक हलकों से लेकर अदालत और आम जनता तक आंकड़ों, सूचनाओं और डिजिटलाइजेशन से जुड़े मुद्दों पर बात करते दिखे। राजनैतिक नेता फेसबुक से डेटा चोरी कर चुनावों को प्रभावित करने में इसका इस्तेमाल करने वाली कैंब्रिज एनालिटिका कंपनी के विवाद से अपने नफे-नुकसान का हिसाब लगाते नजर आए। सर्वोच्च न्यायालय आधार की अनिवार्यता, प्राइवेसी (निजता) और डेटा लीक के खतरों पर मंथन कर रहा है और आने वाले दिनों में इस पर अहम फैसला सुना सकता है। लेकिन इस सबके बीच आम जनता को भी चिंता हुई कि उनका डेटा चोरी हो सकता है जो उनकी निजता और जेब पर भारी पड़ सकता है। आधार डेटा की सुरक्षा के मामले में सरकार की सफाई है कि वह डेटा कई फुट मोटी और ऊंची दीवार जैसे उपायों से सुरक्षित रहेगा। बढ़ते डिजिटल खतरों के बीच क्या करोड़ों देशवासियों की निजता का मुद्दा इतना सरल है?

सूचना-प्रौद्योगिकी यानी आइटी क्रांति जिस तरह अगली पीढ़ी की तकनीक लेकर आ रही है, उसे देखते हुए तो हम लगभग निहत्थे हैं। सत्ता और मुनाफे के लिए निजी सूचनाओं में सेंधमारी और उसके दुरुपयोग की घटनाएं हमारे सामने हैं। डेटा का बाजार और इस्तेमाल तेजी से बढ़ता जा रहा है। वैसे भी, 1991 के आर्थिक सुधारों के साथ यही तो कहा गया था कि भारत एक बड़ा बाजार है और दुनिया की बड़ी कंपनियों के लिए यहां बहुत मौके हैं। वे निवेश करेंगी और उससे हमारी आर्थिक तरक्की के रास्ते खुलेंगे। कुछ हद तक ऐसा हुआ भी। लेकिन अब मामला पेचीदा होता जा रहा है।

तकनीक तमाम दायरों को लांघकर लोगों की सोच, समझ और आदतों को प्रभावित करने की ताकत जुटा चुकी है। सूचना तंत्र आम आदमी ही नहीं, सरकार के फैसलों को भी प्रभावित करने में सक्षम है। लेकिन हमारे नीति-निर्धारक इस चुनौती को ठीक से समझकर फैसले लेने के लिए तैयार नहीं हैं। ये पूरे मसले को व्यावसायिक और तकनीकी नजरिए से ही देखने के आदी हैं। 

बेशक, पिछले तीन दशकों में सबसे बड़ी क्रांति सूचना-प्रौद्योगिकी और दूरसंचार की रही है। लेकिन अब मामला आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआइ) यानी कृत्रिम बुद्धि तक पहुंच गया है। दुनिया की बड़ी ताकतों के बीच डिजिटल प्रभुत्व की जंग शुरू हो चुकी है। क्योंकि यह केवल आर्थिक ही नहीं, सामरिक रूप में भी अहम मसला बनता जा रहा है। यही वजह है कि पिछले दिनों अमेरिका ने सुरक्षा कारणों का हवाला देकर वायरलेस उपकरणों के लिए चिप बनाने वाली अमेरिकी कंपनी क्वालकॉम का अधिग्रहण करने के सिंगापुर स्थित कंपनी ब्राडकॉम के 142 अरब डॉलर के प्रस्ताव पर रोक लगा दी। उसे डर है कि 5जी तकनीक के नए दौर में चीन की कंपनियां अपना प्रभुत्व स्थापित कर सकती हैं। तकनीक के अगले चरण आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआइ) के लिए यह तकनीक अहम साबित होने वाली है। इसके साथ ही चीन की कंपनियों हुवावे और जेडटीई के टेलीकॉम गियर के अमेरिकी टेलीकॉम कंपनियों में इस्तेमाल पर भी रोक लगा दी गई है। दुनिया की सबसे बड़ी टेलीकॉम गियर बनाने वाली चीन की कंपनी हुवावे के उपकरणों के उपयोग से पहले जांच करने के लिए ब्रिटेन ने भी एक स्पेशल सेल बना रखा है।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि चीन ने आइटी टेक्नोलॉजी में दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में शुमार टेनसेंट, अलीबाबा और जेडटीई जैसी कंपनियां खड़ी कर ली हैं, जो अमेजन, फेसबुक और गूगल को टक्कर दे रही हैं। अब किसी भी व्यक्ति का डाटा दूर बैठी कंपनियों के लिए हासिल करना आसान हो गया है। इसी के चलते अमेरिका और ब्रिटेन ने ये कदम उठाए हैं। इधर, चीन की इन्हीं कंपनियों को हम न्योता दे रहे हैं। हमारे देश में सबसे अधिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण चीन से ही आ रहे हैं। चीन की इन विशाल कंपनियों की बराबरी करने की बात तो दूर हम तो इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के उत्पादन का तंत्र भी देश में खड़ा नहीं कर पाए हैं।

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या हम अपने हितों के संरक्षण के लिए तैयार हैं। लगता तो नहीं! फिर भी हम जहां सोशल मीडिया की तेज धारा में अंदर तक जाने का जोखिम उठा रहे हैं, वहीं सरकार हर समस्या का हल आधार में ढ़ूंढ़ रही है और उसे जीवन और अर्थ की अधिकांश गतिविधियों से जोड़ने पर आमादा है। हालांकि, संबंधित मंत्री उसे वोटर लिस्ट से जोड़ने के बारे में अलग राय रखते हैं। लेकिन क्या हमें नहीं सोचना चाहिए कि जब अमेरिका और यूरोप के बड़े देश टेक्नोलॉजी की आंधी में खुद को सुरक्षित रखने के लिए मुक्त व्यापार और उदारीकरण जैसे सिद्धांतों के खिलाफ जाकर रणनीति बना रहे हैं, तो दुनिया की बड़ी इकोनॉमी में शुमार होती हमारी अर्थव्यवस्था और अथाह डेटा पैदा करने वाला देश होने के बावजूद हम डिजिटल दुनिया में निहत्थे खड़े हैं। जाहिर है, इसका खामियाजा भी हमें भुगतना पड़ सकता है।

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