Advertisement

पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ग्राउंड रिपोर्ट: बदलती फिजा का संदेश

“बागपत, कैराना, सहारनपुर, देवबंद, मुजफ्फरनगर, मेरठ से उभरते संकेतों का दूर तक हो सकता है असर, भाजपा के...
पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ग्राउंड रिपोर्ट: बदलती फिजा का संदेश

“बागपत, कैराना, सहारनपुर, देवबंद, मुजफ्फरनगर, मेरठ से उभरते संकेतों का दूर तक हो सकता है असर, भाजपा के सामने सपा-बसपा-रालोद गठबंधन सबसे बड़ी चुनौती”

नए बने पानीपत-खटीमा राजमार्ग पर मुजफ्फरनगर से एकदम पहले पिनना गांव के बाहर गुड़ बनाने का कोल्हू है। कोल्हू इकबाल अली चलाते हैं। करीब 50 साल की उम्र के इकबाल पिनना गांव के ही हैं। पूछने पर वे बताते हैं कि गन्ना 240 रुपये प्रति क्विंटल खरीद रहे हैं और मुजफ्फरनगर मंडी में 24 रुपये किलो गुड़ बेच देते हैं, थोड़ा बहुत पैसा बच जाता है लेकिन बहुत ज्यादा बचत नहीं है। बात जब चुनावी माहौल पर आती है तो वे कहते हैं कि यहां तो (सपा-बसपा-रालोद) गठबंधन प्रत्याशी का असर है। लेकिन पिछली बार तो हिंदू-मुसलमान के आधार पर चुनाव हुआ था? जाट-मु‌स्लिम दंगे के असर का क्या हुआ? इकबाल कहते हैं कि सामने जो दो चौधरी बैठे हैं, वे जाट हैं उनसे ही पूछ लो। करीब 55 साल के परमवीर सिंह मलिक वहां गुड़ बनवाने के लिए आए हैं। वे कहते हैं कि हम लोग तो साथ मिल कर ही रह रहे हैं, हमारे बीच कोई मतभेद नहीं है। वैसे, 22 बीघा जमीन के मालिक परमवीर तितावी और खाई खेड़ी चीनी मिलों को गन्ना बेचते हैं और दोनों जगह गन्ना भुगतान का संकट है। दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने 2014 के चुनावों में भाजपा को वोट दिया था। लेकिन इस बार उनका कहना है कि वे गठबंधन को वोट देंगे। वजह पूछने पर वे 14 दिन में गन्ना भुगतान से लेकर खाते में 15 लाख रुपये और आमदनी दोगुनी करने समेत कई वादे गिनाते हुए कहते हैं कि ये सिर्फ वादे बन कर रह गए हैं। दिलचस्प बात यह है कि मुजफ्फरनगर के करीब का यह गांव बिजनौर लोकसभा सीट का हिस्सा है। वहां मौजूद 40 बीघा के मालिक दूसरे किसान वीरपाल मलिक कहते हैं कि हमारी हालत खराब होती गई। विकास की बात तो दूर, हमारा स्थानीय सांसद तो एक बार भी हमारे गांव नहीं आया। बिजनौर सीट पिछली बार भाजपा के कुंवर भारतेंदु ने जीती थी।

यहां से करीब 60 किलोमीटर दूर बागपत जिले की मलकपुर चीनी मिल में बामनौली के 250 बीघा के मालिक संयुक्त किसान परिवार से चीनी मिल में गन्ना डालने आए 22 साल के सोमपाल तोमर कहते हैं कि 2014 में हमारे गांव का अधिकांश वोट भाजपा को गया था क्योंकि बड़ौत जाट कॉलेज में मोदी जी ने 14 दिन में गन्ना भुगतान का वादा किया था। लेकिन यह पूरा नहीं हुआ। पिछले सीजन 2017-18 का पेमेंट इस साल 15 फरवरी, 2019 के बाद मिला। जहां तक इस सीजन की बात है तो मिल 10 नवंबर, 2018 को चला था और केवल 20 दिन का पेमेंट आया है। चुनावों के बाद यह भी बंद हो जाएगा। दो साल से गन्ने का दाम नहीं बढ़ा। अावारा पशुओं से फसल को नुकसान की समस्या अलग है। सोमपाल साफ कहते हैं कि इस बार यहां के सांसद सत्यपाल सिंह को गांव में घुसने भी नहीं देंगे। दो दिन पहले हमने लोकदल के उम्मीदवार जयंत चौधरी का जबरदस्त स्वागत किया है। वहां मौजूद करीब 50 साल के किसान राजकुमार तोमर भी सोमपाल की बातों से इत्तेफाक रखते हैं। वे कहते हैं कि जब मोदी ने ही वादे पूरे नहीं किए तो सत्यपाल क्या कर लेंगे।

भुगतान पर सवालः मलकपुर चीनी मिल में गन्ना डालने आए बामनौली के किसान सोमपाल तोमर

मलकपुर से थोड़ा आगे है छपरौली। यह वह सीट है जो 1937 से चौधरी चरण सिंह या उनके परिवार के नेतृत्व वाली पार्टी के पास ही रही है। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजित सिंह इस विधानसभा सीट पर भी भाजपा से पीछे रहे थे। इस बार बागपत लोकसभा से रालोद के टिकट पर अजित सिंह के बेटे, पार्टी के उपाध्यक्ष जयंत चौधरी चुनाव लड़ रहे हैं जबकि भाजपा से मौजूदा सांसद सत्यपाल सिंह ही चुनाव मैदान में हैं। छपरौली जाट बहुल नगर पंचायत है। यहां स्टील फैब्रिकेशन की दुकान चलाने वाले करीब 70 साल के अब्दुल गफूर कहते हैं कि आजकल काम-धंधा मंदा है। किसानों को गन्ना भुगतान मिलता नहीं और हमारे पास काम का टोटा हो गया है। वहां 19 साल के संजीव खोखर मिलते हैं, जो गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज में बीए प्रथम वर्ष के छात्र हैं। वे कहते हैं कि इस बार तो वोट लोकदल को जाएगा। वजहः एक तो जयंत चौधरी युवा हैं, दूसरे, मोदी झूठ ज्यादा बोलते हैं, अपने वादों को पूरा नहीं करते हैं। सालाना दो करोड़ रोजगार का वादा कहां गया। हाल ही में सैटेलाइट गिराने के मिसाइल मिशन से संजीव वाकिफ हैं लेकिन वे कहते हैं कि यह तो वैज्ञानिकों का काम है, इसकी घोषणा के लिए प्रधानमंत्री की जरूरत क्यों है। वहां मौजूद दोघट गांव के ओमकार राणा कहते हैं कि गन्ना पेमेंट तो मायावती की सरकार में बेहतर था।

छपरौली से थोड़ा आगे कुर्डी नांगल गांव के बाहर एक कोल्हू चलाने वाले किरणपाल कश्यप के पास दो बीघा जमीन है। उसी में वे कोल्हू चलाते हैं। उनका कहना है कि हमारा वोट तो भाजपा का है। कश्यप समाज पूरी तरह भाजपा के साथ है क्योंकि उसने हमें इज्जत दी है। वहां मौजूद कृष्णपाल कश्यप उनकी हां में हां मिलाते हैं। यहां से करीब दो किलोमीटर आगे बागपत लोकसभा क्षेत्र का आखिरी गांव है टांडा। टांडा मु‌स्लिम बहुल गांव है। गांव के बाहर बस स्टैंड पर बैठे फुरकान खान साफ कहते हैं कि भाजपा सांसद ने कई काम कराए हैं, बागपत से यहां तक की सड़क भी बनवाई है, लेकिन यहां 80 फीसदी वोट लोकदल का है।

ये बातें कुछ हद तक तस्‍वीर साफ करती हैं कि इस बार अभी तक पश्चिमी उत्तर प्रदेश के चुनाव में हिंदू-मु‌स्लिम ध्रुवीकरण होने की संभावना न के बराबर है। साथ ही पुलवामा, बालाकोट के मुद्दे यहां ज्यादा असर नहीं कर रहे हैं। किसानों का संकट और बेरोजगारी ही बड़ा मुद्दा है जो जाति समीकरणों के अलावा चुनाव परिणामों को सबसे अधिक प्रभावित करेगा।

वैसे कुछ नाराजगी टिकट बंटवारे को लेकर भी है और इसका एक बड़ा मुद्दा कैराना से दिवंगत सांसद हुकुम सिंह की बेटी मृगांका का टिकट कटने का है। कैराना के पास गुर्जर बहुल गांव तितरवाड़ा में वीरेंद्र सिंह इस बारे में पूछने पर कहते हैं कि भाजपा को इसका नुकसान होगा। प्रदीप चौधरी कहते हैं कि राज्य सरकार में मंत्री सुरेश राणा और धर्मसिंह सैनी ने यह टिकट कटवाया है। खास बात यह है कि सुरेश राणा कैराना लोकसभा में आने वाली थाना भवन विधानसभा सीट से विधायक हैं और उप-चुनाव में रालोद की तबस्सुम हसन को उनकी सीट पर भाजपा की मृगांका से करीब 15 हजार वोट ज्यादा मिले थे। सुरेश राणा राज्य सरकार में गन्ना राज्यमंत्री हैं और उनको लेकर किसानों में भारी नाराजगी है। कई लोग उनके ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप की बातें भी करते हैं। यहां ट्यूबवेल के बिजली बिलों में बढ़ोतरी का मुद्दा भी है। हालांकि, किसान कहते हैं कि बिजली तो ज्यादा आ रही है लेकिन फसलों के दाम कम हैं। कमाई कम है तो ज्यादा बिल कैसे दें?

दिलचस्प बात यह है कि यहां से थोड़ा आगे सैनी बहुल गांव झाड़ खेड़ी के युवक सेना में जाने की तैयारी करते हुए गांव के बाहर मिलते हैं। वे पूरी तरह से भाजपा और मोदी समर्थक हैं। उनका कहना है कि हमारा पूरा गांव भाजपा का है। हालांकि गठबंधन में सपा के हिस्से में आने वाली इस सीट का समीकरण सपा के पक्ष में अधिक है। यहां मुसलमानों की बड़ी तादाद, दलितों का वोट और जाट मतों का गठबंधन के पक्ष में होना मौजूदा सांसद तबस्सुम की सपा के टिकट पर राह काफी हद तक आसान कर रहा है। हालांकि यहां से पूर्व राज्यसभा सदस्य कांग्रेस के हरेंद्र मलिक भी चुनाव लड़ रहे हैं। हरेंद्र मलिक बघरा सीट से कई बार विधायक रहे हैं और जाटों में कद्दावर नेता माने जाते हैं। उनके पुत्र पंकज मलिक शामली से विधायक रहे हैं, जो कैराना सीट का हिस्सा है। आउटलुक से बातचीत में हरेंद्र मलिक कहते हैं कि जाटों को अपना नेता चाहिए और उसका विकल्प मैं ही हूं। वहीं, कांग्रेस को मुसलमान वोट भी मिलेगा। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी यहां प्रचार के लिए आएंगे तो माहौल काफी बदल जाएगा। पिछले साल मई में उपचुनाव में कैराना सीट तबस्सुम हसन ने रालोद के टिकट पर जीती थी लेकिन अब वे सपा से चुनाव लड़ रही हैं। उप-चुनाव में रालोद की वजह से उन्हें अधिकांश जाट वोट मिले थे, जो निर्णायक रहा था। हालांकि रालोद उपाध्यक्ष जयंत चौधरी उनके लिए यहां कई सभाएं कर चुके हैं लेकिन अभी देखना है कि जाट वोटों का बंटवारा तो नहीं होता। दिलचस्प बात यह है कि यहां के खेड़ी करमू गांव में किसानों से बात करने पर साफ होता है कि पिछली बार उन्होंने भाजपा वोट दिया था लेकिन इस बार गन्ना भुगतान का मुद्दा, महंगी बिजली, महंगी खाद उन्हें भाजपा के खिलाफ ले गई है। शामली जिले के भैंसवाल गांव में किसानों के लिए आवारा गोवंश का संकट भी बड़ा है। रात 10 बजे गांव से बाहर युवा किसानों में एक अमित कुमार बताते हैं कि हमें तो जैसे चौकीदारी की नौकरी मिल गई। आवारा पशुओं से फसलों को बचाने के लिए हमें रात भर खेतों में ही रहना पड़ता है।

मजबूत दावेदारीः मुजफ्फरनगर की चुनावी सभा में अजित सिंह

असल में भाजपा ने किस तरह अति पिछड़ों को अपने पक्ष में करने में महारत हासिल की है, उसका एक उदाहरण पाल (गडरिया) समुदाय है। सहारनपुर के नानौता कस्बे से थोड़ा पहले खेतों में भेड़ों की ऊन उतार रहे कुल्हैड़ी गांव के बलराम की उम्र 36 साल है। जब उनसे पूछा गया कि भेड़ की ऊन किस भाव बिक रही है तो करीब 65 भेड़ पालने वाले बलराम कहते हैं कि हम तो इसे यहां खेत में ही फेंक देंगे क्योंकि अब इसका कोई दाम नहीं मिलता है। पहले पानीपत में ऊन को काम में लेने वाली इकाइयां थीं, जो अब बंद हो गई हैं। अब भेड़ केवल गोश्त के लिए ही पालते हैं। चार माह की भेड़ 12 हजार रुपये में और एक साल की भेड़ करीब 30 हजार रुपये में बिक जाती है। बात जब वोट की आती है तो वे कहते हैं कि हमें मोदी ने कुछ नहीं दिया है। न घर दिया है, न शौचालय दिया है और न गैस दी है। लेकिन वोट तो कमल के फूल पर ही देंगे क्योंकि उन्होंने हमें इज्जत दी है। उनके साथ मौजूद करीब 50 साल के यशपाल सिंह का गांव मुगल माजरा है। वे कहते हैं कि भाजपा ने मुसलमानों का दबदबा खत्म किया है। हम मुस्लिम बहुल गावों से हैं। पहले हम सिर झुका कर चलते थे लेकिन अब हम सिर ऊंचा करके चलते हैं। रामपुर मनिहारान में मोबाइल फोन की दुकान चलाने वाले नौशाद अहमद और संजय वर्मा के मुताबिक मोदी सरकार का कामकाज अच्‍छा रहा है। यहां कुछ घर कोरी समाज के भी हैं और वे भाजपा समर्थक हैं। हालांकि सहारनपुर के सांसद राघव लखनपाल को लेकर इन लोगों की एक-सी राय है कि वे कभी लौटकर नहीं आते और बहुत ही अलोकप्रिय हैं, यहां उन्होंने कोई काम नहीं किया लेकिन वोट तो मोदी के लिए है।

सहारनपुर की लोकसभा सीट ऐसी है, जो उत्तर प्रदेश की पहले चरण के मतदान की आठ सीटों में भाजपा के लिए कुछ राहत देने वाली हो सकती है, बशर्ते कांग्रेस के उम्मीदवार इमरान मसूद मुसलमानों के ज्यादातर वोट ले जाएंगे। यहां मुसलमान और दलितों की संख्या 60 फीसदी के आसपास है। गठबंधन से यह सीट बसपा के खाते में आई है और यहां से हाजी फजलुर रहमान बसपा के उम्मीदवार हैं। पेशे से मीट कारोबारी रहमान दलित और मुस्लिम वोटों को जोड़ने की जुगत में लगे हैं। उनसे सहारनपुर से बाहर सड़क पर दुधली गांव में मुलाकात होती है। स्थानीय मस्जिद में जुमे की नमाज अदा करने के बाद वे जाटव समुदाय के आंबेडकर भवन में अपनी नुक्कड़ सभा करते हैं। इस गांव में दलित और मुसलमान लगभग बराबर हैं। आउटलुक से बातचीत में वे कहते हैं कि गठबंधन यहां मजबूत स्थिति में है। हमारा मुकाबला सीधा भाजपा से है और कांग्रेस के इमरान मसूद चुनावी मुकाबले से बाहर हैं। हालांकि सहारनपुर में इमरान का अच्छा-खासा असर है, इसलिए मुसलिम वोट नहीं बंटेंगे, कहना मुश्किल है।

- रणनीतिः सड़क दुधली गांव में नुक्कड़ सभा के दौरान सहारनपुर से बसपा के उम्मीदवार हाजी फजलुर रहमान (बाएं से चौथे)

सहारनपुर से देवबंद के रास्ते में नांगल में चाय की दुकान चलाने वाले इकबाल कहते हैं कि इमरान को वोट मिलेगा। योगेंद्र राणा यहां ऑटो पार्ट्स की दुकान चलाते हैं। वे यह भी मानते हैं कि धंधा काफी कम हो गया है लेकिन उनका कहना है कि यहां का राजपूत वोट पूरी तरह से भाजपा के साथ है। मोदी सरकार द्वारा मकान, शौचालय और गैस कनेक्शन जैसे फायदे देने के बारे में पूछने पर यहां मौजूद नजीर कहते हैं कि इस सब में रिश्वत बहुत है। प्रधान और सेक्रेटरी को पैसा दिए बिना इसमें से कुछ भी नहीं मिलता है। उनका कमीशन 30 फीसदी तक जाता है।

वैसे सपा-बसपा-रालोद गठबंधन 7 अप्रैल को इस्लामी तालीम के केंद्र और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण देवबंद में एक संयुक्त रैली कर रहा है। इसका मकसद वोटों के बंटवारे को रोकना है। यहां लोग भीम आर्मी के चंद्रशेखर रावण के जाटव मतों पर असर को अहम नहीं मानते हैं और उनका कहना है कि दलित वोट गठबंधन के साथ जा रहा है। असल में देवबंद के आसपास मुस्लिम वोट एकतरफा गठबंधन की तरफ जाता दिखता है। यहां दारुल उलूम से करीब दो किलोमीटर दूर त्रिवेणी चीनी मिल के बाहर अमरपुर गढ़ी के शाहनवाज साफ कहते हैं कि सारा मुस्लिम वोट गठबंधन को जाएगा। वहीं, यहां मौजूद रणखंडी गांव के प्रवींद्र पुंडीर कहते हैं कि राजपूत वोट भाजपा को जाएगा। सहारनपुर सीट पर जाट वोट अधिक नहीं है लेकिन उसके गठबंधन में जाने की संभावना अधिक है। वैसे, यहां योगेश दहिया आम आदमी पार्टी के टिकट पर लड़ रहे हैं। वे जाट हैं और कुछ जाट वोट उनको मिलने की संभावना है।

अब बात आती है कि इस क्षेत्र की सबसे हाइप्रोफाइल सीट मुजफ्फरनगर की। यहां से पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री संजीव बालियान भाजपा के उम्मीदवार हैं। 2014 में संजीव ने यह सीट रिकॉर्ड मतों से जीती थी। इसकी सबसे बड़ी वजह मुजफ्फरनगर दंगों के चलते मतों का भारी ध्रुवीकरण था। उनके सामने बसपा के कादिर राणा ने चुनाव लड़ा था। लेकिन इस बार गठबंधन में यह सीट रालोद के खाते में आई है और यहां से रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह चुनाव लड़ रहे हैं। उनका कहना है कि 2014 में मुजफ्फरनगर ने भाजपा की लहर बनाई थी लेकिन इस बार वे यहां हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल कायम करने के लिए लड़ रहे हैं। यहां मुकाबला काफी दिलचस्प हो गया है। आउटलुक के साथ बातचीत में संजीव बालियान कहते हैं कि मैं तो स्थानीयता के मुद्दे को केंद्र में रखकर चुनाव लड़ रहा हूं। पांच साल में जितना काम मैंने मुजफ्फरनगर में किया है, किसी सांसद ने नहीं किया है। मैं क्षेत्र के हर गांव में कम से कम पांच बार गया हूं जबकि कुछ गांवों में 50 बार तक गया हूं। मेरे इलाके में गन्ना पेमेंट की दिक्कत नहीं है। आठ में से सात चीनी मिलों ने अच्छा पेमेंट किया है। जबकि चौधरी साहब जब बागपत के सांसद थे तो उनके इलाके की दो मिलों मलकपुर और मोदीनगर पेमेंट में सबसे अधिक खराब रही हैं। मैं दो नए नेशनल हाइवे समेत सड़कों और रेलवे का प्रोजेक्ट लेकर आया हूं। कोई गांव नहीं है जहां सांसद निधि से काम नहीं हुआ है। वे साफ करते हैं कि चौधरी साहब बड़े और राष्ट्रीय नेता हैं। लेकिन जिस तरह से उनको कैंपेन करना पड़ रहा है, वैसा उन्होंने कभी नहीं किया होगा। बागपत सीट पर उतने गांव नहीं देखे होंगे, जितने यहां देख लिए हैं।

संजीव मानते हैं कि मुकाबला काफी कड़ा है लेकिन एक बात साफ है कि मैं हार गया तो मेरा कुर्ता खूंटी पर टंग जाएगा। यानी राजनीति खत्म हो जाएगी। वरना यह हमेशा के लिए तय हो जाएगा कि जाट वोट किसके साथ है। खास बात यह है कि यहां अच्छा-खासा जाट वोट है। लेकिन मुस्लिम वोट भी पांच लाख से ज्यादा हैं। ऐसे में नतीजा इस बात से तय होगा कि जाट वोट भाजपा को कितना मिलता है और अजित सिंह को कितना मिलता है। लेकिन यह बात साफ है कि दलित वोट गठबंधन को जा रहा है। दौराला से थोड़ा पहले है कनौड़ा गांव जो पूरी तरह से जाटव बहुल है। हाइवे से करीब आधा किलोमीटर अंदर जाने के बाद वहां मौजूद युवा पास आ जाते हैं। चुनाव के बारे में पूछने पर वे साफ कहते हैं कि यहां तो सारा वोट नलका पर यानी रालोद को जाएगा। यहां सुनील के पास चार बीघा जमीन है, बाकी कमाई वह खेत मजदूरी से करते हैं। वे कहते हैं कि पिछली बार विधानसभा में भाजपा के संगीत सोम को वोट दिया था लेकिन इस बार करीब 700 वोट वाले इस गांव का सारा वोट गठबंधन को जाएगा क्योंकि बहन जी उसका हिस्सा हैं। वहां मौजूद करीब दर्जन भर लोग उनकी बात से सहमत हैं।

वैसे यहां से थोड़ी दूर ही मेरठ बाइपास के नजदीक 28 मार्च को हुई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली भी काफी चर्चा में है। मुजफ्फरनगर में दीपक राठी इस रैली पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं कि बसें खाली गई थीं, एक-एक बस में पांच-सात आदमी ही थे। वहीं मेरठ में शास्‍त्रीनगर में मेरठ-हापुड़ लोकसभा सीट के भाजपा प्रत्याशी राजेंद्र अग्रवाल के मुख्य चुनाव कार्यालय में आलोक कुमार हमें रैली की फोटो दिखाकर बताने की कोशिश करते हैं कि भीड़ बहुत थी। वैसे, राजेंद्र अग्रवाल तीसरी बार लोकसभा के लिए चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन इस बार उनका मुकाबला गठबंधन के संयुक्त प्रत्याशी बसपा के हाजी मोहम्मद याकूब से है। यहां राजेंद्र अग्रवाल के कामकाज को लेकर अच्छी खासी नाराजगी है। लेकिन आउटलुक से बातचीत में अग्रवाल कहते हैं कि जीत तो पक्की है अब मार्जिन बढ़ाने के लिए ज्यादा मेहनत हो रही है। यहां की पांच विधानसभा सीटों में एक सपा के पास है।

असल में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की इन छहों सीटों पर मुस्लिम वोट पांच लाख से लेकर सात लाख तक हैं। दलित वोट दो लाख से लेकर चार लाख तक हैं। सबसे अधिक दलित सहारनपुर और बिजनौर सीट पर हैं। ये दोनों सीटें बसपा लड़ रही है। बिजनौर से बसपा ने मलूक नागर को टिकट दिया है जबकि भाजपा की ओर से मौजूदा सांसद कुंवर भारतेंदु ही लड़ रहे हैं। पूरे इलाके में गठबंधन और स्थानीय जातिगत समीकरण ही निर्णायक साबित होंगे। यहां इस बार 2014 की तरह कोई मोदी लहर नहीं है और न ही हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण है। लेकिन यह बात भी साफ है कि वैश्य, ब्राह्मण, ठाकुर जैसी अगड़ी जातियों के अलावा कश्यप, प्रजापति, कोरी, पाल और सैनी जैसी पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों को भाजपा ने अपने पाले में बहुत मजबूती से खींचा है। वैसे भी इनमें से अधिकांश का कृषि संकट और अावारा पशुओं से लेकर गन्ना पेमेंट जैसी दिक्कतों से सीधे-सीधे कुछ लेना-देना नहीं है। लेकिन यह भी सच है कि बेरोजगारी, किसानों का संकट और गठबंधन का समीकरण बहुत हद तक भाजपा के लिए परेशानी का सबब बनने जा रहा है। इसलिए पहले चरण की इन सीटों के संदेश दूर तक जाएंगे, जैसा कि 2014 के चुनाव में भी हुआ था।  

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement