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किसानों के लिए अपनी सरकार से भी लड़ा

लोकसभा के पहले चरण में जिन जगहों पर चुनाव होना है, उनमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश भी एक है। यहां की...
किसानों के लिए अपनी सरकार से भी लड़ा

लोकसभा के पहले चरण में जिन जगहों पर चुनाव होना है, उनमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश भी एक है। यहां की मुजफ्फरनगर सीट से भाजपा की तरफ से संजीव बालियान एकबार फिर मैदान में हैं, तो यूपी में महागठबंधन के उम्मीदवार की तरफ से आरएलडी के मुखिया चौधरी अजीत सिंह उनके सामने हैं। चुनावी तैयारियों, मुद्दों और किसानों की नाराजगी जैसे अहम सवालों पर संजीव बालियन से बात की आउटलुक के संपादक हरवीर सिंह ने। मुख्य अंशः  

आपके हिसाब से मुजफ्फरनगर में समीकरण क्या हैं?

अगर सच पूछिए, तो पता नहीं। हम तो चुनाव लड़ रहे हैं। मैं लगातार लोगों के बीच हूं। मेरे लिए तो सबसे बड़ा मुद्दा यही है कि मैं 24 घंटे लोगों के बीच हूं। मेरे लोकसभा क्षेत्र में ऐसे भी गांव है, जहां मैं 50-60 बार गया। लगभग हर महीने जाता हूं। और, ऐसा तो कोई गांव नहीं जहां मैं पांच-छह बार नहीं गया। मेरे लोकसभा क्षेत्र में मेरठ-करनाल रोड और पानीपत खटीमा रोड दो नेशनल हाईवे बने हैं। रेलवे के दोहरीकरण का काम जो आजादी के बाद से लंबित पड़ा था, वह पूरा हो चुका है। मैंने ही ट्रेनों का इलेक्ट्रिफिकेशन भी कराया।

गन्ने की समस्या अब भी बनी हुई है। इस पर क्या कहना है?

यह तो शुरू से है। आजादी के बाद आज भी यह बनी हुई है। अजीत सिंह किसानों की बात करते हैं, लेकिन पिछले पांच साल में किसानों की बात को लेकर हमारे पास एक बार भी नहीं आए।  

सरकार ने गन्ना भुगतान को लेकर समय पर कार्रवाई नहीं की। आपका क्या कहना है?

सरकारें जिस तरह से काम करती हैं, उसमें समय तो लगता ही है। जैसे हमने 2016 में ही बायो फ्यूल को लेकर ड्राफ्ट बनाकर दे दिया था, लेकिन लागू हुआ 2018 में। चूंकि सब कुछ नीतियों से बनना है कि सरकार कितना देगी और कितना नहीं। जब तक नीति नहीं बनेगी, तब तक कुछ नहीं कहा जा सकता। यह वादा नहीं, कानून की बात है। लेकिन कानून को लागू नहीं किया जा रहा। इसलिए तो जब बात किसान की होती है तो मैं सरकार से भी लड़ता हूं। या तो कोई फंड बनाए सरकार कि जिससे गन्ना किसान को भुगतान होता रहे। इस समाधान के लिए कोई क्रांतिकारी कदम उठाना पड़ेगा। यह सच है कि सामान्य प्रयासों से यह नहीं हो सकता।

आपके हिसाब से क्या क्रांतिकारी कदम हो सकते हैं?

जैसे, जब मैं कृषि राज्य मंत्री था तो पहली बार मिनिमम सेलिंग प्राइस लेकर आया था। मिनिमम सपोर्ट प्राइस (एमएसपी) की जगह मिनिमम सेलिंग प्राइस लाने की बात कही थी। उस समय कई लोगों ने मेरा मजाक उड़ाया कि यह नहीं हो सकता। वे कहने लगे कि पूरा सिस्टम, बाजार चरमरा जाएगा। उस समय मुझे बताया गया कि यह नहीं हो सकता। लेकिन 2018 में चीनी के लिए पहली बार देश में मिनिमम सेलिंग प्राइस लाया गया। आने वाला समय इसी का है। अगर खेती और किसानों को बचाना है तो इसे लागू करना ही पड़ेगा।

यानी उपभोक्ता को मिनिमम प्राइस देना पड़ेगा।

इससे यह भी होगा कि बिचौलिया निकल जाएंगे। तो उपभोक्ता को उतना ही देना पड़ेगा, जितना दे रहे हैं। अब जैसे आज प्याज दो रुपये किलो ले लिया और 20 रुपये किलो बेच दिया। तो कंज्यूमर को फर्क नहीं पड़ रहा है। बस बिचौलिया निकल जा रहा है और किसान को फायदा हो रहा है।

आपने नेशनल बायो फ्यूल पॉलिसी के बारे में क्या कदम उठाए?

मैं इस पॉलिसी को लेकर लगातार सक्रिय रहा। 2004 से इस पॉलिसी में रहा हूं और 2016 में हमने ड्राफ्ट बनाकर दिया। लेकिन लागू होने में समय लग गया। पर देर आए, दुरुस्त आए। कुछ क्रांतिकारी कदम उठाए, कुछ हुआ तो। अगर हम यह सोचें कि देर हो गई, लेकिन किसी ने किया तो नहीं आज तक।

लेकिन किसान तो बहुत नाराज है। क्योंकि आप लोगों ने वादा किया था। उन्होंने सपा-बसपा को देख लिया था। फिर आप केंद्र और राज्य में भी आएतो उनको आपसे उम्मीदें थीं।

किसान की बात जायज है। लेकिन मेरे जिले में किसी को समस्या नहीं। बस मेरे जिले में एक शूगर मिल की समस्या है। यहां आठ शूगर मिल हैं, उनमें एक की समस्या है। वो शामली और बागपत में होगी समस्या, लेकिन मेरे यहां ठीक है। बजाज को छोड़कर सबका पेमेंट ठीक है। दिक्कत बागपत और शामली की है, क्योंकि लोग लड़ते नहीं। अब कोई आकर यहां कहे कि मैं ज्यादा कर दूंगा। तो मलूकपुर वालों का अभी तक क्यों नहीं किया। मंत्री रहते हुए भी जब आप मलूकपुर वालों को पेमेंट नहीं दिलवा पाए, तो यहां क्या दिलवागे।

तो आपकी उपलब्धि यही रही कि आठ में से सात शूगर मिलों में पेमेंट ठीक रहा है।   

इसकी वजह है कि मैं किसानों के लिए लड़ा हूं। अपने सरकार में भी लड़ा है। लोग तो दूसरी सरकार में लड़ते हैं। मैं अपनी सरकार में लड़ता हूं। उनमें और मुझमें यही फर्क है।

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