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समझदारी काम आती है तेजी नहीं: त्रिवेंद्र रावत

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभालने के साथ ही त्रिवेंद्र सिंह रावत की तुलना उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तेजी और तेवरों से की जा रही है। जबकि रावत मानते हैं कि पहाड़ में पहाड़ के हिसाब से रफ्तार रखनी पड़ती है।
समझदारी काम आती है तेजी नहीं: त्रिवेंद्र रावत

आउटलुक के संपादक हरवीर सिंह के साथ खास बातचीत में त्रिवेंद्र रावत ने अपने 100 दिन के कार्यकाल और राजनैतिक जीवन के बारे में खुलकर बात की। पेश हैं प्रमुख अंश:

आपका राजनीति में प्रवेश कैसे हुआ?

शायद नियति में था ऐसा होना। वैसे चुनावी राजनीति में मेरी दिलचस्पी नहीं थी। कॉलेज लाइफ में राजनीति में रहे लेकिन चुनाव दूसरों को लड़वाया। संघ का कार्यकर्ता होने के नाते विचारधारा से तो शुरू से ही जुड़ा था। 1993 में यूपी चुनाव के समय प्रस्ताव आया कि आप चुनाव लड़ लीजिए। लेकिन चुनाव लड़ने में मेरी कोई रुचि नहीं थी। इस बीच संगठन का काम करता रहा। 2000 में जब उत्तराखंड बना तब भी संगठन का काम कर रहे थे। उस समय नरेन्द्र भाई मोदी हमारे प्रभारी थे, मैं प्रदेश का संगठन मंत्री था। उस समय एक बार फिर मेरे सामने प्रस्ताव आया कि आप सीधे तौर पर राजनीति में आइए। मैंने नरेन्द्र भाई से पूछा कि क्या करना चाहिए। सच्चाई यह है कि उस समय मैं पार्टी का सदस्य भी नहीं था, जबकि 10 साल से संगठन का काम कर रहा था। नरेन्द्र भाई ने कहा कि पहला काम यह करो कि पार्टी के मेंबर बनो और संगठन के लोगों की इच्छा है तो चुनाव लड़ लेना चाहिए। इसके बाद कुशाभाऊ ठाकरे ने तो मुझे 2002 में चुनाव लड़ने का आदेश ही दे दिया। इस तरह चुनावी राजनीति में मेरा प्रवेश हुआ। उस समय पार्टी के 19 विधायकों में से एक मैं भी था।

क्या आपको मुख्यमंत्री बनने की उम्मीद थी?

इस बार थोड़ा-सा एहसास था कि जिम्मेदारी मिल सकती है। लेकिन मैं एक बार भी दिल्ली नहीं आया। किसी से संपर्क करने की कोशिश नहीं की। अक्सर लोग चुनाव के बाद दिल्ली की तरफ दौड़ते हैं। जिस दिन परिणाम आया मैं राज्य से बाहर चला गया था। यही हमारी पार्टी की खासियत है कि कार्यकर्ता की पहचान होती है। मुझे सबसे पहले अमित जी का फोन आया कि दिल्ली आ जाओ। दिल्ली पहुंचा तो उन्होंने बताया कि मुझे उत्तराखंड की जिम्मेदारी देने पर विचार किया है। लेकिन यह भी सच है कि जब मैंने चुनाव जीता तो कार्यकर्ताओं को विश्वास था कि मुझे यह जिम्मेदारी मिलेगी।

यूपी के मुख्यमंत्री भी आपके जिले से ही हैं। उनकी कार्यशैली के साथ आपकी तुलना हो रही है। कहा गया कि त्रिवेंद्र रावत धीमे चल रहे हैं। इस बारे में क्या सोचना है?

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की तुलना करना उचित नहीं है। उत्तर प्रदेश की अपनी अलग समस्याएं हैं। जैसे स्लॉटर हाउस की समस्या उत्तराखंड में है ही नहीं। यूपी में यह बड़ी समस्या है। जब मैं उत्तराखंड का कृषि मंत्री था तब भारत सरकार की बैठकों में यूपी के मंत्री स्लॉटर हाउस की समस्या से अवगत कराते रहते थे। जबकि उत्तराखंड में एक भी बड़ा स्लॉटर हाउस नहीं है। इसी तरह हमारे राज्य में एंटी रोमियो दस्ते की जरूरत नहीं थी। इस तरह का काम हमारे यहां पहले से हो रहा है, बस उसका नाम अलग है। यूपी में अपराध की जितनी घटनाएं एक जिले में होती हैं, हमारे प्रदेश में साल भर में होती होंगी। हमारी चुनौतियां भिन्न तरह की हैं। मैं पहाड़ी राज्य का मुख्यमंत्री हूं। मेरे यहां जो धीरे-धीरे चलेगा वही टॉप तक पहुंचेगा। मेरे यहां दौड़कर नहीं पहुंचा जा सकता।

आपने भी तय किया था कि 100 दिनों में क्या-क्या करेंगे? उस पर कितना अमल हुआ? 

इस दौरान हमने बहुत बड़ी उपलब्धियां हासिल कीं। बरसों से मुजफ्फर नगर-देवबंद-रुड़की रेल लाइन का मसला अटका हुआ था। हमने इस पर निर्णय लिया। इससे देहरादून से दिल्ली का सफर साढ़े तीन घंटे में तय हो पाएगा। इसी तरह हमने हरिद्वार-देहरादून, हरिद्वार-ऋषिकेश मेट्रो लाइन का निर्णय लिया है। देहरादून, हरिद्वार और नैनीताल के लिए भूमिगत विद्युत केबलिंग के लिए योजना बनाई है। इस पर लगभग साढ़े सत्रह सौ करोड़ रुपये का व्यय होगा। इस बीच हमने तीन बड़े संस्थान-हॉस्पिटैलिटी यूनिवर्सिटी, सीपैट और निफ्ट हासिल किए हैं। हम एक आईटी पार्क भी बनाएंगे। एनडी तिवारी ने जो आईटी पार्क बनाया था, उसकी जमीन हरीश रावत सरकार ने प्रॉपर्टी डीलरों को बेच दी थी। इसके अलावा हमने 13 जिलों में 13 नए पर्यटन केंद्र विकसित करने का निर्णय लिया है। ट्रैफिक की समस्या से निजात दिलाने के लिए सेलाकुई से डूंगा, हाथीपांव होते हुए मसूरी रोड बनाई जाएगी।

औद्योगिक विकास के लिए क्या करेंगे?

औद्योगिक विकास के लिए हम सिंगल विंडो सिस्टम पर जोर दे रहे हैं। इस साल के आखिर में एक इन्वेस्टर्स मीट भी देहरादून में करने जा रहे हैं। चीन, मलेशिया, जापान, पौलैंड के निवेशकों ने राज्य में निवेश की इच्छा जताई है। चीन के उद्योगपति ने 700 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट हमारे सामने रखा है। उत्तराखंड में कानून व्यवस्था और बिजली की कोई समस्या नहीं है।

आप से पहले उत्तराखंड में जो सरकार थी, उस पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे थे। क्या आप उनकी जांच कराएंगे?

हम केवल जांच के लिए जांच नहीं करना चाहते। जैसे एनएच-74 का मसला है। इसमें साफ-साफ गड़बड़ी नजर आ रही थी, इसलिए तत्काल सीबीआई जांच का निर्णय लिया गया। हमने छह पीसीएस अफसर एक साथ सस्पेंड किए। एसआईटी बनाई जो अपना काम कर रही है। जहां भी भ्रष्टाचार दिखेगा, हम कार्रवाई करेंगे। लेकिन किसी को उलझाने या राजनीतिक द्वेष के लिए जांच नहीं करेंगे। ऐसा मेरा स्वभाव नहीं है।

एनएच घोटाले पर नितिन गडकरी का बयान था कि सीबीआई जांच से एनएचएआई का काम प्रभावित होगा। इसे लेकर आपका क्या रुख है?

उनका सिर्फ इतना कहना था कि इसमें एनएचएआई का कोई मतलब नहीं है। वह फंडिंग एजेंसी है, राज्य सरकार ने जितना मांगा उतना पैसा उनके अकाउंट में भेज दिया। अब किसको कितना पैसा देना है, यह राज्य सरकार का विषय है। उन्होंने कहा कि उन्हें लगता है कि एनएचएआई का इसमें कोई हाथ नहीं है। इससे उनका मनोबल गिरता है। काफी हद तक उनकी बात जायज लगती है। फिर भी हमने कहा कि जांच हो जाने दीजिए। भारत सरकार के कर्मचारी हों या राज्य सरकार के कर्मचारी, अगर किसी ने गड़बड़ी की है तो उसे दंड मिलना चाहिए। इसलिए स्वतंत्र रूप से जांच चल रही है। सीबीआई को जांच भेजने का यही मकसद था।

आपकी सरकार में कई ऐसे मंत्री हैं जो कांग्रेस से आए हैं। उनके साथ तालमेल कैसा है? इनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले खुले तब क्या होगा? 

जब सरकार बनी थी, तब हमने कहा था कि हम भ्रष्टाचार मुक्त सरकार देंगे। आजकल एक फैशन सा हो गया है कि लोकपाल लागू करोगे, नहीं करोगे.. वगैरह-वगैरह। सामान्य लोग जिसे इसके बारे में ज्ञान नहीं है, वह भी ऐसी बातें करते हैं। हमारा कहना है कि हम ऐसा काम ही क्यों करते हैं कि लोकायुक्त की जरूरत पड़े। हम साफ-सुथरी सरकार क्यों नहीं देते? पहले बीमारी पैदा करें फिर डॉक्टर ढूंढें यह बात ठीक नहीं। इसलिए बीमारी ही न हो तो डॉक्टर की जरूरत ही नहीं होगी। मैं कह सकता हूं कि हमारी जो सरकार है, हमारे मंत्री हैं उन्होंने भाजपा को स्वीकार किया है। वे सब अनुभवी हैं। उनमें से कुछ ऐसे भी हैं जो पहले भाजपा के साथ रहे हैं। वे भाजपा की कार्य-संस्कृति को समझते हैं। किन्हीं कारणवश बाहर चले गए थे। अब सोचने समझने के बाद भाजपा में वापस आए हैं। इसलिए किसी तरह की दिक्कत नहीं है।

उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाओं से निपटने की क्या तैयारी है?

आपदा प्रबंधन के लिए हम डोप्लर राडार लगा रहे हैं। दूसरा, आईआईटी रुड़की ने ऐसे उपकरण बनाएं हैं, जो भूकंप से 60-65 सेकेंड पहले अलर्ट कर देते हैं। इन उपकरणों की मदद ली जाएगी। इसके अलावा टाटा समूह की मदद से आपदा प्रभावित चमोली, उत्तरकाशी, टिहरी, पिथौरागढ़ जिलों में आपदा प्रबंधन संस्थान खोले जाएंगे। इस पर सहमति बन चुकी है। केदारनाथ में जो आपदा आई इसके बाद बहुत सारे सवाल उठे। इसलिए कोशिश है कि जो भी निर्माण हो, उसमें भूकंपरोधी तकनीक का इस्तेमाल किया जाए। 

शराबबंदी को लेकर राज्य में महिलाओं का आंदोलन चला। पिछली सरकार में एक ब्रांड को लेकर काफी चर्चा हुई थी। इस बारे में आपकी क्या नीति है?

हम शराब को प्रोत्साहित नहीं करेंगे। इसके लिए हमने तीन काम किए हैं। पहला, शराब की दुकानों के समय में छह घंटे की कटौती की है। दूसरा, एकाधिकार खत्म किया है। शराब पर हमने दो प्रतिशत का सेस लगाया है, जिसका इस्तेमाल महिला उत्थान, सामाजिक गतिविधियों पर करेंगे। उत्तराखंड में 527 दुकानें थीं, जिनमें से हमने लगभग 100 दुकानें कम कर दी हैं। शराबबंदी के अनुभव भी हमारे देश में बहुत सुखद नहीं रहे हैं। उनसे भी सीख लेने की जरूरत है।

उत्तराखंड में रोजगार पैदा करने और पलायन रोकने के लिए आपकी क्या रणनीति है?

पलायन दो तरह के हैं। एक मजबूरी में है, और दूसरा नौकरी वगैरह के लिए है। यह एक चक्र है जिसे कोई रोक नहीं सकता। रोजगार के लिए लोगों ने पलायन किया। इसलिए तीन चीजों पर हमारा फोकस है-शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार। इसके लिए हमने फैसला लिया, जिसमें दो प्रतिशत की ब्याज दर पर किसानों को ऋण उपलब्ध करा रहे हैं। स्वास्थ्य को लेकर भी ऐसा पहली बार हुआ है कि जिला अस्पतालों में एक साथ 10-12 पोस्टिंग की है। पहली बार हमने उत्तराखंड के पहाड़ों पर 93 डॉक्टर भेजे हैं। श्रीनगर के मेडिकल कॉलेज को सेना को देने का निर्णय लिया है। सस्ती दवाइयों के लिए जेनेरिक दवाओं के इस्तेमाल को प्रोत्साहित किया गया। 

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