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गौवंश से बढ़ेगा राजनैतिक कुनबा

बीते दिनों जब पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय तथा पशुपालन, डेयरी एवं मत्स्य पालन विभाग ने दिल्ली में गौ शालाओं पर एक दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया तो गौ शालाएं अचानक से खबरों में आ गईं। अब तक गौ शालाओं का संचालन ऐसा काम नहीं था जिस पर चर्चा की जाए। हिंदुत्व, गाय, गंगा के मुद्दे पर हमेशा ही मुखर रहने वाली मौजूदा सरकार ने अब गौ शालाओं पर काम करना शुरू किया है।
गौवंश से बढ़ेगा राजनैतिक कुनबा

सरकार के एजेंडे में गंगा के साथ गाय भी अहम मुद्दा है और कोशिश की जा रही है कि गौ पालकों को सुविधाएं दी जाएं और लोगों को गाय पालने के लिए प्रेरित किया जाए ताकि गायों की स्थिति में सुधार हो और सड़कों पर घूमने वाली गायों की संख्या में कमी आए। सरकार की योजना है कि गाय के दूध के अलावा इसके अन्य उत्पाद जैसे गौमूत्र, गोबर के इस्तेमाल के प्रति भी चेतना आए ताकि जब गाय दूध देने के काबिल न रहे तो पालक उसे सड़क पर न छोड़ दें। गौ पालकों के सेमीनार में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रकाश जावडेकर ने कहा था कि गांवों को पारंपरिक रूप से इस तरह बनाया गया था जिससे वहां रहने वालों को सुविधाएं मिलती थीं और पशुओं के लिए चारा उपलब्ध होता था लेकिन अब ऐसा होने में कठिनाई हो रही है। इसे फिर ठीक करने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। हालांकि भारत में पूरी दुनिया के मुकाबले सबसे ज्यादा पशुधन है लेकिन पशु पालकों को कई मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। गाय वैसे तो भारत में पूजनीय है लेकिन सबसे ज्यादा इसी पशु की दुर्दशा है।

गाय के दुधारू न होने पर मालिक इसे सड़क पर छोड़ देते हैं और कई बार गाएं भूख-प्यास या पॉलीथिन खाने से मर जाती हैं। फिर भी उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में कुछ जगहों में स्थिति अच्छी है। उत्तर प्रदेश में चलने वाली कामधेनु योजना की वजह से दुग्ध उत्पाद बढऩे इसे डेनमार्क भी कहा जाने लगा है। अखिलेश सरकार की कामधेनु योजना के कारण प्रदेश में दूध आपूर्ति की स्थिति में सुधार हुआ है। इस योजना के तहत सौ दुधारू पशु प्रदेश के बाहर से खरीदने पर सरकार आर्थिक मदद करती है। इस मदद में लागत की 75 प्रतिशत राशि बैंक से बारह प्रतिशत सालाना ब्याज की दर से ऋण के रूप में दिलाना और पहले पांच सालों तक इसका ब्याज सरकार द्वारा देना शामिल है। सरकार ने 31 मार्च, 2017 तक प्रदेश में तीन सौ ऐसी डेयरी खोलने का लक्ष्य रखा है। चूंकि प्रदेश में नब्बे प्रतिशत कृषक लघु एवं सीमांत श्रेणी में आते हैं अत: उन्हें भी इस योजना से जोड़ने के लिए अब मिनी कामधेनु और माइक्रो कामधेनु योजना शुरू की गई है।

मिनी कामधेनु में जहां पचास दुधारू पशु रखने होंगे, वहीं माइक्रो कामधेनु में पच्चीस पशु प्रदेश के बाहर से खरीदने की शर्त है। मात्र 6 लाख 74 हजार रुपये की लागत से कृषक इस योजना से जुड़ सकते हैं अत: इसे लेकर प्रदेश में उत्साह है। भैंस के मुकाबले गाय सस्ती होने के कारण अधिकांश कृषक गाय ही खरीद रहे हैं। चूंकि इस योजना में जर्सी, साहिवाल और इनकी दोगली प्रजाति की खरीद की ही अनुमति है अत: यह गाय खूब खरीदी जा रही हैं। प्रदेश के पशु धन मंत्री राजकिशोर सिंह बताते हैं कि अगले वित्त वर्ष समाप्त होने से पहले 15 सौ मिनी कामधेनु डेयरियां और पच्चीस सौ माइक्रो कामधेनु डेयरियों का लक्ष्य रखा गया है। वह बताते हैं कि प्रदेश में सालाना 242 लाख मीट्रिक टन दूध का उत्पादन होता है जो देश भर में सर्वाधिक है। हालांकि प्रदेश में जानवरों की संख्या देखते हुए यह बेहद कम है। अत: कामधेनु योजना शुरू की गई और इसके सुखद परिणाम भी मिल रहे हैं। वहीं मध्य प्रदेश में भी लुप्त होती देशी नस्ल की गायों को बचाने और गौ संवर्धन काम तेजी से चल रहा है। इसका श्रेय पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को जाता है। उनका गौ प्रेम जग जाहिर है। उन्होंने गौ संरक्षण के लिए जो काम किया, परिणाम अब मिलने लगे हैं।

मध्य प्रदेश में सामाजिक संस्थाओं के साथ राज्य की सभी 11 केंद्रीय जेलों और देवास जिला जेल के अहाते में गौ शालाएं संचालित हो रही हैं। नगर निगम आवारा, बूढ़ी और त्यागी हुई गायों को कांजी हाउस के बजाय जेलों की गौ शालाओं में भेज देता है। इन गायों की सेवा के साथ प्रजनन कराकर गौ वंश की वृद्धि भी की जा रही है। केंद्रीय जेलों में गौशाला की अवधारणा को लाने वाले जेल अधीक्षक गोपाल ताम्रकार थे। सन 2004 में उन्होंने ग्वालियर केंद्रीय जेल में इसकी शुरुआत की थी। बाद में सभी जेलों में गौ शालाएं खुल गईं। अभी उज्जैन जेल अधीक्षक का काम देख रहे ताम्रकार ने जेल परिसर में श्रीकृष्ण मधुबन गौ शाला में ढाई सौ गाएं पालने का काम ले रखा है। ताम्रकार बताते हैं कि गौ संवर्धन बोर्ड से भी इसके लिए पैसा मिलता है और अब जेल विभाग भी अनुदान देने लगा है। मध्य प्रदेश मेें गौ वंश की रक्षा के लिए सन 2004 से गौ पालन एवं पशु संवर्धन बोर्ड संचालित है। दरअसल, आजादी के समय भारत में गाय की सवा सौ से ज्यादा नस्लें थीं। लेकिन धीरे-धीरे इनका आंकड़ा 50 से कम रह गया है। मध्य प्रदेश में अब गौ संवर्धन के लिए 628 गौ शालाएं चल रहीं हैं। बोर्ड गौ शालाओं के लिए 10 हजार से लेकर 5 लाख तक सालाना अनुदान और जमीन देता है। एक गाय के लिए प्रतिदिन 12 रुपये का अनुदान दिया जाता है। प्रदेश के जनसंपर्क एवं खनिज मंत्री राजेंद्र शुक्ला रीवा में गौ शालाएं चलाने में काफी मदद कर रहे हैं लेकिन गायों के नाम पर कई गौ शालाओं में गड़बड़ियों की शिकायतें भी सामने आ रही हैं।

प्रदेश में गाय की महत्वपर्ण नस्लों के संवर्धन एवं संरक्षण के लिए पन्ना जिले की पवन तहसील में कैनकथा पशु प्रजनन स्थल बनाया गया है। गौ शालाओं में गायों को पालने का काम दुग्ध उत्पादन के अलावा जैविक खाद निर्माण, कीटनाशक निर्माण, गौ मूत्र औषधियों पर शोध के लिए आगर जिले में 2013-14 में गौ अभयारण्य की भी स्थापना की गई है। इसमें 5 हजार बेसहारा गायों को रखने का प्रावधान किया गया है। जबलपुर में नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय में पंचगव्य निर्माण परियोजना स्वीकृत की गई है। यहां गौ मूत्र से कीटनाशक एवं अन्य उत्पादन किया जाता है। मध्य प्रदेश पशु धन विकास नीति 2011 में तैयार की गई है। भारतीय गौ वंश को प्रोत्साहित करने के लिए गोपाल पुरस्कार देने की योजना है। गाय की नस्लें सुधारने के कार्यक्रम के तहत पिछले साल 4 अप्रैल को देश में पहली बार एक गाय श्यामा सेरोगेटेड गाय बनी। 

बहादरपुर सैनी, हरिद्वार में भी पतंजलि योगपीठ की गौशाला है। यहां पर 350 से ज्यादा हरियाणवी, साहिवाल और गुजराती नस्ल की अच्छी नस्ल की गाएं हैं। यहां उनका पालन-पोषण द्वारा गौ संरक्षण, संवर्धन एवं पंचगव्य पर काम किया जाता है। यहां पर गाय के गोबर से 12 किलोवाट की क्षमता का बायोगैस प्लांट है। गोबर से प्राकृतिक खाद बनाई जाती है और रासायनिक खाद और कीटनाशक के बिना खेती करने का प्रशिक्षण दिया जाता है।

 

पशु कल्याण बोर्ड के उपसदस्य डॉ. सुनील शर्मा गायों की दुर्दशा के लिए जागरूकता की कमी बताते हैं। वह कहते हैं, 'पूरे देश में लगभग तीन हजार दौ सौ पंजीकृत गौ शालाएं हैं। जिन्हें बोर्ड नियमित रूप से अनुदान देता है। अगर कोई नई गौ शाला बनाना चाहे तो उसके लिए भी अनुदान की व्यवस्था है। अगर किसी के पास जमीन है तो शेल्टर बनाने के लिए, पानी की व्यवस्था के लिए ट्यूबवेल, पशुओं के लिए प्राइमरी चिकित्सालय बनाने के लिए भी अनुदान दिया जाता है। इसमें 25 लाख रुपये सिर्फ एक बार के लिए दिया जाता है। लेकिन इसके लिए पंजीकृत संस्था के पास तीस साल की जमीन की लीज होनी चाहिए।’ उनका कहना है कि कानुपर, गुजरात, पचमढ़े (जालौर), बालाघाट, रायपुर की गौ शालाएं अच्छा काम कर रही हैं। इसके बावजूद गायों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। हालांकि अभी तक ऐसे कोई आंकड़े नहीं हैं जिससे ठीक-ठीक पता लगाया जा सके कि खराब स्थिति वाली कुल गायों की संख्या कितनी है या कितनी गाएं सड़कों पर आवारा घूमती हैं। सुनील शर्मा कहते हैं, 'ड्राय काउ यानी जो दुधारू न रहे उसके संरक्षण के लिए काम किया जा रहा है। गौ पालकों के लिए शिविर लगाए जाते हैं ताकि उन्हें बायो गैस, गोबर से खाद बनाना, अन्य उत्पाद बनाने के लिए प्रेरित किया जाता है ताकि वे दुधारू न होने के बाद भी गाय की उपयोगिता समझें। गायों का गैरकानूनी ढंग से दूसरे राज्यों या भारत के बाहर भेजने का चलन भी पिछले दिनों काफी बढ़ा है जिस पर काम किया जा रहा है। हम लोगों को कहते हैं कि जहां भी आवारा गाय देखें तो पास की गौ शाला या यह उपलब्ध न हो तो नगर निगम को सूचित करें। यह सामाजिक जिम्मेदारी है जिसे सभी को मिल कर निभाना होगा।’ जो भी गाय पालक पशु कल्याण बोर्ड से अनुदान लेना चाहता हो उसे एक साधारण प्रक्रिया से गुजरना होता है। कोई भी तीन साल पुरानी पंजीकृत संस्था या पंजीकृत सोसायटी इसके लिए पात्रता रखती है। उस संस्था का मूल उद्देश्य पशु कल्याण होने के साथ मई में आने वाले आवेदन को भर कर बोर्ड के दफ्तर भेज सकता है। डॉ. सुनील कहते हैं, 'बोर्ड से 80 प्रतिशत गौशालाएं जुड़ी हुई हैं।’

नोएडा में श्रीजी गौ सदन चलाने वाले गोपाल कृष्ण अग्रवाल कहते हैं, 'गाय की दशा सुधारने के लिए सबसे जरूरी है कि इसे पंथ, वाद और विचारधारा से बाहर लाया जाए।’ श्रीजी गौ सदन पिछले 16 साल से संचालित है। यहां पर 14 शेड और 2 भूसा घर हैं। यहां 900 गाएं रहती हैं और उनमें से बहुत सी गाएं दुधारू नहीं हैं। यह संस्था सरकारी अनुदान नहीं लेती और लोगों के चंदे से चलती है। अग्रवाल कहते हैं, 'हमने गोबर से ही एक छोटा सा बायोगैस प्लांट बनाया हुआ है और इसी गैस से गाय को खिलाने के लिए दलिया बनता है और 40 से ज्यादा घरों का खाना बन जाता है। छोटे स्तर पर गौ मूत्र से फिनाइल भी बनाई जा ही है। यहां पर एक छोटा सा शोध केंद्र भी बनाया गया है जिसमें देसी नस्ल पर काम किया जा रहा है।’

भारत में आबादी का बड़ा हिस्सा किसी न किसी रूप में पशुधन से जुड़ा हुआ है। आंकड़ों में देखें तो देश में पशुधन की संख्या 19 करोड़ के आसपास है जो विश्व के कुल पशुधन का 14 प्रतिशत है। इनमें 15 करोड़ घरेलू पशुधन है। हाल ही में सरकार ने राष्ट्रीय प्रजनन केंद्रों की स्थापना के अनुदान राशि देने की घोषणा की है ताकि घरेलू पशुधन का संवर्धन और संरक्षण हो सके। घरेलू पशुधन संवर्धन और संरक्षण के लिए पिछले दो सालों में सरकार ने 582 करोड़ रुपये जारी किए हैं। भारत में पिछले 10 सालों में औसत सालाना दूध का उत्पादन 4.62 प्रतिशत की दर से बढ़ा है, जबकि पूरी दुनिया में यह आंकड़ा 2.2 प्रतिशत था। सेमीनार में जारी आंकड़ों पर गौर करें तो सन 2014-15 और 2015-16 में दूध उत्पादन में सालाना वृद्धि 9.59 प्रतिशत है।

भारत में दूध की उपलब्‍धता 340 ग्राम है, जबकि पूरी दुनिया में यह 296 ग्राम है।’ भारत डेयरी राष्ट्रों के बीच तेजी से उभर रहा है। देश में 2015-16 के दौरान 160.35 मिलियन टन दूध उत्पादन किया है जिसकी कीमत 4 लाख करोड़ रुपये भी ज्यादा है। दुग्ध उत्पादन के साथ-साथ गाय के संवर्धन पर भी जोर दिया जा रहा है। सरकार देसी नस्लों को बढ़ावा देने के अध्ययन पर भी जोर दे रही है। फिलहाल भारत में गौ पशुओं की 39 नस्लों के साथ-साथ याक और मिथुन के अलावा भैंसों की 13 नस्लेें हैं।

हाल ही में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने राष्ट्रीय गौकुल मिशन की स्थापना की घोषणा की है। गौकुल मिशन के अंतर्गत 14 गौकुल ग्राम स्थापित करने की स्वीकृति राज्यों को दी गई है। इसके अंतर्गत महाराष्ट्र में 6, पंजाब में 3, छत्तीसगढ़ में 2, आंध्र प्रदेश में 1, गुजरात में 2 (1 विश्वविद्यालय के साथ) को स्वीकृति मिली है। नगालैंड में मिथुन प्रजाति को बढ़ाने के लिए निधि दी गई है। मिथुन और याक सहित स्व देशी गौजातीय पशुओं की नस्लों के तहत 35 बुल मदर फार्मों के रखरखाव के लिए भी अनुदान दिया जा रहा है। सरकार स्वदेशी नस्लों के संरक्षण के लिए देश में पहली बार 'नेशनल कामधेनु ब्रीडिंग सेंटर’ स्थापित करने जा रही है। इसके तहत 39 गौजातीय नस्लों और 13 भैंसों की नस्लों को संरक्षित किया जाएगा।

मिसाल बन गए हैं नंदी पार्क

रवि अरोड़ा

आवारा सांड पूरे देश के लिए आफत से कम नहीं हैं। शहरों और कस्बों में आए दिन जनता इनके हमलों से चोटिल होती रहती है। गुस्साए सांड अक्सर मासूमों की जान भी ले लेते हैं। गांव देहात में सांडों द्वारा फसल चौपट कर देना भी सामान्य बात है। धार्मिक कारणों से जहां इनके खिलाफ कड़ा कदम उठाना प्रशासनिक तंत्र के लिए मुश्किल होता है वहीं इनकी तादाद कम रखने का कोई भी उपाय प्रभावी नहीं है। ऐसे में प्रदेश के कई शहरों में खुले नंदी पार्क रोशनी की किरण बन कर उभरे हैं। इन आवारा सांडों को नगर निगम के दस्ते पकड़ कर नंदी पार्कों में छोड़ देते हैं। यहां इनके गोबर से खाद बना कर नंदी पार्कों का काफी हद तक खर्च निकाला जाता है। उत्तर प्रदेश के ग्यारह नगर निगमों में से अब तक पांच में नंदी पार्क विकसित हो चुके हैं। देश के अन्य बड़े शहरों में भी इससे मिलती-जुलती योजनाएं शुरू की गई हैं।

नंदी पार्क का विचार सर्वप्रथम वर्ष 2009 में गाजियाबाद की तत्कालीन महापौर स्वर्गीय दमयंती गोयल को सूझा था। उन्हीं के प्रयासों से शहर के बाहर पचीस बीघा जमीन पर यह पार्क विकसित किया गया था। उन्होंने सांडों को जोत कर पार्क का चारा काटने, पानी निकालने और इन्वर्टर की बैटरी चार्ज करने का काम शुरू किया। महापौर के विचारों से इत्तफाक रखने वाले तत्कालीन नगर आयुक्त अजय शंकर पांडे ने उस दौर में सांडों के गोबर से तैयार खाद नंदी कंपोस्ट के नाम से बाजार में उतार दी और पार्क को स्वावलंबी बना दिया। गाजियाबाद के महापौर आशु वर्मा बताते हैं कि पार्क में इस समय 345 सांड हैं। निगम सालाना दो करोड़ रुपया इस पार्क पर खर्च कर रहा है। पार्क की देखभाल की जिम्मेदारी एक एनजीओ को दी गई है। अखिल भारतीय महापौर संगठन का एक प्रतिनिधिमंडल इस पार्क को देखने आ चुका है। अन्य बड़े शहरों के जन प्रतिनिधि और अधिकारी भी इसे देखने आते रहते हैं। 

गाजियाबाद नंदी पार्क समिति के अध्यक्ष और नगर निगम पार्षद मुकेश त्यागी बताते हैं कि इस समय पार्क में दस प्रजाति के सांड हैं। इसने देसी, अमेरिकन, हरियाणावी, राजस्थानी, साहिवाल, जर्सी और दोगली प्रजाति शामिल हैं। वह बताते हैं कि यहां लाने के कुछ दिनों तक नंदी गुस्साए रहते हैं और अन्य नंदियों से झगड़ते हैं मगर धीरे-धीरे शांत हो जाते हैं। सांडों के स्वभाव के अनुरूप कर्मचारी उनका नामकरण भी कर देते हैं। वह हंसकर बताते हैं कि शुरुआती दौर में जिन सांडों को दाऊद, वीरप्पन, शैतान और हत्यारा जैसे नाम दिए गए थे अब उन्हीं का स्वाभाव बदलने पर उन्हें दुलारा, प्रेमी और सज्जन जैसे नाम दे दिए गए हैं। वह बताते हैं कि शुरुआती दौर में यहां नंदी प्रजनन केंद्र भी शुरू किया गया था और दूर-दूर से लोग अपनी गायों को लेकर यहां आते थे। उनसे प्रति गाय दो सौ रुपये भी लिए जाते थे मगर भ्रष्टाचार की शिकायत मिलने पर फिलहाल इसे बंद कर दिया गया है। मगर चुस्त व्यवस्था के साथ इसे फिर शुरू करने की योजना है। गाजियाबाद के नंदी पार्क में सांडों के सेवा में लगा कर्मचारी अनिल त्यागी बताते हैं, लोग यहां आकर नंदियों की सेवा करते हैं।

देसी गाय की नस्लों को बढ़ाना है : कासमी

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के तहत आने वाली संस्था राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के जरिये मुसलमान गौ पालकों के लिए संघ विभिन्न योजनाएं चला रहा है। हाल ही में मेवात (हरियाणा) में आरएसएस नेता इंद्रेश कुमार और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की अगुवाई में देश भर के मुस्लिम गौ पालकों को सम्मानित भी किया गया था। इस कार्यक्रम को देख रहे भाजपा नेता मौलाना सुहेब कासमी बताते हैं कि देश भर के राज्यों में हमने कमेटियां बना दी हैं। यह कमेटियां गांव स्तर तक हैं। इनका काम मुसलमानों को गाय पालने के लिए प्रेरित करना है।

कासमी के अनुसार इस काम में वे लोग काफी मेहनत कर रहे हैं। इसके लिए वीडियो बनवाए गए हैं और बड़ी तादाद में लिटरेचर भी छपवाया गया है जिसमें गाय के फायदे गिनाए गए हैं। राष्ट्रीय मुस्लिम मंच की ओर से बीते पांच सालों से गाय पालन प्रोजेक्ट पर काम हो रहा है। खासकर राजस्थान, हरियाणा, छत्तीसगढ़, गुजरात और महाराष्ट्र में मुस्लिम गौ पालकों को गाय पालने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। कासमी के अनुसार, 'इस समय देश में लगभग 3,000 मुस्लिम गौपालक उनके साथ जुड़ चुके हैं। मुसलमानों को गौशाला खोलने के लिए आर्थिक सहायता भी मुहैया करवाई जा रही है। जैसे राजस्थान में दादू खां की गोशाला खासी मशहूर है और मुजफ्फरनगर में मौलाना रिजवान की। गौपालन में बेहतरीन काम करने वालों के बच्चों को भी स्कॉलरशिप देने की योजना शामिल है।’ हाल ही में अल्पसंख्यक मंत्रालय की ओर से एक योजना पर काम चल रहा है कि गौशालाओं को अत्याधुनिक  बनाया जाए। कासमी के अनुसार हमारे प्रोजेक्ट में उत्तर प्रदेश में पाई जाने वाली देसी गाय राठी की नस्ल बढ़ाना भी शामिल है।

साथ में मनीषा भल्ला, उत्तर प्रदेश से  रवि अरोड़ा और मध्य प्रदेश से राजेश सिरोठिया

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