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कवर स्टोरीः दिल्‍ली दंगे में धू-धूकर जलीं जिंदगियां

रविवार 1 मार्च 2020। रात नौ बजकर 24 मिनट। मैं पूर्वी दिल्ली के गुरु तेगबहादुर अस्पताल के वार्ड नंबर 24 में...
कवर स्टोरीः दिल्‍ली दंगे में धू-धूकर जलीं जिंदगियां

रविवार 1 मार्च 2020। रात नौ बजकर 24 मिनट। मैं पूर्वी दिल्ली के गुरु तेगबहादुर अस्पताल के वार्ड नंबर 24 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली के दंगों में घायल एक बुजुर्ग शख्स के परिजन से बात कर रहा था, तभी मेरे मोबाइल पर घर से बेटी की कॉल आई कि जल्दी घर आइए क्योंकि शहर में दंगे की अफवाह है। फिर, मैंने वाट्सएप पर एक मैसेज देखा कि पश्चिमी दिल्ली के एक हिस्से में हिंसा भड़क गई है। अचानक इससे मन घबरा उठा। घबराहट इसलिए भी हुई क्योंकि मेरे साथ मेरी एक मित्र और वरिष्ठ महिला पत्रकार भी थीं। मैंने कहा कि अब हमें चलना चाहिए। इसके पहले हम दो वार्ड में दंगे के शिकार लोगों और उनके परिजनों की दर्दनाक कहानियां सुन चुके थे। लेकिन अभी न्यूरोसर्जरी वार्ड में दाखिल करीब आठ लोगों से नहीं मिल पाए थे। यह घटनाक्रम इतना समझने के लिए काफी था कि दंगे का मनोवैज्ञानिक असर क्या होता है, क्यों व्यक्ति खुद को असहाय पाता है। ऐसा ही तो 23 फरवरी की दोपहर बाद से तीन-चार दिन तक उत्तर-पूर्वी दिल्ली की लाखों की आबादी के साथ हुआ था, जिसमें दर्जनों लोग जान गंवा चुके हैं और सैकड़ों घायल हैं। लोगों के परिवार, कारोबार, घर, संपत्ति और भविष्य तक बरबाद हो गए हैं। हालांकि 26 फरवरी के दिन मुझे ऐसी चिंता महसूस नहीं हुई थी। उस दिन मैंने और मेरे एक वरिष्ठ सहयोगी और फोटोग्राफर ने दंगा प्रभावित इलाकों में जाना तय किया था। उसकी शुरुआत भी दोपहर पहले इसी अस्पताल से हुई थी, जहां दंगे में मरने वालों के परिजन रो-बिलख रहे थे और अपनों के शव का इंतजार कर रहे थे।

हम वहां से दुर्गापुरी चौक के बाद ज्योतिनगर होते हुए बाबरपुर पहुंचे थे जहां जैदी ऑटोमोबाइल स्टोर में तोड़फोड़ की गई थी, लेकिन यह शायद लुटने से बच गई थी। उसके सामने कबीरनगर की ओर गणपति सुजुकी का शोरूम है। उसका सामने से एक शीशा भर टूटा, बाकी सुरक्षित था। वहां मुकेश नाम के व्यक्ति ने बताया कि यहां ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है। जैदी स्टोर के मालिक हमारे पड़ोसी हैं, यहीं रहते हैं। एक साथ की दुकान दिखाते हुए उन्होंने कहा कि यह भी एक मुस्लिम की है इसका ताला तोड़ा गया था, लेकिन हमने दूसरा ताला लगा दिया है और यह लुटने से बच गई है। लेकिन इस चौक से आगे रहने वाले शायद इतने खुशकिस्मत नहीं थे। यहां से चंद कदम दूर ही वह बाबरपुर चौक है जहां से दंगे की शुरुआत हुई थी। स्थानीय लोगों का कहना है कि यहीं सीएए समर्थक लोगों के साथ भाजपा नेता कपिल मिश्रा आया था और उत्तर-पूर्वी दिल्ली के डीसीपी वेद प्रकाश के सामने तीन दिन के भीतर जाफराबाद में धरने पर बैठे सीएए विरोधियों को हटाने का अल्टीमेटम दिया था। असल में, रविवार 23 फरवरी को भीम आर्मी ने एससी-एसटी आरक्षण के सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ भारत बंद बुलाया था। यहां के लोगों का कहना है कि भीम आर्मी के लोगों के यहां आने के बाद ही पथराव शुरू हुआ, जो दोनों पक्षों में झड़प के बाद भयानक दंगे में तब्दील हो गया। बाबरपुर चौक और मेट्रो स्टेशन से जाफराबाद की ओर चलते हैं तो मौजपुर चौक आता है। 26 फरवरी बुधवार तक ज्यादातर टीवी चैनल यहीं से ही रिपोर्टिंग कर रहे थे। यह लोग हेलमेट और बुलेटप्रूफ जैकेट पहनकर लाइव की तैयारी कर रहे थे। हालांकि वहां काफी पुलिस थी और सबकुछ शांत नजर आ रहा था। उन्होंने हमें भी सलाह दी कि अंदर मौजपुर बस्ती में मत जाइए। लेकिन हम थोड़ा अंदर गए, तो पहली नजर उस दुकान पर पड़ी जिसकी फोटो एक दिन पहले सोशल मीडिया पर वायरल थी। यह किसी जुल्फिकार मलिक की दुकान है जिसके एक तरफ शिवा आटो वर्क्स है तो दूसरी तरफ त्यागी साबुन स्टोर है। जुल्फिकार की दुकान तोड़फोड़ के बाद लूटी जा चुकी थी, बाकी दोनों सुरक्षित थीं। उसके आगे कपड़े के एक बड़े शोरूम को जलाया गया था जिसमें अभी धुंआ उठ रहा था। यहां करीब दर्जन भर दुकानें लूटी और जलाई गई थीं। हमें वीडियो लेने से कुछ युवकों ने मना किया। हालांकि, कुछ महिलाओं का कहना था कि दुकान मालिक अच्छे लोग हैं लेकिन देखिए इसे कैसे जला दिया गया। यहां एक युवती की टिप्पणी काफी कुछ कह रही थी। जब कुछ युवक हमें वीडियो, बनाने से रोक रहे थे तो करीब 25 साल की इस युवती ने कहा कि बनाने दो वीडियो, तभी तो मुसलमान डरेंगे। यानी मौजपुर की यह घटना दोनों समुदायों के बीच चौड़ी होती खाई और कटुता जैसी डरावनी तसवीर पेश कर रही थी। बाहर गोकुलपुरी से सीलमपुर जाने वाली सड़क ईंट, पत्थरों से अटी पड़ी थी। वहां मिले एक एसीपी से जब पूछा कि इतनी तबाही हुई है और पुलिस के समय पर नहीं पहुंचने की शिकायतें लगातार मिल रही हैं, तो उनका जवाब था कि पहले दिन तीन हजार कॉल आई थी, अब पुलिस कहीं उड़कर तो जा नहीं सकती है। जो हो सकता था, वह किया।

यह टका-सा जवाब सुनकर मन सोच में पड़ जाता है, आखिर ऐसी कटुता और उदसीनता कैसे इस इलाके में उतर आई है। मैंने पिछले तीस साल में इन इलाकों को बसते हुए देखा है और काफी हद तक यहां की सामाजिक और भौगोलिक स्थिति से वाकिफ रहा हूं। इस लगभग आठ-दस किमी. में फैले इलाके की मिलीजुली निम्न मध्यवर्गीय, मजदूर-गरीब तबके के साथ बीच-बीच में मध्यवर्गीय आबादी का प्रसार एक जैसा है। हाल के विधानसभा चुनावों में भाजपा को छह सीटें इसी इलाके से मिली हैं। करावलनगर, घोंडा, रोहतासनगर की सीटें तो इसी दंगा प्रभावित इलाके में हैं, जबकि इससे सटे गांधीनगर, लक्ष्मीनगर और विश्वासनगर में आबादी की बनावट एक जैसी है। गौरतलब है कि विधानसभा चुनावों के दौरान ही सीएए विरोधी धरनों, खासकर शाहीन बाग को भाजपा ने मुद्दा बनाया था और ‘देश के गद्दारों को, गोली मारो...’ का नारा गूंजा था। यह नारा दंगों में गूंजा और उसके बाद भी गूंज रहा है। मन में सवाल घुमड़ने लगे कि कहीं इस भयावह हिंसा और नफरत की जमीन तैयार हो रही थी, जो हल्की-सी चिंगारी से धू-धूकर जल उठी।

खैर! हमने वजीराबाद रोड से करावल नगर तक जाने का फैसला किया। जैसे ही वजीराबाद रोड पर हम पहुंचे, तो चांदबाग के सामने से हिंसा का भयानक मंजर और बरबादी दिखने लगी। चांदबाग में जहां दो माह से सीएए के विरोध में धरना चल रहा था, वहां सबकुछ जलकर खाक हो चुका था। स्कूल के सामने जली बसें, दुकानें, घर सभी कुछ जल चुका था और वहां कोई कुछ बताने वाला भी नहीं था। उसके उल्टी तरफ यमुना विहार में पार्किंग में दर्जनों कारें खाक हो चुकी थीं। उसके बाद भजनपुरा का वह पेट्रोलपंप जो इन दंगों की एक स्थायी तसवीर बन चुका है और उसके आसपास जली दुकानें, दफ्तर, दर्जनों वाहन हालात की भयावहता बताने लिए काफी थे। सड़क के दूसरी ओर जला दिया गया मारुति का शोरूम और शराब की लुटी हुई दुकान थी। हमें लगा कि मामला शांत हो चुका है लेकिन पेट्रोलपंप पर जुटी करीब 50 लोगों की भीड़ में गुस्सा, उन्माद कायम था। कई कह रहे थे कि सामने था सीएए विरोधी धरना, हमने उन्हें भगा दिया है। देखते हैं, कैसे वापस आते हैं। लोगों का कहना था कि चांदबाग से आए लोगों ने ही पेट्रोल पंप और आसपास तबाही मचाई है।

लेकिन सबसे अधिक तबाही और जानमाल के नुकसान वाले इलाकों तक मीडिया बुधवार तक नहीं पहुंचा था। इसकी शुरुआत होती है भजनपुरा चौक से करावल नगर जाने वाली रोड से। चौक पर एक मजार और पुलिस बूथ जले पड़े थे तो सामने दुकानें और घर जलकर खाक हो चुके थे। उसके बाद इसी सड़क पर नाला पार करते ही खजूरी खास इलाके में तबाही का मंजर दिखने लगता है। वहां न घरों को, और न ही दुकानों तथा व्यावसायिक संस्थानों को दंगाइयों ने बख्शा है। यहां कुछ फायर टेंडर अभी आग बुझा रहे थे। मलबे से अटी पड़ी सड़क पर चलना भी मुश्किल था। तबाही का यह मंजर शेरपुर चौक तक जाता है। करीब दो बजे होंगे, तो कुछ लोग एक घायल को नाले से निकालकर लाए थे, वह मरणासन्न स्थिति में था। मेहताब नाम का यह व्यक्ति अपने बच्चों के लिए आटा लेने गया था। वहीं, एक महिला और पुरुष आए, तो पुलिस वाले ने पूछा कि कहां जा रहे हो। उन्होंने कहा कि हम खजूरी खास में किराये पर रहते हैं, अब चंदू नगर में चले गए हैं। घर का कुछ सामान बचा है तो उसे लाने जा रहे हैं। वहीं, मंजू नाम की महिला अपना सामान समेट कर बिहार जा रही थी। उसका कहना था कि कुछ नहीं बचा सब लुट गया है।

शेरपुर चौक के बाद नेहरूनगर और दयालपुर रोड पर नजारा कुछ शांत दिखता है। इसी समय एक डीसीपी और ज्वाइंट सीपी एक पैरा मिलिटरी कंपनी के साथ आते हैं, तो सड़कों के किनारे खड़े लोगों को पीछे जाने का कहते हैं। वैसे, यहां कहने को कर्फ्यू लगा है लेकिन मुझे तो ऐसा नहीं दिखा। खजूरी खास में अमन ऑटो नाम के हीरो मोटर्स के बाइक शोरूम की तबाही को रिकार्ड करते एक टीवी चैनल के लोग दिखे। हम करावल नगर की ओर बढ़ गए। करावल नगर से जौहरीपुर की तरफ होकर शिव विहार होते हुए सड़क दिल्ली-सहारनपुर रोड से मिलती है। वहीं, शिव विहार से जो सड़क वापस वजीराबाद रोड पर आती है। उसी पर है ब्रजपुरी, मुस्तफाबाद, मूंगा नगर और चांदबाग। सारा इलाका निम्न मध्य वर्ग की बस्तियों का है, जो अधिकांश अनियोजित दिल्ली का हिस्सा है। यहां पर जनसंख्या घनत्व दिल्ली के बाकी हिस्सों से कई गुना बड़ा है। लेकिन पिछले दो दशकों में उत्तर प्रदेश के करीबी हिस्सों से आऩे वाले लोग यहां ज्यादा बसे हैं। एक तरह से यह पूरा इलाका दिल्ली नहीं बल्कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक्सटेंशन ही है, जिसमें मुसलमान भी हैं और हिंदू भी। वैसे यहां छोटे, मझोले, कुटीर उद्योग भी पनपे हैं, जो अधिकांश मुसलमानों के हैं। साथ ही, सीलमपुर से लेकर जाफराबाद और मुस्तफाबाद तथा शिवविहार तक घरों में तमाम कारोबारी गतिविधियां होती हैं। इस इलाके की कमजोर आर्थिक हैसियत का एक गवाह मैं आपके सामने रखता हूं। सुबह के वक्त दिल्ली की सीमा और इन इलाकों से काम के लिए निकलने वाले सबसे अधिक साइकिल चालक यहां दिख जाएंगे यानी इन इलाकों की बड़ी आबादी बेहतर ट्रांसपोर्ट सुविधाओं का उपयोग करने की भी हैसियत नहीं रखती है। शहर के सबसे सस्ते किराये और कम कीमत वाले मकान यहीं हैं। वैसे, इन दंगो के सबसे विवादास्पद नेता कपिल मिश्रा पांच साल करावल नगर के विधायक रहे हैं, लेकिन वह यह नहीं बता पाएंगे कि यमुना विहार के अपने घर से करावल नगर तक जाने वाली सड़क भी वह नहीं बनवा सके, तो कौन से विकास की राजनीति करते हैं।

फिर, हम करावल नगर रोड से काली घटा होते हुए खजूरी पुश्ते पर आए। वही जली दुकानें और सड़क पर बिखरा सामान लेकिन बेफिक्र लोग दिखे। पुश्ते को जोड़ने वाली सड़क के एक किनारे पर एक घर जला हुआ है और चौक पर कई जली कारों का ढेर था, जिसके ऊपर एक तिरंगा लगाया गया था उसके ऊपर था केसरिया झंडा जो शायद ‘युद्ध’ की जीत के प्रतीक के रूप में लगाया गया होगा। चारों ओर वाहनों के जले अवशेषों का सिलसिला जारी था। इनमें रिक्शा, बैटरी रिक्शा, ऑटो, टैंपो, कारें और ट्रक तक सबकुछ था। वाहनों में जो लोग थे, उनका क्या हुआ होगा किसी को नहीं पता, लेकिन इसी पुश्ते के दूसरी ओर रैपिड एक्शन फोर्स का कार्यालय है, जिसका गठन 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद हुए दंगों के बाद किया गया था।

आखिर में फिर वही जीटीबी अस्पताल जहां वार्ड नंबर 14 में गोली लगा आकाश नापा है, तो 15 साल का सैफ भी है। 17 साल का नीतेश है तो शाहिद भी है। सोमदत्त है तो रिजवान और शाह आलम भी है। अजमत है तो यूनुस भी है। सभी कहते हैं कि अस्पताल में इलाज ठीक हो रहा है। अधिकांश को लगी गोली उनके शरीर में ही है, क्योंकि इनके निकालने से डॉक्टर शरीर के दूसरे अंगों के खराब होने या बेकार होने का डर बता रहे हैं। यही हालात वार्ड नंबर 24 के दंगा प्रभावित घायलों की है, तो वही कहानी न्यूरो सर्जरी वार्ड में जीवन-मौत के बीच जूझ रहे पीड़ितों की है।

वैसे, लोगों की मौत और हमले 26 फरवरी के बाद भी हुए। इसका एहसास अस्पताल में हुआ और कहीं यह सिहरन भी महसूस हुई कि जब हम दंगा प्रभावित इलाकों में थे, तो कुछ फासले पर ही लोग एक दूसरे को मार रहे थे। इसलिए 1 मार्च की अफवाह के बाद का एहसास हमें भी हकीकत के काफी करीब ले गया था।  

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