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शुभ मंगल में असावधानी

आनंद एल राय निर्माता के रूप में शायद ‘तनु वेड्स मनु’ से आगे कुछ चाह रहे थे। इस बार उन्होंने निर्देशन की बागडोर आर एस प्रसन्ना के हाथों में दे दी। फिल्म के कई संवादों पर खूब तालियां बजीं, ठहाके भी लगे। बालकनी में बैठने वाले शायद सीटी न बजा पाएं पर जो लोग ड्रेस सर्किल में बैठते हैं उनके लिए उसकी पूरी छूट है। इसका सिर्फ इतना सा कारण है कि फिल्म पहली बार सेक्स करने में अक्षम पुरुष पर खुल कर बात करती है।
शुभ मंगल में असावधानी

‘शुभ मंगल सावधान’ ऐसे जोड़े की कहानी है जो जल्दी ही लव कम अरेंज सिस्टम में आ गए हैं। शादी से पहले ही लड़की सुगंधा (भूमि पेडनेकर) को पता चल जाता है कि मामले में झोल है। लड़का मुदित शर्मा (आयुष्मान खुराना) उस स्थिति पर खरा नहीं उतर पा रहा, जो शादी संस्था का अनिवार्य अंग है। बस यही असली पेंच है जिसे ‌निर्देशक प्रसन्ना ने मजाकिया लहजे में कहने की चूक कर दी है। कई बार गंभीर बातें मजाक में ही कही जा सकती हैं, लेकिन हास्य और फूहड़ता के बीच यदि लकीर मिट जाए तो अच्छा खासा शुभ और मंगल सावधान होने के बजाय असावधानी में बदल जाता है। कहते हैं न सावधानी हटी दुर्घटना घटी। इस फिल्म को निश्चित तौर पर दर्शक मिलेंगे। जब मस्ती, ग्रैंड मस्ती, गोलमाल – 2 जैसी महाफूहड़ फिल्म दर्शक ताली पीट-पीट कर देखते हैं तो फिर एक विषय पर आधारित आवरण में लिपटी फूहड़ता तो देख्‍ाी ही जा सकती है। इस फिल्म में भी कई द्वीअर्थी संवाद हैं। बस अंतर इतना है कि उन पर एक झीना आवरण है कि सुनाई और दिखाई सब दे फिर भी परदेदारी रहे।

प्रसन्ना अपनी ही बात को फिल्म में कई जगह काटते हैं। सुंगधा का पिता होने वाले दामाद को डॉक्टर से मिलवाने ले जाता है, ताकि शादी के बाद वह उसकी लड़की से सेक्स कर सके। तब उन्हें शर्म महसूस होती है, लेकिन जब उनकी लड़की तमाम मेहमानों के बीच लड़के का हाथ पकड़ कर एक बार ‘हो पा रहा है या नहीं’ ट्राय करने कमरे में बंद हो जाती है तो पंडित जी के कहने पर वह बीच हॉल में घी की आहुति देने लगते हैं कि लड़का सेक्स कर ले तो कल होने वाली शादी ठीक से हो जाए! तब पिता की शर्म कहां गई?

सुगंधा को पता है कि लड़का सेक्स नहीं कर पा रहा। वह उस स्थिति तक ही नहीं पहुंच पाता। लड़का शादी से इनकार करने के लिए उसे बुलाता है कि वह उसे खुश नहीं रख पाएगा। ‘यदि वह नहीं हुआ तो शादी का क्या फायदा’ जैसी बातें। लड़की इमोशनल स्पीच देती है। यदि शादी के बाद ऐसी समस्या होती तो। यानी कहीं कोई कनफ्यूजन नहीं। जब तय ही कर लिया तो फिर अचानक संगीत की रात में सब मेहमानों के बीच लड़के को कमरे के अंदर ले जाकर एक बार और ‘ट्राय’ करने का क्या तुक। यह सीन फिल्म का सबसे फूहड़ सीन है जिसमें बाहर तमाम खड़े मेहमान हैं और सट्टा खेला जा रहा है कि ‘होगा या नहीं होगा’ जब‌कि क्या होने वाला है यह सबको पता है। अंततः मुदित शर्मा नहीं कर पाता।

फिल्म ने एक ऐसा विषय उठाया है जिस पर बात कम ही होती है। पर इस फिल्म की एकमात्र सफलता यही है। प्रसन्ना के पास शानदार मौका था कि वह इसे शानदार फिल्म बनाते। लेकिन कॉमेडी बनाने के चक्कर में अति नाटकीयता ने इस फिल्म की इस संभावना को बिलकुल खारिज कर दिया है। क्योंकि कोई भी फिल्म इसलिए तारीफ के काबिल नहीं हो जाती कि इसमें नया विषय है। नया विषय डील कैसे किया गया है यह ज्यादा महत्वपूर्ण है।  

आउटलुक रेटिंग दो स्टार

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