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समीक्षा : जुड़वां-2 देख लो नौ से बारह

एक होती है फिल्म और एक होती है फिल्लम। फिल्म होती है आलोचकों के लिए और फिल्लम होती है दर्शकों के लिए जो...
समीक्षा : जुड़वां-2 देख लो नौ से बारह

एक होती है फिल्म और एक होती है फिल्लम। फिल्म होती है आलोचकों के लिए और फिल्लम होती है दर्शकों के लिए जो कलाकार को स्टार बनाते हैं। इतना जान लीजिए कि ये फिल्लम है, झक्कास।

वरुण धवन डबल धमाके के साथ अवतरित हुए हैं। पप्पा डेविड धवन (निर्देशक भी वही) में मन लगा कर फिल्लम बनाई है। इतने दिनों से बॉलीवुड में जो रीयल-रीयल फिल्म का स्यापा पड़ा हुआ था न वो वरुण ने टन टना दिया है।

चूंकि ये फिल्म नहीं फिल्लम है सो दिमाग लगाना नहीं है, पर बोर नहीं होंगे इसकी गारंटी है, इस फिल्म से ताली और सीटी का दौर लौट आया है। रीयल हीरो लौट आया है, जो लफ्फाजी करता है, कॉमेडी करता है, छोरी को बिंदास पटाता है और हां ढिशुम-ढिशुम भी करता है।

डेविड धवन ने अपनी ही बनाई पुरानी फिल्म जुड़वां को फिर परोस दिया। लेकिन यह बासी कढ़ी में उबाल जैसा नहीं है उन्होंने बासी रोटी पर अच्छी सी टॉपिंग सजा कर बाकायदा अच्छे से माइक्रोवेव किया है। क्रिस्पी पकाया और फिर परोसा है। गाने तो हिट हैं ही, ‘ऊंची है बिल्डिंग लिफ्ट तेरी बंद है’ और वो आपका फेवरेट था जो ‘टन टना टन टन टन तारा चलती है क्या नौ से बारह’

और हां लंदन में ये सब कैसे हो सकता है, इसने ये क्यों नहीं किया, ऐसा होता है क्या जैसे प्रश्न नहीं पूछना है, ऊपर बताया न ये फिल्लम है फिल्म नहीं। कहानी? हां कहानी तो वही है जुड़वां भाइयों वाली। बिछड़ कर फिर मिलने वाली। कहानी से क्या करना है, तीन दिन का वीकएंड है, नौ से बारह जाना है और क्या।

वरुण तुम तो जम गए, जैकलीन तुम भी। तापसी पन्नू जरा ‘पिंक’ एक्सप्रेशन से बाहर आओ। चेहरे पर थोड़ी मस्ती लाओ। डेविड बाबू बेटे पर भरोसा करना चाहिए था न अनुपम खेर, जॉनी लीवर, राजपाल यादव, असगर अली, उपासना सिंह यार इतने सारे कलाकार कॉमेडी के लिए क्या जरूरत थी। और हां वो शाहरूख का स्पूफ न...अच्छा था। अगर वो वरुण को मारने न दौड़े तो (यहां एक अच्छा सा स्माइली इमोटिकॉन समझ लेना।)

अपन तो दे रहे हैं, अपन यानी आउटलुक ही यार तीन स्टार।  

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