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इतिहास के आइने से झांकता वर्तमान

कश्मीर के इतिहास और वर्तमान परिस्थितियों पर कश्मीरनामा, कश्मीर और कश्मीरी पंडित जैसी चर्चित किताबें...
इतिहास के आइने से झांकता वर्तमान

कश्मीर के इतिहास और वर्तमान परिस्थितियों पर कश्मीरनामा, कश्मीर और कश्मीरी पंडित जैसी चर्चित किताबें लिख चुके अशोक कुमार पांडेय की नई पुस्तक उसने गांधी को क्यों मारा हाल ही में आई है। राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित यह किताब गांधी की हत्या ही नहीं बल्कि गांधी के विचार, उनके आदर्शों की हत्या को भी बहुत दृढ़ता के साथ रेखांकित करती है। उसने गांधी को क्यों मारा इतिहास के आइने से झांकता वर्तमान भी है। आखिर ऐसा क्या हुआ बापू को गोली मार दी गई? 30 जनवरी 1948 की हुई उस घटना के कारणों पर यह किताब विस्तार से जाच-पड़ताल करती है। कपूर आयोग की रिपोर्ट, लाल किला में चले मुकदमे और नाथुराम गोडसे की फांसी के साथ तमाम उन महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं की सूक्ष्मता से पड़ताल करती यह किताब सही तथ्यों को सामने लाने का काम करती है। अपनी नई पुस्तक पर अशोक कुमार पांडेय ने आउटलुक के सवालों के जवाब दिए

अशोक कुमार पांडेय

 

यही विषय क्यों

यह विषय आज के दौर का प्रासंगिक विषय है। हमारा समय ही ऐसा है कि गांधी को याद करना जरूरी है। गौर कीजिए गांधी क्या कहते थे और क्या चाहते थे। क्या आज यह सब हो रहा है? वह सर्वधर्म समभाव की बात करते थे और आज के दौर में ही सबसे ज्यादा सांप्रदायिक विद्वेष है। वो अहिंसा की बात करते थे और देख लीजिए कि कहां हिंसा नहीं हो रही है। वह छुआछूत की बात करते थे और अभी ही सबसे ज्यादा जातिवाद है, जाति के नाम पर नफरत है। तो इस दौर में यही विषय है, जिस पर बात करना सबसे ज्याद जरूरी है।

गांधी के सपनों के भारत में क्या है, जो रोड़ा बन रहा है?

वह हत्यारी विचारधारा जो तेजी से पनप रही है। उनके संघर्ष को याद करें और आज के दौर को देखें। जब तक गांधी की हत्यारी विचारधारा से मुक्त नहीं होंगे, उनके सपनों का भारत नहीं बन सकेगा। हत्या एक व्यक्ति करता है, लेकिन इस विचार का समाज में फैलना खतरनाक है। लेकिन ऐसा हो रहा है, तभी तो बिना डर उनके हत्यारे को आदर्श बताया जाता है। वो ट्विटर पर ट्रेंड करने लगता है।

पुस्तक लिखने में कितना वक्त लगा?

काम तो पिछले दो साल से कर रहा था। लेकिन लॉकडाउन में जब सभी गतिविधियां ठप थीं तब इसे लगातार लिखने का सुयोग बना और इसी दौरान मैंने यह किताब लिखी।

लेखक के तौर पर कितना मुश्किल रहा, आप गांधी की विचारधारा, उनके सपनों के भारत के बारे में पढ़ और लिख रहे थे और बाहर हजारों-लाखों मजदूर पैदल महानगरों से पलायन कर रहे थे?

मुझे इसमें जरा भी मुश्किल नहीं हुई क्योंकि लिखना मेरे लिए अलग काम नहीं है। लिखना मेरे लिए अनुभूति है। जब मैं गांधी या उनकी हत्या या उनकी विचारधारा को खारिज किए जाने के प्रयासों पर लिख रहा था तो मैं वर्तमान भी लिख रहा था। मजदूरों को शहर छोड़ना पड़ा, हजारों किलोमीटर पैदल चलना पड़ा, यही तो त्रासदी है, जो मैं लिख रहा था। यह पुस्तक केवल गांधी की हत्या के बारे में बात नहीं करती, बल्कि बार-बार गांधी को मारने की कोशिशों पर बात करती है। देह के रूप में तो गांधी को एक बार खत्म किया गया, लेकिन उनके संदेश को भी मारने के जो प्रयास हैं यह उस पर है।

आपने पुस्तक में नेहरू, सुभाष चंद्र बोस का भी जिक्र किया है। लेकिन सुभाष बाबू और गांधी के विचारों में बहुत फर्क था?

यह उस दौर की सहिष्णुता को बताता है कि सुभाष बाबू के वैचारिक मतभेद होने के बाद भी वे निर्विवाद रूप से गांधी को अपना नेता मानते थे। सिर्फ सुभाष ही क्यों नेहरू, पटेल जैसे तमाम नेता थे जो गांधी के पीछे खड़े होते थे। वे बहस कर सकते थे, अपनी बात रख सकते थे। विचारधारा को लेकर जो भी मतभेद हों लेकिन उन लोगों में मनभेद नहीं था। सभी लोगों को लोकतांत्रिक ढंग से अपनी बात रखने की छूट थी।  

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