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कोविड-19 और लॉकडाउन 2020

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 24 मार्च की शाम 8 बजे के संबोधन में 25 मार्च से 21 दिन से देशव्यापी...
कोविड-19 और लॉकडाउन 2020

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 24 मार्च की शाम 8 बजे के संबोधन में 25 मार्च से 21 दिन से देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा के साथ ही देश कोरोना वायरस से बचाव की सरकार की रणनीति के सबसे अहम मुकाम पर पहुंच गया है। आजादी के बाद पहली बार ऐसा समय आया है जब देशभर में 21 दिन के लिए कर्फ्यू जैसी व्यवस्था लागू की गई है। प्रधानमंत्री ने खुद कहा है कि इसे कर्फ्यू ही समझ लीजिये और इन तीन सप्ताह तक घरों में ही रहें, क्योंकि कोरोना वायरस के संक्रमण से फैलने वाली कोविड-19 बीमारी ने देश और दुनिया को एक महामारी के संकट में धकेल दिया है। वैसे देश के एक बड़े हिस्से में 22 मार्च के जनता कर्फ्यू के समय से ही लॉकडाउन लागू हो गया था जिसमें देश की राजधानी दिल्ली भी शामिल है। सामुदायिक संक्रमण की स्थिति से बचने लिए यह सामाजिक दूरी एक अचूक उपाय की तरह है। दुनिया के कई देश इसे लागू कर बीमारी को रोकने में कामयाब होते दिख रहे हैं। इस बीमारी के शुरू होने के केंद्र, चीन के वुहान में लॉकडाउन समाप्त होने की खबरें उसी दिन आ रही थीं जिस दिन भारत में 21 दिन का लॉकडाउन शुरू करने की घोषणा की गई। जाहिर है, इसका देश के सभी नागरिकों को पालन करना है क्योंकि खतरा सभी के लिए है और बचाव ही इसका सबसे बड़ा इलाज है। दुनिया के सबसे विकसित देश बेहतर चिकित्सा ढांचागत सुविधाओं के बावजूद महामारी से संक्रमित और मौत के आंकड़ों की फेहरिस्त में ऊपर की ओर जा रहे हैं। लेकिन यह भी सच है कि इन देशों में स्वास्थ्य सुविधाओं पर काफी धन निवेश किया जाता है और अधिकांश में यूनिवर्सल हेल्थ सर्विसेज सरकारी क्षेत्र में  हैं। अमेरिका जरूर निजी क्षेत्र पर अधिक भरोसे वाला देश है और वहां संकट से निपटने के लिए इंश्योरेंस कंपनियों और पॉलिसी के दायरे व कवरेज पर काम करने की स्थिति पैदा हुई। हम इन दोनों मोर्चों पर काफी कमजोर हैं। इस बात को अब सरकार भी खुले तौर पर स्वीकार कर रही है और इसीलिए देश के नागरिकों से इस महामारी से बचाव की रणनीति में सहयोग मांग रही है। इस पर किसी को दो राय नहीं रखनी चाहिये क्योंकि असाधारण संकट असाधारण उपायों की मांग करता है, जो शताब्दियों में एक आध बार ही आता है। वैश्विक स्तर पर दूसरे विश्व युद्ध के बाद पहली बार ऐसी स्थिति पैदा हुई है। इसलिए देश के हर नागरिक का यह कर्तव्य है कि इस प्रयास की कामयाबी में अपना योगदान दे।

लेकिन इसके साथ ही हमें कुछ जमीनी हकीकतों को भी ध्यान रखना चाहिए जो हमें भविष्य के गर्भ में छिपे इस तरह के किसी भी संकट से बेहतर तरीके से बचाव में मदद कर सकती हैं। इस संकट से उबरने के बाद सरकार को सबसे पहले देश की स्वास्थ्य सुविधाओं की नीति की समीक्षा करनी चाहिये। यूपीए सरकार के कार्यकाल में योजना आयोग में स्वास्थ्य सुविधाओं पर बने एक्सपर्ट ग्रुप की सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति की रिपोर्ट पर भी गौर किया जाना चाहिए। भारत जैसे विकासशील और कमजोर स्वास्थ्य ढांचागत सुविधाओं वाले देश में सार्वजनिक क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाओं को सबसे अधिक मजबूत करने की जरूरत है। साथ ही इसे यूनिवर्सल बनाना जरूरी है। सरकार को अपने संसाधनों की भी समीक्षा करनी चाहिए। आजादी के पहले दशक में ही इस मसले पर जो मानक तय किये गये थे हम उनसे बहुत पीछे हैं। भारत जैसे देश में निजी क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाओं को खड़ा करने का मॉडल कामयाब नहीं हो सकता है। महंगे निजी अस्पतालों को हेल्थ टूरिज्म का मॉडल बताने की नीतियों को दरकिनार करना होगा क्योंकि ये अस्पताल देश की अधिकांश आबादी की पहुंच से दूर हैं। सरकारी क्षेत्र  गुणवत्ता और मात्रा, दोनों मोर्चों पर लगातार कमजोर होते जा रहे हैं। इसको लेकर किसी को भ्रम हो तो देश की राजधानी में दो सबसे बड़े सरकारी अस्पतालों में जाकर यह अनुभव कर सकता है। फिर भी संकट की घड़ी में यही अस्पताल और वहां का सरकारी स्टाफ नागरिकों के काम आता है और सरकार को भी वही विकल्प सूझता है। अभी तक किसी निजी हॉस्पिटल चेन ने इस संकट में खुद आगे बढ़कर मदद की पेशकश नहीं की है। हालांकि उनके मालिक और चिकित्सक टीवी चैनलों पर सलाह और सुझाव खूब दे रहे हैं। यह संकट हमारी केंद्र और राज्य सरकारों के लिए कोर्स करेक्शन का मौका भी है क्योंकि हेल्थ इंश्योरेंस का रामबाण विकल्प भारत जैसे देश में कोरोना वायरस जैसे संकट की घड़ी का हल नहीं हो सकता है।

दूसरे, इस मसले पर स्वास्थ्य मंत्रालय का ढीला रवैया देश के लिए घातक हो सकता है। किसी को शंका हो तो खुद स्वास्थ्य मंत्री के पिछले कुछ दिनों के ट्वीट पढ़ लेने चाहिए। कोरोना वायरस की बीमारी के लिए सबसे अहम उपकरणों और प्रोटेक्टिव गियर की उपलब्धता को लेकर तमाम चिंताजनक खबरें आ रही हैं। सरकारी अस्पतालों के चिकित्सकों ने इन खामियों को खुद उजागर किया है। यह प्रशासनिक मशीनरी की कार्यशैली की भी समीक्षा का वक्त है। देश से दवाओं और उपकरणों के निर्यात को लेकर वाणिज्य मंत्रालय का रवैया गैर जिम्मेदराना रहा है। यही नहीं जिस तरह से एक्टिव फार्मास्यूटिकल्स इनग्रेडिएंट्स (एपीआई) की आपूर्ति के  लिए हमारी फार्मा कंपनियों की चीन पर निर्भरता है, उसे कम करने के लिए कदम उठाने की जरूरत है और इसके लिए सरकारी कंपनियों में क्षमता तैयार करनी होगी।

इन मुद्दों के अलावा बड़ा सवाल समाज की भूमिका का है। इस महामारी के दौर में गैर जिम्मेदाराना जानकारियों और सोशल मीडिया पोस्ट की बाढ़ आ गई है। यहां मीडिया की जिम्मेदारी बढ़ गई है कि वह तथ्यों की पड़ताल करे और देश के आम नागरिक तक सही जानकारी पहुंचाने पर सबसे अधिक जोर दे। यह बात भी सच है कि मीडिया के लिए भी यह मुश्किल भरा दौर है। जहां मीडियाकर्मियों को सूचना जुटाने के लिए खुद को जोखिम में डालना पड़ रहा है वहीं उनको कई तरह की अड़चनों का भी सामना करना पड़ रहा है। सामाजिक भ्रांतियां भी सामने आ रही हैं जो चिंताजनक और घातक हैं। मसलन जहां कुछ स्थानों पर संक्रमित लोगों के सामाजिक बहिष्कार की घटनाएं सामन आ रही हैं, वहीं एयरलाइन कर्मचारियों और स्वास्थ्य कर्मियों के लिए कुछ स्थानों पर मुश्किलें पैदा की जा रही हैं।

इस  विश्वव्यापी महामारी से निपटने के लिए उठाये  जाने वाले कदमों और उनके असर भी व्यापक हैं। मसलन बड़ी तादाद में लोग अपने घरों से दूर फंस गये हैं। समाज का सबसे कमजोर वर्ग आर्थिक रूप से सबसे बुरे संकट में है। तीन सप्ताह तक घरों में रहने वाले लोगों के लिए रोजमर्रा की वस्तुओं, फल-सब्जी और दवाइयों की कोई किल्लत न हो, आपूर्ति चेन निर्बाध रहे और इस संकट का गैर जरूरी फायदा उठाने वालों पर सख्ती के साथ अंकुश लगाया जाए। वहीं लॉकडाउन को लागू करने के लिए पुलिस तंत्र का रवैया मानवतावादी रहे। पिछले तीन दिनों से कुछ विचलित करने वाली घटनाएं सामने आ रही हैं जो पुलिस की प्रतिकूल छवि बना रही हैं। बेहतर होगा कि जहां ज्यादती हो वहां तुरंत कार्रवाई की जाए। 

कोरोना की इस जंग के बाद अलग तरह की दुनिया से हम रूबरू होंगे जिसमें बहुत सारे लोग अपने कारोबार और रोजगार खो चुके होंगे। लेकिन जान है तो जहान और जीवन को फिर से पटरी पर लाया जा सकता है। लेकिन सरकार को चाहिए कि जिस तरह से दुनिया के दूसरे देश इस संकट से होने वाले भारी आर्थिक नुकसान को कम करने के लिए बड़े पैकेज ला रहे हैं, केंद्रीय बैंक भारी लिक्विडिटी बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, हमें भी उस दिशा में बढ़ना चाहिए। जितनी जल्दी हो, राहत पैकेज के उपायों की घोषणा कर दी जानी चाहिए ताकि लोगों में आशा का संचार हो सके। लोग महसूस कर सकें कि वे घरों में रहकर इस जंग में जिस सरकार का सहयोग कर रहे हैं, वह उनके लिए युद्धस्तर पर काम कर रही है। 

 

 

 

 

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