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राहत पैकेज के हकदार किसान भी

देश और दुनिया कोरोनावायरस के संक्रमण से फैलने वाली कोविड-19 महामारी का सामना कर रही है। यह महामारी ऐसे...
राहत पैकेज के हकदार किसान भी

देश और दुनिया कोरोनावायरस के संक्रमण से फैलने वाली कोविड-19 महामारी का सामना कर रही है। यह महामारी ऐसे समय फैली है जब देश का किसान खेतों में तैयार रबी की फसल की कटाई के लिए इंतजार कर रहा है। अनुमान है कि इस साल देश में गेहूं की रिकॉर्ड पैदावार होगी। बेहतर उपज का मतलब है किसानों की बेहतर आमदनी लेकिन महामारी के चलते किसानों की उम्मीदों पर आशंका के बादल छा गए हैं। जनवरी के अंत में सामने आई महामारी हर दिन भयावह रूप ले रही है और उसके चलते देश भर में 25 मार्च से 21 दिन का लॉकडाउन लागू किया गया है। इसके पहले ही दिल्ली, पंजाब, महाराष्ट्र, केरल और उत्तर प्रदेश के कई जिलों में लॉकडाउन लागू किया गया था। इसका कृषि पैदावार की कटाई और विपणन गतिविधियों पर सीधे असर पड़ा है। हालांकि सरकार ने लॉकडाउन के लिए लागू दिशानिर्देशों में बदलाव करके कृषि उपज और विपणन से जुड़ी गतिविधियों और उनमें काम करने वाले श्रमिकों और मशीनरी की आवाजाही की छूट दे दी है। इसी के चलते चीनी मिलों में उत्पादन चल रहा है और उर्वरक, बीज तथा कीटनाशकों की खरीद-बिक्री जारी है।

इस बीच हमें जमीनी स्थिति को देखने की जरूरत है। देश भर में पैदा स्थिति और महामारी के भय से किसानों की आमदनी सीधे प्रभावित होती दिख रही है। बड़ी संख्या में फरवरी के अंत और मार्च के शुरुआती दिनों में होने वाली आलू की खुदाई अटक गई है। अगर खुदाई हो गई है तो मंडी और कोल्ड स्टोरों में पहुंचने में दिक्कतें आ रही हैं। कीमतों में गिरावट का डर भी किसानों को सता रहा है। फलों और सब्जियों के बाजार तक नहीं पहुंचने का खामियाजा देश के कई हिस्सों में किसानों को भुगतना पड़ रहा है। असर दहलन और तिलहन किसानों पर भी पड़ रहा है, कि उनकी उपज मिलों तक कैसे पहुंचे। मंडियों में सामान्य कामकाज नहीं होने पर किसानों को वाजिब दाम कैसे मिलेंगे। यही नहीं, मार्च के मध्य में शुरू होने वाली गेहूं की सरकारी खरीद अभी तक शुरू नहीं हो सकी है। उम्मीद है कि 14 अप्रैल तक चलने वाले 21 दिन के लॉकडाउन के खत्म होने के बाद गेहूं की सरकारी खरीद शुरू हो सकेगी। इन परिस्थितियों में सरकारी खरीद की व्यवस्था भी प्रभावित हो सकती है। इसके पहले गेहूं की कटाई में देरी से भी किसानों को नुकसान उठाना पड़ सकता है। बात केवल इन किसानों की ही नहीं है। लोगों में फैली भ्रांति के चलते देश का पॉल्ट्री सेक्टर भारी संकट में फंस गया है और इन किसानों को कीमतों में आई भारी गिरावट के चलते नुकसान हो रहा है। इसी तरह संगठित क्षेत्र में दूध की खरीद को छोड़ दें तो असंगठित क्षेत्र में दूध की बिक्री करने वाले किसानों को भी कीमतों में गिरावट का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।

जाहिर है, किसानों के लिए भी महामारी का संकट वित्तीय नुकसान लेकर आया है। ऐसे में जरूरी है कि सरकार किसानों की सुध ले। सरकार ने किसानों को अभी तक सीधे कोई पैकेज नहीं दिया है। मसलन, पीएम किसान कल्याण निधि की दो हजार रुपये की साल की पहली किस्त अप्रैल में देने की बात कही गई है। किसानों को तीन किस्तों में सालाना छह हजार रुपये मिलते हैं। इसलिए पहली किस्त अप्रैल में देना कोई अतिरिक्त राहत पैकेज नहीं है। किसानों को रियायती ब्याज पर मिलने वाला फसली ऋण चुकाने की समयसीमा बढ़ाकर 31 मई कर दी गई है। अब इस तिथि तक किसान चार फीसदी की ब्याज दर पर ही कर्ज चुका सकते हैं। इसे एक तरह की राहत कहा जा सकता है, लेकिन जिस तरह की परिस्थिति का किसानों को सामना करना पड़ रहा है उसमें उन्हें वित्तीय पैकेज दिया जाना जरूरी है। इस बात की काफी संभावना है कि आने वाले दिनों में सरकार कॉरपोरेट जगत को वित्तीय पैकेज दे, क्योंकि अर्थव्यवस्था भारी संकट से गुजर रही है और उसे पटरी पर लाने के लिए कॉरपोरेट जगत और तमाम अर्थविद इस तरह के पैकेज की जरूरत बता रहे हैं। इस महामारी के बावजूद देश में हर किसी को भोजन की पुख्ता व्यवस्था किसानों की मेहनत से ही संभव है। इस महामारी से पैदा हालात में भी खाद्य सुरक्षा को लेकर किसी तरह की चिंता नहीं है, तो उसकी वजह किसान और कृषि क्षेत्र ही है। ऐसे में मुश्किलों का सामना कर रहे किसानों के लिए सरकार को समय रहते बड़ा पैकेज घोषित करना चाहिए जो इनकी मुश्किलों को कम कर सके। सरकार किसानों के कर्ज पर ब्याज माफ करने का कदम तो उठा ही सकती है। रिजर्व बैंक ने मध्य वर्ग को ईएमआइ चुकाने में तीन माह की राहत देने की एडवाइजरी बैंकों को पिछले दिनों जारी की है, तो किसानों के लिए कुछ इस तरह का कदम वाजिब बनता है जो इस महामारी के समय में भी अपने खेतों में खड़ा है।

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