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तालिबान के प्रवक्ता का बड़ा बयान- 'हमें कश्मीर के मुसलमानों के लिए आवाज उठाने का अधिकार'

अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद तालिबान ने कश्मीर को लेकर बड़ा बयान दिया है। बीबीसी उर्दू से खास...
तालिबान के प्रवक्ता का बड़ा बयान- 'हमें कश्मीर के मुसलमानों के लिए आवाज उठाने का अधिकार'

अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद तालिबान ने कश्मीर को लेकर बड़ा बयान दिया है। बीबीसी उर्दू से खास बातचीत में तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने कहा है कि हमारे पास कश्मीर के मुसलमानों के लिए भी आवाज उठाने का अधिकार है। कयास लगाए जा रहे हैं कि पाकिस्तान तालिबान के उदय का इस्तेमाल अलगाववादी एजेंडे को हवा देने के लिए 'कश्मीर में इस्लामी भावनाओं को भड़काने' के लिए कर सकता है।

बीबीसी के साथ ज़ूम पर एक वीडियो इंटरव्यू में सुहैल शाहीन ने अमेरिका के साथ हुए दोहा समझौते की बात करते हुए कहा कि किसी भी देश के खिलाफ सशस्त्र अभियान चलाना उनकी नीति का हिस्सा नहीं है। दोहा से बात करते हुए शाहीन ने कहा, "एक मुसलमान के तौर पर, भारत के कश्मीर में या किसी और देश में मुस्लिमों के लिए आवाज उठाने का अधिकार हमारे पास है।" सुहैल शाहीन ने कहा, "हम आवाज उठाएंगे और कहेंगे कि मुसलमान आपके लोग है, अपने देश के नागरिक हैं। आपके कानून के मुताबिक वो समान हैं।"

बीबीसी के मुताबिक, कश्मीर पिछले चार दशकों से भारत-पाकिस्तान के बीच विवाद का केंद्र रहा है। अब पाकिस्तान समर्थित तालिबान का अफगानिस्तान पर कब्जा हो चुका है और भारत में कई लोगों को डर है कि तालिबान के कुछ धड़ों की नजर जम्मू-कश्मीर पर हो सकती है और इन्हें पाकिस्तान में मौजूद भारत विरोधी ताकतों का समर्थन मिल सकता है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इससे पहले अन्य तालिबानी प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर विवाद पर कहा था कि भारत को घाटी के प्रति ‘सकारात्मक दृष्टिकोण’ अपनाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा था कि भारत और पाकिस्तान को एक साथ बैठना चाहिए और मामलों को हल करना चाहिए, क्योंकि दोनों पड़ोसी हैं और उनके हित एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।

अल-कायदा ने कश्मीर और अन्य तथाकथित इस्लामी भूमि की 'मुक्ति' का आहवान किया है। जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा घाटी में आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ा सकते हैं, ताकि तालिबान की जीत की बढ़ती भावनाओं को भुनाया जा सके।

साल 2019 में अनुच्छेद-370 के निरस्त होने के बाद केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर का प्रशासन सीधे अपने हाथों में ले लिया और कई वादे किए गए, हालांकि स्थानीय निकाय चुनावों के आयोजन से राजनीतिक गतिविधि बहाल हो गई है, लेकिन अलगाव की भावना कम नहीं हुई है।

 

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