आखिरकार गजा में हत्याएं रोकने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की 20-सूत्रीय शांति योजना के कारगर होने की उम्मीद जगी है। हमास ने ऐलान किया है कि वह बाकी बचे इज्राएली बंधकों को रिहा करने के लिए तैयार है। ट्रम्प ने इज्राएल से गजा पट्टी पर बमबारी रोकने को कहा है। ट्रम्प ने कहा, ‘‘इज्राएल गजा पर बमबारी फौरन रोके, ताकि बंधकों को सुरक्षित और जल्दी वापस लाया जा सके!’’ बेशक, राष्ट्रपति ट्रम्प की यह शांति पहल स्वागतयोग्य है। अगर यह समझौता कारगर होता है और अमन कायम रहता है, तो ट्रम्प बहुप्रतीक्षित नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त करने की अपनी आकांक्षा के एक कदम और करीब पहुंच सकते हैं।
हमास का ऐलान 3 अक्टूबर को ट्रम्प की उस धमकी भरे पोस्ट के फौरन बाद आया, जिसमें उन्होंने कहा था कि उसे रविवार यानी 5 अक्टूबर तक अपना मन बनाना है, वरना सब कुछ तहस-नहस हो जाएगा। हमास पर सभी अरब और मुस्लिम देशों की ओर से भी इस करार को मंजूर करने का भारी दबाव है। यह करार पूरी तरह वाजिब नहीं है, लेकिन इसका मुख्य आकर्षण यह है कि गजा में खून-खराबा रुक जाएगा, बेहद जरूरी खाद्य आपूर्ति पहुंच सकेगी और इज्राएली बंधक घर लौट सकेंगे। हालांकि हमास ने पूरी 20-सूत्रीय योजना पर रजामंदी नहीं जताई है।
अमेरिका के बीस-सूत्री फॉर्मूले के कई प्रावधान हमास या फलस्तीन के लोगों के अनुकूल नहीं हैं। फिर भी, गजा की भयावह स्थिति ने हमास को ट्रम्प के समझौते को स्वीकार करने पर मजबूर कर दिया है। वहां करीब 46,000 लोग मारे गए हैं, हजारों जख्मी हैं और अकाल जैसे हालात हैं। फिर भी बहुत कुछ अभी भी अनसुलझा है।
हमास राष्ट्रपति ट्रम्प के अमन करार का कुछ शर्तों के साथ स्वागत करता है, बशर्ते इज्राएल वापस लौटेः खलील अल-हय्या, हमास के एक नेता
पश्चिम एशिया पर करीबी नजर रखने वाले सेवानिवृत्त राजदूत के.पी. फैबियन कहते हैं, ‘‘ट्रम्प की तथाकथित ‘शांति योजना’ दरअसल एक अल्टीमेटम है। इसे ‘शांति योजना’ कहना भी ठीक नहीं है। हमास ने सभी बंधकों को एक साथ रिहा करने पर सहमति जताई है। यह अच्छी बात है। नेतन्याहू जरूर हैरान होंगे, क्योंकि उन्होंने ट्रम्प के साथ मिलकर 20 सूत्री योजना बनाई थी ताकि हमास उसे ठुकरा दे और इज्राएल गजा में कत्लेआम जारी रख सके।’’ वे यह भी कहते हैं, ‘‘हमास ने सोची-समझी प्रतिक्रिया दी है, ताकि इज्राएली फौज पूरी तरह वापस लौट जाए।’’
अभी कई मुद्दों पर बातचीत होनी बाकी है। बड़ी अड़चन गजा से इज्राएली फौज की वापसी है, जिसके लिए कोई समय-सीमा तय नहीं है। हमास पूरी तरह से वापसी और इलाके को फौरन अंतरराष्ट्रीय शांति बल को सौंपने की बात कर रहा है।
गजा में भोजन की मदद के लिए परेशान लोग
मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम ने 4 अक्टूबर को कहा, ‘‘अमेरिका की शांति योजना अधूरी है, और हम उसके अधिकांश हिस्सों से असहमत भी हैं। हालांकि, हमारी फिलहाल प्राथमिकता फलस्तीनी लोगों की जान बचाना है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘उस योजना की सभी बातों से अरब और इस्लामी देशों की सहमति के संकेत नहीं है, लेकिन खून-खराबा रोकने, लोगों को बाहर निकालने पर रोक लगाने और गजा के लोगों को अपने वतन लौटने का मौका देने की दिशा में एक अहम कदम है।’’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित सभी विश्व नेताओं ने गजा में लड़ाई समाप्त होने का स्वागत किया है। हालांकि, यह देखना बाकी है कि इज्राएल बंधकों की रिहाई के बाद भी समझौते पर टिका रहता है।
नेतन्याहू ने स्टीव विटकॉफ और जेरेड कुशनर के साथ बैठकों में ट्रंप शांति योजना का स्वागत किया है। बंधक परिवारों के रोजाना बढ़ते विरोध प्रदर्शन नेतन्याहू के लिए चुनौती बने हुए हैं। हालांकि धुर दक्षिणपंथी कैबिनेट सहयोगी समझौते को शायद मंजूर न करें और सरकार से हटने की धमकी दे सकते हैं। ऐसे में नेतन्याहू को उदारवादी दलों से समर्थन मांगनी पड़ सकती है। फिलहाल उनकी सरकार को कोई खतरा नहीं है।
बदलते वैश्विक परिदृश्य और चीन-रूस के बढ़ते असर से भी ट्रम्प प्रशासन को इस ओर कदम बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ सकता है। खासकर पश्चिम एशिया में अरब जगत को अलग-थलग करना अमेरिका के लिए मुनासिब नहीं होता। कुछ दिन पहले कतर में इज्राएली हमले से अरब देशों को रुख कड़ा करने पर मजबूर होना पड़ा। अरब देशों के इस रुख से भी ट्रम्प पर दबाव बना हो सकता है और हो सकता है कि उन्होंने नेत्यान्हू पर समझौते के लिए तैयार होने का दबाव बनाया हो।
लंबे समय से मौत का तांडव देख रहे गजा और पश्चिमी तट के लोगों के लिए यह राहत का पैगाम जैसा है। यह उनकी नैतिक जीत भी साबित हो सकती है, जिसे इज्राएल अपने में मिलाने की मंशा पाले हुए है।
आज ज्यादा से ज्यादा देश फलस्तीनी राज्य को मान्यता दे रहे हैं। एएफपी की रिपोर्ट के मुताबिक, संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से 145 स्वतंत्र फलस्तीन देश का समर्थन करते हैं। पहले फलस्तीन को मान्यता देने वाले ज्यादातर देश दक्षिणी गोलार्द्ध के थे, लेकिन अब पश्चिमी सरकारें भी मान्यता देने को तैयार हैं। फिलहाल अमेरिका संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) का इकलौता स्थायी सदस्य है, जो द्वि-राष्ट्र समाधान के पक्ष में नहीं रहा है। अब देखना होगा कि नए करार के बाद उसका क्या रुख रहता है। स्थायी पांच सदस्यों में अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन हैं।
दरअसल गजा से निकलकर सुरक्षित स्थानों की ओर पैदल जा रहे लोगों पर बमबारी की तस्वीरें दुनिया के अधिकांश हिस्से में बेचैनी बढ़ा चुकी हैं। सऊदी अरब के पूर्व राजदूत तलमीज अहमद कहते हैं, ‘‘इज्राएल की कार्रवाई पर पश्चिम की राय अब बंटी हुई है, जिसकी मुख्य वजह यूरोप के युवाओं में बढ़ रही नाराजगी है। युवा गजा में हो रहे कत्लेआम से स्तब्ध है और सरकारों से कार्रवाई चाहते हैं।’’
असल में फलस्तीन और इज्राएल के सह-अस्तित्व के लिए द्वि-राष्ट्र समाधान की अवधारणा 1948 में ही लाई गई थी। उसके मुताबिक, इज्राएल-फलस्तीनी संघर्ष को समाप्त करने के लिए दो संप्रभु देशों के निर्माण करने की पेशकश की गई। इसके तहत इज्राएल को यहूदी लोगों का देश, और पश्चिमी तट और गजा पट्टी सहित फलस्तीन को फलस्तीनी लोगों का देश माना जाना है। उस अवधारणा पर कई बार बात हो चुकी है, लेकिन इज्राएल के अड़ियल रवैए के कारण उस पर बात आगे नहीं बढ़ सकी। शायद ट्रम्प की नए समझौते की पेशकश उस ओर ले जाए और स्थायी समाधान निकले, यही उम्मीद करनी चाहिए।