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विवादित मुद्दों पर रुख बदले चीनः मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी चिनपिंग और प्रधानमंत्री ली क्विंग से बातचीत में दोनों देशों के संबंधों में समस्या पैदा करने वाले मसलों को भी उठाया। इस दौरान पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में चीन की ओर से बड़े पैमान पर निवेश पर उन्होंने चिंता जताई जबकि अरुणाचल प्रदेश के लोगों को चीन द्वारा नत्थी वीजा देने के संदर्भ में वीजा मसले पर ठोस प्रगति की उम्मीद चाही।
विवादित मुद्दों पर रुख बदले चीनः मोदी

भारतीय प्रधानमंत्री ने चीन से उन कुछ मुद्दों पर उसके रुख पर पुनर्विचार करने कहा जो दि्वपक्षीय संबंधों की पूर्ण क्षमता प्राप्त करने में बाधक हैं। उन्होंने चीन को सुझाव दिया कि वह दोनों देशों के संबंधों को सामरिक और दीर्घकालिक परिपेक्ष्य में देखे। चीन के प्रधानमंत्री ली के साथ ग्रेट हॉल ऑफ पीपुल में वार्ता के बाद मीडिया से मुखातिब होते हुए संयुक्त बयान में मोदी ने कहा,  हमारी बातचीत बेबाक, रचनात्मक और दोस्ताना रही। हमने सभी मुद्दों पर बात की जिनमें वे विषय भी शामिल हैं जो हमारे संबंधों को ठीक ढंग से आगे बढ़ाने में समस्या पैदा करते हैं।

 

मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि दोनों देशों को एक दूसरे के हितों के प्रति संवेदनशील होने की जरूरत है। गौरतलब है कि दोनों पक्षों ने 24 समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं जिनमें रेलवे, खनन, अंतरिक्ष, भूकंप विज्ञान, इंजीनियरिंग, पर्यटन, सिस्टर सिटी और चेंगदू तथा चेन्नई में महावाणिज्य दूतावास स्थापित करने के विषय शामिल हैं।

 

पड़ोसी देश को उन्होंने सुझाव दिया कि वह आपसी संबंधों को लेकर सामरिक और दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाए। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, मैंने पाया कि चीनी नेतृत्व का रुख अनुकूल है। प्रधानमंत्री ने चीन के राष्ट्रपति शी चिनपिंग से बातचीत के दौरान पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में चीन की ओर से 46 अरब डॉलर निवेश करने के प्रस्ताव पर चिंता जताए जाने के अगले दिन चीनी प्रधानमंत्री से बातचीत के दौरान यह सुझाव दिया कि चीन को चाहिए कि वह दोनों देशों के संबंधों को सामरिक और दीर्घकालिक नजरिये से देखे। उन्होंने कहा, अपनी सरकार के पहले वर्ष में चीन यात्रा से मैं प्रसन्न हूं। यह हमारी महत्वपूर्ण सामरिक भागीदारियों में से एक है। कारण स्पष्ट है। भारत और चीन का पुनरोदय और दोनों के संबंध, दोनों देशों एवं नि:संदेह इस शताब्दी पर व्यापक प्रभाव डालेंगे।

 

प्रधानमंत्री ने हालांकि साथ ही कहा,  हाल के दशकों में हमारे संबंध पेचीदा रहे हैं। लेकिन हम पर यह ऐतिहासिक जिम्मेदारी है कि हम इन संबंधों को एक दूसरे की ताकत के स्रोत और दुनिया की भलाई की शक्ति के रूप में बदल दें। सीमा से जुड़े मुद्दे पर उन्होंने कहा कि हमने उचित, व्यवहारिक और आपसी सहमति से स्वीकार्य समाधान तलाशने पर सहमति व्यक्त की। हम दोनों ने सीमा क्षेत्रों में शांति एवं स्थिरता बनाए रखने के लिए हर तरह के प्रयास करने के प्रति अपनी मजबूत प्रतिबद्धता व्यक्त की। मोदी ने कहा,  मैंने यह भी दोहराया है कि इस संबंध में वास्तविक नियंत्रण रेखा के प्रति स्पष्टता महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि हम इस बात पर सहमत हुए कि हम आगे बढ़ें, एक दूसरे के हितों के प्रति संवेदनशील हों, आपसी विश्वास को मजबूत करें, अपने मतभेदों से परिपक्वता के साथ निपटें और लंबित मुद्दों का समाधान खोजें।

 

गौरतलब है कि सीमा मुद्दे पर चीन केवल 2000 किलोमीटर क्षेत्र को ही विवादास्पद मानता है जिसमें अधिकांश हिस्सा अरुणाचल प्रदेश का ही है जबकि भारत उसके इस दावे को सिरे से खारिज करता है और मानता है कि विवादास्पद क्षेत्र 4000 किलोमीटर के दायरे तक फैला है जिसमें अक्साई चिन शामिल है जो पाकिस्तान द्वारा उसे सौंपा गया है।

 

वहीं, चीन के प्रधानमंत्री ली ने स्वीकार किया कि सीमा मुद्दे को लेकर दोनों पक्षों के बीच मतभेद हैं और दोनों देशों को शांति और स्थिरता बनाये रखने की आवश्यकता है। ली ने कहा, हम इस बात से इनकार नहीं करते कि हमारे बीच कुछ मतभेद हैं। लेकिन उन्हें सुलझाने के लिए एक व्यवस्था और पर्याप्त राजनीति परिपक्वता मौजूद है। चीनी प्रधानमंत्री ने कहा, हम चीन-भारत संबंधों को नई उंचाइयों पर ले जाने के लिए भारत के साथ मिलकर काम करने को तैयार हैं। उन्होंने कहा कि दोनों देशों को चाहिए कि वे एशिया और उसके बाहर और बड़ी भूमिका निभाने के अवसर को हासिल करे। उन्होंने कहा कि बहुध्रुवीय विश्व बनाने के लिए भारत और चीन दो महत्वपूर्ण देश हैं।

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