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ऑपरेशन कहुटा: जब बाल चुराकर रॉ ने पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को रोका

बात 70 के दशक की है जब पोखरण परिक्षण के बाद भारत परमाणु संपन्न राष्ट्र बन गया था और इसको लेकर पाकिस्तान खुद को परमाणु सक्षम करने के लिए हाथ पांव मार रहा था। उसी समय पाकिस्तान ने खुफिया तौर पर एक परमाणु संयत्र स्थापित किया और वहां पर परमाणु हथियार विकसित करने की तैयारी करने लगा। इसकी भनक लगते ही भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ ने पड़ोसी देश के उस कार्यक्रम को विफल करने के लिए एक शानदार अभियान को अंजाम दिया।
ऑपरेशन कहुटा: जब बाल चुराकर रॉ ने पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को रोका

आजादी के बाद भारत के पास इंटेलीजेंस ब्यूरो में बेहद शानदार खुफिया प्रभाग था। लेकिन जब पाकिस्तान ने सिख आतंकियों को हथियार उपलब्ध कराने का घृणित काम शुरू किया तो इंदिरा गांधी ने सोचा कि हमारे पास एक विदेश खुफिया विभाग होना चाहिए। हालांकि किसी एजेंसी का गठन नहीं किया गया बल्कि रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) की स्थापना हुई जो किसी एजेंसी के तौर पर वर्गीकृत नहीं है। वर्ष 1968 में के एन राव द्वारा स्थापित रॉ का पहला फोकस पाकिस्तान था और दूसरा चीन। क्योंकि चीन भारत के खिलाफ पाकिस्तान की सामरिक दृष्टि से मदद कर रहा था। साल 1974 में भारत के पोखरन परमाणु परिक्षण के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच हथियारों की एक होड़ शुरू हो गई। भारत की बढ़ती परमाणु क्षमताओं से चौकस पाकिस्तान ने खुद के परमाणु हथियार निर्माण के लिए मदद की खोज शुरू कर दी। जिस प्रकार से परमाणु संसाधन संयत्र से अमेरिका और कनाडा ने भारत की मदद की वैसे ही 70 के दशक में फ्रांस ने भी वही तकनीक उपलब्ध कराकर पाकिस्तान की मदद की। साथ ही चीनी तकनीशियनों ने भी परमाणु हथियार बनाने के लिए यूरेनियम को संशोधित करने में पाकिस्तान की मदद की।

बहरहाल पाकिस्तान को फ्रांस की मदद जगजाहिर थी लेकिन कहुटा में खुफिया परमाणु संयत्र सबसे छुपा हुआ था। यहां तक कि भारत और इजरायल से भी। इजरायल का खुफिया विभाग मोसाद पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर चिंतित था क्योंकि पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के पितामह वैज्ञानिक ए क्यू खान ने प्योंग्यांग की यात्रा की थी। आज हम सब जानते हैं कि उत्तर कोरिया ने परमाणु बम बनाने की तकनीक ए क्यू खान से हासिल की है।इसलिए मोसाद पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम की जानकारी के लिए भारत के रॉ के साथ मिलकर काम कर रहा था। फ्रांस को भी पाकिस्तान की योजनाओं को लेकर चिंता होने लगी जिस वजह से उसने भी अमेरिका के दबाव में उसकी सहायता बंद कर दी। फ्रांस द्वारा मदद बंद करने के बाद पाकिस्तान ने अपना सारा ध्यान खुफिया तौर पर कहुटा परमाणु संयत्र को किसी तरह से विकसित करने में लगा दिया।

सत्तर के दशक के अंतिम सालों में रॉ ने पाकिस्तान के भीतर अपना अच्छा नेटवर्क बना लिया था, जिससे उसे कहुटा परमाणु संयत्र की जानकारी अफवाह के तौर पर मिली। लेकिन समस्या यह थी कि इस जानकारी की पुष्टि कैसे की जाए। परमाणु संयत्र में घुसपैठ की कोशिश में सालों लग सकते थे और वह मूर्खतापूर्ण भी हो सकता था। यहां इस बात को ध्यान में रखना जरूरी है कि पाकिस्तान ने इस अभियान को इतना गुप्त रखा था कि रॉ को भी इसकी जानकारी अफवाहों के जरिये मिली थी। फिर एक आश्चर्यजनक अभियान में रॉ के एजेंटों ने कहुटा में नाई की दुकान पर बाल कटवाने आए पाकिस्तानी वैज्ञानिकों के कटे हुए बालों को चुराया। उन वैज्ञानिकों के चुराए गए बालों के सैंपल में विकीरण की जांच की गई जिसमें अफवाह की पुष्टि हो गई। अब भारत को पता चल गया था कि कहुटा संयत्र परमाणु हथियार बनाने के लिए प्यूटोनियम संशोधन संयत्र था। भारत ने अब स्पष्ट कर दिया था कि पाकिस्तान परमाणु हथियार का निर्माण कर रहा है।

इसके बाद इजरायल सीधे तौर पर कहुटा संयत्र को बम से उड़ाना चाहता था लेकिन यहां पर भारत की ओर से एक बहुत बड़ी असावधानी हो गई। हमारे तब के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने, जो उस समय जनरल जियाउल हक से बातचीत किया करते थे, फोन पर बात के दौरान उनसे कह दिया कि उन्हें पाकिस्तान के खुफिया अभियान (कहुटा संयत्र) की जानकारी है। इसके बाद पाकिस्तान ने फौरन सभी रॉ नेटवर्क को खत्म करते हुए इजरायल की बमबारी से बचाने के लिए अमेरिका से गुजारिश की। इस शानदार अभियान के बाद अपने परमाणु कार्यक्रमों की जानकारी को गुप्त रखने के लिए पाकिस्तान हमेशा चिंतित रहता है। रॉ और उसके एजेंटों ने जो किया वह कुछ और नहीं बल्कि इतिहास के सबसे कठिन और जोखिम भरे अभियानों में से एक था।

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