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आत‌िश तसीर के समर्थन में आए अरुंधति रॉय, अमिताभ घोष समेत कई लेखक

भारतीय पत्रकार तवलीन सिंह और दिवंगत पाकिस्तानी राजनेता सलमान तसीर के बेटे, आत‌िश अली तसीर का ओसीआई...
आत‌िश तसीर के समर्थन में आए अरुंधति रॉय, अमिताभ घोष समेत कई लेखक

भारतीय पत्रकार तवलीन सिंह और दिवंगत पाकिस्तानी राजनेता सलमान तसीर के बेटे, आत‌िश अली तसीर का ओसीआई कार्ड रद्द होने के बाद अरुंधति रॉय, अमिताव घोष  और जीत थायिल जैसे कई लेखक-एक्टिविस्ट उनके समर्थन में आ गए हैं। ब्रिटेन में जन्मे आत‌िश को भारत सरकार ने यह सुविधा दी थी। उनके समर्थन में कई लेखक, शिक्षाविद और बुद्धिजीवी उतर आए हैं। सभी का कहना है कि भारत सरकार को अपने निर्णय पर फिर विचार करना चाहिए और उनका यह दर्जा दोबारा बहाल करना चाहिए।   

पाकिस्तानी पिता के कारण गंवाया दर्जा

ओवरसीज सिटिजन ऑफ इंडिया का दर्जा भारत सरकार ऐसे लोगों को देता है जो भारतीय मूल के होते हैं और विदेश में रहते हैं। ये लोग भारत में काम भी कर सकते हैं। आत‌िश का यह दर्जा समाप्त करते हुए गृह मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि यह कार्ड ऐसे किसी भी व्यक्ति के लिए नहीं है जिनके माता-पिता या दादा-दादी पाकिस्तानी हों। यह कार्ड उन्हें फिर से नहीं दिया जा सकेगा, क्योंकि उन्होंने यह तथ्य छुपाया कि उनके पिता पाकिस्तानी थे।

सरकार के इस कदम से सोशल मीडिया और अकादमिक जगत में हलचल तेज हो गई हैं। लेखक-एक्टिविस्ट रॉय ने सरकार के इस कदम को अपमानजनक और खतरनाक करार दिया है। कवि थायिल का कहना है कि यह “एक निंदनीय और दुर्भाग्यपूर्ण रणनीति”है। राजनीतिज्ञ और लेखक शशि थरूर ने भी भारत सरकार के इस फैसले पर कटाक्ष किया है। थरूर ने कहा कि क्या सरकार को एक पत्रकार से खतरा महसूस हो रहा है।

टाइम पत्रिका का लेख बना बहाना

अरुंधति रॉय का कहना है कि सरकार इसे धमकी के तौर पर इस्तेमाल कर रही है। इससे अंतरराष्ट्रीय मीडिया के विदेशी संवाददाताओं पर भी वीजा देने से इनकार करने का खतरा मंडरा रहा है। तसीर पर यह निर्णय उस लेख के बाद आया है जो तसीर ने टाइम पत्रिका के लिए सात महीने पहले मोदी पर लिखा था। तसीर के लेख का शीर्षक था, ‘डिवाइडर इन चीफ’ (महाविभाजनकारी)।

थायिल का कहना है कि “यह भाजपा की प्रतिशोध और दुर्भाग्यपूर्ण नीति है। आतिश भारतीय हैं, दिल्ली वाले हैं और लेखक हैं। उसे निर्वासन में भेज कर आप उसे मजबूत ही कर रहे हैं। उसे और किताबें लिखने के लिए प्रेरित कर रहे हैं क्योंकि निर्वासन लेखक का प्राकृतिक रूप है।”

टाइम के एक लेख में तसीर ने लिखा था कि वह वह दो साल की उम्र से भारत में रह रहे हैं और 21 साल के हो जाने तक वे अपने पिता से मिले भी नहीं थे। उनकी मां ही उनकी एकल अभिभावक रही हैं। उन्हें मां ने ही पाला-पोसा है। यहां तक कि उनके माता-पिता की शादी तक नहीं हुई है।

जवाब देने के लिए नहीं मिला पर्याप्त वक्त

उन्होंने गृह मंत्रालय के प्रवक्ता के साथ हुई ईमेल बातचीत के स्क्रीन शॉट साझा किए हैं। तसीर का कहना है कि उन्हें 21 दिनों में जवाब देने के नियम के बजाय जवाब देने के लिए मुश्किल से 24 घंटे दिए गए थे।

थरूर ने ट्वीट कर कहा, “सरकार के आधिकारिक प्रवक्ता को गलत दावा करते देखना दुखद है। ऐसा दावा जो आसानी से खारिज हो जाएगा। इससे भी ज्यादा दुखद है कि लोकतंत्र में ऐसी चीजें हो रही हैं।”

द टेंपल गोर्स के लेखक के लिए एकजुट हुए लेखकों में अमेरिका में बस गए भारतीय लेखक अमिताव घोष भी शामिल हैं। घोष ने स्वीडन के उप्पासल विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय अध्ययन के प्रोफेसर अशोक स्वैन के उस ट्वीट को री-ट्वीट किया, जिसमें अशोक ने लिखा था, “यदि आप मोदी के विरोध में हैं तो आपसे भारतीय होने का हक भी छीन लिया जाएगा।”

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