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क्या भारत में है तीसरी लहर की संभावना? जानें ओमिक्रोन पर विशेषज्ञों की राय

सार्स कोव-2 वायरस का एक नया वेरिएंट फिर से वैश्विक समुदाय के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गया है। इस...
क्या भारत में है तीसरी लहर की संभावना? जानें ओमिक्रोन पर विशेषज्ञों की राय

सार्स कोव-2 वायरस का एक नया वेरिएंट फिर से वैश्विक समुदाय के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गया है। इस वेरिएंट को पहली बार 24 नवंबर को दक्षिण अफ्रीका में रिपोर्ट किया गया था और 26 नवंबर को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस नए वैरिएंट को 'ओमिक्रॉन' नाम दिया है और इसे 'वेरिएंट ऑफ कन्सर्न' के रूप में वर्गीकृत किया है।

इसके इतर यह नया वेरिएंट दक्षिण अफ्रीका, यूनाइटेड किंगडम, बोत्सवाना और हांगकांग में भी मिल चुका है और ऐसी आशंका है कि ये जर्मनी और चेक गणराज्य जैसे देशों में भी पाया जा सकता है। हालांकि, भारत में अभी तक इसकी कोई सूचना नहीं मिली है।

अब तक उपलब्ध एपीडोमियोलॉजिकल और क्लिनिकल साक्ष्यों से पता चलता है कि यह अत्यधिक संक्रामक है।  हालांकि, यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि यह नया वेरिएंट टीका लगाए गए या प्राकृतिक रूप से कोरोना से ठीक हुए व्यक्ति में मौजूद एंटीबॉडी से बचने की क्षमता रखता है या नहीं।

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में आनुवंशिकी (जैनेटिक्स) के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने कहा है, "इस वेरिएंट का संक्रमण की दर की गणना 2 है जो डेल्टा (1.64) से भी अधिक है।" प्रोफेसर चौबे के अनुसार, "अब तक, इस प्रकार के प्रतिरक्षा विकसित करने या गंभीरता को जानने के लिए पर्याप्त डेटा नहीं है। प्रोफेसर चौबे के अनुसार, "इस वेरिएंट की मृत्यु-दर (मोरैलिटी रेट) को समझने में 10-15 दिन का समय लगेगा। हालांकि, दक्षिण अफ्रीका से आए आंकड़ों पर गौर करें तो इसकी संक्रामकता बहुत अधिक है।"  

भारत में भी स्वास्थ्य विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों ने लोगों को सावधानी बरतने की सलाह दी है, फिर भी उन्हें लगता है कि भारत में अधिकांश आबादी की वर्तमान प्रतिरक्षा प्रोफ़ाइल उन्हें दुनिया के किसी भी देश की तुलना में ओमाइक्रोन के प्रति कम संवेदनशील बनाती है।

नए संस्करण के बारे में उपलब्ध वर्तमान जानकारी के अनुसार उनका विचार है कि, इस बात की संभावना कम है कि यह भारत में दूसरी लहर जितनी बड़ी तीसरी लहर लाएगा।

तो आखिर भारतीय आबादी की प्रतिरक्षा प्रोफ़ाइल के बारे में ऐसा क्या खास है?

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी की वैज्ञानिक सलाहकार समिति के अध्यक्ष डॉ जयप्रकाश मुलियाल का कहना है कि भारत में आबादी का एक बड़ा तबका प्राकृतिक रूप से ठीक हो गया है और उसने एक प्राकृतिक एंटीबॉडी हासिल कर ली है।

डॉ मुलियाल अनुसार, "महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या ओमाइक्रोन पहले से संक्रमित और ठीक हो चुके लोगों को संक्रमित करेगा?" उनके अनुसार, "यह महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत में दूसरी लहर के दौरान पहले से ही बड़ी संख्या में लोग संक्रमित हैं"

उन्होंने आगे कहा, "मैं आपको फिलहाल कोई निश्चित जवाब नहीं दे सकता लेकिन अगर वेरिएंट दोबारा संक्रमित व्यक्ति को संक्रमित कर रहा है, तो अफ्रीका में संक्रमण का डर बहुत ज्यादा होना चाहिए था, लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हुआ है।"

डॉ मुलियाल का यह भी कहना है कि कई उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) के बावजूद, नए वेरिएंट ने अभी तक कोई एपीडोमियोलॉजिकल और क्लिनिकल प्रमाण नहीं दिखाया है।

दूसरी तरफ, सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का यह कहना है कि वैक्सीन की 120 करोड़ से अधिक खुराक लोगों को दी जा चुकी है। वैक्सीन से प्राप्त एंटीबॉडी भी भारतीयों में व्यापक रूप से मौजूद हैं।

प्रोफेसर चौबे ने कहा, "इसलिए यदि वायरस वैक्सीन-अधिग्रहित एंटीबॉडी से बच जाता है और गंभीरता का कारण बनता है, तो पश्चिमी देशों के लिए एक चुनौतीपूर्ण समय होगा क्योंकि अधिकांश आबादी के पास वैक्सीन-अधिग्रहित एंटीबॉडी है।"

उन्होंने आगे कहा, "हालांकि, भारतीय लोगों में प्राकृतिक एंटीबॉडी, जो अब तक अन्य सभी एंटीबॉडी से बेहतर है- वो भारतीय आबादी में अधिकता में पाई गई है और शरीर में रच-बस भी गई है। इसलिए, हम तुलनात्मक रूप से अच्छी स्थिति में दिख रहे हैं।"

डॉ मुलियिल ने प्रो चौबे की बातों से सहमत होते हुए कहा, "अगर ओमाइक्रोन सभी प्रतिरक्षा से बच जाएगा तो उस स्थिति में पूरी दुनिया को एक और महामारी का सामना करना पड़ेगा। लेकिन, यह भविष्य की बात है। याद रखें कि अगर ऐसा होता है तो कोई भी टीका काम नहीं करेगा।"

दक्षिण अफ्रीका में चीजों को जो और अधिक चुनौतीपूर्ण बना रही हैं, वह यह है कि भारत की तरह दक्षिण अफ्रीका में पिछली लहरों ने कई लोगों को संक्रमित नहीं किया। टीकाकरण के मामलें में भी दक्षिण अफ्रीका भारत से कहीं पीछे है। दक्षिण अफ्रीका में एकल खुराक टीकाकरण सिर्फ 28.7 प्रतिशत और दोहरी खुराक 24.1 प्रतिशत है, जबकि भारत में यह क्रमशः 56.6 प्रतिशत और 31.2 प्रतिशत है।

डॉ ईश्वरप्रसाद गिलाडा, पहले संक्रामक रोग विशेषज्ञों में से हैं, जिन्होंने 1985 में भारत में एड्स के खिलाफ अलार्म किया था। उनका कहना है कि भारत में स्वाभाविक रूप से ठीक होने वाले व्यक्तियों को समान रूप से डिस्ट्रिब्यूटेड नहीं किया गया है और भारत में अभी भी कुछ ऐसे जिले हैं जिनमें कोविड से केवल 40 से 50 प्रतिशत लोग ही ठीक हो पाए हैं। 

डॉ गिलाडा ने कहा, "यह सच हो सकता है कि दिल्ली में 90 प्रतिशत लोगों में प्राकृतिक एंटीबॉडी हैं, लेकिन भारत के कई जिलों में ऐसा नहीं है। मेरी चिंता यह है कि हमें ऐसे क्षेत्रों में टीकाकरण अभियान को तेज करने की जरूरत है ताकि हम अधिक से अधिक लोगों को सुरक्षा कवच प्रदान कर सकें।"

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