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अंंतरिक्ष कूटनीति की धूम, लेकिन सफेद हाथी न बन जाए दक्षिण एशिया उपग्रह

दक्षिण एशिया के सात देशों ने भारत की ओर से अपने पड़ोसियों के लिए उपहार के तौर पर छोड़े गए 450 करोड़ रूपये के संचार उपग्रह की खूब सराहना की है। इन देशों के बीच एक अभूतपूर्व अंतरिक्षीय संबंध की बानगी देखने को मिली।
अंंतरिक्ष कूटनीति की धूम, लेकिन सफेद हाथी न बन जाए दक्षिण एशिया उपग्रह

अंतरिक्ष की दुनिया में इससे पहले का कोई उदाहरण नहीं है, जहां कोई मुफ्त क्षेत्रीय संचार उपग्रह इस तरह भेंट किया गया हो। यह भारत की दरियादिली को दिखाता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रिय परियोजना के तौर पर प्रचारित दक्षिण एशिया उपग्रह अब कक्षा में है। जोखिम भरा लेकिन बेहद आसान काम अब पूरा हो चुका हैैै। इसरो ने इसे अंजाम दिया है।

लेकिन मुश्किल काम अब शुरू हो रहा है, जब सात सदस्य देशों को अपने संसाधनों का इस्तेमाल करके जमीनी स्तर की अवसंरचना तैयार करनी है और उपग्रह से भेजी जाने वाली जानकारी के लिए साॅफ्टवेयर को तैयार रखना है। यह काम कहने को तो आसान है लेकिन इसे करना काफी मुश्किल है।

इस उपग्रह के सफल प्रक्षेपण के बाद वीडियो काॅन्फ्रेंस में मोदी ने कह, आज दक्षिण एशिया के लिए एक एेतिहासिक दिन है। एक एेसा दिन, जो पहले कभी नहीं आया। दो साल पहले, भारत ने एक वादा किया था। उसने दक्षिण एशिया में अपने भाइयों और बहनों के विकास और समृद्धि के लिए आधुनिक अंतरिक्षीय प्रौद्योगिकी के विस्तार का वादा किया था।

उन्होंने कहा, दक्षिण एशिया उपग्रह का सफल प्रक्षेपण उस वादे को पूरा करता है। इस प्रक्षेपण के साथ हमने अपनी साभुोदारी के सबसे अग्रिम मोर्चे को बनाने के सफर की शुरूआत कर दी है।

जो बात दरअसल कही नहीं गई, वह यह थी कि विदेश नीति की इस अभूतपूर्व पहल के जरिए भारत इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को सीमित करने की कोशिश कर रहा है। पाकिस्तान ने अपने अंतरिक्षीय कार्यक्रम का हवाला देते हुए खुद को इस अंतरिक्ष कार्यक्रम से अलग रखा है। जबकि हर कोई जानता है कि उसका यह कार्यक्रम भारत की अत्याधुनिक अंतरिक्ष क्षमताओं की तुलना में बहुत पीछे है और अभी शुरूआती चरण में ही है।

 

 

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