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क्या ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के आर्थिक प्रतिबंध और निंदा प्रस्ताव से डरेगा रूस?

एक तरफ यूक्रेन पर रूस के हमले के चार दिन हो चुके हैं, अब तक रूस औऱ यूक्रेन दोनों तरफ के सैकड़ों सैनिकों...
क्या ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के आर्थिक प्रतिबंध और निंदा प्रस्ताव से डरेगा रूस?

एक तरफ यूक्रेन पर रूस के हमले के चार दिन हो चुके हैं, अब तक रूस औऱ यूक्रेन दोनों तरफ के सैकड़ों सैनिकों की जान जा चुकी है। यूक्रेन की राजधानी कीव के रिहायशी इमारत पर भी मिसाइल अटैक की तस्वीरें सामने आई हैं। जाहिर है कि आम लोगों को भी मौत हुई है। खारकीव में यूक्रेन की फौज रूस की सेना को कड़ी टक्कर दे रही है। दूसरी तरफ ब्रिटेन, यूरोपीय संघ और अमेरिका सिर्फ आर्थिक प्रतिबंधों की गिनती बढ़ाए जा रहे हैं। ऐसे में क्या रूस इन प्रतिबंधों से सहमेगा या फिर उसकी अपनी विस्तारवादी नीति का परिणाम यूक्रेन को तबाह कर देगा। इसको समझने के लिए मौजूदा गतिविधियों के साथ रूस की मंशा को भी समझना होगा। दरअसल रूस के पास गर्म पानी का बंदरगाह नहीं है और ब्लैक सी पर व्यापार के लिए निर्भर नहीं रहना चाहता। इसी रास्ते में आते हैं यूक्रेन और क्रीमिया जैसे देश, एक लड़ाई के बाद मार्च 2014 में क्रीमिया को ने रूस ने अपने में मिला लिया और अब वो यूक्रेन को इसलिए हथियाना चाहता है क्यूंकि उसके पास गर्म पानी के बंदरगाह में जाने का रास्ता साफ हो जाए। इसलिए क्या रूस महज निंदा प्रस्ताव और आर्थिक प्रतिबंधों के दबाव में आएगा।

इस बीच रूस का विरोध यूरोप के कई देशों में जमकर होने लगा है। इतना ही नहीं रूस में भी लोगों ने राष्ट्रपति पुतिन के इस कदम के विरोध में सड़क पर मार्च निकाला और दुबई में चैंपियनशिप खेल रहे रशियन टेनिस प्लेयर आंद्रे रुबलेव ने कैमरे के लेंस पर ही लिख दिया – No War Please. ब्रिटेन के सबसे अमीर फुटबाल टीमों में से एक चेल्सी फुटबाल क्लब के रशियन मालिक रोमन अब्रोमोविच ने क्लब की जिम्मेदारी अब चेल्सी ट्रस्ट को सौंप दी है। इस क्लब की नेटवर्थ आज लगभग 24 हजार करोड़ रुपए है इतना ही नहीं अब्रोमोविच रूस के टॉप 10 अमीरों में शुमार हैं और पुतिन के करीबी माने जाते रहे हैं।

दूसरी तरफ यूक्रेन पर रूस के हमले ने यूरोप के छोटे छोटे देशों को अंदर से हिला दिया है खासकर उन देशों को जिनकी सीमाएँ कहीं न कहीं रूस से लगती हैं या जो कभी USSR का हिस्सा रही हों। साथ ही नेटो के देश भी अंदर ही अंदर सकते में हैं। लिहाजा नेटो देश रूस पर तमाम तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगा रहे हैँ। ये संकट अब धीरे धीरे यूरोप में आम लोगों को भी परेशान करने लगा है। यहां ब्रिटेन में देश के अलग अलग हिस्सों में लोगों ने खुलकर रूस का विरोध किया और यूक्रेन के आम लोगों के साथ खड़े होने का विश्वास दिलाया। लंदन में रूसी दूतावास और डाउनिंग स्ट्रीट के बाहर साथ ही मैनचेस्टर और एडिनबर्ग समेत कई जगहों पर हजारों लोग ने सड़कों पर रैलियों निकालकर रूस का विरोध किया। लंदन में रूसी दूतावास पर तो ब्रिटिश नागरिकों ने अंडे तक फेंके और यूक्रेन पर हमले के विरोध में कई तरह के संदेश दूतावास के बाहरी दीवारों पर लिख डाले। ड्यूक और डचेज़ ऑफ़ कैम्ब्रिज प्रिंस विलियम और कैथरीन के साथ प्रिंस हैरी और मेघन ने भी एक बयान जारी कर कहा कि वे "अंतरराष्ट्रीय और मानवीय कानून के इस उल्लंघन के खिलाफ" यूक्रेन के लोगों के साथ खड़े हैं और वैश्विक नेताओं को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया। 13 लाख की आबादी वाले देश इस्टोनिया की राजधानी में 30 हजार से ज्यादा लोग जमा हो गए और रूस का विरोध किया लेकिन क्या इस सबसे पुतिन पर असर पड़ेगा? तो आखिर ऐसा क्या हो कि पुतिन अपनी जिद से पीछे हटें। इसके लिए अब ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोपीय संघ ने रूस पर सबसे कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है। दिन भर की चर्चा के बाद शाम होते होते यूरोपीय संघ ने साझा बयान जारी किया जिसमें निंदा प्रस्ताव के साथ चुनिंदा रूसी बैंकों को “स्विफ्ट मैसेजिंग सिस्टम” से हटाने की मंशा स्पष्ट की गई। ये कदम ये सुनिश्चित करेगा कि ये बैंक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली से अलग हो जाएं और वैश्विक स्तर पर काम करने की उनकी क्षमता को नुकसान पहुंचे। स्विफ्ट से अगर इन बैंकों को हटाया जाएगा तो रूस के व्यापारिक सिस्टम पर असर होगा। रूस के ज्यादातर व्यापारिक घराने अंतरराष्ट्रीय पेमेंट आसानी से अपने देश में न ले पाएँगे और न ही किसी सिलसिले में बाहर भेज पाएँगे। हालांकि ऐसा प्रतिबंध 2014 में रूस के क्रीमिया पर हमले के दौरान भी लगाया गया था तब रूस ने अपना अलग बैंकिंग सिस्टम ही शुरु कर दिया था, लेकिन वो उतना कारगर नहीं हुआ और रूस को कुछ मुश्किलें हुई, बाद में वो प्रतिबंध हटा लिया गया और रूस को ज्यादा फर्क नहीं पड़ा। एक बार फिर बोरिस जॉनसन की लीडरशिप में ऐसे ही प्रतिबंध लगाने की तैयारी है लेकिन इस बार रूस के पास ज्यादा विकल्प हैं। रूस का पहले से डेवलप किया गया अपना बैंकिंग मैसेजिंग सिस्टम तो है ही साथ ही वो चीन का भी सहयोग ले सकता है क्यूंकि इस युद्ध में चीन, रूस के साथ खड़ा दिख रहा है। रूस के स्विफ्ट कटऑफ से मुश्किलें यूरोपीय संघ को भी होंगी क्यूंकि यूरोपीय संघ अपनी 40% गैस रूस से आयात करता है। साथ ही रूसी कंपनियों के पास यूरोप और अमेरिका के कई बैंकों के सौ बिलियन डॉलर से ज्यादा का बकाया है बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स के अनुसार ये रकम तकरीबन 121 बिलियन डॉलर हो सकती है। ऐसे में यूरोपीय संघ को अपने इस पैसे की भी चिंता करनी होगी। इसलिए इस बार आर्थिक प्रतिबंधों के प्रस्ताव में ब्रिटेन ने कुछ औऱ चीजें साफ की हैं जिसमें रूसी बैंकों पर प्रतिबंध लगाने का काम सबसे पहले किया जा चुका है और अब उन बिजनेस हाउसेज और अमीर लोगों की पहचान की जा रही है जो रूस को किसी भी तरह से आर्थिक मदद पहुंचा सकते हैं। इस प्रयास में यूरोपीय संघ के साथ अमेरिका भी साथ है। साथ ही बिजनेस और इंवेस्टमेंट वीसा के जरिए आए वे रूसी नागरिक जो अब ब्रिटिश नागरिकता पाने की कगार पर खड़े हैं उनकी भी गहन पड़ताल की जाएगी। जाहिर है ऐसे कदम दोनो देशों के बीच के संबंध और खराब करेंगें। बावजूद इसके सवाल वही खड़ा रहता है कि क्या ये सारे प्रतिबंध रूस को रोक पाएँगे।

हालांकि इस बीच ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने रॉयल ब्रिटिश एयरफोर्स के अधिकारियों से मुलाकात की और यूक्रेन को रक्षात्मक सैन्य सहायता मुहैया कराए जाने की रिपोर्ट अधिकारियों से ली और ट्वीट कर दुनिया को जानकारी दी। साथ ही ये भी बताया गया है मंगलवार को ब्रिटिश गृह मंत्री प्रीति पटेल संसद में एक नया आपातकालीन प्रस्ताव लाएँगी जिसके तहत देश में अघोषित संपत्तियों की गहन जांच की जाएगी निश्चित तौर पर ये रूसी अमीरों पर शिकंजा कसने की तैयारी है। साथ ही प्रीति पटेल ने तमाम तरह के वीसा पर ब्रिटेन आए यूक्रेनियन को बिना शर्त वीजा बढ़ाने की अनुमति दी है ताकि इस दौर में उन्हें ब्रिटेन छोड़ने पर मजबूर न होना पड़े। लेकिन रूस की जिद देखकर ये साफ दिख रहा है कि ऐसी कोशिशें रूस को रोकने के लिए नाकाफी होंगी लिहाजा यूरोपीय संघ और नेटो देशों को कुछ और भी सोचना होगा।

 

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