Advertisement

‘ये लोग फ्री सेक्स का मतलब नहीं जानते’

फेसबुक और ट्विटर संवाद बनाने का जरिया है। मैंने अपने फेसबुक पर ऐसी सेटिंग्स की हुई थी कि मेरी वॉल पर कोई दूसरा कुछ लिख नहीं सकता था। बहुत से लोगों ने मुझसे कहा कि आप अपनी सेटिंग्स बदल दें ताकि हम आपसे संवाद में शामिल हो सकें। मैंने ऐसा कर दिया। कुछ समय पहले मैंने जेएनयू और जादवपुर यूनिवर्सिटी की छात्राओं पर लगे फ्री सेक्स के आरोप पर एक लेख लिखा। मैंने लिखा- ‘लड़कियों को फ्री सेक्स की गाली क्यों दी जाती है, पुरुषों को क्यों नहीं? क्योंकि माना जाता है कि पुरुषों को फ्री सेक्स का हक है।’ पुरुषों के लिए फ्री सेक्स कॉम्लीमेंट जैसा है। सही मायने में राजनीतिक तौर पर बेबाक महिलाओं को शर्मिंदा करने के लिए उन्हें रं...या फ्री सेक्स करने वाली कहा जाता है। मेरा यह लेख काफी शेयर हुआ। मैंने इसे अपनी फेसबुक वॉल पर भी शेयर किया। मेरे इस लेख में किसी ने कमेंट किया कि ‘तेरी मां भी फ्री सेक्स करती होगी?, तेरा बाप कौन है तू जानती भी नहीं.. ’ मेरी मां ने इसका जवाब दिया- ‘हां, मैंने फ्री सेक्स किया है। फ्री नहीं किया तो वह बलात्कार होता। फ्री का मतलब सहमति से सेक्स करना है, किसी को बंधक बनाकर सेक्स करना बलात्कार होता है।’ इसी से गालियों का सिलसिला शुरू हो गया। मेरे पिता, पति, भाई, बहन, मां सभी को गालियां और मुझे बलात्कार की धमकी दी गई।
‘ये लोग फ्री सेक्स का मतलब नहीं जानते’

दरअसल यह लोग फ्री सेक्स का मतलब ही नहीं जानते हैं। फ्री सेक्स का मतलब सहमति से सेक्स है और ये लोग हमें फ्री सेक्स की गाली से चुप नहीं करा सकते। ये फ्री शब्द से घबराते हैं, फ्री महिलाओं से घबराते हैं। कभी सोचा है कि महिलाओं के मामले में ट्रोलिंग सेक्सुअली क्यों होती है? ‘तेरे साथ कौन सेक्स करेगा, तेरी शक्ल देखकर तेरे साथ कौन सोएगा....आदि-आदि।’ ऐसा करके यह लोग सोचते हैं कि हम शर्मिंदा और परेशान हो जाएंगे। राजनीतिक बहस से भाग जाएं लेकिन हम अपने तरीकों से काम करते रहेंगे। डटे रहेंगे। इन लोगों को सफलता हासिल नहीं होगी। ये जितना हमारे खिलाफ गालियां लिखेंगे उतना एक्सपोस होंगे। इन्हें लगता है कि जो महिलाएं पितृसत्तामक ढांचे को नहीं मानती हैं वे फ्री सेक्स करती हैं और ऐसा करना अनैतिक है। एक राजनीतिक गैंग है। ये खास राजनीतिक का प्रतिनिधित्व करते हैं। भारत माता की जय न बोलने वाले को मारा जाता है और मुझे और मेरी मां को फ्री सेक्स की धमकी दी जाती है। क्या ऐसा करने से आपके सनातन धर्म को चोट नहीं पहुंचती है? वर्ष 2010 में मेरे पिता की मौत हो गई थी। मेरी मां का कहना है कि वो अगर जिंदा होते तो बताते कि इन लोगों का दिमाग गंदा है।        

 

राजनीतिक बहस में तीखापन हो, विचारों का आदान-प्रदान हो तो कोई दिक्कत नहीं है। ये लोग सोचते हैं कि महिलाएं राजनीतिक विमर्श के लायक नहीं। औरतों से बहस में उतरते ही राजनीतिक बहस की जगह उसके चरित्र, बलात्कार, चाल, फ्री सेक्स, इसकी मां-बहन कैसी होंगी, बाप कैसा होगा, उसके लुक्स आदि पर बहस आ जाती है। फिर चारों ओर से गालियों की गोलाबारी होती है। पूरी बहस कहीं और चली जाती है। इतना हल्ला होने लगता है कि जो लोग शांति से बहस करना करना चाहते हैं वे भी चुप हो जाते हैं। वह आपके समर्थन में इतनी गालियां पार करके नहीं आना चाहते हैं। राजनीतिक बहस का माहौल ही खराब हो जाता है।

 

हाल ही में केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने कहा कि औरतों से ऑनलाइन बदसलूकी करने वालों के खिलाफ कानून बनने जा रहा है। मुझे लगता है कि सवाल ऑफलाइन या ऑनलाइन का नहीं है। कानून तो पहले से भी हैं। हमें लोग रोज गाली देंगे तो क्या हम रोज शिकायत करने जाएंगे। सवाल यह है कि सोशल मीडिया पर गालियां एक राजनीतिक गुटबंदी के तहत हो रही हैं। जिसके जिम्मेदार भाजपा और आरएसएस के नेता हैं। क्योंकि गालियां देने वालों में बड़ी तादाद इन्हीं के भक्तों की है। इन्हें अपने भक्तों को हिदायत देनी चाहिए कि वे ऑफलाइन या ऑनलाइन औरतों की चाल और चरित्र पर टिपण्णी न करें। हाल ही में एक टीवी शो पर एक बहस के दौरान भाजपा के एक बड़े नेता ने मुझे दो दफा कहा कि नक्सली है, फ्री सेक्स करती है। एंकर ने उन्हें टोका तक नहीं। उसके बाद वृंदा कारत ने उन्हें फोन करके झाड़ा तो अगले कार्यक्रम में उन्होंने उस नेता को लताड़ा। जबकि टीवी पर बहस न तो नक्सल को लेकर थी और न ही फ्री सेक्स को लेकर।     

 (आउटलुक की विशेष संवाददाता मनीषा भल्ला से बातचीत पर आधारित)

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad