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‘आरएसएस को सोचना चाहिए कि कोहिनूर राष्ट्रप्रेम की अहम निशानी है ’

कोहिनूर हीरे पर विवाद तो पुराना है लेकिन इसपर खुलेआम बहस मेरी वजह से ही शुरू हुई। मैं उस वक्त ब्रिटेन में राजनयिक था। मुझे लगा कि कोहिनूर हमारा है और हमें वापिस मिलना चाहिए। इसे लेकर मैंने ब्रिटेन में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया। चारों ओर शोर मच गया। बात यहां तक बढ़ गई कि ब्रिटिश सरकार को जायजा लेना पड़ गया। ब्रिटेन के फॉरेन ऑफिस के अधिकारी मुझसे मिले और कहने लगे कि छोड़ दीजिए बात पुरानी हो गई है। मैंने कहा कि यूनेस्को ने बोल दिया है कि जो भी चीजें उपनिवेशों से ली गई हैं उन्हें लौटाई जाएं। ग्रीस में ऐसा हो भी रहा है। उन्होंने तर्क दिया कि महाराजा दिलीप सिंह ने लॉर्ड डलहौजी को कोहिनूर भेंट किया था।
‘आरएसएस को सोचना चाहिए कि कोहिनूर राष्ट्रप्रेम की अहम निशानी है ’

 

नाबालिग थे महाराजा दिलीप सिंह

मेरा तर्क था कि महाराजा दिलीप सिंह तो नाबालिग थे। आखिर वह कोहिनूर कैसे भेंट कर सकते थे। मेरा दूसरा तर्क था कि आखिर उपनिवेश वाले, गुलाम लोग आप राज करने वाले शासकों को कुछ भेंट कैसे कर सकते हैं। लॉर्ड डलहौजी ने नाबालिग दिलीप सिंह से कोहिनूर हीरा ले लिया था। यही नहीं बल्कि दिलीप सिंह को भी वह अपने साथ लंदन ले गया और वहां उन्हें ईसाई बना दिया। आमतौर पर लंदन स्वेज नहर के जरिये जाया जाता था लेकिन रास्ते में लॉर्ड डलहौजी से कोई कोहिनूर न छीन ले इस डर से वह स्वेज नहर से न होकर साउथ अफ्रीका के रास्ते लंदन गए। कोहिनूर के एक हिस्से को वहां की महारानी ने अपने मुकुट में लगा लिया था। उसका बाकी हिस्सा वहां म्यूजियम में है।  

 

कोहिनूर देखकर जब मुरली रुआंसा हो गया

इसके बाद बर्तानवी सरकार ने कहा कि हम कोहिनूर किसे दें? भारत को या पाकिस्तान को? मैंने कहा कि वो हम पाकिस्तान से समझ लेंगे कि हीरा किसके पास रहे लेकिन कम से कम आप लोगों के पास तो नहीं रहना चाहिए। उस वक्त पाकिस्तान के राजनयिक शहरयार थे। मैंने उनसे भी बात की। उन्होंने भी यही कहा कि कम से कम कोहिनूर इन लोगों के पास से तो आए। कोहिनूर पर भारत और पाकिस्तान का एक स्टैंड देखकर प्रिंस फिलिप्स भी हैरान थे। हमने उनसे कहा कि हमें कोहिनूर वापिस चाहिए। ब्रिटेन सरकार ने भारत सरकार पर दबाव डालना शुरू कर दिया। लेकिन मुझे भी कैबिनेट मंत्री का दर्जा हासिल था, इस नाते मैं कोहिनूर की मांग कर सकता था। लंदन में मैं एक दफा कोहिनूर हीरा देखने गया। मेरा नौकर मुरली भी उसे देखने के लिए आतुर था। कोहिनूर की चमक और देशप्रेम से भरे मुरली ने रुआंसा होकर कहा कि साब जाते-जाते कोहिनूर साथ ले जाओ।  

 

भारत सरकार ने मुझे चुप रहने को कहा

उसके बाद मैं भारत वापिस आ गया। राज्यसभा का सांसद बना। मैंने पहले भाषण में भी कोहिनूर पर बात की। उस वक्त जसवंत सिंह विदेश मंत्री थे। उन्होंने मुझे चुप रहने की सलाह दी। कहा कि इससे हमारे ब्रिटेन सरकार के साथ संबंध खराब हो रहे हैं। मैंने कहा कि कोहिनूर हमारी मानसिकता से जुड़ा है, वो हमारा स्वाभिमान है, विरासत है, राष्ट्रप्रेम की निशानी है।

 

आरएसएस याद रखे कि.....

हाल ही में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि कोहिनूर हीरा भेंट किया गया था लेकिन जब सरकार की चारों ओर आलोचना हुई तो सरकार ने कोहिनूर पर तुरंत स्टैंड बदल लिया। सरकार ने कहा कि ठीक है हम कोहिनूर वापिस लाएंगे। सरकार ने यह स्टैंड चुनावों की वजह से बदला है। क्योंकि पंजाब में चुनाव है और इस दफा कोहिनूर भी चुनावी मुद्दा होगा। मुझे समझ नहीं आता है कि मोदी सरकार ताल ठोक कर शोर क्यों नहीं मचा रही कि कोहिनूर हमारा है। इतनी मायूसी से धीमे-धीमे बोल रही है। सरकार और खासकर आरएसएस को याद रखना चाहिए कि कोहिनूर राष्ट्रप्रेम की अहम निशानी है। वो यह भी याद रखें कि कोहिनूर हमेशा से हमारा था, हमारा है और हमेशा हमारा रहेगा। सरकार उसे जल्द से जल्द वापिस लाने पर काम करे।  

(लेखक ब्रिटेन में भारत के राजनायिक रहे हैं, पूर्व राज्यसभा सदस्य और वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

 

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