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एमएसएमई का एनपीए बढ़ने का खतरा

प्राथमिकता क्षेत्र के कर्ज में कृषि के बाद पहले से ही बैंकों का जोर एमएसएमई के वित्त पोषण पर रहा है।...
एमएसएमई का एनपीए बढ़ने का खतरा

प्राथमिकता क्षेत्र के कर्ज में कृषि के बाद पहले से ही बैंकों का जोर एमएसएमई के वित्त पोषण पर रहा है। कोविड-19 के चलते पटरी से उतरी अर्थव्यवस्था की बहाली के लिए केंद्र सरकार ने तीन लाख करोड़ रुपये के इमर्जेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी स्कीम (ईसीएलजीएस) की घोषणा की है और 100 फीसदी गारंटी का आश्वासन भी दिया है, पर एक साल बाद शुरू होने वाली वसूली को लेकर बैंक आशंकित भी हैं। त्योहारों की तर्ज पर एक तरह से एक और लोन मेले के लिए बैंकों को तैयार रहना चाहिए, खासकर सरकारी क्षेत्र के बैंक, जो पहले ही एनपीए के दबाव में हैं।

इस स्कीम के लिए उन पर निजी क्षेत्र के बैंकों की तुलना में कर्ज आवंटन का लक्ष्य हासिल करने का सियासी दबाव अधिक रहेगा। एमएसएमई का बैंक कर्ज करीब 29 लाख करोड़ रुपये का है। इसमें से तीन लाख करोड़ के एनपीए ने 2019-20 में बैंकों को एमएसएमई के कर्ज प्रवाह में भारी कटौती के लिए मजबूर किया। 2018-19 की तुलना में बैंकों का 2019-20 में एमएसएमई को वित्त पोषण सिर्फ 0.7 फीसदी बढ़ा है। तीन लाख करोड़ के नए पैकेज से एमएसएमई का कर्ज प्रवाह बढ़ेगा, लेकिन एनपीए का जोखिम बढ़ने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।

कोविड-19 से लड़ाई में दो महीने से अधिक समय के लॉकडाउन के दौरान अर्थव्यवस्था तेजी से गिरी है। इसके साथ मेन्युफैक्चरिंग और ट्रेडिंग सेक्टर के अलावा बैंकिंग सेक्टर भी बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। इसके बावजूद हमारे बैंक ने कुल कर्ज में से 38 फीसदी कृषि क्षेत्र को और 28 फीसदी कर्ज एमएसएमई सेक्टर को दिया है। कृषि, एमएसएमई और होम लोन की किस्त अदायगी के लिए आरबीआ की ओर से 31 अगस्त तक दिए गए मोरेटोरियम के बाद सबसे ज्यादा एनपीए एमएसएमई में ही बढ़ने की आशंका जताई जा रही है। अर्थव्यवस्था के वर्तमान हालात को देखते हुए इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि एमएसएमई सेक्टर में बैंकों का एनपीए 25 फीसदी के पार चला जाएगा।

बैंकों ने एमएसएमई के लिए क्रेडिट रेटिंग के आधार पर ब्याज दरें तय कर रखी हैं। अच्छी या खराब क्रेडिट रेटिंग के आधार पर ब्याज की दरें कम या ज्यादा होती हैं। पैकेज के तहत एमएसएमई को 9.25 फीसदी ब्याज पर नए कर्ज दिए जाएंगे जिसके लिए आरबीआइ और एमएसएमई मंत्रालय के दिशानिर्देशों का इंतजार है। वर्तमान में हमारा बैंक एमएसएमई को 9.50 से 11 फीसदी ब्याज दरों पर कर्ज दे रहा है।

चालीस फीसदी कासा (करंट अकाउंट-सेविंग अकांउट) अनुपात के साथ जमा खातों पर चार फीसदी ब्याज देने वाले हमारे बैंक का जमा पूंजी जुटाने पर कुल खर्च छह फीसदी बैठ रहा है। प्रतिस्पर्धा के कारण कई बैंक लघु जमा राशि पर छह फीसदी ब्याज दर की पेशकश भी कर रहे हैं। इससे उन बैंकों के लिए जमा पूंजी जुटाने का खर्च आठ फीसदी तक पहुंच जा रहा है। अगर किसी बैंक का शुद्ध ब्याज मार्जिन (निम) दो फीसदी से भी कम रहा तो उसके लिए बैंकिंग जोखिम भरी हो सकती है। हमारे बैंक का निम 3.75 फीसदी है, पर तीन फीसदी से कम निम रखना सुरक्षित बैंकिंग नहीं है।

बड़ी कंपनियों के लिए उत्पादन करने वाले एमएसएमई के वित्तीय हालात पहले ही अच्छे नहीं हैं। मौजूदा हालात में जब तक मांग में सुधार नहीं होता, तब तक एमएसएमई के हालात सुधरने के आसार नहीं हैं। एमएसएमई इस स्थिति में नहीं हैं कि वे बैंकों के पुराने कर्ज चुका सकें और नए कर्ज का बोझ उठा पाएं। हो सकता है कि अगले कुछ वर्षों तक एमएसएमई कर्ज चुकाने में समर्थ न हों। नए कर्ज पैकेज में हालांकि 100 फीसदी गारंटी केंद्र सरकार की है, पर बैंकों को डिफॉल्ट वाले कर्जों को एनपीए दिखाना होगा। अभी यह भी साफ नहीं है कि पूरा तीन लाख करोड़ रुपये डूबता है तो क्या बैंकों को इसकी पूरी भरपाई केंद्र सरकार करेगी।

ऐसा होता है तो देश के बैंकिंग सेक्टर में क्रेडिट कल्चर गड़बड़ होने की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता। आखिर सरकार यह कैसे सुनिश्चित करेगी कि पैकेज के तहत असल जरूरतमंदों को लाभ मिलेगा और ऐसे मौके की तलाश में रहने वाले विलफुल डिफॉल्टरों को इसका लाभ नहीं मिलेगा। दो महीने से अधिक के लॉकडाउन में अपना कारोबार गंवाने वाले कई एमएसएमई श्रमिकों का वेतन, बिल्डिंग का किराया और दूसरे खर्च पूरे करने की स्थिति में नहीं हैं। ऐसे में उन्हें नए कर्ज के लिए प्रेरित करने की बजाय केंद्र सरकार वर्तमान संकट से उबारने के लिए कुछ नकद राहत पैकेज दे सकती थी। इस पैकेज से एमएसएमई को कितनी राहत मिलेगी, अभी नहीं कहा जा सकता, पर बैंकों के खतरे में पड़ने की आशंका ज्यादा है।

(लेखक कैपिटल स्मॉल फाइनेंस बैंक के सीईओ और एमडी है, लेख हरीश मानव से बातचीत पर आधारित है)

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