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रोकथाम के दूसरे कदम भी बेहद जरूरी

कोरोनावायरस से फैली महामारी को रोकने के लिए भारत सरकार ने लॉकडाउन का सहारा लिया है। सरकार को उम्मीद है...
रोकथाम के दूसरे कदम भी बेहद जरूरी

कोरोनावायरस से फैली महामारी को रोकने के लिए भारत सरकार ने लॉकडाउन का सहारा लिया है। सरकार को उम्मीद है कि इसके जरिए कोरोना के संक्रमण को रोका जा सकता है। इस कदम से निश्चित तौर पर संक्रमण को रोकने में मदद मिलेगी। लेकिन इस फैसले से आर्थिक मंदी की भी आशंका बढ़ गई है। ऐसा इसलिए कि लॉकडाउन से न केवल श्रमिकों की आपूर्ति घट गई है बल्कि वस्तुओं और सेवाओं की मांग में भी गिरावट आई है। इस संकट को देखते हुए सरकार को कोरोनावायरस का संक्रमण रोकने के लिए दूसरे बेहतर तरीके अपनाने होंगे, साथ ही लगातार आर्थिक राहत पैकेज भी देना होगा। अगर यह दोनों कदम सही समय और सही तरीके से उठाए गए तो निश्चित तौर पर वायरस संक्रमण को रोकने और अर्थव्यवस्था संभालने में मदद मिलेगी।

कोविड-19 से दुनिया भर में होने वाले संक्रमण और इससे हुई मौतों को अगर देखा जाए तो भारत में मई तक करीब 13 लाख लोगों के कोरोना वायरस से संक्रमित होने की आशंका है। अगर इस दर को देखा जाए तो करीब ढाई लाख लोगों को अस्पताल में भर्ती करना पड़ेगा। भारत में प्रति 1,000 लोगों पर केवल 0.7 बेड हैं। अगर माना लें कि हर अस्पताल में 10 फीसदी बेड आइसीयू में हैं और उनमें 50 फीसदी ही वेंटिलेटर हैं तो हमारे पास करीब 40,000 आइसीयू बेड और इतनी ही मात्रा में वेंटिलेटर होंगे। वहीं, दुनिया में कोरोना के संक्रमण की दर को देखते हुए भारत में करीब 37,500 मरीज गंभीर स्थिति में होंगे, जिन्हें वेंटिलेटर की जरूरत पड़ेगी। हालांकि, यह आकलन सबसे खराब परिस्थितियों के आधार पर है क्योंकि अभी हम जो भी आकलन कर रहे हैं वह वैश्विक स्तर पर मिली जानकारी के आधार पर है। लेकिन हमें समझना होगा कि भारत में करीब 22 फीसदी मौतों को ही पंजीकृत किया जाता है, उस आधार पर कोविड-19 से होने वाली मौतों की बेहद कम संख्या सामने आएगी।

एक बात और समझनी होगी कि लॉकडाउन की वजह से भले ही संक्रमण रुक जाए लेकिन उसके बाद स्थिति सामान्य होने पर संक्रमण बढ़ने की आशंका है। ऐसा इसलिए कि संभावना जताई जा रही है कि लोगों में कोरोनावायरस को लेकर वैसी प्रतिरोधक क्षमता विकसित नहीं हो पाएगी, जिससे एक बड़ी आबादी उसका सामना कर सके। जैसा कि हम जानते हैं, इससे लड़ने के लिए न हमारे पास कोई टीका है न कोई दूसरा इलाज। इन चुनौतियों को देखते हुए हमें दो तरह के नजरिए से काम करना चाहिए।

एक तो हमें बहुत ही बड़े तबके में लोगों की कोरोना जांच करनी चाहिए और देश भर में क्वॉरेंटाइन की सुविधा विकसित करनी चाहिए। इसके अलावा जैसे-जैसे कोरोना के संक्रमण के मामले घटते जाएं वैसे-वैसे हमें प्रतिबंधों में ढील देनी शुरू करनी चाहिए, जिससे बड़ी आबादी में संक्रमण के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो सके। इस संकट से निपटने का एक तरीका यह है कि बड़ी आबादी में प्रतिरोधक क्षमता वायरस के खिलाफ विकसित हो जाए।

टेस्टिंग के समय हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि हम उन लोगों का परीक्षण न करें, जिनके अंदर फ्लू जैसे लक्षण हैं वरना हम अस्पतालों में कोविड-19 और सामान्य फ्लू वाले मरीजों को मिश्रित कर देंगे। परीक्षण के लिए हमें भारी मात्रा में टेस्टिंग किट की भी जरूरत होगी। इसके लिए हमें आरटी-पीसीआर तरीके को अपनाना होगा जिससे परीक्षण में देरी न हो। इसके अलावा नर्सिंग के लिए मिडवाइफ नेटवर्क का भी इस्तेमाल करना होगा। उन्हें बाकायदा प्रशिक्षण देकर ग्रामीण इलाकों में इसके संक्रमण को रोकने में मदद लेनी होगी।

साथ ही हमें बिना डॉक्टर की पर्ची के तुरंत एंटी मलेरिया दवाओं की बिक्री पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए, जिससे जरूरतमंदों को यह दवाएं आसानी से मिलती रहें। छोटे शहरों के अस्पतालों में खासतौर से संक्रमण को लेकर भारी लापरवाही है। ऐसे में वहां पर लोगों को रखना काफी जोखिम भरा हो सकता है इसे देखते हुए राज्य सरकारों को खाली पड़े हॉस्टल को अस्पतालों में परिवर्तित कर देना चाहिए।

जैसी कि उम्मीद थी, इस गंभीर स्थिति को देखते हुए सरकार आर्थिक पैकेज का ऐलान करेगी। इसी के तहत सरकार ने 1.7 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है। केयर रेटिंग का अनुमान है कि 21 दिनों के लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था को 6.3-7.2 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होगा। ऐसे में मौजूदा पैकेज पर्याप्त नहीं है। इसमें भी बुरी बात यह है कि 90 फीसदी श्रमिक असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। पैकेज में शहरी गरीब के लिए कुछ खास प्रावधान नहीं हैं। ऐसे में उनके सामने नौकरी गंवाने का भी खतरा है। साथ ही प्रवासी श्रमिकों के लिए अपने घर लौटने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है।

सरकार राहत पैकेज के तहत करीब 1.7 लाख करोड़ रुपये खर्च करेगी लेकिन यह पैसा कहां से आएगा यह सरकार ने नहीं बताया है। इसलिए जरूरी है कि सरकार पैसा जुटाने के लिए अतिरिक्त संसाधनों का अधिकतम इस्तेमाल करे। जिस तरह से कच्चे तेल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में गिरी हैं उससे सरकार को रकम जुटाने में भारी मदद मिलेगी। हालांकि लॉकडाउन की वजह से जो घरेलू स्तर पर पेट्रोल-डीजल आदि की मांग गिरेगी, उससे होने वाले राजस्व नुकसान को भी सरकार को ही वहन करन पड़ेगा। लेकिन सरकार ने जिस तरह से एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई है उससे इस घाटे की भरपाई कुछ हद तक हो जाएगी। वैसे तो अब थोड़ी देर हो चुकी है लेकिन जिस तरह से दक्षिण कोरिया ने कोरोना महामारी से निपटने के लिए कदम उठाएं हैं, भारत सरकार उससे सीख ले सकती है। वहां की सरकार ने बिना लॉकडाउन किए नए संक्रमण को रोकने में सफलता हासिल की है। दक्षिण कोरिया ने थर्मल इमेजिंग की, साथ ही भारी तादाद में टेस्टिंग सेंटर बनाए और तेजी से संक्रमित लोगों की पहचान की, जिससे संक्रमण के विस्तार को उसने सफलतापूर्वक रोक लिया।

राहत पैकेज में वेतन भोगी को कोई अड़चन न आए, इसके लिए सरकार को प्राइवेट सेक्टर को वेतन गारंटी देने जैसे कदम उठाने चाहिए ताकि कंपनियां कर्मचारियों को नौकरी से न निकालें और नई भर्तियों में देरी न करें। इसके अलावा सरकार को तुरंत एक एग्जीक्यूटिव ऑर्डर निकालना चाहिए जिसमें वह बड़े कॉरपोरेट घरानों को निर्देश दे कि वे जल्द से जल्द उच्च गुणवत्ता वाले मॉस्क, सैनिटाइजर, टेस्टिंग किट और वेंटिलेटर का उत्पादन करना शुरू कर दें। इस भयानक त्रासदी से निपटने के लिए आरबीआइ को भी बड़े स्तर पर बोल्ड कदम उठाने होंगे। इसके लिए उसे फैसले लेते वक्त बैलेंस शीट की परवाह नहीं करनी चाहिए। सरकार को बैंकों से लोन सिक्युरिटाइजेशन करना चाहिए, जिससे वह रिटेल लोन देने में न डरें। जिस तरह से पूरे देश में लॉकडाउन किया गया है और सीमाएं सील कर दी गई हैं, उससे अर्थव्यवस्था को बहुत नुकसान होगा और आबादी को भी संक्रमण से लड़ने के लिए तैयार होने का वक्त नहीं मिलेगा। अर्थव्यवस्था पहले से ही पटरी से उतरती नजर आ रही थी, ऐसे में सरकार को लॉकडाउन के फैसले पर दोबारा विचार करना चाहिए, जिससे स्थिति और बुरी न हो पाए।

( लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के प्रशिक्षित अर्थशास्‍त्री हैं और अभी एक प्रतिष्ठित कंपनी से जुड़े हैं, यह विचार उनके निजी हैं।)

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