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30 नवंबर 2020 · NOV 30 , 2020

उपचुनाव: योगी की जीत

उपचुनाव में भाजपा को सात में छह सीटों पर मिली जीत ने विपक्ष को किया दरकिनार
उपचुनाव में जीत के बाद पार्टी नेताओं के साथ मुख्यमंत्री आदित्यनाथ

उत्तर प्रदेश में लगातार बढ़ रहे अपराध के मामले, खास तौर से महिलाओं के खिलाफ अपराध में बढ़ोतरी के बीच सात विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए थे। राज्य सरकार पर विपक्षी दल यह भी आरोप लगा रहे थे कि वह जाति और धर्म का कार्ड खेल रही है, जिसकी वजह से वैमनस्य की खाई बढ़ती जा रही है। लेकिन चुनाव परिणामों ने यह साफ कर दिया है कि बड़ी तादाद में जनता इन बातों से इत्तेफाक नहीं रखती है। 10 नवंबर को आए परिणामों से साफ हो गया कि राज्य में तीन साल से ज्यादा सरकार चलाने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता में कमी नहीं आई है। भाजपा को उपचुनावों में छह सीटों पर जीत हासिल हुई है। समाजवादी पार्टी को एक सीट पर जीत मिली, लेकिन कांग्रेस और बसपा खाता खोलने में नाकाम रहीं।

उपचुनावों की खास बात यह थी कि आदित्यनाथ ने सभी सीटों पर पूरे दम से प्रचार किया था। उनके प्रचार पर हाथरस में दलित महिला के साथ हुए गैंगरेप और प्रदेश में बढ़ते अपराधों का साया था। विपक्ष भी लगातार तीखे हमले कर रहा था। उसके बावजूद वे आसानी से छह सीटें जीतने में कामयाब रहे। भाजपा ने नवगांव सादत, बुलंदशहर, टुंडला, घाटमपुर, देवरिया और बांगरमऊ की सीटें जीतीं। उसे एकमात्र झटका मल्हानी सीट पर लगा, जहां समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार लकी यादव ने निर्दलीय उम्मीदवार बाहुबली धनंजय सिंह को हराया। वहां भाजपा तीसरे नंबर पर पहुंच गई। यह जरूर पार्टी के लिए झटके जैसा है, क्योंकि वह हार-जीत के रेस में ही नहीं आ पाई। हालांकि विपक्षी दल इस बात से थोड़ा संतुष्ट हो सकते हैं कि वे उपचुनावों में भाजपा का वोट प्रतिशत घटाने में कुछ हद तक कामयाब हुए। उपचुनावों में भाजपा को 36 फीसदी वोट मिले हैं। वोट घटने का फायदा समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कुछ हद तक कांग्रेस को मिला है।

हालांकि भाजपा की इस आसान जीत में बहुजन समाज पार्टी का भी कम हाथ नहीं रहा है। पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए इस बार बसपा सुप्रीमो मायावती का उपचुनावों में उतरने का ऐलान काफी चौंकाने  वाला था। अमूमन पार्टी उपचुनावों में हिस्सा नहीं लेती है। इस फैसले का सीधा फायदा भाजपा को मिलता दिखा है। इसके पहले योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद खाली हुई गोरखपुर लोकसभा सीट पर सपा और बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था, जिसमें गठबंधन भाजपा की गढ़ मानी जाने वाली गोरखपुर सीट जीतने में कामयाब हुआ था। लेकिन लोकसभा चुनावों में हार के बाद यह गठबंधन टूट गया। उसके बाद मायावती और अखिलेश पहली बार आमने-सामने हुए थे।

पिछले कुछ महीने से मायावती के निशाने पर भाजपा से ज्यादा प्रियंका गांधी वाड्रा और अखिलेश यादव बने हुए हैं, जबकि प्रदेश की भाजपा सरकार के कार्यकाल में दलितों के खिलाफ अपराध हो रहे हैं। हाथरस और बलरामपुर में बलात्कार का मामला हो या फिर गोंडा में दलित बहनों पर एसिड हमले का मामला, ये सब भाजपा के शासन में हुए हैं।

उपचुनावों में मिले वोटों का विश्लेषण किया जाए, तो बसपा-सपा के बंटे वोटों का सीधा फायदा भाजपा को मिला है। मसलन, घाटमपुर सीट पर कांग्रेस पार्टी आश्चर्यजनक रूप से दूसरे स्थान पर आई है। वहां बसपा के मिले वोटों का फायदा सीधे तौर पर भाजपा का मिला क्योंकि भाजपा विरोधी वोट सपा, बसपा और कांग्रेस में बंट गए। अगर ये तीनों दल मिलकर चुनाव लड़ते तो सभी छह सीटों पर वे भाजपा को आसानी से मात दे सकते थे, क्योंकि चुनावों में तीनों दलों को मिले कुल वोट भाजपा से कहीं ज्यादा थे।

जहां तक कांग्रेस की बात है, तो उपचुनाव उसके कार्यकर्ताओं में थोड़ी उम्मीद बंधाने वाले साबित हो सकते हैं। पार्टी ने बांगरमऊ और घाटमपुर विधानसभा क्षेत्र में विपक्षी उम्मीदवारों को कड़ी टक्कर दी है। हालांकि पार्टी और खास तौर पर प्रियंका के लिए जरूरी है कि वह यह समझें कि पार्टी में सामूहिक नेतृत्व दिखाई देना चाहिए। प्रियंका और राहुल गांधी पार्टी के लिए स्टार प्रचारक हैं, लेकिन उन्होंने एक बार भी तत्परता नहीं दिखाई। उन्होंने हाथरस गैंगरेप का मामला दूसरे दलों की तुलना में कहीं ज्यादा अच्छे तरीके से उठाया था, लेकिन चुनाव के दौरान वह तेवर पूरी तरह से गायब था। खास तौर से उन तेवरों की जरूरत बांगरमऊ से भाजपा के विधायक रह चुके कुलदीप सेंगर के चुनाव क्षेत्र में कहीं ज्यादा थी। कुलदीप सेंगर 2017 में हुए उन्नाव गैंगरेप के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं। सजा के बाद उनकी सदस्यता निरस्त कर दी गई थी। बांगरमऊ सीट पर में कांग्रेस ने आरती बाजपेयी को मैदान में उतारा था। महिला उम्मीदवार होने के बावजूद न तो राहुल और न ही प्रियंका ने महिला सुरक्षा जैसे मुद्दों को बड़ा बनाने की कोशिश की।

बहरहाल, परिणामों से उत्साहित मुख्यमंत्री  आदित्यनाथ ने कहा है, “भाजपा की जीत सुशासन पर मुहर है।” छह सीटों पर जीत ने फिलहाल उनके प्रति ब्राह्मणों की नाराजगी के आरोपों को भी शांत कर दिया है। उन्हें विपक्ष से कोई खास चुनौती मिलती नहीं दिख रही है। लेकिन अगले साल आम चुनाव हैं।

नतीजों के निहितार्थ

मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के अलावा नौ राज्यों में उपचुनाव हुए थे। इन राज्यों में भाजपा ने 31 सीटों में से 21 पर जीत हासिल की है। साफ है कि उपचुनावों में भाजपा को बड़ी कामयाबी मिली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात में आठ विधानसभा सीटों पर चुनाव हुए थे। इनमें सभी सीटें भाजपा ने जीत ली हैं। वैसे तो इन चुनावों का गुजरात सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ना था, लेकिन भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल और कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल के लिए ये उप चुनाव काफी अहम थे क्योंकि उनकी अध्यक्षता में ये पहले चुनाव थे। राज्यसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के विधायकों के इस्तीफा दिए जाने के बाद ये उपचुनाव कराए गए थे। इस चुनाव में दल-बदल कर भाजपा में शामिल हुए पांच उम्मीदवारों को भाजपा ने टिकट दिया था और उसका यह दांव चल गया। कांग्रेस को एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हो पाई।

गुजरात के बाद भाजपा का मणिपुर में भी प्रदर्शन अच्छा रहा है। वहां पार्टी को पांच में से चार सीटों पर जीत मिली है। इसी तरह तेलंगाना में भाजपा ने सत्ताधारी दल टीआरएस के हाथ से सीट छीन ली है। वहां की दुब्बाक विधानसभा सीट को टीआरएस का गढ़ माना जाता है। ऐसे में भाजपा की जीत कइयों के लिए चौंकाने वाली है। राज्य में एक सीट पर ही उपचुनाव हुआ था। दक्षिण भारत में तेलंगाना के अलावा कर्नाटक की दो सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे भी भाजपा के पक्ष में गए हैं। इसी तरह ओडिशा में सत्ताधारी दल बीजू जनता दल ने दोनों सीटों पर जीत हासिल की है।

हरियाणा में भाजपा को एक बार फिर निराशा हाथ लगी है। यहां एक सीट पर हुए उप चुनाव में भाजपा को कांग्रेस के हाथों शिकस्त का सामना करना पड़ा। बरोदा विधानसभा सीट पर हुए चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार योगेश्वर दत्त को कांग्रेस के इंदु राज नरवाल ने हराया है। ओलंपिक पदक विजेता को चुनावों में दोबारा हार का सामना करना पड़ा है। इसके पहले वह 2019 के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस के उम्मीदवार से मुकाबला हार गए थे। हरियाणा के अलावा छत्तीसगढ़ के उपचुनाव भी कांग्रेस के लिए राहत की खबर लेकर आए हैं। वहां पूर्व मुख्यमंत्री अजीत सिंह जोगी की मृत्यु के बाद खाली हुई मरवाही सीट कांग्रेस के डॉक्टर के.के.ध्रुव ने जीती है। झारखंड की दो सीटों में से एक सीट पर कांग्रेस और एक पर झारखंड मुक्ति मोर्चा को जीत मिली है।

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