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28 नवंबर 2022 · NOV 28 , 2022

आवरण कथा/भारत जोड़ो यात्रा: एक पदयात्री की डायरी

। भारत जोड़ो यात्रा आए दिन चलने वाला राजनैतिक तमाशा नहीं है- ऐसा मानने के कई कारण हैं
राहुल के साथ प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव

एक तस्वीर आई और उसके सहारे लोगों ने देख लिया कि भारत जोड़ो यात्रा अपने भीतर एक अंतर्धारा लिए चल रही है। मूसलाधार बारिश के बीच लोगों को संबोधित करते राहुल गांधी और प्लास्टिक की कुर्सियों को छाते की तरह तानकर राहुल को ध्यान से सुनते हजारों लोग! इस एक तस्वीर ने यात्रा के संदेश को हजारों समाचारों से कहीं ज्यादा बेहतरी से दर्ज किया। इससे पता चलता है कि अभियान (भारत जोड़ो यात्रा) को लेकर लोगों के मनोभाव में एक महीन बदलाव आया है। यात्रा की शुरुआत बेशक नरम रही। हमने 7 सितंबर से यात्रा शुरू की थी तो लोग-बाग इसको लेकर अनजान थे, कुछ के मन में आशंकाएं थीं तो कुछ के मन में चिड़चिड़ेपन का भाव। मुझे याद है एक वरिष्ठ पत्रकार का फोन आया था। वे जानना चाह रहे थे, ‘क्या सचमुच ये कांग्रेसी नेता पैदल चलेंगे? क्या राहुल गांधी इस यात्रा में जब-तब किसी मेहमान की तरह आकर प्रतीकात्मक भागीदारी करेंगे? या, फिर वे सचमुच पूरी यात्रा पैदल तय करेंगे?’

एक शुभ, छह कारण

भारत जोड़ो यात्रा से कोई चीज बदली है। देश का मनोभाव बदला है, ऐसा कहना तो जल्दबाजी होगी, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि किसी शुभ की शुरुआत हुई है। यह बात मुझे बार-बार सुनने को मिल रही है। भारत जोड़ो यात्रा आए दिन चलने वाला राजनैतिक तमाशा नहीं है- ऐसा मानने के छह कारण हैं।

एक तो यही कि यह कोई प्रतिक्रिया में चलाया गया अभियान नहीं है, बल्कि सकारात्मक सोच से चलाया जा रहा है। लंबे समय बाद यह संभव हुआ है कि प्रमुख विपक्षी दल सकर्मक सोच और सकारात्मक भाव से कोई कार्यक्रम चला रहा है और अपना एजेंडा तय करने की कोशिश कर रहा है। यह संयोग मात्र नहीं है कि यात्रा शुरू होने के पहले ही महीने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मुस्लिम उलेमा से रिश्ते गांठने और गरीबी-बेरोजगारी तथा गैर-बराबरी के मसले पर अपना पक्ष बताने-जताने में जुट गया। यही मुद्दे तो इस यात्रा से भी उभरे हैं।

दूसरे, यह पदयात्रा है। पैदल चलना गहरे सांस्कृतिक अर्थों से भरा राजनैतिक कर्म है। पदयात्रा किसी तप की तरह है। यह पैदल चलने वाले और यात्रा को देखने वाले के बीच एक पुल का काम करती है, दोनों को जोड़ देती है। पदयात्रा संवाद स्थापित करने का एक वैकल्पिक साधन है। तीसरे, पदयात्रा कोई आभासी प्रतिरोध नहीं है। इसमें सचमुच ही पांव जमीन पर रखने होते हैं, पदयात्रा ताकत की साकार अभिव्यक्ति है। भाजपा-आरएसएस की वैधता इस एक दावे पर टिकी है कि उसे जनता-जनार्दन का समर्थन हासिल है, सो प्रतिरोध का कोई भी कर्म हो उसे लोगों के बीच जाकर और जमीन पर पैर जमाकर ही अपनी शक्ति साबित करनी होगी। हजारों लोगों का एकजुट जत्था सड़कों पर चले तो वह खुद में प्रतिकार की एक ताकतवर अभिव्यक्ति बन जाता है। चौथे, लोगों का यह कोई लामबंद किया हुआ नहीं है; यात्रा ने सचमुच ही लोगों के दिल में दस्तक दी है। पदयात्रा के दौरान मुझे लोगों के चेहरे पर खिलती मुस्कराहटों में अनेक भावों के दर्शन हुए हैं। ऐसी मुस्कराहट के पीछे कौन-से भाव तैर रहे हैं, यह जानना तो कठिन है, लेकिन मेरे आगे यह स्पष्ट हो चला है कि इस यात्रा ने आशाएं जगाई हैं। पांचवें, यह यात्रा सिर्फ सेकुलरवाद के मुद्दे तक सीमित नहीं। इस यात्रा ने यह संदेश फैलाया है कि आज कई रंग-रूप की एकजुटता की जरूरत है। साथ ही, इस यात्रा से यह संदेश भी जा रहा है कि देश की अर्थव्यवस्था लगातार ढलान पर जा रही है, उसे संभालने की जरूरत है। आखिरी बात यह है कि यह यात्रा सिर्फ कांग्रेसजन की यात्रा नहीं है। भारत जोड़ो यात्रा को जनांदोलनों और संगठनों, जन-बुद्धिजीवियों तथा गणमान्य नागरिकों का समर्थन हासिल है, जिनका अतीत में कांग्रेस से कोई राग-लगाव नहीं रहा।

सफलता का पैमाना

आज के संदर्भ में भारत जोड़ो यात्रा की सफलता का एक ही पैमाना हो सकता है। क्या यह यात्रा देश के भविष्य पर छाये बादलों को छांटने में मदद कर सकती है? क्या हमारे लोकतंत्र, संविधान, स्वतंत्रता आंदोलन और सभ्यता की विरासत को बचाने में कुछ योगदान कर सकती है? राजनैतिक शक्ति के संतुलन को कुछ डिग्री ही सही, देश जोड़ने वालों के पक्ष में कर सकती है? मुझ जैसे लोग इसी अपेक्षा से इस यात्रा से जुड़े हैं। देश के इतिहास के इस नाजुक दौर में हो रही इस यात्रा को और किसी दृष्टि से देखना गहरी लापरवाही होगी।

चुप्पी टूटी, हौसला बढ़ा

एक बात तो तय है कि कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टी की इस पहलकदमी ने देश में चुप्पी और एकाकीपन के एहसास को तोड़ा है। इस यात्रा के समर्थन में वे तमाम लोग आए जिन्होंने कभी कांग्रेस का समर्थन नहीं किया, जिन्होंने सड़क पर कांग्रेस सरकारों का विरोध किया है। इस बाहरी और अप्रत्याशित समर्थन से कांग्रेस के पदयात्रियों का हौसला बढ़ा है। देश बदलने की बात तो अभी से बहुत बड़ी होगी, लेकिन देश जोड़ने की चाहत रखने वालों में खुद को बदलने की शुरुआत हो चुकी है। बोहनी अच्छी है।

(सदस्य, स्वराज अभियान, जय किसान आंदोलन, साभार)

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