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लड़कियों ने भी दिखाया दम

भारतीय महिला क्रिकेट टीम की लोकप्रियता दर्शाती है, प्रसिद्धि के मामले में वे पुरुष खिलाड़ियों के बराबर
प्रसिद्धि का शॉटः महिला टीम भले ही ऑस्ट्रेलिया से टी-20 विश्व कप फाइनल में हारी पर लोकप्रिय हो गई

यह सही है कि भारतीय महिला क्रिकेट टीम को विश्व कप के प्रतिष्ठित टी-20 फाइनल में एक तरफा हार मिली, पर फाइनल तक पहुंचने के सफर में टीम ने दुनिया भर के क्रिकेट प्रेमियों का दिल जीत लिया। मेलबोर्न क्रिकेट ग्राउंड पर 8 मार्च, 2020 का दिन इस मायने में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा कि भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच हुए फाइनल में 86,174 दर्शकों की उपस्थिति ने एक नया कीर्तिमान बना दिया। स्पष्ट है कि वे दिन अब लद गए हैं, जब महिला क्रिकेट को हिकारत की दृष्टि से देखा जाता था। फाइनल तक पहुंचने से पहले लीग मैच में भारतीय महिला टीम ने उस ऑस्ट्रेलिया को धो दिया था, जिससे बाद में उसे फाइनल में हार मिली। हां, फाइनल के दबाव में भारतीय महिलाओं के हाथ-पैर जरूर फूल गए और मुकाबला शेर और बकरी की तरह साबित हुआ। लेकिन भारत की इससे कहीं बेहतर प्रदर्शन करने की योग्यता से इनकार नहीं किया जा सकता। टेलीविजन चैनल पर विश्व प्रसिद्ध कमेंटेटरों द्वारा कमेंट्री करना यह भी दर्शाता है कि महिला क्रिकेट लोकप्रियता के मामले में पुरुष क्रिकेट से ज्यादा पीछे नहीं है। महिला क्रिकेट की बढ़ती लोकप्रियता कई दिलचस्प व्यावसायिक संभावनाओं के द्वार खोलती है। सचिन तेंदुलकर, महेन्द्र सिंह धोनी, विराट कोहली, सुनील गावस्कर या कपिल देव जैसे नायक मैदान संभालते हैं तो दर्शक अपने-आप स्टेडियम में जमा होने लगते हैं।

क्या भारतीय महिला खिलाड़ियों के लिए भी यही बात कही जा सकती है? हां, क्योंकि 16 वर्षीया शेफाली वर्मा में वीरेन्द्र सहवाग जैसे गुण दिखाई दे रहे हैं। निर्भय होकर बल्लेबाजी उनका सबसे बड़ा गुण है। यह बाला जब पॉवर-प्ले के 6 ओवरों में ही दुनिया की बेहतरीन गेंदबाजों की बखिया उधेड़ना शुरू करती है, तो समर्थकों के दिल बल्लियों उछालने लगते हैं और विरोधियों के दिल बैठ जाते हैं। स्मृति मंधाना भले ही इस विश्व कप में उतना प्रभाव नहीं छोड़ पाईं, पर अपने आक्रामक खेल और दिलकश मिजाज से कितने ही व्यावसायिक अनुबंध जीत सकती हैं। हरमनप्रीत कौर ने कप्‍तानी अच्छी तरह से संभाली। सितारा श्रेणी में उनका भी नाम लिया जा रहा है। उन्हें भी क्रिकेट के पुरुष नायकों की तरह व्यावसायिक अनुबंध प्राप्‍त हो सकते हैं। सन‍् 2017 में हरमनप्रीत कौर ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ इंग्लैंड में हुए 50-50 ओवरों के विश्व कप सेमीफाइनल में नाबाद 171 रन कूट कर भारतीय महिलाओं की उभरती ताकत से विश्व को अवगत करा दिया था। लोगों ने दांतों तले उंगली दबा ली थी कि क्या महिला खिलाड़ी भी इस तरह बड़े-बड़े छक्के लगा सकती है।

एक अन्य खिलाड़ी पूनम यादव ने तो विश्व कप 2020 में सभी को अपनी स्पिन से नचाया। लेग ब्रेक और गुगली गेंदबाज पूनम यादव की गुगली तो टूर्नामेंट में कोई खिलाड़ी नहीं पढ़ पाई। ग्रुप स्टेज पर जब भारत ने ऑस्ट्रेलिया को पराजित किया था, तब जीत की शिल्पकार पूनम यादव थीं। यह जान कर आश्चर्य होगा कि घायल होने के बाद उबर कर मैच विजेता जैसा प्रदर्शन करना पूनम यादव जैसी प्रतिभाशाली खिलाड़ी के बूते की ही बात थी। इसलिए मैं कहता हूं कि फाइनल में हार जरूर मिली, पर शर्म की कोई बात नहीं। भारतीय महिला क्रिकेट विश्व की प्रमुख शक्ति बन चुका है। अब तो सौरव गांगुली के नेतृत्व वाले बीसीसीआई को भी महिलाओं को समान अधिकार वाली मांग के बारे में सोचना पड़ेगा। महिलाओं के लिए एक सालाना कैलेंडर तो बना दिया गया है, पर बोर्ड को चाहिए कि जिस तरह पुरुष क्रिकेट खिलाड़ियों के लिए एक केंद्रीय अनुबंध किया जाता है, उसी तरह महिलाओं के लिए भी वैसी ही व्यवस्‍था की जाए। महिलाओं का आईपीएल कराना भी फायदेमंद सौदा हो सकता है। महिला खिलाड़ियों को अगर अच्छा पैसा और सुविधाएं मिलेंगी, तो प्रदर्शन और भी बेहतर होगा। भारतीय महिला टीम के प्रशिक्षक और मेरे मित्र डब्‍ल्यू.वी. रमन भी बधाई के पात्र हैं।

महिला क्रिकेट में सितारा संस्कृति आज ही उत्पन्‍न हुई है, ऐसी बात भी नहीं है। मुझे याद है, डायना एडुलजी और शांता रंगास्वामी जैसी खिलाड़ी अपने यादगार प्रदर्शन से प्रभावित करती थीं। पर तब भारतीय महिला खिलाड़ियों के प्रति देश में नजरिया वैसा नहीं था, जैसा आज है। झूलन गोस्वामी महिलाओं में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाली महिला बन गई थीं। मुझे यह भी याद है कि एक बार जब 1978 और 1982 में भारतीय टीम पाकिस्तान जाकर हार रही थी, तब किसी ने व्यंग्य में कहा था, “पुरुष सितारों को वापस भेजो, शांता रंगास्वामी को टीम में लो।” संध्या अग्रवाल और मिताली राज ने भी काफी शोहरत पाई। मिताली राज तो अपनी दिलकश शक्लो-सूरत और तकनीकी कुशल खेल के जरिये विज्ञापनों की दुनिया में भी जगह बनाने में सफल हुई हैं। स्मृति मंधाना और हरमनप्रीत ऑस्ट्रेलिया के बिग बैश में भी अपना सिक्का जमा चुकी हैं। मंधाना और हरमनप्रीत की जीवनी पर व्यावसायिक फिल्म भी बन रही है।

जीवन के हर क्षेत्र में समानता प्राप्‍त करने के लिए संघर्षरत भारतीय नारी की तरह ही क्या भारतीय महिला क्रिकेट खिलाड़ी पुरुषों का वर्चस्व तोड़ पाएंगी? मेलबोर्न क्रिकेट ग्राउंड पर मौजूद 80 हजार से ज्यादा दर्शक इस बात की गवाही देते हैं कि महिला क्रिकेट का चुंबकत्व पुरुषों के मुकाबले कम नहीं है। विश्व टेनिस में महिला खिलाड़ियों ने इनामी राशि के मुद्दे पर पुरुषों से बराबरी कर अपना हक प्राप्‍त कर लिया है। आजकल सब कुछ उपभोक्तावाद पर निर्भर है, जो लोगों की निगाहों में चढ़ गया है और इसलिए मूल्यवान भी हो गया है। प्रायोजक बढ़-चढ़ कर पैसा लगाने के लिए तैयार हैं।

सन‍् 2021 में महिलाओं का 50-50 ओवरों का विश्व कप खेला जाएगा। तब मिताली राज और झूलन गोस्वामी फिर ‌खेलेंगी। बस उसी को जीतने की तैयारी बीसीसीआई को करनी चाहिए। अगर ऐसा हो सका, तो वैसी ही दीवानगी महिला क्रिकेट के प्रति छा जाएगी, जैसी कि 1983 में कपिल देव के लड़ाकों की जीत के वक्त छाई थी। सन‍् 1983 की विश्व कप जीत ने भारत में क्रिकेट के परिदृश्य को ही बदल कर रख दिया था। वैसी ही एक जीत महिला क्रिकेट में भी चाहिए। पुरुष क्रिकेट में तो भारत विश्व क्रिकेट का दादा माना जाने लगा है क्योंकि दुनिया भर में क्रिकेट से होने वाली कुल कमाई का 70 प्रतिशत हिस्सा भारत से ही आता है।

भारतीय महिला टीम 50-50 ओवर के विश्व कप फाइनल में 2017 में इंग्लैंड से जीतते-जीतते हारी। अब 20-20 क्रिकेट के विश्व कप फाइनल में भी भारत ने स्‍थान बनाया। यानी खिताब के इर्द-गिर्द तो भारतीय महिला टीम लगातार मंडरा रही है। देश में महिला क्रिकेट खिलाड़ियों का स्तर भी बेहतर होता जा रहा है। आर्थिक रूप से दिनों के बदलने का वक्त भी आ गया है क्योंकि बेहतर प्रदर्शनों की निरंतरता की अनदेखी करना आसान नहीं है।

(लेखक जाने-माने स्पोर्ट्स कमेंटेटर हैं)      

 

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भारतीय महिला क्रिकेट विश्व की प्रमुख शक्ति बन चुका है। अब बीसीसीआई को भी महिलाओं को समान अधिकार वाली मांग के बारे में सोचना पड़ेगा

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