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कोर्ट से बेखौफ रसूखदार

हाइकोर्ट के फैसले और सरकार के आदेश के बावजूद आयुष कॉलेज छात्रों से वसूल रहे ढाई गुना ज्यादा फीस
भविष्य की चिंताः फीस वृद्धि के खिलाफ देहरादून में प्रदर्शन करते आयुष कॉलेज के छात्र

 

जेएनयू में फीस वृद्धि और उसके बाद छात्र आंदोलन इस समय देश में चर्चा का विषय बना हुआ है, लेकिन उत्तराखंड के तीन हजार आयुष छात्रों से जबरन वसूली जा रही ढाई गुना फीस की जानकारी कम लोगों को ही है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना करते हुए एक आला अफसर के आदेश पर राज्य के आयुर्वेद चिकित्सा कॉलेजों में फीस बढ़ा दी गई। छात्र इसके खिलाफ हाइकोर्ट गए, जहां फैसला उनके पक्ष में आया। जब फैसले पर अमल नहीं हुआ तो छात्र आंदोलन पर उतर आए। 62 दिनों तक चले आंदोलन के बाद सरकार ने अधिक वसूली गई फीस छात्रों को वापस करने का आदेश कॉलेजों को दिया। लेकिन बेखौफ कॉलेज प्रबंधन को तो जैसे न सरकार की परवाह है, न कोर्ट की। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि इन कॉलेजों के मालिक रसूखदार लोग हैं। इनमें नेताओं और मंत्रियों के परिजन भी शामिल हैं। एक कॉलेज बाबा रामदेव के पंतजलि का भी है।

उत्तराखंड में आयुर्वेद चिकित्सा के 13 कॉलेज हैं, जो उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय से संबद्ध हैं। इनमें लगभग तीन हजार छात्र-छात्राएं अध्ययनरत हैं। इनमें पढ़ाई के लिए रेगुलेटरी समिति ने सालाना 80 हजार रुपये की फीस तय कर रखी है। मौजूदा विवाद की शुरुआत 2015 में कांग्रेस की हरीश रावत सरकार के समय हुई। उस वक्त आयुष विभाग के प्रमुख सचिव ओमप्रकाश ने अपने स्तर से ही ट्यूशन फीस सालाना 2.15 लाख रुपये करने का आदेश जारी कर दिया। कॉलेज इसी आधार पर फीस लेने लगे। इतना ही नहीं, ये कॉलेज पुस्तकालय और अन्य सुविधाओं के नाम पर लगभग 60 हजार रुपये हर साल अतिरिक्त वसूल रहे हैं। छात्रों पर पिछले सालों की फीस भी इसी दर से देने का दबाव बनाया गया। परेशान छात्र-छात्राओं और अभिभावकों ने अधिकारियों और मंत्रियों से भी संपर्क किया, लेकिन हर जगह से उन्हें निराशा ही हाथ लगी।

इन छात्रों की लड़ाई लड़ रहे भाजपा नेता रवींद्र जुगरान ने आउटलुक को बताया, “सुप्रीम कोर्ट ने पीए इनामदार बनाम महाराष्ट्र मामले (2004) में फैसला दिया था कि बिना सरकारी मदद वाले कॉलेजों में फीस विशेषज्ञ समिति तय करेगी।” उत्तराखंड सरकार ने भी 2006 में एक कानून बनाया, जिसमें फीस निर्धारण की जिम्मेदारी हाइकोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता वाली समिति को सौंपी गई। प्रावधान था कि इस जज को हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश नामित करेंगे। 2010 में इस कानून में संशोधन किया गया कि रिटायर्ड जज को राज्य सरकार नामित करेगी। यह समिति कॉलेजों में उपलब्ध सुविधाओं, गुणवत्ता, वित्तीय स्थिति आदि का आकलन कर फीस निर्धारित करेगी। समिति की सिफारिश के आधार पर ही सरकार फीस बढ़ोतरी का आदेश जारी करेगी। लेकिन 14 अक्टूबर 2015 को प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी ने फीस बढ़ाने का आदेश जारी कर दिया। उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय ने 10 अक्टूबर 2016 को कॉलेजों को पत्र जारी किया कि उन्हें सरकार का आदेश मानते हुए छात्रों से बढ़ी हुई फीस लेनी है। इसके बाद कॉलेजों ने छात्रों से 2013-14 से बढ़ी हुई फीस मांगी। हर छात्र से 2.45 लाख रुपये जमा करने को कहा गया। कॉलेजों ने 22 अक्टूबर 2013 को सरकार से फीस बढ़ाने का आग्रह किया था।

तब ललित मोहन तिवारी और अन्य छात्रों ने नैनीताल हाइकोर्ट में याचिका दायर की। इसमें गलत तरीके से फीस बढ़ाने का आदेश रद्द करने और ज्यादा वसूली गई फीस वापस करने की अपील की गई। हाइकोर्ट के सिंगल जज की बेंच ने 31 जुलाई 2017 को फीस बढ़ाने का आदेश स्थगित करते हुए कॉलेजों को पुरानी दर से ही फीस लेने का आदेश दिया। लेकिन इस आदेश पर अमल नहीं हुआ। कोर्ट में सरकार की दलील थी कि फीस सात साल बाद बढ़ाई गई है। लेकिन कोर्ट ने 9 जुलाई 2018 को अपने फैसले में यह कहते हुए इसे खारिज कर दिया कि नियम के मुताबिक विशेषज्ञों की समिति ने इसकी सिफारिश नहीं की। कोर्ट ने पिछली तारीख से फीस बढ़ाने का आदेश भी खारिज कर दिया और कहा कि अगर किसी कॉलेज ने फीस ली है तो उसे वापस करना पड़ेगा। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सरकार और यूनिवर्सिटी भविष्य में फीस में संशोधन करने के लिए स्वतंत्र होंगी, लेकिन यह फीस रेगुलेटरी समिति की सिफारिशों के आधार पर होनी चाहिए और इसे पिछली तारीख से लागू नहीं किया जा सकेगा। कॉलेज प्रबंधन की एसोसिएशन ने हाइकोर्ट की डबल बेंच में फैसले को चुनौती दी, लेकिन 9 अक्टूबर 2018 को डबल बेंच ने पुराने फैसले को सही ठहराया।

छात्रों को लगा कि वे जंग जीत चुके हैं, लेकिन रसूखदार कॉलेज प्रबंधन पर इसका कोई असर नहीं हुआ। वे छात्रों को बढ़ी हुई फीस नहीं देने पर परीक्षा में शामिल नहीं करने की धमकी देकर वसूली करते रहे। छात्र-छात्राओं की बार-बार मांग पर सरकार की ओर से पहले मार्च 2019 और फिर अप्रैल 2019 में उत्तराखंड आयुर्वेद यूनिवर्सिटी को पत्र लिखकर हाइकोर्ट के आदेश का पालन कराने को कहा गया। तब भी कुछ नहीं हुआ तो छात्र आंदोलन पर उतर आए। जुलाई 2019 में छात्रों ने अनशन, धरना और आमरण अनशन शुरू कर दिया। छात्रों का आंदोलन खत्म कराने के लिए सरकारी मशीनरी ने उन पर दबाव बनाया। अगस्त में विधानसभा सत्र आहूत हुआ तो पुलिस ने अनशन पर बैठे छात्रों को देर रात खदेड़ दिया। मामला तूल पकड़ता देख मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पहल की। उन्होंने अफसरों को निर्देश दिया कि हाइकोर्ट के आदेश का सभी कॉलेजों में पालन सुनिश्चित कराया जाए। सीएम के निर्देश पर आयुष सचिव ने 22 नवंबर को आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलसचिव को फिर एक पत्र भेजा। इसमें कहा गया कि हाइकोर्ट के आदेश का अनुपालन न होने से छात्र आंदोलित हैं, लिहाजा सभी कालेजों में आदेश लागू किया जाए। ऐसा न करने वाले कॉलेजों पर विश्वविद्यालय अधिनियम के तहत सख्त कार्रवाई की जाए। इस आदेश को जारी हुए भी दो माह हो चुके हैं, लेकिन किसी भी कॉलेज ने अब तक न तो फीस घटाई है और न ही छात्रों से वसूली गई ज्यादा फीस वापस की है। एक अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान रामदेव के सहयोगी बालकृष्ण ने हाइकोर्ट में ज्यादा वसूली गई फीस वापस करने की बात कही थी, लेकिन अभी तक इस पर भी अमल नहीं हुआ है।

इस बारे में उत्तराखंड आयुर्वेद यूनिवर्सिटी के कुलपति सुनील जोशी ने कहा कि सभी निजी आयुष कॉलेजों को नोटिस देकर हाइकोर्ट के आदेश पर अमल का निर्देश दिया गया है। जल्द ही उन्हें रिमाइंडर भी भेजा जाएगा। राज्य के आयुष मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत ने आउटलुक से कहा, “कुछ नए कॉलेज फिर से हाइकोर्ट गए हैं। उनका कहना है कि उन्होंने फीस बढ़ोतरी के आदेश के बाद ही कॉलेज खोला है। सरकार ने तो अपनी तरफ से कॉलेजों को नोटिस जारी किया ही है।” निजी आयुष कॉलेज एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. अश्वनी कंबोज का कहना है कि इस मामले में एसोसिएशन की ओर से हाइकोर्ट में समीक्षा याचिका दायर की गई है। इस पर सरकार से जवाब मांगा गया है। एसोसिएशन सुप्रीम कोर्ट जाने की भी तैयारी कर रहा है।

छात्रों का कहना है कि ज्यादा फीस नहीं देने पर उन्हें परीक्षा में शामिल न करने की धमकी दी जा रही है। अवमानना याचिका दाखिल करने वाले छात्रों को परेशान भी किया जा रहा है। पिछले दिनों सोशल मीडिया में एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें एक कॉलेज के मुखिया छात्र-छात्राओं को धमका रहे थे। दरअसल, इन कॉलेजों के प्रबंधन में रसूखदार लोग शामिल हैं। इनमें सूबे के आयुष मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत के पुत्र और एक केंद्रीय मंत्री की पुत्री भी शामिल हैं। एक कॉलेज भाजपा विधायक हरबंस कपूर के पुत्र का भी है। छात्रों का कहना है कि इन्हीं रसूखदारों के कारण हाइकोर्ट और सरकार के आदेशों को ये कॉलेज हवा में उड़ा रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि कोर्ट के आदेश पर अमल करने से इन कॉलेजों को 80 करोड़ रुपये लौटाने होंगे। सरकार आदेश जारी करके अपना काम खत्म समझ रही है। अफसरों को आदेश पर अमल की कोई परवाह नहीं है। फीस बढ़ाने का आदेश कांग्रेस सरकार के समय जारी हुआ था। शायद इसी वजह से विपक्ष को भी छात्रों और अभिभावकों की परेशानी नहीं दिख रही है।

 

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कुछ नए कॉलेजों ने फिर से हाइकोर्ट में याचिका दायर की है। इन कॉलेजों के प्रबंधकों का कहना है कि फीस बढ़ोतरी के आदेश के बाद ही उन्होंने कॉलेज खोला है

डॉ. हरक सिंह रावत, आयुष मंत्री, उत्तराखंड

 

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