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बेदम होते रोजगार के सरकारी दावे

उद्योग अभी तो पुरानी क्षमता का आधा भी इस्तेमाल नहीं कर पा रहे, नए रोजगार तो दूर की कौड़ी
ऐसे मिलेगा कामः योगी सरकार ने मजदूरों की स्किल मैपिंग कराने की घोषणा की है

मलीहाबाद के पास थावर गांव के राजू भारती अपनी पत्नी सीमा, दो जुड़वा बच्चों और एक महीने की बच्ची के साथ घर लौट आए हैं। मुंबई के सांताक्रूज इलाके के एक सिलाई कारखाने में वह 10 साल से टेलरिंग का काम कर रहे थे। हर हफ्ते करीब साढ़े तीन हजार रुपये, यानी महीने के 14-15 हजार रुपये कमाकर वे परिवार चलाते थे। लेकिन कोरोना के कारण पैदा हुई चुनौतियों ने उनके जीवन में भूचाल ला दिया है। मुंबई से श्रमिक स्पेशल ट्रेन में उनकी घर वापसी तो हो गई, लेकिन जिंदगी की गाड़ी आगे कैसे चलेगी, यह बड़ा सवाल है। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने बाहर से लौटे मजदूरों की स्किल मैपिंग (काम करने की दक्षता) के बाद जो सूची तैयार की है उसमें राजू का नाम सिलाई कारीगर के तौर पर दर्ज है। सरकार का दावा है कि यूपी लौटने वाले सभी प्रवासियों को प्रदेश में ही रोजगार मुहैया कराया जाएगा। उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद ने कुछ दिनों पहले आउटलुक से बातचीत में कहा था कि मजदूरों की स्किल मैपिंग के बाद उनके रोजगार की दिशा में तेजी से काम होगा और किसी को फिर बाहर जाने की जरूरत नहीं होगी। हालांकि अफसरों ने इस दिशा में अभी तक जो प्रयास किए हैं उससे सरकारी दावे का दम निकलता दिख रहा है।

स्किल मैपिंग के आधार पर बनाई गई सूची के मुताबिक रोजगार की संभावनाएं तलाशने के अभी तक के जतन बेमानी साबित हुए हैं। लखनऊ के डिप्टी कमिश्नर (इंडस्ट्रीज) मनोज चौरसिया ने अमौसी इंडस्ट्रियल एसोसिएशन को कुशल और अकुशल श्रमिकों की ऐसी कई सूची भेजकर मजदूरों को काम देने का अनुरोध किया है। आउटलुक ने इसी सूची के आधार पर कई श्रमिकों से संपर्क कर यह जानने की कोशिश की, कि क्या उन्हें इस सूची की वजह से कोई काम मिल पाया है। दर्जन भर से अधिक लोगों से संपर्क के बावजूद कोई ऐसा नहीं मिला, जिसे कहीं से भी काम के लिए कोई कॉल आया हो।

राजू भारती ने आउटलुक का फोन तो रिसीव नहीं किया लेकिन इस उम्मीद के साथ वापस कॉल किया कि शायद काम के लिए कोई फोन हो। गांव के पास के आंगनबाड़ी केंद्र में बने क्वारंटीन सेंटर में सपरिवार 15 दिन बिताने के बाद राजू घर पर ही रह रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि सरकारी सूची में नाम होने की वजह से उन्हें काम जरूर मिलेगा। आउटलुक के सवाल पर कहते हैं, “अगर मुझे यहीं मन मुताबिक काम मिल गया तो मुंबई वापसी का इरादा छोड़ देंगे।” जाहिर है, राजू के मन में वापसी का इरादा घुमड़ रहा है।

डिप्टी कमिश्नर इंडस्ट्रीज ने जरदोजी कारीगरों से लेकर ड्राइवरों और टेलरिंग का काम करने वालों तक, सबकी अलग सूची बनाई है लेकिन इसमें कई विषमताएं भी हैं। राजू भारती की पत्नी का नाम सिलाई कारीगर के रूप में दर्ज है, जबकि खुद राजू ने माना कि वह घरेलू महिला हैं। दूसरी तरफ, सूची में शामिल श्रमिकों तक पहुंचना किसी भी उद्यमी या जरूरतमंद एजेंसी के लिए आसान नहीं है, क्योंकि इनमें से अनेक फोन पर इनकमिंग बंद है। बाहर से लौटे श्रमिकों के लिए प्रदेश में रोजगार की संभावनाओं को लेकर उद्यमियों का कहना है कि हम खुद अपने उद्योगों को फिर से खड़ा करने की जद्दोजहद से जूझ रहे हैं। पहले हम अपने काम को संभाल लें, उसके बाद ही नए रोजगार की संभावनाओं पर सोच पाएंगे। बाहर से अपने प्रदेश लौटे श्रमिकों की संख्या लाखों में है। इसलिए उद्ममी उल्टा सवाल करते हैं, “अगर यूपी में इतने अवसर होते तो इतनी बड़ी संख्या में पलायन ही क्यों होता।”

इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (आइआइए) से जुड़े रजत मेहरा कहते हैं, “सरकार ने पहली बार इन श्रमिकों के बारे में डेटाबेस बनाया है, इस प्रयास की तारीफ करनी होगी। लेकिन हमें देखना होगा कि उद्योगों में इनके लिए कितनी संभावनाएं हैं। लॉकडाउन के बाद अभी तक कोई भी उद्यम पूरी क्षमता के साथ काम नहीं कर पा रहा है। तीसरे लॉकडाउन के बाद उद्योगों ने पूरी ताकत समेट कर उत्साह के साथ काम तो शुरू किया, लेकिन तमाम कोशिशों के बाद उत्पादन क्षमता के 40 फीसदी तक ही काम कर पा रहे हैं। हमारी व्यावहारिक समस्याओं को सुलटाया नहीं गया है। ऐसी स्थिति में उद्योग किस तरह नए रोजगार सृजन की संभावनाएं जगा पाएंगे, यह एक बड़ा सवाल है।”

दरअसल, मांग के संकट के अलावा वित्तीय मोर्चे पर छोटे-बड़े सभी उद्यमों की स्थिति अच्छी नहीं है। लॉकडाउन के दौरान जरूरी खर्चों के बोझ ने अधिकतर उद्यमों को आर्थिक रूप से कमजोर कर दिया है। वे सरकार से बिजली बिल से लेकर कर्ज पर ब्याज तक, सबमें राहत की मांग कर रहे हैं। कर्ज की नई स्कीमों पर उनका कहना है कि पहले से कर्ज से लदे उद्योग एक और चक्रव्यूह में फंसने से बचना चाहते हैं। मांग में आई अचानक कमी से उन्हें कारोबार में फिलहाल कोई इजाफा होता नहीं दिख रहा है। एक उद्योगपति ने गोपनीयता की शर्त पर बताया कि इस ऐतिहासिक मंदी से उबारने के लिए अफसरों के पास अपना कोई नजरिया तो है नहीं, हमारी सलाह को भी वे तरजीह नहीं दे रहे हैं। ऐसे में, तमाम चर्चाओं का जमीन पर कोई लाभ नहीं दिख रहा है। उद्योगों के लिए रियायत के बगैर सरकारी मुलाजिमों का जोर इस बात पर है कि वे श्रमिकों को काम देने को लेकर एमओयू साइन कर लें। उनका सारा फोकस इस बात पर है कि वे उद्योगों के साथ करार कर कागजों में रोजगार सृजन की संभावनाओं का एक बड़ा आंकड़ा पेश कर दें। हड़बडी में ‘एमएसएमई साथी’ नाम से एक ऐप भी लांच कर दिया गया है। दावा किया जा रहा है कि यह उद्यमियों की हर तरह सहायता करने में सक्षम है। असलियत में ये दावे खोखले साबित हो रहे हैं। गाजियाबाद की एटलस साइकिल कंपनी जैसी समस्याएं हर औद्योगिक शहर में पैदा होने वाली हैं।

उद्योगपति इस बात से भी आहत हैं कि सत्तापक्ष की कोशिशों पर अफसरों की कागजी कवायद पानी फेर रही है, तो विपक्ष भी केवल ट्विटर के जरिए इस मसले को हवा दे रहा है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एटलस साइकिल की समस्या सामने आने के बाद ट्वीट किया, “आर्थिक मंदी की वजह से उप्र की प्रसिद्ध एटलस साइकिल कंपनी में ‘उत्पादन बंदी’ की खबर बेहद चिंताजनक है। इससे हजारों मजदूरों के सामने आजीविका का संकट खड़ा हो गया है। बेरोजगारी के इस दौर में ये अब कहां जाएंगे? भाजपा की गलत नीतियों की वजह से अब एक और ‘बंदी’ शुरू।”

श्रमिकों को बस मुहैया कराने के लिए सड़कों पर आकर आंदोलन करने वाली कांग्रेस भी उद्योगों की समस्या को लेकर महज ट्विटर पर ही मुखर नजर आ रही है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने ट्वीट किया, “विश्व साइकिल दिवस के मौके पर साइकिल कंपनी एटलस की गाजियाबाद फैक्ट्री बंद हो गई। एक हजार से अधिक लोग एक झटके में बेरोजगार हो गए। सरकार के प्रचार में तो सुन लिया कि इतने का पैकेज, इतने एमओयू, इतने रोजगार। लेकिन असल में तो रोजगार खत्म हो रहे हैं। फैक्ट्रियां बंद हो रही हैं। लोगों की नौकरियां बचाने के लिए सरकार को अपनी नीतियां और योजना साफ करनी पड़ेगी।”

सरकारी कोशिशों और सियासत के बीच हकीकत यही है कि उद्योग जब तक दोबारा खड़े नहीं होंगे, तब तक रोजगार सृजन की कोई संभावना नहीं दिखती। वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र दुबे कहते हैं कि इस समस्या पर सियासत इसलिए भी हो रही है, क्योंकि 2022 में यहां चुनाव होने हैं। सत्तापक्ष को बाहर से आए श्रमिकों के रूप में एक बड़ा वोट बैंक नजर आ रहा है और विपक्ष भी इस समस्या को उसी नजरिए से देख रहा है। हकीकत तो यही है कि यूपी में पहले से ही रोजगार की स्थिति अच्छी नहीं थी। लॉकडाउन की वजह से असंगठित क्षेत्र में अनेक नौकरियां गई हैं। ऐसे में, बाहर से इतनी बड़ी संख्या में आए सभी लोगों के लिए रोजगार के अवसर बना पाना आसान नहीं होगा।

 

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