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विपक्षी सियासत को कांग्रेसी हवा

मजदूरों के लिए बस की पेशकश करके कांग्रेस ने गरमाया माहौल
नो एंट्रीः मजदूरों के लिए लाई गई बसों को आगरा सीमा पर यूपी में नहीं घुसने दिया गया

 

प्रियंका गांधी ने 16 मई को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चिट्ठी लिखकर मजदूरों की सहायता के लिए अपनी पार्टी की ओर से 1000 बसों की सहायता की पेशकश की। विपक्षी दल के रूप में यह कांग्रेस की सहयोगात्मक भूमिका थी या कोई सियासी दांव, इस पर राजनीतिक बहस हो सकती है। लेकिन तब किसी को यह अहसास नहीं था कि यह मसला राजनीतिक बवाल बन जाएगा। इसी प्रकरण में उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू को जेल जाना पड़ा। इतना ही नहीं, प्रियंका गांधी के निजी सचिव संदीप सिंह के खिलाफ भी आपराधिक मामला दर्ज किया गया। हफ्ते भर चली बयानबाजियों के बावजूद ये बसें प्रवासियों के काम नहीं आ सकीं। हालांकि कांग्रेस का दबाव कहें या खुद को सही साबित करने की मजबूरी, योगी आदित्यनाथ सरकार ने 27 हजार बसों के जरिए मजदूरों को घर भेजना तेज किया। योगी सरकार का दावा है कि उसने 20 लाख से अधिक मजदूरों को उनके घर पहुंचाया है।

कांग्रेस की ख्वाहिश तो पूरी नहीं हो सकी लेकिन सड़क पर उतरकर उसने प्रदेश की सियासत में सपा और बसपा को भी गहरा सदमा दे दिया। सपा-बसपा के दिग्गज जब ट्विटर पर सरकार की आलोचनाओं में मशगूल थे, कांग्रेस कार्यकर्ता तब सड़क पर उतर कर मजदूरों के मुद्दे पर सरकार का विरोध कर रहे थे। बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) के राजनीतिक विभाग के प्रोफेसर डॉ. रजनी रंजन झा कहते हैं, "बहुत दिनों बाद कांग्रेस की ओर से कोई सार्थक पहल दिखाई पड़ी। सामान्य परिस्थितियों में सरकार के रुख को सही राजनीतिक कदम के रूप में देखा भी जा सकता था, लेकिन मजदूरों के सामने जैसी कठिन परिस्थितियां थी, उसे देखते हुए सरकार के इस फैसले को कठोरता की श्रेणी में ही रखा जाएगा।”

डॉ. झा के मुताबिक यह राष्ट्रीय आपदा का समय है। विभिन्न राजनीतक दलों की सहमति और सहयोग के आधार पर शासन व्यवस्था चलनी चाहिए। कांग्रेस की इस पहल से निश्चित रूप से जन सामान्य में उसकी छवि को लेकर सकारात्मक भाव उभर सकता है। यह समय योगी के लिए भी विशेष अवसर बन सकता था यदि वे कहते कि प्रवासियों की मदद के लिए हमें केवल कांग्रेस ही नहीं सपा और बसपा से भी हर प्रकार की मदद की जरूरत है।

प्रवासी श्रमिकों के मामले में सपा और बसपा के मुकाबले अधिक सक्रियता दिखाकर कांग्रेस ने आम जनता का ध्यान अपनी ओर खींचा है। डॉ. झा कहते हैं, “विपक्षी दल अपनी भूमिका इसीलिए नहीं बना पा रहे हैं क्योंकि वे केवल आलोचना के लिए सत्तापक्ष की आचोलना कर खुद अविश्वसनीय बन गए हैं। कांग्रेस सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ने की कोशिश करे तो उसे इसका लाभ मिल सकता है।” प्रदेश की सियासत को जहां कांग्रेस ने अपनी हलचल से गरम कर दिया वहीं सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी सपा अस्पतालों से लेकर क्वारंटीन सेंटरों की बदहाली और प्रवासियों की दिक्कतों को लेकर सरकार के खिलाफ बयानों में ही जुटी रही। शुरू में उसके कार्यकर्ता लॉकडाउन की वजह से रोजी-रोटी के लिए परेशान लोगों की मदद करते नजर आए लेकिन बाद में वे सुस्त पड़ गए। सपा प्रमुख अखिलेश यादव जरूर ट्विटर पर सरकार से मोर्चा ले रहे थे। 16 मई को कांग्रेस ने 1000 बसों की सहायता की पेशकश की, उस दिन भी अखिलेश ट्विटर पर सरकार को घेर रहे थे। जब बस पालिटिक्स चरम पर पहुंची तो उनकी पत्नी और कन्नौज की पूर्व सांसद डिंपल यादव मैदान में उतरीं। वैसे कोरोना संकट से भी पहले समाजवादी पार्टी ने 2022 के विधानसभा चुनाव की तैयारियों को आगे बढ़ाते हुए बसपा के कई पुराने नेताओं-कार्यकर्ताओं को अपनी पार्टी में शामिल किया था।

उधर, बसपा सुप्रीमो मायावती भी अपने सियासी भविष्य को लेकर बेचैन दिख रही हैं। बस प्रकरण के बाद तो वह प्रदेश में चौथे नंबर की पार्टी कांग्रेस पर ही हमलावर हो गईं हैं। मायावती ने कहा कि आजादी के बाद से लेकर आज तक करोड़ों श्रमिकों की जो दुर्दशा है, उसकी असली कसूरवार कांग्रेस ही है। बसपा सुप्रीमो ने तो प्रतिक्रिया देते हुए इस बात का भी ध्यान नहीं रखा कि बीजेपी सरकार और कांग्रेस की इस लड़ाई में वह बीजेपी की ओर दिखाई पड़ेंगी। उन्हें इसका अहसास तब हुआ जब उन्होंने अपने स्टैंड में थोड़ा बदलाव करते हुए केंद्र की मोदी सरकार और कांग्रेस दोनों को श्रमिक विरोधी बताया। कांग्रेस के लिए मायावती की इस प्रतिक्रिया का एक मतलब यह निकाला जा रहा है कि कांग्रेस का प्रवासी श्रमिक मायावती के वोट बैंक में सेंध लगाता हुआ दिख रहा है। प्रवासी श्रमिकों में बहुत बड़ा तबका दलित समाज का हिस्सा है।

 

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