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मंदिर निर्माण के न्यास में जगह पाने की होड़

संत समाज मंदिर निर्माण जल्दी शुरू करने के पक्ष में, विश्व हिंदू परिषद के मंदिर मॉडल पर बन सकती है सहमति
ऐसा होगा मंदिरः अयोध्या के कारसेवकपुरम में रखा राम मंदिर का मॉडल

 

अयोध्या में रामलला के दर्शन के लिए लगी लाइन में ये चर्चा आम रहती है कि बहुत जल्द यहां भगवान राम के बाल रूप का विशाल मंदिर तैयार हो जाएगा। मठों और महंतों की बैठकी में भी यही चर्चा है कि समय से ट्रस्ट का ऐलान हो गया, तो इस बार रामनवमी पर रामलला के भव्य मंदिर की आधारशिला रख दी जाएगी। अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद पहली रामनवमी 2 अप्रैल को है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 9 फरवरी से पहले नए ट्रस्ट का गठन और तीन महीने में मंदिर निर्माण की शुरुआत की बात कह कर संत समाज का उत्साह बढ़ा दिया है। वैसे तो हमेशा से रामनवमी का त्योहार अयोध्या के लिए खास रहा है, लेकिन इस रामनवमी को लेकर उत्सुकता कुछ ज्यादा ही है। श्रीराम जन्मभूमि न्यास के प्रमुख नृत्यगोपाल दास के शिष्य और उनके उत्तराधिकारी कमल नयन दास कहते हैं, “सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में रामलला के विशाल मंदिर का रास्ता पूरी तरह साफ कर दिया है। संत समाज और राम भक्तों में मंदिर को लेकर बहुत उत्सुकता है। सबकी राय यही है कि मंदिर का निर्माण जल्दी शुरू हो और दो-ढाई साल में पूरा कर लिया जाए।”

मंदिर की भव्यता को लेकर कई तरह की परिकल्पनाएं सामने आ रही हैं, लेकिन सर्वसम्मति के बिंदु तलाशे जा रहे हैं। एक राय यही है कि विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के नक्शे के मुताबिक कार्य शुरू हो ताकि निर्माण तेजी से किया जा सके। मंदिर के मौजूदा नक्शे में 41 फीट लंबे शिखर के प्रस्ताव पर भी संत समाज की सहमति है। विश्व हिंदू परिषद के मार्गदर्शक मंडल ने हाल ही में माघ मेले के दौरान प्रयागराज में मंदिर निर्माण पर विस्तार से मंथन किया था। इस बैठक में प्रमुख संतों और मंदिर आंदोलन से जुड़े संगठनों की राय ली गई थी। नए नक्शे के तहत मंदिर निर्माण का प्रस्ताव भी आया। लेकिन जब उसके निर्माण में तकरीबन 20 साल का वक्त लगने का प्रश्न आया, तो अधिकतर संतों की राय यही बनी कि रामलला के लिए और प्रतीक्षा उचित नहीं।

विहिप के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल कहते हैं, “जन्मभूमि की मुक्ति में हमारी अहम भूमिका थी। विहिप ने सरकार से यही अनुरोध किया है कि मंदिर का मॉडल वही रहे, जो पिछले कई दशकों से रामभक्तों के दिल में बसा हुआ है और मंदिरों में उसकी पूजा हो रही है।” बंसल कहते हैं कि विहिप की कार्यशाला में पूजित शिलाओं को मंदिर के लिए विशेष तौर पर तैयार किया गया है। शिलाओं को गढ़ने तथा दानदाताओं से लेकर उसे अयोध्या तक पहुंचाने में बहुत श्रम और साधन लगाए गए हैं। इन शिलाओं के इस्तेमाल से न केवल भव्य मंदिर के निर्माण में बहुत ही कम समय लगेगा बल्कि इससे बहुत बड़ी राशि की बचत भी होगी।

नए न्यास में किसे जगह मिलेगी और किसे नहीं, यह भी संतों के बीच प्रतिष्ठा का सवाल रहा है। निर्मोही अखाड़ा के प्रमुख दिनेंद्र दास कहते हैं, “न्यास में हमारी जगह सुनिश्चित है। निर्मोही अखाड़ा में प्रमुख तय करने की एक प्रक्रिया है। अखाड़ा के प्रमुख को पद के आधार पर नए राममंदिर निर्माण न्यास में जगह मिलेगी।” सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि की जमीन पर निर्मोही अखाड़ा के दावे को भी खारिज कर दिया था लेकिन नए न्यास में उन्हें स्थान देने की ताकीद की है। इस नाते दिनेंद्र दास पूरी तरह आश्वस्त हैं कि वे इस न्यास का हिस्सा बनने जा रहे हैं। वैसे यह आत्मविश्वास मौजूदा श्रीराम जन्मभूमि न्यास के प्रमुख और मणिदास छावनी के महंत नृत्य गोपाल दास के साथियों में भी है। महंत नृत्य गोपाल दास के शिष्य कमल नयन दास भी पूरे भरोसे के साथ कहते हैं कि गुरु जी के लिए न्यास में स्थान तय ही है।

अयोध्या आंदोलन पर शुरुआती दिनों से करीबी नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र कुमार कहते हैं, “नए ट्रस्ट के गठन के बाद इससे बाहर रह गए मठाधीशों और महंतों और कुछ सियासी लोगों को संतुष्ट करना सरकार के लिए बड़ी चुनौती बनने वाली है।” मंदिर की जमीन के लिए भले ही केवल तीन पक्षों के बीच कानूनी लड़ाई लड़ी गई, लेकिन मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन करने वाले संगठनों की संख्या असीमित है। उनके मन में मंदिर निर्माण को लेकर अपनी सोच है। इसके अलावा न्यास में शामिल होने को प्रतिष्ठा और पावर से जोड़कर भी देखा जा रहा है। लिहाजा इस पर अभी विराम लगता नहीं दिख रहा। अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण संतों और महंतों का बहुत पुराना सपना रहा है। लेकिन इसके पूरा होने में बाधाएं भी कम नहीं रहीं। सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला आने के तत्काल बाद ट्रस्ट में शामिल होने को लेकर संतों और महंतों के बीच बेहद तीखे टकराव सामने आए। संतों के बीच आपसी प्रतिस्पर्धा और कटुता की पराकाष्ठा तो तब हो गई जब संत एक दूसरे पर हत्या कराने का आरोप लगाने लगे। तपस्वी छावनी के परमहंस दास ने श्रीराम जन्मभूमि न्यास के प्रमुख नृत्यगोपाल दास के प्रति ऐसी टिप्पणी कर दी कि दोनों पक्षों के बीच तीखापन बढ़ गया। बात इतनी बढ़ गई कि परमहंस दास को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। बाद में तपस्वी छावनी ने परमहंस दास को उनके मठ से निकाल भी दिया। ट्रस्ट में शामिल होने को लेकर गुटबाजी और बयानबाजी के बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नाम भी घसीटा गया। एक तरफ गोरक्षनाथ पीठ के महंत होने के नाते उन्हें न्यास में शामिल करने की चर्चा छिड़ी तो कुछ संतों ने उन्हें शिव उपासक बताकर इसका विरोध भी किया। वैसे संत समाज ने आपसी बातचीत के जरिए इस तरह की चर्चाओं पर जल्दी ही विराम लगा दिया।

राम मंदिर निर्माण के लिए नए ट्रस्ट की स्थापना से ठीक पहले नया विवाद सिर उठाता हुआ दिख रहा है। रामजन्मभूमि रामालय न्यास ने दावा किया है कि सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में नया ट्रस्ट बनाने की बात नहीं कही है, फैसले की गलत व्याख्या की जा रही है। न्यास के सचिव अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा,  सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा है कि 1993 में राम मंदिर के लिए जिस भूमि का अधिग्रहण किया गया, उसे पहले से इस काम के लिए बने ट्रस्ट को सौंप दे। अविमुक्तेश्वरानंद ने रामालय न्यास के दावे को पुख्ता बताया। उन्होंने कहा, जिस ट्रस्ट में चार शंकराचार्य, पांच वैश्नवाचार्य और 13 अखाड़े शामिल हों वही सबसे बड़ा है।

रामालय ट्रस्ट का कहना है कि उसके पास देश-विदेश में हजारों मंदिर बनाने और संचालित करने का अनुभव है। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह राम मंदिर निर्माण के लिए उपलब्ध पूरी जमीन हमें सौंप दे, ताकि इसे दुनिया का सबसे भव्य और अनोखा मंदिर बनवाया जा सके। ट्रस्ट ने कहा है कि यदि उसकी बात नहीं मानी गई, तो उसके सामने कोर्ट जाने का विकल्प खुला है। ट्रस्ट ने विहिप के मॉडल को भी नामंजूर कर दिया है। उसका कहना है कि संत इस मंदिर को भव्यता की चरम तक ले जाना चाहते हैं। ऐसे में, केवल 130 फीट ऊंचा मंदिर उनकी कल्पनाओं पर कहीं खरा नहीं उतर रहा है।

एक तरफ न्यास में प्रमुख भूमिका पाने की होड़ है, तो दूसरी ओर मंदिर के मुख्य पुजारी की हैसियत पाने को लेकर टकराव। मौजूदा व्यवस्था के तहत रामलला के मंदिर में पूजा-पाठ और भोग आदि के लिए रिसीवर की ओर से पुजारी नियुक्त किए गए हैं। इन्हें सरकार से वेतन मिलता है। नए न्यास के गठन के बाद व्यवस्था कैसे चलेगी इसको लेकर भी संत समाज में बेचैनी है। इस पद पर दावेदारी के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चिट्ठी लिखने का प्रकरण भी सामने आया। जाहिर है, नए ट्रस्ट के सामने इन सारी समस्याओं और विवादों के हल तलाशने की चुनौती होगी।

 

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न्यास में हमारी जगह सुनिश्चित है। निर्मोही अखाड़ा में प्रमुख तय करने की एक प्रक्रिया है। अखाड़ा के प्रमुख को मंदिर निर्माण न्यास में जगह मिलेगी

दिनेंद्र दास, प्रमुख, निर्मोही अखाड़ा

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राम भक्तों में मंदिर को लेकर बहुत उत्सुकता है। सबकी राय यही है कि मंदिर का निर्माण जल्दी शुरू हो और दो-ढाई साल में पूरा कर लिया जाए

कमल नयन दास, उत्तराधिकारी, महंत नृत्य गोपाल दास

 

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