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उत्तर प्रदेश: भोले चेहरे के पीछे छिपा शैतान

यूपी के जूनियर इंजीनियर रामभवन ने 70 से ज्यादा बच्चों का यौन शोषण किया, सीबीआइ अधिकारियों और एम्स के विशेषज्ञ डॉक्टरों के लिए भी यह अब तक का सबसे जटिल मामला है
चित्रकुट का जूनियर इंजीनियर रामभवन

देखने में तो 41 साल का रामभवन बिल्कुल शालीन लगता था। उसका रोजनामचा देखकर आप दिन में दो बार घड़ी मिला सकते थे। पहली बार सुबह आठ बजे, जब वह घर से ऑफिस के लिए निकलता था और दूसरी बार दोपहर दो बजे, जब वह खाना खाने आता था। हमेशा शांत रहने वाला रामभवन उत्तर प्रदेश सरकार के सिंचाई विभाग में चित्रकूट में जूनियर इंजीनियर था। वह बिल्कुल साधारण मध्यवर्गीय व्यक्ति जैसा ही लगता था। दूसरे मध्यवर्गीय लोगों और उसमें एकमात्र अंतर उसकी सरकारी कार थी। छोटे शहर के लिए यह निश्चित ही बड़ी बात थी, जहां सरकारी नौकरी को ताकत का प्रतीक माना जाता है। दूसरे लोग उनके साथ उलझने से बचते हैं। इसी आवरण के पीछे रामभवन की काली करतूतें 12 वर्षों तक छिपी रहीं।

सीबीआइ ने 16 नवंबर को रामभवन को गिरफ्तार किया। आरोप है कि 12 वर्षों में उसने कम से कम 70 बच्चों का यौन शोषण किया। इनमें ज्यादातर पांच से 16 साल के लड़के थे। वह उनके यौन शोषण की रिकॉर्डिंग करता और दुनियाभर में डार्क वेब पर बेचता था। डार्क वेब एनक्रिप्टेड ऑनलाइन कन्टेंट होता है जो सामान्य सर्च इंजन पर नहीं दिखता है। रामभवन ने बांदा, चित्रकूट और हमीरपुर के बच्चों को अपना शिकार बनाया। यह भारत का शायद सबसे बड़ा बाल यौन शोषण का मामला है जिसकी पहुंच विदेशों तक थी।

ऐसे मामलों की जांच के लिए सीबीआइ में नया विभाग बना है। इसका नाम है ऑनलाइन बाल यौन दुर्व्यवहार एवं शोषण (ओसीएसएई) रोकथाम और जांच यूनिट। एजेंसी को पिछले साल सितंबर में पहली बार इंटरपोल से इसके बारे में सूचना मिली। एक सीबीआइ अधिकारी ने बताया, "हमें एक छोटी सी क्लिप मिली। उसमें भारतीय जैसा दिखने वाला एक व्यक्ति बच्चे का यौन शोषण कर रहा था। हमने जांच शुरू की तो कई वेबसाइट पर वैसे वीडियो और फोटोग्राफ मिले। उनमें ज्यादातर को देखने के लिए पैसे मांगे जाते थे। उन्हें अमेरिका, यूरोप और रूस समेत कई देशों की वेबसाइट के साथ शेयर किया जाता था। वीडियो या तस्वीरों में उस व्यक्ति का चेहरा साफ नहीं था।"

जांच अधिकारी तत्काल कुछ करने की स्थिति में नहीं थे। वीडियो की भौगोलिक स्थिति पता करने में उन्हें एक महीना लग गया। सीबीआइ अधिकारी ने बताया, "आइपी एड्रेस के आधार पर हम चित्रकूट के करवी पहुंचे और रामभवन को गिरफ्तार किया।" तलाशी में उसके घर से वीडियो रिकॉर्डिंग करने वाले कई अत्याधुनिक गैजेट, दस मोबाइल फोन, दो महंगे लैपटॉप, एक डिजिटल वीडियो रिकॉर्डर, वेब कैमरा, छह पेन ड्राइव, मेमोरी कार्ड और कई तरह के सेक्स टॉय मिले। इनके अलावा 8.5 लाख रुपए नकद भी मिले, जिसका कोई हिसाब उसके पास नहीं था। रामभवन के पास लोकप्रिय गेमिंग कंसोल पीएस4 भी था, जिस पर उसके घर आने वाले बड़े बच्चे पबजी जैसा वीडियो गेम खेलते थे।

रामभवन स्मार्टफोन और गैजेट का लालच देकर बच्चों को घर बुलाता था। वह सरकारी घर में रह सकता था, लेकिन शायद अपनी आदतों की वजह से कभी रहा नहीं। वह निम्न मध्य वर्गीय कॉलोनियों में रहता था। वहां उसे अपनी हवस पूरी करने के लिए बच्चे आसानी से मिल जाते थे। उसके घर से मोबाइल फोन के अनेक खाली डिब्बे भी मिले। जांच अधिकारियों का मानना है कि हो सकता है उसने कुछ बच्चों को मोबाइल फोन गिफ्ट में दिया हो। रामभवन के साथ उसकी पत्नी दुर्गावती को भी गिरफ्तार किया गया है। वह न सिर्फ बच्चों को घर बुलाने में पति की मदद करती थी, बल्कि उन्हें धमकाती भी थी।

रामभवन के शिकार ज्यादातर बच्चे गरीब थे। मुंह बंद रखने के लिए वह उन्हें हर बार 200 से 400 रुपए देता था। ये बच्चे अक्सर पास-पड़ोस के या भवन निर्माण साइट पर होते थे जहां वह जूनियर इंजीनियर के तौर पर सुपरवाइजर होता था। इनके अलावा रिश्तेदारों, काम वाली बाई, दूध वाले और दर्जी के बच्चों को भी निशाना बनाता था। एक जांच अधिकारी ने आउटलुक से कहा, "लगता है उसने अपने करीब आने वाले किसी भी बच्चे को नहीं छोड़ा। उसकी एक और खराब आदत थी। रास्ते में कोई बच्चा मिल जाता तो उसकी पैंट उतरवाकर तस्वीर खींचता था।" जांच अधिकारियों को यह जानकर ताज्जुब हुआ कि रामभवन ने कुछ बच्चों का ऐसा ब्रेनवॉश कर दिया था कि वे बड़े होकर वे भी छोटे बच्चों का शोषण करने लगे। एक सीबीआइ अधिकारी ने कहा, "उसका एक शिकार अब 22 साल का हो गया है। वह भी बच्चों का यौन शोषण करता है। ऐसे और भी बच्चे हैं, जिन्हें हम तलाश रहे हैं।"

जांच अधिकारियों को इसकी जानकारी तब मिली जब वे रामभवन के घर से मिले गैजेट्स की जांच कर रहे थे। एक अधिकारी ने बताया, "24 हजार से ज्यादा ईमेल ऐसे मिले हैं जिनसे पता चलता है कि रामभवन बच्चों के यौन शोषण के वीडियो और तस्वीरें देश-विदेश भेजता था। उसके पास भी इस तरह के ईमेल आते रहते थे। ऐसे ही एक ईमेल में पता चला कि कभी रामभवन का शिकार रहा एक लड़का भी इस तरह की सामग्री दूसरों को भेज रहा है। यह काफी बड़ा नेटवर्क लगता है। अलग-अलग स्तर पर इसकी जांच करने में हमें काफी परेशानी हुई।" अधिकारी ने संकेत दिए कि जांच आगे बढ़ने के साथ और लोगों की भी गिरफ्तारी हो सकती है।

जांच अधिकारियों को लगता है कि रामभवन के कई शिकार दूसरों का यौन शोषण करने लगे हैं। खास कर वे जिन्हें उसने मोबाइल गिफ्ट किया था। एक अधिकारी ने कहा, "अनेक मोबाइल फोन और लैपटॉप इस तरह सिंक्रोनाइज किए गए थे कि उन पर इस तरह के वीडियो और तस्वीरें शेयर की जा सकें। जब भी कोई व्यक्ति अपने मोबाइल या लैपटॉप पर कुछ अपलोड करता है, तो वह सबको दिखने लगता है।" अधिकारी के अनुसार उन्होंने पहले कभी ऐसा नहीं देखा था।

रामभवन की मानसिकता को बेहतर समझने और यह देखने के लिए कि उसे कोई यौन संक्रमित बीमारी तो नहीं है, सीबीआइ ने दिल्ली एम्स के विशेषज्ञों की मदद ली। एम्स के विशेषज्ञों ने रामभवन के शिकार बच्चों की मेडिकल और फोरेंसिक जांच भी की। एम्स ने फोरेंसिक विभाग के प्रमुख डॉ. सुधीर गुप्ता की अध्यक्षता में नौ सदस्यों वाले मेडिकल बोर्ड का गठन किया। रामभवन को 11 जनवरी को एम्स लाया गया। डॉ. गुप्ता ने आउटलुक से कहा, "शारीरिक दृष्टि से वह सामान्य है, उसे कोई यौन संक्रमित बीमारी भी नहीं है। लेकिन मानसिक जांच में पता चला कि उसमें बच्चों का शोषण करने की प्रवृत्ति है। उसने जो किया, उसका उसे कोई दुख भी नहीं है।" डॉ. गुप्ता आरुषि तलवार, सुनंदा पुष्कर, शीना बोरा और अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत जैसे जटिल मामले देख चुके हैं। वे बताते हैं कि अपने तीन दशक के करिअर में उन्होंने ऐसा घिनौना केस नहीं देखा जिसमें बच्चों को इस कदर शिकार बनाया गया हो। यह मामला तो बेहद कष्टदायी है।

जांच में पता चला कि रामभवन का बौद्धिक स्तर सामान्य है, उसकी मनोदशा में कोई विकार नहीं है। मानसिक परीक्षण के दौरान वह पूरी तरह शांत था, उसने जरा भी बेचैनी नहीं दिखाई। लेकिन जब उसे स्त्री-पुरुष की तस्वीरें बनाने के लिए कहा गया तो वह सिर्फ बच्चों की तस्वीरें बना सका। वह बच्चों से जुड़ी पोर्नोग्राफी देखने का भी आदी है। डॉ. गुप्ता के अनुसार, "इससे यह भी पता चलता है कि बचपन में वह भी यौन शोषण का शिकार रहा होगा।"

रामभवन की मानसिक स्थिति की प्रोफाइल बनाना तो आसान था, लेकिन बच्चों की प्रोफाइल बनाना सीबीआइ और एम्स के विशेषज्ञों, दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण था। इतने वर्षों में न तो किसी बच्चे ने, न ही उनके माता-पिता ने कभी रामभवन के खिलाफ शिकायत की। रामभवन के शिकार बच्चों की जांच के लिए एम्स मेडिकल बोर्ड के पांच सदस्य 13 जनवरी को चित्रकूट गए। ये बच्चे पांच साल से 22 साल तक के थे और 25 बच्चों की जांच की गई। सबमें बार-बार यौन शोषण के निशान मिले। अपने शोषण की कहानी बताने के लिए बच्चों को तैयार करना आसान नहीं था। कुछ तो डरे हुए थे। कुछ ने तो शोषण के निशान होने के बावजूद इस बात से साफ इनकार कर दिया।

डॉ. गुप्ता बताते हैं, "रामभवन ने उनके साथ गुदा-मैथुन किया, यह स्वीकार करने में उन्हें थोड़ा समय लगा। कुछ बच्चों के साथ तो रामभवन ने 50-60 बार ऐसा किया था। कई बच्चों ने मेडिकल बोर्ड के सदस्यों को बताया कि शोषण के बाद उन्हें काफी दर्द होता था और चल नहीं पाते थे।" जब बच्चे दर्द के मारे चिल्लाते और मदद मांगते तो रामभवन की पत्नी बचाने के बजाए उल्टा उन्हें डांटती थी। वह बाहर से दरवाजा बंद कर देती थी ताकि बच्चे भाग न जाएं।

यौन शोषण के शिकार कई बच्चों का इलाज करने वाले क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. रजत मित्रा कहते हैं कि ऐसे कुकर्मी अक्सर बच्चों को यह बात समझाने में सफल हो जाते हैं कि यह सब करने में कोई बुराई नहीं है, और इसमें मजा आता है। मित्रा के अनुसार, "इस तरह के शोषण से बच्चों का सामान्य विकास रुक जाता है। वे यौन संबंधी बातों के बारे में ज्यादा सोचने लगते हैं। यही कारण है कि जिनका बचपन में शोषण हुआ है, वे भी बड़े होकर दूसरे बच्चों का शोषण करने लगते हैं।"

डॉ. मित्रा को यह देखकर जरा भी ताज्जुब नहीं हुआ कि मानसिक जांच के दौरान रामभवन बिल्कुल शांत था और उसे अपने किए पर कोई पश्चाताप भी नहीं था। वे बताते हैं, "उसके लिए तो बिना पकड़े गए, इतने दिनों तक कुकर्म करना जैसे कोई उपलब्धि थी। उसके विकृत दिमाग में सुखी और संपन्न इंसान की यही परिभाषा है। इसलिए वह इन सब बातों से जरा भी बेकल नहीं है। बच्चों का शोषण करने वाले अनेक लोगों में ऐसा देखा गया है कि जब वे इसकी बात करते हैं तो उनका रक्तचाप कम हो जाता है। उनके लिए यह नशे की तरह है।"

डॉ. मित्रा के अनुसार, "ऐसे लोगों का मानसिक इलाज करने की जरूरत है। उन्हें आजीवन जेल में रखा जाना चाहिए। रामभवन जैसे लोग विकृत रास्ते पर इतनी दूर जा चुके होते हैं कि कभी बदल ही नहीं सकते।"  ऐसे मामलों की जांच के लिए विशेष और बेहद प्रशिक्षित लोग नियुक्त किए जाने चाहिए, क्योंकि जांच में खास दक्षता की जरूरत पड़ती है। वे कहते हैं, "ये ऐसे अपराध हैं जो आतंकवाद से भी ज्यादा जटिल हैं। अपराधी चालाक और धूर्त होते हैं, और उनके अपराध की जगह बच्चों का शरीर होता है। यौन शोषण से पीड़ित बच्चे के मस्तिष्क को पढ़ना आसान नहीं होता।"

जांच की जटिलता

सीबीआइ अधिकारी स्वीकार करते हैं कि अब तक उन्होंने जितने मामलों की जांच की है, यह उनमें सबसे जटिल मामलों में एक है। एक अधिकारी ने कहा, "यौन शोषण से पीड़ित बच्चों की तहकीकात करना सबसे कठिन है। बच्चे का भरोसा जीतना और उसे बोलने के लिए तैयार करना आसान नहीं होता। खासकर तब जब उसे यह विश्वास दिला दिया गया हो कि यह सब उसकी सहमति से हुआ है। अनेक मामलों में तो बच्चों के माता-पिता को भी काफी समझाना पड़ता है क्योंकि पहले वे भी इन बातों से मना ही करते हैं।"

जब माता-पिता मान जाते हैं और बच्चा बात करने के लिए तैयार हो जाता है, तो जांच अधिकारियों को यह भी देखना पड़ता है कि पूछताछ के समय जिला बाल कल्याण समिति का कोई सदस्य मौजूद रहे। पोस्को एक्ट में यह जरूरी है। अधिकारी ने कहा, "जब हम बच्चे से बात करते हैं, तब वह दूसरे बच्चों के भी नाम बताता है। रामभवन के शिकार बच्चों की फेहरिस्त हर दिन लंबी होती जा रही है।"  सीबीआइ ने 24 बच्चों से शुरुआत की थी, और अब तक रामभवन के शिकार बच्चों की संख्या 70 से अधिक हो चुकी है। जांच एजेंसी को गोपनीयता का भी ध्यान रखना पड़ता है ताकि बच्चों की पहचान उजागर न हो।

पोस्को एक्ट, 2012 को लागू करवाने में सक्रिय भूमिका निभाने वाले पूर्व आइपीएस अधिकारी आमोद कंठ कहते हैं कि देश में बच्चों का यौन शोषण बड़े पैमाने पर होता है। संयुक्त राष्ट्र के एक अध्ययन का हवाला देते हुए वे बताते हैं, "बाल शोषण के मामले में भारत की छवि बेहद खराब है। आंकड़े भयानक हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार 52 फीसदी बच्चों का किसी न किसी तरह से यौन शोषण होता है। यानी देश में हर दूसरे बच्चे का शोषण होता है- लड़कियों से ज्यादा लड़कों का।"

आमोद कंठ के अनुसार भारत में ऐसे मामलों की शिकायतें भी बहुत कम दर्ज होती हैं, जैसा रामभवन के मामले में देखने को मिला। वे कहते हैं, "खामोशी का एक षडयंत्र होता है। शिकायत न होने के कारण दुष्कर्मी साफ बच जाते हैं। इस तरह बाल शोषण सिस्टम का हिस्सा बन जाता है।"

कंठ गैर सरकारी संगठन 'प्रयास' के संस्थापक हैं। यह संस्था ऐसे बच्चों के लिए काम करती है। उन्होंने अनेक ऐसे मामले देखे हैं जिनमें शोषित बच्चे आगे चलकर शोषण करने लगते हैं। उनका मानना है कि ऐसे लोगों की उचित काउंसलिंग की जानी चाहिए ताकि उनकी मानसिकता को जो नुकसान हुआ है, उसे ठीक किया जा सके।

शोषण के शिकार बच्चों को संभालने के अलावा सीबीआइ रामभवन के खिलाफ भी पुख्त केस तैयार करने की कोशिश कर रही है। जांच एजेंसी के अधिकारी ने कहा, "इस मामले में कई परतें हैं। एक पहलू डार्क वेब का है जिसकी गहराई अथाह है। सैंकड़ों लोग रामभवन के नेटवर्क का हिस्सा हैं। सवाल आठ लाख रुपए का भी है जो उसके घर से मिले। वह सरकारी अधिकारी था, इसलिए हो सकता है कि वह भ्रष्टाचार का पैसा हो। हम अभी तक यह बात स्थापित नहीं कर पाए हैं कि वह बच्चों के शोषण के वीडियो और तस्वीरें बेचता था या सिर्फ उन्हें दूसरों के साथ साझा करता था। हमारे पास अभी इन सब बातों में उलझने का वक्त नहीं है। तत्काल हमारी प्राथमिकता उसके खिलाफ ठोस चार्जशीट तैयार करने की है ताकि वह जमानत पर बाहर न आ सके।"

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