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24 नवंबर 2025 · NOV 24 , 2025

स्मृतिः हंसी का सौदागर

सिनेमा में भी सतीश शाह की उपस्थिति हमेशा याद रहेगी
सतीश शाह  (1951-2025)

भारतीय हास्य जगत में किसी चेहरे ने ही माहौल को हल्का कर दिया, तो वह चेहरा सतीश शाह का था। उनकी  मुस्कान, आवाज का उतार-चढ़ाव और संवादों की सहज अदायगी ने मिलकर उन्हें भारतीय टेलीविजन और सिनेमा की दुनिया का ऐसा सितारा बनाया, जो कॉमेडियन होकर भी हीरो की श्रेणी में आ गया। सतीश शाह को हंसाने के लिए अतिरिक्त श्रम नहीं करना पड़ता था। उन्होंने ये जो है जिंदगी धारावाहिक छोड़ दिया जाए, तो कभी अपने गेटअप पर बहुत काम नहीं किया। ये जो है जिंदगी में उन्होंने हर एपिसोड में एक अलग रूप धारण किया था। यह भी एक उल्लेखनीय बात ही है कि हर गेटअप में वे जंचे और उसके अनुसार ही भाषा को पकड़ कर संवाद बोला। हर राज्य का हिंदी बोलने का एक अलग अंदाज होता है। वे उसी अंदाज में हिंदी बोलते थे, जिस राज्य के व्यक्ति का किरदार कर रहे होते थे।

ये जो है जिंदगी के बहुरूपी किरदारों से लेकर साराभाई वर्सेज साराभाई के इंद्रवदन साराभाई तक उन्होंने हर भूमिका में साबित किया कि हास्य, अभिनय का सबसे गंभीर रूप है। इंद्रावदन का बौद्धिक व्यंग्य, उनकी अजीबोगरीब तुलना और चेहरे पर स्थायी मुस्कान को भला कौन भूल सकता है। टेलीविजन पर उनकी मौजूदगी ही दर्शकों को गुदगुदाने लगती थी। वे बिना शोर मचाए अभिनय करते थे और सहकलाकारों के साथ ऐसा तालमेल बैठाते थे कि यह पूरी टीम का काम लगता था।

सिनेमा में भी सतीश शाह की उपस्थिति हमेशा याद रहेगी। जाने भी दो यारो के अपने रोल में बिना कुछ बोले ‘लाश’ बने सतीश शाह को आज भी याद किया जाता है। छोटे लेकिन यादगार अभिनय में वे सामाजिक व्यंग्य के प्रतीक बन गए। उन्होंने साबित किया कि हास्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज पर टिप्पणी का भी माध्यम हो सकता है। मकसद, कल हो ना हो, ओम शांति ओम जैसी फिल्मों में वे हर पीढ़ी के दर्शकों को अपनी ओर खींचने में सफल रहे।

उनकी खासियत यह थी कि वे कभी जोकर नहीं बने बल्कि उन्होंने किरदार के भीतर ही हास्य खोजा और बिना किसी ऊटपटांग हरकत किए या अतिरिक्त मेहनत किए लोगों को ठहाके लगाने पर मजबूर किया। वे हंसी खोजते नहीं थे, बल्कि उसे पैदा करते थे। उनका हास्य शोरगुल नहीं, संवेदनशीलता से भरा था। सतीश शाह उस पीढ़ी के अभिनेता थे जो स्क्रिप्ट के प्रति वफादार रहते हुए भी अपने अंदाज से उसे नया अर्थ देते थे।

एक खुशमिजाज कलाकार कभी विदा नहीं लेता, क्योंकि अभिनेता का काम फिर-फिर लौट आता है। सतीश शाह ने सहज होकर एक पूरी पीढ़ी को बताया कि हंसाना कठिन नहीं यदि यह समझ आ जाए कि तनाव से भरे लोग आखिर चाहते क्या हैं। सबको हंसना है, लेकिन अपनी शर्तों पर। 

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