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बुद्धू बना दिया यार!

ट्राइ के नए नियमों से केबल से लेकर डीटीएच उपभोक्ता तक परेशान, बढ़ा बिल जेब पर भारी
बढ़ा कन्फ्यूजनः नए नियम में पैकेज बनाना भी भारी पड़ रहा है

दावा तो था उपभोक्ताओं को राजा बनाने का, लेकिन भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राइ) ने जो नए बदलाव किए, उससे 'अपनी पसंद और बजट के मुताबिक चैनल चुनने की आजादी अब आपके हाथ’ का उसका स्लोगन देश के 16 करोड़ टीवी उपभोक्ताओं को रास नहीं आ रहा है। दावे के मुताबिक न तो टीवी देखना सस्ता हुआ, न ही यह आसान हो पाया कि उपभोक्ता अपनी पसंद के हिसाब से चैनल देखे और उतने ही पैसे चुकाए। उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद निवासी सोनल शर्मा कहती हैं, “नए नियम के बाद तो टीवी देखना महंगा हो गया है। ऊपर से चैनल का चयन करने का तरीका बहुत जटिल है। इससे काफी परेशानी हो रही है। कस्टमर केयर से भी सहयोग नहीं मिल रहा है।”

इसी प्रदेश के धुर पूरब में गोरखपुर में रहने वाले वरिष्ठ नागरिक सुरेंद्र कुमार का तो कहना है कि “नए नियम अबूझ पहेली हैं। मेरे यहां पहले वीडियोकॉन का डीटीएच लगा हुआ था, लेकिन जब कस्टमर केयर से सपोर्ट नहीं मिला तो मैंने डिश टीवी का डीटीएच लगवाया, वहां भी कोई सुनवाई नहीं हुई, तो फिर स्थानीय केबल आपरेटर से कनेक्शन लिया है। नए नियम में चैनल का चयन काफी जटिल है।” 

दरअसल, टीवी उपभोक्ताओं की परेशानी ट्राई के ब्रॉडकास्टिंग और केबल सर्विसेज के नए नियम से शुरू हुई है। इसके तहत उपभोक्ताओं को शुरू में 31 जनवरी तक नए नियमों के अनुसार अपने चैनल का चयन करना था। नए नियमों के तहत उपभोक्ताओं को यह अधिकार मिल गया है कि वह जिस चैनल को देखना चाहते हैं, केवल उसी का उन्हें पैसा चुकाना होगा। यानी ऑपरेटर चैनल के प्रसारण में अपनी मर्जी ग्राहकों पर नहीं थोप सकता है। इसके लिए ट्राई ने उपभोक्ताओं को अ-ला-कार्टे, फ्री-टू-एयर और बुके पैकेज का विकल्प दिया है। लेकिन इस प्रक्रिया की जटिलताओं और ग्राहकों की परेशानी को देखते हुए अब नए नियम एक अप्रैल 2019 से लागू होंगे। इस मामले में ट्राई चेयरमैन राम सेवक शर्मा ने आउटलुक को बताया, “नए नियम में उपभोक्ता ही सर्वोपरि है। उसके हितों का पूरा ध्यान रखा गया है। जब यह पूरा सिस्टम सुचारू रूप से लागू हो जाएगा, तो उपभोक्ताओं के मासिक बिल में 10-15 फीसदी की कमी आएगी।” लेकिन ट्राइ चेयरमैन की इस बात से रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की रिपोर्ट इत्तेफाक नहीं रखती है। क्रिसिल के सीनियर डायरेक्टर सचिन गुप्ता का कहना है, “हमारे अध्ययन में कई पहलू सामने आए हैं। मौजूदा कीमतों के आधार पर अगर कोई उपभोक्ता हर महीने 230-240 रुपये खर्च कर रहा है, तो उसे नए दौर में 300 रुपये के करीब खर्च करने होंगे। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि अगर कोई उपभोक्ता फ्री-टू-एयर चैनल के साथ टॉप-10 चैनल का चयन करता है, तो उसका बिल 25 फीसदी तक बढ़ जाएगा। लेकिन अगर उपभोक्ता टॉप-5 चैनल का ही चयन करेगा तो उसका बिल जरूर मौजूदा कीमत से कम हो जाएगा। हालांकि यह भी देखना होगा कि देश के 80 फीसदी उपभोक्ता टॉप-20 चैनल देखते हैं। ऐसे में संभावना यही है कि ऐसे उपभोक्ता चैनल के चयन में टॉप-10 का विकल्प जरूर लेंगे। इसकी वजह से उनके मासिक बिल में बढ़ोतरी होनी तय है।”

उपभोक्ताओं की परेशानी बढ़ी है, इस बात को ट्राई भी स्वीकार कर रहा है। इसीलिए उसने डेडलाइन की अवधि 31 जनवरी से बढ़ाकर 31 मार्च 2019 तक कर दी है। उसके अनुसार, 12 फरवरी 2019 तक देश में 16.7 करोड़ टीवी उपभोक्ता हैं। इसमें से 10 करोड़ उपभोक्ता केबल ऑपरेटरों के जरिए और 6.7 करोड़ उपभोक्ता डीटीएच ऑपरेटरों के जरिए टीवी देख रहे हैं। इसमें से नए नियमों के अनुसार करीब सात करोड़ उपभोक्ता अपना पैकेज बदल चुके हैं। ट्राइ के अनुसार इस प्रक्रिया में कई उपभोक्ताओं को नए तरीके के अनुसार पैकेज चयन करने में दिक्कतें आ रही हैं। वहीं कुछ उपभोक्ताओं के पास वैसा आइटी इन्‍फ्रास्ट्रक्चर नहीं है या वह उसे इस्तेमाल करने में सहज नहीं है।

इन मुद्दों के देखते हुए डेडलाइन बढ़ाई गई है। उपभोक्ताओं की समस्याएं बढ़ी हैं, इस बात को भले ही ट्राई स्वीकार कर रहा है लेकिन डीटीएच कंपनियां इसे स्वीकार करने के मूड में नहीं हैं। एयरटेल हो या डिश टीवी या फिर टाटा स्काई सभी प्रमुख कंपनियों ने आउटलुक के सवालों का जवाब नहीं दिया। वे इस मुद्दे पर रेग्युलेटर की बात आने से बोलने से बचती रही, जबकि देश के सात करोड़ उपभोक्ता डीटीएच आपरेटर के भरोसे ही अपने घरों में टीवी देख रहे हैं। केबल ऑपरेटर और डीटीएच कंपनियों ने भी इस मौके पर उपभोक्ताओं के लिए कई सारे पैकेज लॉन्च कर दिए हैं, जिनमें उनका दावा है कि ग्राहकों की सहूलियत के लिए कई सारे ऑफर दिए जा रहे हैं। केबल ऑपरेटर और कंपनियों ने इसके लिए 179 रुपये से लेकर 750 रुपये तक के पैकेज बाजार में उतार दिए हैं। ग्राहकों के सामने इस समय अजीब-सी परिस्थिति खड़ी हो गई है। एक तो नए प्लान के अनुसार उन्‍हें नया पैकेज चुनना है। दूसरे, उन्हें यह लग रहा है कि वे ज्यादा पैसे देकर कम चैनल देख रहे हैं। ऐसे में अब ट्राइ को देखना है कि उसका ‘उपभोक्ता ही सर्वोपरि है’ का नारा कारगर हो पाता है या नहीं। इसके अलावा ट्राई के सामने एक मुसीबत यह भी खड़ी हो सकती है कि एक बड़ा वर्ग टीवी से शिफ्ट होकर इंटरनेट के जरिए आने वाले कंटेट पर जा सकता है। इस बात का अंदेशा क्रिसिल ने अपनी रिपोर्ट में भी जाहिर किया है, उसका कहना है कि नए दौर में कंटेट ही जोर होगा। ऐसे में बहुत से उपभोक्ता नेटफ्लिक्स, हॉटस्टार जैसे प्लेटफार्म पर भी शिफ्ट हो सकते हैं। साथ ही कम पॉपुलर चैनल भी ऑफ एयर हो सकते हैं। इसकी वजह से इंडस्ट्री में विलय और अधिग्रहण का भी दौर शुरू हो सकता है।

कंज्यूमर एक्टिविस्ट बेजॉन मिश्रा के अनुसार, नए नियम से उपभोक्ताओं की परेशानी बढ़ गई है। रेग्युलेटर ने पूरी तैयारी के बिना यह कदम उठाया है। इसका फायदा उपभोक्ताओं से ज्यादा कंपनियों को होगा। साथ ही छोटे ऑपरेटर के लिए भी मुसीबत बढ़ जाएगी। बढ़ती परेशानी को देखते हुए ही ट्राई को अपनी डेडलाइन बढ़ानी पड़ी है। जिस तरह से कन्फ्यूजन बना है, उसे देखते हुए ट्राई का जो यह दावा है कि टीवी देखना सस्ता हो जाएगा, वह नहीं हो पाएगा। लोगों के बिल बढ़ गए हैं। छोटे शहरों के लोगों को ज्यादा परेशानी हो रही है। अब देखना है कि ट्राई उपभोक्ता के हितों का कैसे ध्यान रखेगा।

नए नियम की अहम बातें

ट्राइ के अनुसार, नए नियम में उपभोक्ताओं के पास अ-ला-कार्टे, बुके और फ्री-टू-एयर चैनल का विकल्प होगा। इसके तहत उपभोक्ता अपनी पसंद के किसी एक चैनल का भी चयन कर सकेगा। कोई भी ऑपरेटर किसी भी चैनल का मासिक किराया अधिकतम 19 रुपये ही तय कर सकेगा। साथ ही ऑपरेटर को 130 रुपये में 100 फ्री-टू-एयर चैनल का भी विकल्प उपभोक्ताओं को देना होगा, जो कि एसडी चैनल होंगे। उपभोक्ताओं को अपने बिल पर 18 फीसदी जीएसटी भी देना होगी। ऐसे में अगर कोई उपभोक्ता 130 रुपये का पैकेज लेता है तो उसे करीब 152 रुपये चुकाने होंगे। लेकिन इन नए नियमों या नई व्यवस्‍था ने उपभोक्ताओं का जीवन आसान तो नहीं ही किया है।

 

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