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बॉलीवुड: चुनिंदा फिल्मों पर भरोसा

आज के स्टार एक बार में एक-दो फिल्मों पर ही ध्यान देना मुफीद समझते हैं, लेकिन अक्षय कुमार जैसे अपवाद भी
रणबीर कम लेकिन अच्छी फिल्में करने में यकीन रखते हैं

रणबीर कपूर की पिछली फिल्म, संजू (2018) को प्रदर्शित हुए साढ़े तीन वर्ष से ऊपर हो गए हैं। ऐसी इंडस्ट्री में जहां सितारों की तकदीर का फैसला हर शुक्रवार को प्रदर्शित फिल्मों की बॉक्स ऑफिस पर हुई कमाई के आधार पर होता है, पेशेवर दृष्टिकोण से इसे आदर्श स्थिति नहीं समझा जा सकता है। आज गलाकाट प्रतिस्पर्धा के कारण हर अभिनेता को अपनी सफलता को बरकरार रखने के लिए नियमित अंतराल पर परदे पर दिखना आवश्यक समझा जाता है। फिल्मोद्योग में एक पुरानी कहावत प्रचलित है, ‘आउट ऑफ साइट, आउट ऑफ माइंड’ यानी अगर कोई अभिनेता परदे से ज्यादा समय तक दूर रहता है तो दर्शक उसे भूल जाते हैं।

लेकिन रणबीर इन बातों से बेफ्रिक्र दिखते हैं। कपूर खानदान का प्रतिभाशाली वारिस उन गिने-चुने अभिनेताओं में से है जिन्हें लगता है कि किसी अभिनेता का ‘ओवरएक्सपोजर’ नहीं होना चाहिए। शायद इसी वजह से उन्होंने सोशल मीडिया से भी दूरी बना कर रखी है। अपनी पिछली फिल्म, निर्देशक राज कुमार हिरानी की अभिनेता संजय दत्त की बायोपिक में शीर्षक भूमिका निभाने के बाद उन्होंने अयान मुखर्जी की ब्रह्मास्त्र और यश राज फिल्म्स की शमशेरा की शूटिंग जरूर शुरू की और लव रंजन की एक अनाम फिल्म भी साइन की, लेकिन कोरोनावायरस के कारण इनमें से किसी भी फिल्म का प्रदर्शन नहीं हो सका है। इस वर्ष ब्रह्मास्त्र और शमशेरा के रिलीज होने की उम्मीद है। हालांकि कोविड के नए वेरिएंट के कारण मंदी से जूझ रही फिल्म इंडस्ट्री पर अनिश्चितता के बादल फिर से मंडराने लगे हैं।

दिलीप कुमार ने कम फिल्में कीं लेकिन उनमें अपनी अमिट छाप छोड़ी

दिलीप कुमार ने कम फिल्में कीं लेकिन उनमें अपनी अमिट छाप छोड़ी

इसके बावजूद न तो रणबीर की मांग कम हुई है और न ही उनको मिलने वाला पारिश्रमिक कम हुआ है। उनकी पहचान एक स्टार-अभिनेता के रूप में हो चुकी है, जिनके करिअर पर उनकी फिल्मों के हिट या फ्लॉप होने का खास असर नहीं होता है। फिर भी, फिल्मों के चयन में अति सतर्कता बरतना विगत में कई प्रतिभावान सितारों को भारी पड़ा है, जिनमें उनके पिता दिवंगत ऋषि कपूर भी शामिल रहे हैं। अस्सी के दशक में ऋषि ने कई ऐसी फिल्मों का प्रस्ताव ठुकरा दिया था, जो बाद में सुपरहिट साबित हुईं। इसमें के सी बोकाडिया की प्यार झुकता नहीं (1985) भी शामिल थी। अपनी पिछली फिल्मों, कर्ज (1980) और जमाने को दिखाना है (1981) की विफलता के बाद उन्होंने फिल्में साइन करना काफी हद तक कम कर दिया था, लेकिन उनके करीबी मित्र अभिनेता जीतेंद्र ने उन्हें समझाया कि हर फिल्म की अपनी तकदीर होती है और उनके हिट या फ्लॉप होने की कोई भविष्यवाणी नहीं कर सकता है। जीतेंद्र को दरअसल इसका नजदीकी अनुभव था। 1982 में उन्होंने दीदार-ए-यार नामक एक बड़े बजट की फिल्म का निर्माण किया था, जो उस समय की सबसे महंगी फिल्म थी। इस फिल्म में जीतेन्द्र और ऋषि कपूर दोनों ने अभिनय किया था और इसका संगीत भी सुपरहिट था। ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि फिल्म बहुत बड़ी हिट होगी लेकिन यह बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिर गई और जीतेंद्र को भारी नुकसान झेलना पड़ा। जीतेंद्र की सलाह के बाद ऋषि ने बिना किसी उम्मीद के कई नई फिल्में साइन कीं, जिसमें से एक नगीना (1986) की अप्रत्याशित सफलता ने उनके करिअर को वापस पटरी पर ला दिया। स्वयं जीतेंद्र भी उससे पहले ऐसे ही अनुभवों से गुजरे थे। सत्तर के दशक की शुरुआत में जब उनकी कई फिल्में पिट गईं तो एल वी प्रसाद की विदाई (1974) ने उनकी आगे की राह आसान कर दी।

रितिक रोशन

जीतेंद्र की तरह कई अभिनेता कम फिल्म करने में यकीन नहीं रखते हैं। आज के दौर अक्षय कुमार हर वर्ष कम से कम चार फिल्म करने में विश्वास रखते हैं। महामारी के दौरान उनकी लक्ष्मी (2020), बेल बॉटम, सूर्यवंशी और अतरंगी रे (2021) जैसी फिल्में थिएटर या ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हुईं। उनकी बच्चन पाण्डेय और पृथ्वीराज जैसी फिल्में फिलहाल बन कर तैयार हैं। पिछले सप्ताह उन्होंने इमरान हाशमी के साथ सेल्फी नामक फिल्म की शुरूआत की।

इस सहस्त्राब्दी की शुरुआत में अक्षय की अनेक फिल्में बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप हो गई थीं, लेकिन बाद में उन्होंने मजबूत कथानक पर आधारित सीमित बजट की फिल्मों में काम करना शुरू किया तो उन्हें उम्मीद से ज्यादा सफलता मिली। उनका मानना है कि अन्य कलाकारों की तरह वह किसी एक किरदार पर वर्षों तक काम नहीं कर सकते हैं।

अमिताभ ने दूसरी पारी में ज्यादा फिल्में करने का फैसला किया

अमिताभ ने दूसरी पारी में ज्यादा फिल्में करने का फैसला किया

अक्षय की तरह अमिताभ बच्चन भी अब कम फिल्मों में काम करने में विश्वास नहीं रखते, लेकिन एक समय ऐसा भी आया था जब उनके हाथ में कोई भी फिल्म नहीं थी। नब्बे के दशक में वे एक सुबह निर्माता-निर्देशक यश चोपड़ा के घर काम मांगने पहुंच गए। उस वक्त यश के पुत्र आदित्य चोपड़ा दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे (1995) की अपार सफलता के बाद अपनी अगली फिल्म के निर्माण में जुटे थे। पिता के कहने पर आदित्य ने अमिताभ के लिए मोहब्बतें (2000) में एक जानदार भूमिका लिखी और उनके करिअर की दूसरी पारी शुरू हो गई। इससे पूर्व 1992 में खुदा गवाह के बाद अमिताभ ने फिल्मों से ब्रेक ले लिया था और अमेरिका रहने चले गए थे। लेकिन, उन्हें शायद जल्द ही एहसास हो गया कि उन्हें बॉलीवुड नहीं छोड़ना चाहिए था। वहां से लौटने के बाद उनकी अधिकतर फिल्में पिट गईं और उन्हें हारकर यश चोपड़ा के घर जाना पड़ा जिनके साथ उन्होंने पूर्व में दीवार (1975), कभी-कभी (1976), त्रिशूल (1977) और सिलसिला (1981) जैसी फिल्में की थीं। शायद यही वजह थी कि सफलता के दूसरे दौर में उन्होंने फिल्मों की संख्या कम करने में विश्वास नहीं रखा। उम्र के इस पड़ाव पर भी आज काम उनके लिए जीवन है और उनकी छह से अधिक फिल्में अभी बन रही हैं।

इसके बावजूद, बॉलीवुड में ऐसे अभिनेताओं की भी कमी नहीं रही है जिन्होंने एक वक्त में एक ही फिल्म में काम किया है। आमिर खान आज भी इसमें विश्वास करते हैं और फिलहाल उनकी सिर्फ एक फिल्म, लाल सिंह चड्ढा फ्लोर पर है। ठग्स ऑफ़ हिन्दोस्तान (2018) के फ्लॉप होने के बावजूद उनकी रणनीति में कोई बदलाव नहीं आया है। कुछ ऐसी ही रणनीति हृतिक रोशन की भी रही है और वे एक समय में एक-दो फिल्मों से अधिक में काम नहीं करते। वर्ष 2019 में सुपर 30 और वॉर के सुपरहिट होने के बाद से उनकी लोकप्रियता शिखर पर है। हृतिक और रणबीर कपूर जैसे सितारों का मानना है कि एक साथ कई फिल्मों में काम करने से वे अपने किरदारों के साथ न्याय नहीं कर सकते, भले ही ऐसा करने से उन्हें करिआर में कितने भी जोखिम का सामना क्यों न करना पड़े। इस बीच, हृतिक और रणबीर की कई फिल्में फ्लॉप हुई हैं लेकिन उन्होंने असुरक्षा की भावना में अंधाधुंध फिल्में साइन करने से पूरी तरह परहेज किया।   

मिस्टर परफेक्शनिस्ट आमिर भी करते हैं चुनिंदा फिल्में

मिस्टर परफेक्शनिस्ट आमिर भी करते हैं चुनिंदा फिल्में

फिल्म इंडस्ट्री के इतिहास में कई स्टार-अभिनेता रहे हैं जिन्होंने ऐसी ही रणनीति अपनाई। दिलीप कुमार ने अपने करिअर में बमुश्किल 65 फिल्में कीं, लेकिन फिल्मों में उन्होंने अपने अभिनय की अमिट छाप छोड़ी। फिरोज खान ने 1980 की सबसे सफल फिल्म कुर्बानी के बाद अगले दस साल तक सिर्फ अपनी बनाई फिल्मों में ही काम किया। दूसरी ओर, गोविंदा जैसे कलाकार भी हुए जिन्होंने शुरूआती सफलता के बाद एक साथ 70 फिल्में साइन कर लीं। ऐसा नहीं है कि वे प्रतिभावान नहीं हैं लेकिन शायद ‘ओवरएक्सपोजर’ के कारण आज उनके पास कोई फिल्म नहीं है। संभवतः इसी वजह से आमिर खान, रणबीर और हृतिक जैसे सितारे कम लेकिन बेहतरीन फिल्मों में काम करके अपने लिए एक खास मुकाम बना कर अपना करिश्मा बरकरार रखना चाहते हैं। यह बात और है कि कई कलाकार ऐसे भी हुए हैं जिनके लिए फिल्मों के हिट या फ्लॉप होने से या अधिक फिल्मों में काम करने से कोई फर्क नहीं पड़ा। मसलन राजकुमार अपनी हर फ्लॉप फिल्म के बाद अपनी फीस एक लाख रुपये बढ़ा देते थे। जब उनके हैरान सेक्रेटरी उनसे कारण पूछते थे तो उनका जवाब होता था, “जानी, हमारी फिल्म भले ही फ्लॉप हुई हो, हम फ्लॉप नहीं हुए।”

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