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बिहार: सम्राट अशोक पर छिड़ी रार

इस वर्ष साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत दया प्रकाश सिन्हा के नाटक में सम्राट अशोक के अपमान पर जदयू और भाजपा में ठनी
विवाद के तेवरः (बाएं से) दया प्रकाश सिन्हा, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल और जदयू नेता उपेंद्र कुशवाहा

बिहार में सत्तारूढ़ जनता दल-यूनाइटेड और गठबंधन सरकार में उसकी सहयोगी भारतीय जनता पार्टी के बीच किसी न किसी मुद्दे पर लगातार टकराव होता रहा है, लेकिन इस बार दोनों पार्टियां एक पुरस्कृत पुस्तक को लेकर आमने-सामने हैं। इस वर्ष साहित्य अकादमी ने दया प्रकाश सिन्हा लिखित नाटक सम्राट अशोक को हिंदी की सर्वश्रेष्ठ कृति के रूप में सम्मान दिया, जो जदयू को बेहद नागवार गुजरा है। पार्टी का कहना है कि सिन्हा की पुस्तक में पाटलिपुत्र के मौर्यकालीन सम्राट अशोक के संबंध में घोर आपत्तिजनक टिप्पणियां की गई हैं। जदयू नेताओं ने यह भी आरोप लगाया है कि नाटककार ने अशोक की तुलना मुगल बादशाह औरंगजेब से की है। उन्होंने केंद्र सरकार से न सिर्फ इस किताब पर प्रतिबंध लगाने, बल्कि सिन्हा से साहित्य अकादमी और पद्मश्री सहित तमाम अवॉर्ड और सम्मान फौरन वापस लेने की मांग कर डाली है। यह भी आरोप है कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी सिन्हा भाजपा की सांस्कृतिक प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय संचालक हैं।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सिन्हा से क्रमश: पद्मश्री सम्मान वापस लेने और भाजपा से निष्कासन की मांग करते हुए जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह का कहना है कि प्रियदर्शी सम्राट अशोक मौर्य वृहत-अखंड भारत के निर्माता थे। उन्होंने कहा, “उनके बारे में अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल असहनीय है, अक्षम्य है। ऐसा व्यक्ति विकृत विचारधारा से प्रेरित है।”

ललन के अनुसार, चक्रवर्ती सम्राट ‘प्रियदर्शी अशोक मौर्य’ का स्वर्णिम काल मानवता और लोकसमता के लिए विश्व भर में जाना जाता है। “सम्राट अशोक मौर्य और बिहार के साथ कोई खिलवाड़ करे, सच्चे भारतीय कभी बर्दाश्त नहीं करेंगे। उनके द्वारा स्थापित अशोक स्तंभ और अशोक चक्र राष्ट्रीय प्रतीक के साथ विश्वविख्यात ऐतिहासिक धरोहर भी है। अशोक के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल करने वाला व्यक्ति किसी सम्मान के लायक नहीं।”

जदयू को यह भी नागवार गुजरा कि सिन्हा ने हाल में एक हिंदी दैनिक के साथ साक्षात्कार में अशोक की तुलना कथित रूप से औरंगजेब के साथ की। पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि वृहत-अखंड भारत के निर्माता अशोक महान के लिए एक पार्टी विशेष के पदाधिकारी द्वारा अभद्रतापूर्वक अपशब्दों का इस्तेमाल निंदनीय है। उन्होंने कहा, “अगर पार्टी उन पर तुरंत कार्रवाई नहीं करती है, तो इससे उस पार्टी को ही नुकसान होगा।”

मामले को तूल पकड़ता देख भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी ने कहा कि 86 वर्षीय सिन्हा 2010 से किसी राजनीतिक दल में नहीं हैं और उनके एक इंटरव्यू को गलत ढंग से प्रचारित कर एनडीए को तोड़ने की कोशिश की गई है। “सम्राट अशोक पर जिस लेखक (सिन्हा) ने आपत्तिजनक टिप्पणी की, उनका आज न भाजपा से कोई संबंध है और न उनके बयान को बेवजह तूल देने की जरूरत है। भाजपा का राष्ट्रीय स्तर पर कोई सांस्कृतिक प्रकोष्ठ नहीं है।”

उन्होंने कहा, “सम्राट अशोक पर आधारित उस पुरस्कृत नाटक में उनकी महानता की चर्चा भरी पड़ी है, औरंगजेब का कहीं जिक्र तक नहीं, लेकिन दुर्भाग्यवश, इस मुद्दे को तूल दिया जा रहा है। सिन्हा ने जब एक ताजा इंटरव्यू में सम्राट अशोक के प्रति आदर भाव प्रकट करते हुए सारी स्थिति स्पष्ट कर दी, तब एनडीए के दलों को इस विषय का यहीं पटाक्षेप कर परस्पर बयानबाजी बंद कर देनी चाहिए।”

सुशील के अनुसार, सिन्हा के गंभीर नाट्य लेखन और सम्राट अशोक की महानता को नई दृष्टि से प्रस्तुत करने के लिए उन्हें साहित्य अकादेमी जैसी स्वायत्त संस्था ने पुरस्कृत किया। “यही अकादेमी दिनकर, अज्ञेय तक को पुरस्कृत कर चुकी है। साहित्य अकादेमी के निर्णय को किसी सरकार से जोड़ कर देखना उचित नहीं।”

उन्होंने यह भी दावा किया कि 2015 में भाजपा ने बिहार में पहली बार सम्राट अशोक की 2320वीं जयंती बड़े स्तर पर मनाई और उसकी पहल पर बिहार सरकार ने अप्रैल में उनकी जयंती पर सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की। “सम्राट अशोक का भाजपा सदा सम्मान करती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने उनकी स्मृति में डाक टिकट जारी किया था। वे दूसरे धर्मों का सम्मान करने वाले उदार सम्राट थे, इसलिए अशोक स्तंभ आज भी हमारे राष्ट्रीय गौरव प्रतीक है।”

उन्होंने कहा, “हम अहिंसा और बौद्ध धर्म के प्रचारक सम्राट अशोक की तुलना मंदिरों को तोड़ने और लूटने वाले औरंगजेब से कभी नहीं कर सकते। अशोक ने स्वयं बौद्ध धर्म स्वीकार किया, लेकिन उनके राज्य में जबरन धर्मांतरण की एक भी घटना नहीं हुई। इस साल 9 अप्रैल को बिहार सरकार ने सम्राट अशोक जयंती पर सार्वजनिक अवकाश दिया है।”

इसके बाद भी विवाद नहीं थमा तो भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय कुमार जायसवाल ने पटना में सिन्हा पर धार्मिक भावना आहत करने का मामला दर्ज करा दिया। जायसवाल ने अपनी शिकायत में कहा कि सिन्हा समाज में नफरत फैला रहे हैं और झूठी जानकारी दे रहे हैं कि वे भाजपा के सांस्कृतिक प्रकोष्ठ के संयोजक हैं। लेकिन जायसवाल के इस कदम को जदयू ने महज ‘आईवाश’ करार किया। कुशवाहा ने जायसवाल से कहा, “जले पर नमक मत छिड़किए। सीधे-सीधे अवॉर्ड वापसी की हमारी मांग का समर्थन कीजिए, वरना ऐसे दिखावटी मुकदमे का अर्थ लोग खूब समझते हैं।” 

कुशवाहा ने कहा, “ये दोनों बातें एक साथ कैसे संभव हैं कि एक तरफ सम्राट अशोक को बहुत अभद्रता से अपमानित करने वाले को पुरस्कृत किया जाता है और जब उस शख्स का कारनामा सामने लाया जाता है, तो लोगों को बरगलाने के लिए उन पर मुकदमा भी करा दिया जाता है?”

हालांकि सिन्हा ने स्वयं इस बात पर बल दिया कि उनके नाटक में औरंगजेब का कोई जिक्र नहीं है, लेकिन जदयू नेताओं के तेवर कम नहीं हुए हैं। पार्टी प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि जिनके नाट्य लेखन को महान बताया जा रहा, उन्होंने सम्राट अशोक पर आधारित नाट्य के पृष्ठ संख्या-25 में प्रियदर्शी अशोक की लोक कल्याणकारी ऐतिहासिक छवि को खंडित कर क्रूर-कामुक, अत्याचारी और हत्यारे वाली मिथकीय छवि में परिवर्तित किया है जो इतिहास को मिथक और मिथक को इतिहास बनाने का सुनियोजित प्रयास है। उन्होंने नाटक के दृश्य-10 उद्धृत करते हुए कहा, “कामाशोक, चंडाशोक और धम्मापशोक एक के बाद एक नहीं आए, वे तीनों, उसके शरीर में एक साथ, लगातार, जीवनपर्यन्त जीवित रहे, वह कामाशोक केवल नवायु में ही नहीं था... वह आजीवन काम से मुक्ति नहीं पा सका।”

नीरज ने कहा कि (भाजपा का) सिन्हा के बचाव में आना विचारधारा की लड़ाई का अंग हो सकता है, लेकिन राजनीतिक गठबंधन का नहीं। “ऐसे लिखने वाले को ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार 2021’ दिया जाना ही सम्राट अशोक के प्रति अपमान और तिरस्कार का भाव दिखता है। लिहाजा, लेखक को दिए गए पुरस्कार की वापसी होनी ही चाहिए।”

गौरतलब है कि प्रदेश में पिछले कुछ वर्षों में कुछ दलों और संगठनों ने यह दावा किया है कि सम्राट अशोक कोयरी (कुशवाहा) जाति के थे, जिसकी संख्या वर्तमान बिहार में आठ से नौ प्रतिशत है। हालांकि इतिहासकारों के पास इस संबंध में कोई भी प्रामाणिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है, प्रदेश में मौर्यकालीन सम्राटों की जाति को लेकर राजनीति होती रही है। अब यह जदयू और भाजपा के बीच बड़ा मुद्दा बन गया है। 

राजनैतिक विश्लेषकों के अनुसार, सम्राट अशोक पर आधारित नाटक के कारण उपजे विवाद ने जदयू और भाजपा के बीच की खाई को और चौड़ा कर दिया है, जिसका असर उनके संबंधों पर पड़ रहा है। 2020 विधानसभा चुनाव के बाद से दोनों पार्टियों के नेताओं का मनमुटाव कई मुद्दों पर सामने आया है। पिछले चुनाव से पूर्व जदयू गठबंधन में बड़े भाई की भूमिका में थी, लेकिन अब भाजपा उससे बड़ी पार्टी बन गई है। इस कारण कई मुद्दों पर उनके बीच टकराव हुए हैं।

हाल के दिनों में कई भाजपा नेताओं ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की महात्वाकांक्षी शराबबंदी योजना के कार्यान्वन को लेकर कई सवाल उठाए हैं, जिन्हें जदयू नेताओं ने गठबंधन धर्मं के प्रतिकूल बताया है। जदयू ने अब उत्तर प्रदेश में भाजपा से सीट बंटवारे पर ‘सकारात्मक पहल’ न मिलने के कारण अपने ही दमखम पर चुनाव लड़ने का निर्णय किया है, जिसे राजनीतिक हलकों में दोनों दलों के बीच निरंतर बढ़ती दूरी के रूप में देखा जा रहा है।

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