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समीकरण बदलने के संकेत

उपचुनाव के नतीजे सत्तारूढ़ भाजपा और बसपा के लिए झटका, सपा और कांग्रेस को मिली नई ऑक्सीजन
बदलावः (बाएं) योगी आदित्यनाथ, (बीच में) सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, (दाएं) बसपा प्रमुख मायावती

सत्ताधारी भाजपा के लिए विधानसभा की 11 सीटों पर उपचुनाव के नतीजे शुभ संकेत नहीं हैं। पार्टी ने भले सहयोगी अपना दल के साथ आठ सीटें जीत ली हों, लेकिन तीन सीटें सपा के हाथों गंवाना राज्य के राजनैतिक-सामाजिक समीकरण के लिहाज से मायने रखता है। पार्टी के वोट प्रतिशत में गिरावट को भी इसी नजरिए से देखा जा रहा है। इससे भी बुरी खबर ये नतीजे बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के लिए लेकर आए, जो पहली बार उपचुनाव लड़ी और न सिर्फ अपने दावे वाली इकलौती सीट गंवा बैठी, बल्कि वोट प्रतिशत भी घटा बैठी। इसके विपरीत ये नतीजे सपा और कांग्रेस के वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी के रूप में भी खुशखबरी लेकर आए। इससे प्रदेश के समीकरण और लोगों के बीच प्रभावी मुद्दों पर भी नया फोकस बढ़ गया है।

ये नतीजे आदित्यनाथ सरकार के लिए भी सबक हैं। भाजपा के मत प्रतिशत में गिरावट से साफ है कि राज्य सरकार के दावों और आंकड़ों पर लोगों का भरोसा कम हो रहा है। प्रदेश में बेरोजगारी, कानून व्यवस्था, बिजली की बढ़ी दरें, किसानों का बकाया गन्ना मूल्य भुगतान और सड़कों की हालत को लेकर सरकार के दावे सच्चाई से दूर हैं। उपचुनावों में भाजपा का मत प्रतिशत लोकसभा चुनाव 2019 की तुलना में 13.92 प्रतिशत घटा है। बसपा का लोकसभा चुनाव 2019 की तुलना में वोट प्रतिशत 2.24 और विधानसभा चुनाव 2017 की तुलना में 5.18 प्रतिशत घटा है। इसके विपरीत कांग्रेस का मत प्रतिशत पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में लगभग दो गुना बढ़ा है। कांग्रेस को 11.49 प्रतिशत वोट मिले हैं। सपा को 22.61 प्रतिशत, बसपा को 17.02 प्रतिशत वोट मिले। जाहिर है, भाजपा ने जिन राष्ट्रीय मुद्दों को धार देकर चुनाव की रणनीति बनाई थी, वह लोगों के गले नहीं उतरे। हालांकि भाजपा ने चुनाव प्रबंधन में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। हर सीट पर मंत्रियों के साथ छह-छह विधायकों को लगाया गया था। जातिगत और क्षेत्रीय समीकरण के हिसाब से भी रणनीति तैयार की गई थी। पार्टी के मीडिया विभाग से जुड़े एक पदाधिकारी बताते हैं कि रामपुर तो हमें पता था, नहीं जीत पाएंगे, लेकिन जैदपुर और जलालपुर में हार की आशा नहीं थी। हालांकि इस बारे में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने आउटलुक  से कहा, “मेरा काम है कर्म करना। भाजपा कार्यकर्ता प्रफुल्लित रहे, उत्साह में रहे। उसके लिए हमें परिश्रम करना है। विपक्ष क्या कर रहा है, हमें इससे मतलब नहीं है।”

पिछले तीन चुनावों से लगातार मात खा रही सपा के लिए नतीजों ने ऑक्सीजन दे दिया। 2017 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से गठबंधन और 2019 में लोकसभा चुनाव से पहले बसपा से गठबंधन के हश्र से नेताओं ने सीख ली है। बसपा से गठबंधन टूटने का लाभ सपा को मिल रहा है। सपा ने हाल ही में बसपा के करीब एक दर्जन से ज्यादा बड़े नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल किया है। बसपा का गढ़ कही जाने वाले अंबेडकरनगर की जलालपुर सीट पर अगर सपा ने जीत दर्ज की है तो इसमें बसपा से सपा में आए नेताओं का बड़ा योगदान है। ऐसे ही रामपुर में सांसद आजम खां की पत्नी को जिता कर लोगों ने यह संदेश दिया कि वे आजम खां के खिलाफ सरकार की कार्रवाई से इत्तेफाक नहीं रखते।

उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार

जैदपुर सीट पर 2017 में विधानसभा चुनाव में भाजपा को 43.84 प्रतिशत वोट मिले थे और कांग्रेस 32.32 प्रतिशत वोटों के साथ दूसरे नंबर पर थी। हालांकि इस बार सपा ने 35.28 प्रतिशत वोटों के साथ जीत दर्ज की है, जबकि भाजपा को 33.40 प्रतिशत वोटों के साथ दूसरे पायदान पर रहना पड़ा। बाराबंकी जिले की जैदपुर सीट पर त्रिकोणीय लड़ाई होने का लाभ सपा को मिला। यहां कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य पीएल पुनिया के बेटे तनुज पुनिया करीब 20 प्रतिशत वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहे। हालांकि उनके समर्थन में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी आए थे और उन्होंने योगी सरकार पर जमकर निशाना साधा था। 2017 के विधानसभा चुनाव से ही गठबंधन की राह पर चल रही सपा ने अब किसी भी चुनाव में गठबंधन से तौबा कर लिया है। पार्टी के ही एक नेता कहते हैं कि सपा को अंतरकलह से उबरना होगा। परिवार का कलह पार्टी पर हावी है। पार्टी के मुखिया हमेशा कुछ खास लोगों के साथ घिरे रहते हैं। इसमें भी बदलाव की जरूरत है।

सपा के राष्ट्रीय सचिव राजेंद्र चौधरी ने आउटलुक से कहा कि भाजपा की अलोकतांत्रिक कार्यशैली और जनविरोधी नीतियों के खिलाफ यह जनादेश है। हम तीन स्थानों पर विजयी हुए और पांच सीटों पर दूसरे नंबर पर रहे। बसपा सुप्रीमो मायावती ने नतीजों के बाद ट्वीट किया कि ‘इन उपचुनावों में बसपा के लोगों का मनोबल गिराने के लिए भाजपा ने सपा को कुछ सीटें जिताने और बसपा को एक भी सीट न जीतने देने का षड्यंत्र किया। इसे हमारी पार्टी के लोग अच्छी तरह से समझ रहे हैं। वे उनके षड्यंत्र को फेल करने के लिए जी-जान से जरूर जुटेंगे।’

उधर, कांग्रेस भले अपना खाता न खोल सकी हो, लेकिन नतीजों को लेकर वह भी खासा उत्साहित है। पार्टी का वोट 6.25 प्रतिशत से बढ़कर 11.49 प्रतिशत पर जा पहुंचा। पार्टी सहारनपुर की गंगोह और कानपुर की गोविन्दनगर सीट पर दूसरे नंबर पर रही है। छह सीटों गंगोह, रामपुर, लखनऊ कैंट, गोविन्दनगर, प्रतापगढ़ और जैदपुर में पार्टी बसपा से आगे रही है। पार्टी नेता उपचुनाव में मिले नतीजों को प्रियंका गांधी की सक्रियता का परिणाम मानते हैं। उत्तर प्रदेश की प्रभारी राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने उपचुनाव के लिए कई महीने पहले प्रभारी नेताओं की टीम बनाई। प्रत्याशी चयन से लेकर प्रबंधन तक में उन्हें लगाया गया। समय से प्रत्याशी चयन और नए युवा चेहरों को तरजीह वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी की बड़ी वजह मानी जा रही है।

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार उर्फ लल्लू ने आउटलुक को बताया कि सहारनपुर की गंगोह सीट पर हमारा प्रत्याशी जीत रहा था, लेकिन सरकार के इशारे पर अधिकारियों ने उसे हरवाया। हमने चुनाव आयोग में भी इसकी शिकायत की। आने वाले समय में हम और मजबूती से सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ लड़ाई लड़ेंगे।

10 लोकसभा सीट जीतकर यूपी की राजनीति में संजीवनी पाने वाली बसपा के लिए उपचुनाव किसी झटके से कम नहीं है। सपा से गठबंधन तोड़ने के बाद पहली बार विधानसभा उपचुनाव अपने दम पर लड़ने वाली बसपा के हाथ से अंबेडकरनगर की जलालपुर सीट भी निकल गई। यहां से उसे दूसरे स्थान पर रहकर ही संतोष करना पड़ा। गठबंधन टूटने के बाद बसपा ने अपने दम पर अकेले उपचुनाव लड़ने के लिए सभी 11 सीटों पर उम्मीदवार उतारे। बसपा सुप्रीमो मायावती ने प्रत्येक सीट पर मंडल भर के पदाधिकारियों को लगाया, लेकिन लगता है, मतदाताओं को रिझाने में बसपाई फेल हो गए। इतना ही नहीं, विधानसभा उपचुनाव में बसपा का मत प्रतिशत सपा से पांच प्रतिशत कम हो गया। सपा को जहां कुल 22.57 प्रतिशत वोट मिले तो वहीं बसपा को मात्र 17 प्रतिशत वोट पर ही संतोष करना पड़ा।

बसपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधींद्र भदौरिया ने आउटलुक को बताया कि धीरे-धीरे जनता का रुख बदलेगा और जनता बहनजी को फिर से स्वीकार करेगी। बाबा साहेब भीम राव आंबेडकर यूनिवर्सिटी के राजनीतिशास्‍त्र के मुखिया डॉ. शशिकान्त पांडेय ने आउटलुक को बताया कि उपचुनाव नतीजे भाजपा के लिए खतरे की घंटी की तरह हैं। आवारा पशुओं की स्थिति, कानून-व्यवस्था, बेरोजगारी, मंदी, जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार सहित कई ऐसे मुद्दे हैं, जो सरकार के लिए चुनौती हैं। इमोशनल कार्ड खेलकर आप कुछ दिन तक चला सकते हैं, लेकिन लांग टर्म में नहीं। अब देखना है कि ये नतीजे सरकार और दलगत समीकरणों में क्या फर्क लाते हैं।

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