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नई तकनीक ने आसान की लड़ाई

खतरा तेजी से बढ़ा मगर वायरस से बचाव और संक्रमण की जांच में तेजी लाने जैसे कार्यों में हो रहा प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल
जांच में सुरक्षा और इजाफे के हिसाब से नई तकनीक से मिली मदद

कोरोनावायरस का संक्रमण नियंत्रित करने के लिए इस वर्ष मार्च के अंत में लॉकडाउन लागू हुआ, तो हर मर्ज के मरीजों के लिए डॉक्टर तक पहुंचना मुश्किल हो गया। तब बेंगलूरू में रहने वाले सॉफ्टवेयर इंजीनियर टीएस राघवेंद्र प्रसाद के मन में शहरवासियों की मदद का ख्याल आया और उन्होंने ‘स्टेपवन’ की शुरुआत की। यह ऐसा ऑनलाइन प्लेटफॉर्म था जहां लोग अलग-अलग बीमारियों के डॉक्टर से बात करके मुफ्त में सलाह ले सकते थे। चंद रोज में यह प्लेटफॉर्म लोकप्रिय हो गया तो महाराष्ट्र और पंजाब की सरकारों ने उनसे संपर्क किया और अपने यहां भी इसे शुरू करने की इच्छा जताई। आज 13 राज्यों में 7,000 से ज्यादा डॉक्टर ‘स्टेपवन’ प्लेटफॉर्म पर सेवाएं दे रहे हैं। राघवेंद्र ने आउटलुक को बताया कि अभी तक 50 लाख से ज्यादा लोग ‘स्टेपवन’ पर कॉल कर चुके हैं और पांच लाख से ज्यादा लोगों को टेलीकंसल्टिंग मुहैया कराई गई है। ब्रिटेन में मार्च-अप्रैल के दौरान स्वास्थ्य सुविधाएं न मिलने से 16,000 लोगों की मौत हो गई थी। भारत में ऐसा कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।

राघवेंद्र जैसे अनेक लोग हैं जो टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से इस अभूतपूर्व संकट से लड़ने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि कोरोनावायरस से संक्रमित लोगों और इससे होने वाली मौतों के मामले में भारत दुनिया में चौथे स्थान पर पहुंच गया है। यहां अब तक 25 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं और मरने वालों की संख्या 50,000 पार कर गई है। ट्रेंड देखकर लगता है कि महानगरों में खतरनाक समय निकल चुका है, लेकिन छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में ज्यादा मामले आ रहे हैं।

टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कोरोनावायरस से बचाव के तरीके ढूंढ़ने के साथ-साथ संक्रमण की जांच में तेजी लाने और जांच करने वालों की सुरक्षा जैसे कार्यों में अधिक हो रहा है। ऐसा करने वालों में आइआइटी और आइआइएससी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के इन्क्यूबेटर से निकली स्टार्टअप और स्थापित, दोनों तरह की कंपनियां शामिल हैं।

कोविड-19 से सबसे अधिक संक्रमित होने का खतरा चिकित्साकर्मियों को रहता है। भारत में इस महामारी से अब तक 200 डॉक्टरों की जान जा चुकी है। अमेरिका में भी 900 से ज्यादा चिकित्साकर्मियों ने जान गंवाई है। शुरू में इनके लिए पीपीई किट की भी काफी कमी थी। तब नैनोटेक्नोलॉजी स्टार्टअप लॉग 9 मैटेरियल्स के संस्थापक और सीईओ अक्षय सिंघल को लगा कि अगर किट और ग्लव्स जैसी चीजों को पूरी तरह सैनिटाइज किया जाए तो उनका दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे उनकी उपलब्धता तो बढ़ेगी ही, खर्च भी कम आएगा। यही सोच कर अप्रैल के मध्य में उन्होंने ‘कोरोनाओवन’ लांच किया। अक्षय के अनुसार इस बॉक्स के भीतर कोई भी चीज रखने पर अल्ट्रावॉयलेट (यूवी) किरणें सभी तरह के वायरस और बैक्टीरिया को नष्ट कर देती हैं। इसमें बाजार से लाया गया कोई भी सामान, ज्वैलरी, पैसे आदि सब कुछ सैनिटाइज किया जा सकता है। पुलिस, सेना, और अन्य सशस्त्र बलों के साथ-साथ एम्स जैसे अस्पतालों में भी इसका इस्तेमाल हो रहा है। बेंगलूरू और हैदराबाद एयरपोर्ट पर कन्वेयर और हैंडरेल में ये डिवाइस लगाए गए हैं। हैंडरेल जब डिवाइस के अंदर से गुजरती है तो उसका लगातार सैनिटाइजेशन होता रहता है। कंपनी फ्रांस और कनाडा समेत कई देशों को इसका निर्यात भी कर रही है।

लॉग 9 मैटेरियल्स, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (आइआइएससी) बेंगलूरू के साथ मिल कर और भी रिसर्च कर रही है। वैसे, आइआइएससी के इन्क्यूबेटर, सोसायटी फॉर इनोवेशन ऐंड डेवलपमेंट के पांच स्टार्टअप कोविड-19 से जुड़े प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। सोसायटी में आंत्रप्रेन्योरशिप सेल के चेयरमैन सीएस मुरली ने बताया कि पीपीई किट और चिकित्साकर्मियों के इस्तेमाल की दूसरी चीजों को नष्ट करना बड़ी समस्या है, क्योंकि उनसे वायरस फैलने का खतरा बहुत अधिक रहता है। उन्हें नष्ट करने से पहले अगर यूवी किरणों से गुजारा जाए तो इन्फेक्शन का खतरा बहुत कम हो जाएगा। उन्होंने बताया कि स्टार्टअप सिकल इनोवेशन ने इसके लिए एक डिवाइस बनाया है।

प्रयोगशाला में कोरोना संक्रमण की जांच करने वालों के संक्रमित होने का काफी खतरा रहता है। आइआइएससी से जुड़ी अजूका लाइफसाइंसेज ने ऐसे रिएजेंट तैयार किए हैं जिनसे वायरस निष्क्रिय हो जाते हैं। मुरली के अनुसार, इससे जांच करने वाले चिकित्साकर्मियों के संक्रमित होने का खतरा नहीं रहता। एक और स्टार्टअप माइक्रोएक्स ने ऐसी तकनीक विकसित की है जिससे बिना लक्षण वाले लोगों में भी वायरस का पता चल सकता है। दरअसल, खून में ऑक्सीजन का स्तर कम होना भी संक्रमण की एक निशानी है। इस तकनीक से खून का नमूना लेकर उसकी जांच की जाती है। ऑक्सीजन का स्तर कम हुआ तो वह व्यक्ति संक्रमित हो सकता है।

संक्रमण की जांच के लिए आरटी पीसीआर टेस्ट की सुविधा बड़े अस्पतालों और चुनिंदा लैब में ही है। दूसरी जगहों से सैंपल वहां पहुंचाने और जांच करने में काफी समय निकल जाता है। अनेक ऐसी घटनाएं सामने आई हैं कि जांच रिपोर्ट आने से पहले ही मरीज की मौत हो गई। स्टार्टअप षणमुख इनोवेशन ने इसका भी समाधान निकाला है। इसने तीन वैन तैयार किए हैं। एक वैन नमूना संग्रह करने के लिए है। दूसरे वैन में नमूनों को जांच के लिए तैयार किया जाता है और तीसरे वैन में आरटी पीसीआर टेस्ट किया जाता है। कंटेनमेंट जोन में वैन ले जाकर जांच का यह तरीका काफी कारगर साबित हो रहा है।

कुछ दिनों पहले रिपोर्ट आई थी कि एन-95 मास्क पूरी तरह सुरक्षित नहीं हैं। अगर संक्रमित व्यक्ति इसे पहनता है तो उससे दूसरे लोगों में संक्रमण फैल सकता है। लेकिन आइआइटी मद्रास के इन्क्यूबेटर में स्थापित स्टार्टअप एयर ओके टेक्नोलॉजीज ने पूरी तरह सुरक्षित एन-95 और एन-99 मास्क बनाने का दावा किया है। इसके संस्थापक और सीईओ वी. दीक्षित वारा प्रसाद ने बताया कि इस मास्क में एगापा (ईजीएपीए) टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया है। मास्क में पांच लेयर होते हैं। इनमें एक लेयर एगापा का होता है जो कीटाणुओं को नष्ट कर देता है। कंपनी ने इस टेक्नोलॉजी का पेटेंट भी कराया है।

संक्रमण के शुरुआती दिनों में ही विशेषज्ञों ने चेताया था कि सेंट्रल एयर कूलिंग सिस्टम से कोरोनावायरस के फैलने का खतरा है। एयरीफिक सिस्टम्स ने इसका भी समाधान निकाला। इसने ‘यूवी हील सेफ एयर’ नाम से एक डिवाइस बनाई जिससे सेंट्रल एयर कूलिंग को सुरक्षित बनाया जा सकता है। इस डिवाइस से हवा में मौजूद कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। एयरीफिक के डायरेक्टर अंकित शर्मा ने बताया कि एयर कूलिंग सिस्टम में जहां से डक्ट में हवा का प्रवेश होता है, वहीं इस उपकरण को लगाया जाता है। इससे डक्ट में कीटाणु-मुक्त हवा जाती है। इसे जरूरत के हिसाब से होटल, ऑफिस, फैक्ट्री, एयरपोर्ट, मॉल के लिए डिजाइन किया जा सकता है।

एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले डॉ. कनव कथोल की स्टार्टअप कंपनी पिंक टेक ने डिजिटल सैनिटाइजेशन एश्योरेंस सिस्टम नामक डिवाइस बनाया है जिससे पता चलता है कि किसी व्यक्ति के हाथ वायरस मुक्त हैं या नहीं। डॉ. कथोल ने बताया कि इस सिस्टम को ऑफिस या होटल जैसी जगहों पर बॉयोमेट्रिक सिस्टम से भी जोड़ा जा सकता है। अगर किसी के हाथ पर वायरस या बैक्टीरिया है तो दरवाजा नहीं खुलेगा। डॉ. कथोल के अनुसार इसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आइओटी) दोनों का इस्तेमाल हुआ है। हमारे हाथ से भाप निकलती है और आइओटी तकनीक से बना सेंसर उसको पकड़ता है। इसे बनाने में सरकारी संस्था बॉयोटेक्नोलॉजी इंडस्ट्री रिसर्च असिस्टेंस काउंसिल (बाइरैक) ने भी मदद की है। इसी आइआइटी बॉम्बे के ग्रेजुएट अतुल कपूर के स्टार्टअप सेंसबॉयो ने ऐसा ऐप बनाया जिससे परिवार के सभी सदस्यों की सेहत पर नजर रखी जा सकती है।

स्टार्टअप के अलावा स्थापित कंपनियों ने भी कोरोना से लड़ने में योगदान किया है। कोई व्यक्ति संक्रमित है या नहीं, यह देखने के लिए आरटी पीसीआर टेस्ट को ही सबसे भरोसेमंद माना जाता है। शुरुआती दिनों में टेस्ट किट की काफी किल्लत थी। तब मेडिकल टेक्नोलॉजी कंपनी ट्रिविट्रॉन आगे आई और महज 500 रुपये में टेस्ट किट उपलब्ध कराए। कंपनी के सीएमडी डॉ. जीएसके वेलु ने बताया कि ट्रिविट्रॉन के अब तक 50 लाख से ज्यादा टेस्ट किट बिक चुके हैं। इनका निर्यात भी शुरू किया गया है।

संस्थाएं दूसरे तरीकों से भी इस महामारी से लड़ने में योगदान कर रही हैं। मसलन, पीरामल फाउंडेशन ग्रामीण इलाकों में लोगों की मदद कर रहा है। इन इलाकों में स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर पहले ही कमजोर है। पीरामल स्वास्थ्य के वाइस प्रेसिडेंट और चीफ टेक्नोलॉजी अफसर देवेश वर्मा ने बताया कि उनकी संस्था टेलीमेडिसन एेप के जरिए सात राज्यों (असम, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश) के 25 आकांक्षी जिलों में आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की मदद से लोगों को सेवाएं मुहैया करा रही है। कोविड के अलावा दूसरी बीमारियों से ग्रस्त लोगों की भी मदद की जा रही है। उनकी संस्था के पास करीब 10 लाख कॉल आई हैं।

प्रौद्योगिकी ने निश्चित रूप से इस जंग को आसान बनाया है, लेकिन इसके लिए मदद की भावना होना भी उतना ही जरूरी है। वरना ‘स्टेपवन’ प्लेटफॉर्म पर सभी 7,000 डॉक्टरों की तरफ से मुफ्त में सेवा देने जैसी खूबसूरत पहल न होती।

हम सात राज्यों के 25 आकांक्षी जिलों में आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की मदद से लोगों को उनके घरों पर ही स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करा रहे हैं

देवेश वर्मा, वाइस प्रेसिडेंट और चीफ टेक्नोलॉजी अफसर, पीरामल स्वास्थ्य

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