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पश्चिम बंगाल : ...ताकि खेल खत्म न हो

ममता को राज्य में उलझाए रखने और अपने पाले में बिखराव रोकने में भाजपा के लिए क्या नारद घोटाला इतने साल बाद मददगार हो पाएगा
कोलकाता के निजाम पैलेस स्थित सीबीआइ दफ्तर में ममता

ममता बनर्जी 5 मई को तीसरी बार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के तत्काल बाद समारोह स्थल से चली गई थीं, लेकिन उनकी तृणमूल कांग्रेस पार्टी के कई नेता, सुब्रतो मुखर्जी, फिरहाद हाकिम, सुदीप बंद्योपाध्याय, सौगत राय आदि देर तक राज्यपाल जगदीप धनखड़ के साथ बातें करते रहे। एक नेता के अनुसार, उनकी बातें सुनने के बाद राज्यपाल ने कहा था,  ‘एक बात जान लो, किसी को रिहाई नहीं मिलती, आज नहीं तो कल...।’ और वह कल आया 17 मई को। सीबीआइ ने सुबह-सुबह परिवहन मंत्री फिरहाद हाकिम, पंचायत मंत्री सुब्रतो मुखर्जी, विधायक मदन मित्र और कोलकाता के पूर्व मेयर शोभन चटर्जी को नारद रिश्वत कांड में गिरफ्तार कर लिया। राज्यपाल ने सीबीआइ को इन नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की अनुमति 7 मई को दी थी। तब जाकर इन नेताओं को 12 दिन पहले राज्यपाल की हिदायत का मतलब समझ में आया।

सूचना मिलते ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कोलकाता के निजाम पैलेस स्थित सीबीआइ दफ्तर पहुंच गईं और अपनी गिरफ्तारी की मांग करने लगीं। वे वहां छह घंटे रहीं। तब तक बाहर करीब दो हजार तृणमूल समर्थक जमा हो गए थे। हालात को भांपते हुए सीबीआइ ने चारों गिरफ्तार नेताओं को वर्चुअल सुनवाई के लिए विशेष अदालत के सामने पेश किया। निचली अदालत ने चारों को जमानत दे दी तो सीबीआइ उसी रात हाइकोर्ट पहुंची, जहां कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल और न्यायाधीश अरिजीत बनर्जी की खंडपीठ ने निचली अदालत के फैसले पर स्टे लगा दिया। चारों नेता रात भर प्रेसिडेंसी जेल में रहे। अगली सुबह मदन मित्र और शोभन चटर्जी की तबीयत बिगड़ने लगी तो उन्हें एसएसकेएम अस्पताल में भर्ती किया गया। शाम तक सुब्रतो मुखर्जी भी सांस में तकलीफ की शिकायत करने लगे। उन्हें भी उसी अस्पताल में लाया गया।

दो दिन बाद जमानत याचिका पर सुनवाई हुई तो खंडपीठ एक राय पर नहीं पहुंच सकी। जस्टिस बनर्जी जमानत के पक्ष में थे तो जस्टिस बिंदल खिलाफ। तब उन्होंने अभियुक्तों के हाउस अरेस्ट का आदेश दिया, जिसके खिलाफ सीबीआइ सुप्रीम कोर्ट चली गई। उससे पहले हाइकोर्ट जमानत पर सुनवाई के लिए पांच जजों की बेंच बना चुका था। वहां सीबीआइ के वकील और केंद्र के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को उस समय कोई जवाब नहीं सूझा जब बेंच ने पूछ लिया, “सात साल तक जांच चली, तब अभियुक्तों को गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया? चार्जशीट फाइल करने के बाद अचानक गिरफ्तारी की जरूरत क्यों पड़ी?”

हाइकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सवालों की ऐसी झड़ी लगाई कि सीबीआइ ने वहां याचिका वापस लेना ही बेहतर समझा। भाजपा नेता मुकुल राय और शुभेंदु अधिकारी का नाम लिए बिना कोर्ट ने कहा, जिनके खिलाफ चार्जशीट दायर की गई है, क्या वही सबूतों से छेड़छाड़ कर सकते हैं, जिनके खिलाफ चार्जशीट दायर नहीं की गई क्या वे ऐसा नहीं कर सकते? सबूतों से छेड़छाड़ करने में कौन ज्यादा सक्षम हैं? कोर्ट ने मेहता की यह दलील नहीं मानी कि विशेष अदालत ने राज्य के कानून मंत्री और तृणमूल कार्यकर्ताओं के दबाव में जमानत का निर्णय दिया।

राजभवन के बाहर लोगों के जमा होने पर पाबंदी लगी तो एक तृणमूल कर्मी भेड़ें लेकर पहुंच गया, कहा- इन पर तो पाबंदी नहीं

अभी गिरफ्तारी क्यों हुई, यह सवाल अनेक लोग पूछ रहे हैं। यहां तक कि प्रदेश भाजपा के वे नेता भी, जिन्हें लग रहा है कि इस घटनाक्रम से पार्टी को नुकसान होगा। वैसे, पार्टी के कुछ नेताओं के अनुसार शीर्ष नेतृत्व यह संदेश देना चाहता है कि ‘बंगाल मिशन’ को अभी उन्होंने तिलांजलि नहीं दी है। लेकिन यह भी सच है कि तृणमूल से आए अनेक नेता वापसी का रास्ता तलाश रहे हैं। कुछ नेता तो सीबीआइ कार्रवाई पर रोष जताते हुए भाजपा छोड़ने की बात कर रहे हैं।

सवाल का जवाब इस तथ्य में छिपा है कि जिस ‘नारद’ मामले में चार नेताओं-मंत्रियों को सीबीआइ ने गिरफ्तार किया, उसमें मुकुल राय अभियुक्त नंबर 1 हैं। चुनाव से पहले तृणमूल से भाजपा में गए शुभेंदु अधिकारी (तब सांसद) भी अभियुक्त हैं। लेकिन ये नेता अभी तक सीबीआइ की जद से बाहर हैं। सीबीआइ ने और जिन्हें आरोपी बनाया है उनमें सांसद सौगत राय, काकोली घोष दस्तीदार, प्रसून बनर्जी, अपरूपा पोद्दार, सुल्तान अहमद (2017 में मौत) और तृणमूल विधायक रहे इकबाल अहमद शामिल हैं। आइपीएस एचएमएस मिर्जा (अभी निलंबित) भी आरोपी हैं। 2016 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले इस स्टिंग के वीडियो कोलकाता के हेस्टिंग्स में भाजपा के मुख्यालय में सार्वजनिक किए गए थे। सीबीआइ ने 16 अप्रैल 2017 को एफआइआर दर्ज की और नवंबर में मुकुल राय भाजपा में चले गए। स्टिंग में कई सांसद शामिल थे। उनकी जांच के लिए लोकसभा की एथिक्स कमेटी बनी, लेकिन अभी तक उसकी सिर्फ एक बैठक हुई है। सीबीआइ ने 6 अप्रैल 2019 को लोकसभा अध्यक्ष से सांसदों के खिलाफ जांच की अनुमति मांगी, लेकिन वह भी अभी तक लंबित है।

जिस मुकुल राय को सीबीआइ ने अपनी चार्जशीट में पहला अभियुक्त बनाया, उनके बारे में अब उसका कहना है कि वीडियो में उन्हें सीधे पैसा लेते हुए नहीं दिखाया गया, इसलिए उनके खिलाफ सबूत बहुत कमजोर है। लेकिन इस पर तृणमूल नेता कुणाल घोष सवाल करते हैं, “वीडियो में तो फिरहाद हाकिम को भी पैसा लेते नहीं दिखाया गया, तो उन्हें गिरफ्तार क्यों किया गया।”

इस बीच, सीबीआइ प्रकरण के बाद राज्यपाल धनखड़ का विरोध तेज हो गया है। तृणमूल सांसद कल्याण बनर्जी ने पार्टी कार्यकर्ताओं से उनके खिलाफ थानों में शिकायत दर्ज कराने को कहा है। बनर्जी का कहना है, “उन्होंने हिंसा और धार्मिक मतभेद को बढ़ावा दिया है। अभी वे राज्यपाल हैं, इसलिए कोई आपराधिक कार्रवाई नहीं की जा सकेगी। लेकिन पद से हटते ही उनके खिलाफ पुलिस कार्रवाई की जा सकती है।” तृणमूल नेताओं के अनुसार राज्यपाल के साथ अनबन इस स्तर पर पहुंच गई है कि पार्टी उनके खिलाफ महाभियोग पर भी विचार कर रही है। वह तो अभी दूर की कौड़ी है, फिलहाल सबको हाइकोर्ट के फैसले का इंतजार है।

 

इंटरव्यू/मैथ्यू सैमुअल

 

‘ शुभेंदु ने भी 5 लाख रुपये लिए थे’’

 

पत्रकार मैथ्यू सैमुअल के स्टिंग ऑपरेशन ने 2016 में पश्चिम बंगाल की राजनीति में भूचाल ला दिया था। उसी स्टिंग के आधार पर सीबीआइ ने चार नेताओं-मंत्रियों को गिरफ्तार किया है, लेकिन मुकुल रॉय और शुभेंदु अधिकारी को नहीं। सैमुअल का दावा है कि इन दोनों ने भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से रिश्वत ली थी। सैमुअल से पुनीत निकोलस यादव की बातचीत के मुख्य अंश:-

 

नारद स्टिंग ऑपरेशन क्या था?

2014 में मैंने तहलका पत्रिका के प्रबंध संपादक के रूप में वापसी की तो उस समय के.डी. सिंह (तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद) उसके एक बड़े निवेशक थे। वे चाहते थे कि मैं कुछ बड़ी कहानियां करूं। पहले के स्टिंग ऑपरेशन के चलते तहलका पर भाजपा विरोधी प्रकाशन का ठप्पा लग गया था, इसलिए मैंने सोचा कि बंगाल में कुछ करूंगा। सिंह ने शुरू में समर्थन किया। बाद में जब उन्होंने देखा कि उनकी पार्टी के लोग रिश्वत ले रहे हैं, तो उन्होंने स्टिंग को प्रकाशित करने से इनकार कर दिया। दो साल तक मैंने कोशिश की, पर कोई संस्थान राजी नहीं हुआ। तब ‘नारद न्यूज’ पोर्टल खोला और उस पर स्टिंग को दिखाया।

आपको इस दौरान किन परेशानियों से गुजरना पड़ा?

स्टिंग में रिश्वत लेने वालों के इशारे पर कई थानों में मेरे खिलाफ मुकदमे दर्ज किए गए। मुझ पर वसूली का आरोप लगा। मुझे सीबीआइ ने करीब 40 बार तलब किया। मैंने उन्हें सभी टेप और विस्तृत बयान दिए। मुझे खुशी है कि गिरफ्तारियां हुई हैं, लेकिन मुझे और खुशी होगी अगर पूरी सच्चाई सामने आ जाए क्योंकि उन टेपों में और लोगों को भी पैसे लेते दिखाया गया था।

आप विस्तार से बता सकते हैं?

मैं मंत्रियों, विधायकों और नौकरशाहों से सिर्फ इसलिए मिल सका क्योंकि उन्हें लगा कि वे इस सौदे से पैसा कमा सकते हैं। मैं शुभेंदु अधिकारी से उनके कार्यालय में मिला और पांच लाख दिए। मैं मुकुल राय से मिला, लेकिन उन्होंने एचएमएस मिर्जा (गिरफ्तार आइपीएस) को पैसे देने के लिए कहा। मैंने मिर्जा को 15 लाख रुपये दिए। मिर्जा ने सीबीआइ के सामने कबूल भी किया कि उसने राय के लिए पैसे लिए थे। चार्जशीट में मुकुल राय और शुभेंदु के नाम न होना मेरे लिए रहस्य है।

आपने अन्य नेताओं को कितने पैसे दिए थे?

फिरहाद हाकिम, सुब्रतो मुखर्जी और मदन मित्रा को पांच-पांच लाख रुपये दिए। ये सभी लेन-देन टेप पर हैं। सभी टेप सीबीआइ को सौंपे जा चुके हैं और फोरेंसिक रूप से सत्यापित भी हैं। मैंने मुकुल राय और शुभेंदु अधिकारी के खिलाफ भी बयान और सबूत दिए थे। कोर्ट में भी मेरा बयान दर्ज है। कोर्ट को सीबीआइ से पूछना चाहिए कि उसने राय और अधिकारी के खिलाफ क्या किया।

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