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केवल कोरी बातें, समाधान दूर

बचाव के नाम पर हम जो उपाय अपना रहे हैं वे वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने में ज्यादा असरकारी नहीं
हालत बदतर पर उपाय नहीं मुकम्मल

वायु प्रदूषण की आज जो स्थिति है वह अचानक से पैदा नहीं हुई है। बहुत साल से धीरे-धीरे बढ़ी है। जैसे-जैसे विकास हुआ स्थिति बिगड़ती गई। लेकिन, इसका यह मतलब नहीं है कि विकास ही न हो। दिल्ली सहित देश के अलग-अलग हिस्सों में प्रदूषण के मुख्य कारण अलग-अलग हैं। मेरे हिसाब से जो तीन-चार बड़े कारण हैं वे हैं, वाहनों से निकलने वाला धुआं, पराली जलाना, निर्माण कार्य के दौरान उड़ने वाली धूल और पावर प्लांट्स। ये सब मिलकर आउटडोर यानी घर के बाहर की हवा को खतरनाक बनाते हैं। इसके अलावा इनडोर पॉल्यूशन यानी घर के अंदर भी पॉल्यूटेंट्स होते हैं जो परफ्यूम, फ्रेशनर वगैरह और कुकिंग के दौरान निकलने वाली गैस के पूरी तरह बाहर निकलने की व्यवस्था न होने पर बढ़ते हैं।

असल में, हमारे यहां घर और बाहर दोनों तरह के प्रदूषण का स्तर खतरनाक है। जब तक वायु में सस्पेंडेड पार्टिकल और जहरीली गैसों का स्तर कम नहीं होता, इसका समाधान नहीं निकल सकता है। किसी एक तरीके से इनका स्तर कम करना संभव भी नहीं है। हर इलाके के लिए वहां प्रदूषण पैदा करने वाले मुख्य स्रोत को ध्यान में रखकर एक्शन प्लान बनाने और उसे कड़ाई से लागू करने की जरूरत है। इसके बजाय हम जो उपाय अपना रहे हैं वे वैसे ही हैं जैसे आपको तैरना न आए और आप पानी में उतर जाएं। प्रदूषण के स्रोतों को खत्म करने के बजाय व्यक्तिगत स्तर पर हम एयर प्युरिफायर, मास्क वगैरह का इस्तेमाल कर सोचते हैं कि हम तो बच गए। यह सही है कि इनसे थोड़ा-बहुत बचाव होता है, लेकिन यह समस्या का समाधान नहीं है। साथ ही इनका इस्तेमाल कर पाना सबके लिए संभव भी नहीं है। 

मसलन, हम घर में एयर प्युरिफायर लगाते हैं। लेकिन, इनडोर एयर का कितना पॉल्यूटेंट्स ये खत्म करते हैं इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इनका असर तभी हो पाता है जब घर सीलबंद हो। इससे दोतरफा खतरा पैदा होता है। आप खिड़की दरवाजे नहीं खोलेंगे तो घर के अंदर की बासी हवा फेफड़े में जमा करेंगे। खिड़की दरवाजे खोलेंगे तो एयर प्युरिफायर की एफिशिएंसी घट जाएगी। यह भी संभव नहीं है कि आप हमेशा बंद कमरे में ही बैठे रहें।

वायु प्रदूषण को लेकर महानगरों में जागरूकता बढ़ी है। इससे एयर प्युरिफायर, मास्क, इनडोर प्लांट्स, डिजिटल मॉनिटर वगैरह का चलन जरूर बढ़ा है। लेकिन, इनका इस्तेमाल किस तरह किया जाए इसको लेकर जागरूकता नहीं दिखती। मास्क ऐसे होने चाहिए जो हवा में मौजूद खतरनाक सूक्ष्म कणों को रोकें और सांस को बाहर निकालने के लिए अच्छा वेंटिलेशन प्रदान करें। फिट हों और बाहर से हवा नहीं जा रही हो। लेकिन, फिट मास्क इतने टाइट होते हैं कि ज्यादा समय तक इन्हें पहनना संभव नहीं होता। कई लोगों को सांस लेने में दिक्कत भी आने लगती है। आर्थिक आधार पर भी घर में प्लांट‌्स, एयर प्युरिफायर जैसे विकल्प सबके लिए व्यावहारिक नहीं हैं।

"प्रदूषण पैदा करने वाले मुख्य स्रोतों को ध्यान में रखकर हर जगह के लिए अलग से प्लान बनाकर उसे लागू करना जरूरी"

प्रदूषण से जो सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं वह निर्माण कार्य से जुड़े लोग, भीड़-भाड़ वाली जगहों और सड़क किनारे काम करने वाले लोग होते हैं। प्रदूषण साइलेंट किलर होता है। इसका तुरंत असर नहीं होता। इसलिए, उन्हें लगता है कि वैसे ही हल्ला मचाया जा रहा है उन्हें तो कुछ हो ही नहीं रहा। लेकिन, प्रदूषण बड़ा रिस्क फैक्टर है। क्रॉनिक ऑब्सटेक्टिव डिजीज के साथ-साथ, इन्फेक्शन, ग्रोथ कम होना, हार्ट, लंग्स का सिकुड़ना जैसी कई समस्याएं समय के साथ पैदा हो जाती हैं।

बदतर तो यह है कि वायु प्रदूषण भारतीयों के स्वास्थ्य को किस कदर प्रभावित करता है इसके पुख्ता आंकड़े देश में मौजूद नहीं हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) जैसे संगठनों के जो अध्ययन हैं वह रफ एस्टीमेट पर आधारित होते हैं। इनके आधार पर यह बताना मुश्किल है कि देश में वायु प्रदूषण के कारण कितनी असमय मौतें हो रही हैं या स्वास्थ्य पर कितना असर पड़ रहा है। मोटे तौर पर सर्दी के मौसम में पल्मेनरी डिपार्टमेंट में पंद्रह से बीस फीसदी मरीज बढ़ जाते हैं। लेकिन, अध्ययन के अभाव में यह बता पाना बेहद मुश्किल है कि इसके लिए मौसम में बदलाव कितना जिम्मेदार है और प्रदूषण की कितनी भूमिका है।

ऐसा लगता है कि इस क्षेत्र में अध्ययन और  शोध सरकार की प्राथमिकता है ही नहीं। आज यदि केवल वायु प्रदूषण के कारण देश में होने वाली असमय मौत के ठोस आंकड़े आ जाएं, तो हालात बदल जाएंगे। सरकार पर कदम उठाने का दबाव बढ़ जाएगा। चूंकि प्रदूषण से निपटने के लिए लोग व्यक्तिगत स्तर पर भी गंभीर नहीं हैं, इसलिए सरकार पर भी ठोस एक्शन का दबाव नहीं बन पाता है। मेरी समझ से इस समस्या के समाधान के लिए सेंट्रलाइज्ड प्रोसेस की जरूरत है। इस समस्या को राज्यों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। केंद्र सरकार को चाहिए कि वायु प्रदूषण से निपटने के लिए अलग महकमा बनाए। साथ ही, इस दिशा में अध्ययन और शोध बढ़ाने पर भी सरकार को जोर देना होगा। जब तक ऐसा नहीं होता बातें ही होती रहेंगी, वायु में खतरनाक कणों का स्तर कम करने के लिए कदम नहीं उठाए जाएंगे।

(लेखक दिल्ली के अपोलो अस्पताल में रेस्पिरेटरी मेडिसिन, क्रिटिकल केयर ऐंड स्लिप मेडिसिन विभाग में सीनियर कंसल्टेंट हैं)

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