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क्रिकेट: देविका रानी और क्रिकेट प्रसारण

मशहूर प्रोडक्शन हाउस बॉम्बे टॉकीज ने अपनी पहली फिल्म जवानी की हवा के साथ दिखाने के लिए बॉम्बे क्वाड्रेंगुलर टूर्नामेंट के प्रसारण अधिकार खरीदे थे
मुंबई में राजस्थान और लखनऊ की आइपीएल टीमों के बीच मैच का दृश्य

इंडियन प्रीमियर लीग (आइपीएल) के प्रसारण अधिकारों की नीलामी होने वाली है। कई चैनल और ओटीटी प्लेटफॉर्म यह अधिकार खरीदने के लिए बोली लगाएंगे। आइपीएल के लिए स्टार इंडिया ने 2018-22 की अवधि के लिए प्रसारण अधिकार 16,347.5 करोड़ रुपये में हासिल किए थे। आइपीएल की लोकप्रियता को देखते हुए कहा जा सकता है कि क्रिकेट में रुचि रखने वाले ज्यादातर लोग इन तथ्यों से परिचित होंगे। लेकिन बहुत कम क्रिकेट प्रेमी उस कंपनी के बारे में जानते होंगे जिसने पहली बार भारतीय क्रिकेट में प्रसारण अधिकार हासिल किए थे। उन्हें वह फिल्म भी याद नहीं होगी जिसके चलते यह संभव हो सका था।

आपको जानकर ताज्जुब होगा कि भारत में क्रिकेट का पहला प्रसारण अधिकार बॉम्बे टॉकीज ने खरीदा था। भारतीय सिनेमा जगत की पहली ताकतवर जोड़ी देविका रानी और हिमांशु राय ने बॉम्बे टॉकीज की स्थापना की थी। बॉलीवुड के इस फिल्म स्टूडियो ने 1935 में बॉम्बे क्वाड्रेंगुलर टूर्नामेंट के प्रसारण अधिकार खरीदे थे। वह प्रसारण अधिकार टूर्नामेंट के 1935-36 सीजन के लिए था। टूर्नामेंट के मैचों को बॉम्बे टॉकीज की पहली फीचर फिल्म जवानी की हवा के साथ मुंबई के इंपीरियल सिनेमा में दिखाया जाना था। लेमिंगटन रोड पर स्थित इस थिएटर में फिल्म के प्रमोशन के लिए मुंबई के अखबारों में विज्ञापन दिए गए।

बॉम्बे क्रॉनिकल ने एक छोटी सी खबर प्रकाशित की जिसमें लिखा था, “क्वाड्रेंगुलर क्रिकेट के मैचों को फिल्माने का विशेषाधिकार बॉम्बे टॉकीज ने लिया है। इस अधिकार में ऑस्ट्रेलियाई टीम के मुंबई आने पर खेले जाने वाले मैच भी शामिल हैं।” दरअसल उस समय जैक राइडर की ऑस्ट्रेलियाई टीम टेस्ट सीरीज के लिए आने वाली थी। हालांकि वह सीरीज आधिकारिक नहीं थी। उस खबर में लिखा था, “फिल्म (मैच) में रनिंग कमेंट्री भी होगी और इसे इंपीरियल सिनेमा में जवानी की हवा के साथ दिखाया जाएगा। इसलिए जो लोग मैच देखने नहीं जा सकते वे भी इंपीरियल थिएटर में फीचर फिल्म देखने के साथ क्रिकेट मैच के रोमांच का लुत्फ उठा सकते हैं।”

तब तक देविका रानी और हिमांशु राय ने शादी कर ली थी। फिल्म कर्मा (1933) में दोनों मुख्य भूमिका में थे। चार मिनट लंबे किसिंग सीन के कारण वह फिल्म काफी चर्चित हुई थी। बॉम्बे टॉकीज के रूप में उन दोनों ने 1934 में भारत का पहला प्रोफेशनल और पश्चिमी शैली का फिल्म प्रोडक्शन हाउस खड़ा किया था। बॉम्बे टॉकीज के बैनर तले पहली फिल्म 1935 में जवानी की हवा बनी, जिसमें इस प्रोडक्शन हाउस की मालकिन और अपने समय की अग्रणी अभिनेत्री देविका रानी मुख्य भूमिका में थीं। वह एक क्राइम थ्रिलर फिल्म थी जिसमें देविका रानी के साथ नवोदित अभिनेता नजम उल हसन थे। फिल्म का कथानक इस सवाल पर आधारित था कि हत्या किसने की। माना जाता है कि इसकी कहानी अगाथा क्रिस्टी के मशहूर उपन्यास मर्डर ऑन द ओरिएंट एक्सप्रेस पर आधारित थी जो एक साल पहले, 1934 में रिलीज हुई थी।

जवानी की हवा फिल्म का निर्देशन भारतीय सिनेमा के जर्मन पायनियर फ्रेंज ऑस्तेन ने किया। फिल्म की पटकथा लिखी प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी बिपिन चंद्र पाल के बेटे निरंजन पाल ने। जवानी की हवा उन शुरुआती फिल्मों में थी जिसकी शूटिंग मुंबई के मशहूर छत्रपति शिवाजी टर्मिनस के भीतर हुई थी। तब इसका नाम विक्टोरिया टर्मिनस था। ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे (अब सेंट्रल रेलवे) ने वीटी प्लेटफॉर्म पर फिल्म शूट करने की इजाजत दी थी। फिल्म इसके मुख्य किरदारों की रेल यात्रा के इर्द-गिर्द थी, सो रेलवे ने शूटिंग में पूरी मदद की।

जब फिल्म 10वें सप्ताह में पहुंची तो बॉम्बे टॉकीज ने पहला क्वाड्रेंगुलर मैच फिल्माया और उसे थिएटर में दिखाया। वह मैच मुस्लिम टीम और यूरोपीय खिलाड़ियों के बीच खेला गया था। बॉम्बे जिमखाना ग्राउंड पर 16 से 18 नवंबर 1935 तक वह मैच खेला गया था। उस मैच में एक तरफ सैयद वजीर अली, सैयद मुस्ताक अली, मोहम्मद निसार जैसे भारतीय टेस्ट खिलाड़ी थे तो दूसरी तरफ थॉमस कथबर्ट लॉन्गफील्ड (टी.सी. लॉन्गफील्ड) जैसे अंग्रेज खिलाड़ी थे, जो बाद में रणजी ट्रॉफी जीतने वाली बंगाल टीम के कप्तान बने। कई दशक बाद लॉन्गफील्ड के बेटे टेड डेक्सटर ने टेस्ट क्रिकेट में इंग्लैंड की कप्तानी की।

उस टूर्नामेंट में तूफानी गेंदबाज निसार सभी टीमों पर भारी पड़े। बेहतरीन फॉर्म में चल रहे निसार ने क्वाड्रेंगुलर टूर्नामेंट के फाइनल में बेहद मजबूत समझी जाने वाली हिंदू टीम के खिलाफ बोरीबंदर छोर से अपना शानदार प्रदर्शन जारी रखा और वजीर अली की टीम ने टूर्नामेंट जीता। वह पहला टूर्नामेंट था जिसे जवानी की हवा फिल्म के साथ बॉम्बे टॉकीज ने दर्शकों को दिखाया गया था।

उस फिल्म में कई विदेशी टेक्नीशियन थे। डायरेक्टर ऑस्तेन के साथ कई जर्मन भी थे। छायाकार जोसेफ वर्स्चिंग, सेट डिजाइनर कार्ल वॉन स्प्रेटी और साउंड रिकॉर्डिस्ट ब्रिट लेन हर्टली। इनके अलावा कई युवा भारतीय भी उस टीम में थे। शशधर मुखर्जी साउंड डिपार्टमेंट में थे तो आर्ट डायरेक्टर जेके राय थे। पारसी संगीत निर्देशक सरस्वती देवी थीं जिनका असली नाम खोर्शेद मिनोचर होमजी था। प्रोसेसिंग लैब में नौसिखिया टेक्नीशियन कुमुदलाल कांजीलाल गांगुली भी थे। इन सबने मिलकर न सिर्फ बॉम्बे टॉकीज के प्रोडक्शन में पहली फिल्म बनाई बल्कि भारत के पहले क्रिकेट प्रसारण को फिल्माने और उसकी पैकेजिंग को भी अंजाम दिया।

फिल्म काफी सफल हुई लेकिन पति हिमांशु राय के साथ मनमुटाव के कारण देविका रानी मुंबई छोड़कर अपने सह कलाकार हसन के साथ कोलकाता चली गईं। उनके बिना हिमांशु राय के लिए बॉम्बे टॉकीज को चलाना मुश्किल हो गया। भारतीय सिनेमा की अग्रणी महिला कही जाने वाली देविका रानी ने बॉम्बे टॉकीज की टीम को तब चौंका दिया जब उन्होंने कोलकाता में न्यू थिएटर्स के साथ जुड़ने का इरादा जाहिर किया। न्यू थियेटर्स बॉम्बे टॉकीज की प्रतिद्वंद्वी प्रोडक्शन हाउस थी। हालांकि काफी मान-मनौवल के बाद देविका रानी मुंबई टॉकीज में दूसरी पारी खेलने के लिए लौट आईं। फिल्म जवानी की हवा की जबरदस्त कामयाबी के बावजूद उनके सह कलाकार हसन मुंबई में एक ही फिल्म की पारी खेल सके। इंपीरियल सिनेमा में जवानी की हवा के शो लगातार जारी थे। मैच के दिनों में एक अखबार में फिल्म का विज्ञापन कुछ इस तरह था, “दूसरा शतक लगा, अब भी नॉट आउट, आज 205 वां शो, लगातार दसवें हफ्ते का खेल।”

 

दादामुनि का आगाज

लैब टेक्नीशियन गांगुली का बॉम्बे टॉकीज में पहला काम कैमरा असिस्टेंट का था, लेकिन इस मशहूर प्रोडक्शन हाउस की अगली ही फिल्म जीवन नैया (1936) में उन्हें बड़ा काम मिल गया। हालांकि यह काम उनके रिश्तेदार शशधर मुखर्जी की वजह से मिला था। जवानी की हवा फिल्म में छोटी सी भूमिका निभाने वाले गांगुली को जीवन नैया फिल्म के लिए नया नाम मिला अशोक कुमार, जिन्होंने भारतीय सिनेमा के इतिहास में सबसे लंबी पारियों में एक पारी खेली।

भारत में प्रसारण अधिकार वाला पहला क्रिकेट टूर्नामेंट दिखाने वाले इंपीरियल सिनेमा ने अमिताभ बच्चन को भी स्टारडम का स्वाद चखाया। जवानी की हवा के कई दशक बाद 1970 के दशक में अमिताभ की फिल्म जंजीर यहां 50 हफ्ते चली थी। आज क्रिकेट के प्रसारण अधिकार की कीमत तो आसमान पर पहुंच गई है, लेकिन बॉम्बे टॉकीज 1953 में बंद हो गय। 1905 में आर्केस्ट्रा थिएटर के तौर पर बना इंपीरियल सिनेमा भी अब जर्जर हालत में है। यहां फिल्में भी दोयम दर्जे की दिखाई जाती हैं। भारतीय क्रिकेट इतिहास का एक अध्याय समय के साथ मिट गया है।

(पाल पत्रकार, लेखक और डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता हैं)

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