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ठेके पर पढ़ाई दुर्दशा ले आई

शिक्षा के लगातार गिरते स्तर की आज सबसे भयावह मिसाल ठेके पर शिक्षकों की भर्ती और सरकारी खर्च में कटौती के उपाय बने
आंदोलनः अपनी मांग के लिए प्रदर्शन करते यूपी के अस्थायी शिक्षक यानी शिक्षा मित्र

जब सौभाग्य, समृद्घि और गुणवंत बनने का साधन शिक्षा ही दुर्भाग्य बनकर टूटने लगे तो क्या कहिए! ताजा मामला तेलंगाना का है। वहां 12वीं के बोर्ड की परीक्षाओं के नतीजे आए तो कुल 10 लाख में से तीन लाख छात्र फेल हो गए। इसके बाद से आत्महत्याओं का सिलसिला भी नहीं थम रहा। इस खबर के लिखे जाने तक 25 नाकाम छात्र अपनी जान ले चुके थे। वहां परीक्षा की जिम्मेदारी एक निजी संस्‍था को सौंपी गई थी। कॉपियों के फिर से जांच के आदेश दे दिए गए हैं और यह बात सामने आई है कि कॉपियां जांचने में काफी लापरवाही बरती गई। यह शिक्षा के प्रति लापरवाही और अपनी जिम्मेदारियों से भागने की सरकारी कोशिशों की भयावह मिसाल है। शिक्षा जैसे अहम मामले को ठेके पर उठा देने का दंश छात्र ही नहीं, शिक्षा प्रणाली और शिक्षाकर्मियों पर भी कहर की तरह टूट रहा है।

दिल्ली के तुगलकाबाद एक्सटेंशन के एक सरकारी स्कूल में गेस्ट टीचर भूपेंद्र मिश्रा लगभग ढाई महीने पहले एक हादसे का शिकार होने के बाद से अस्पताल में हैं। उन्हें सैलरी तक नहीं मिल रही है। कुलदीप भी दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में गेस्ट टीचर थे, जिनकी पिछले दिनों मौत हो गई, लेकिन उन्हें भी सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिली। यह गेस्ट टीचर और परमानेंट टीचर को मिलने वाली सुविधाओं में अंतर का छोटा-सा नमूना है, जो सिर्फ स्कूलों तक ही सीमित नहीं है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के श्यामलाल कॉलेज में एड-हॉक (अस्थायी) टीचर अवनीश मिश्रा बताते हैं कि छह साल पहले मैंने जहां से करिअर शुरू किया था, आज भी वहीं हूं। वे बताते हैं, “हमें तो पता भी नहीं रहता कि अगले सत्र में हमारा कॉन्ट्रैक्ट रिन्यू होगा भी या नहीं।” जब नियुक्तियां करनी ही हैं, तो फिर गेस्ट की जगह परमानेंट बहाली सरकार या यूनिवर्सिटीज क्यों नहीं करती हैं? वे कहते हैं कि इसकी सबसे बड़ी वजह बजट में कटौती है। सरकार को कम पैसे में शिक्षक मिल जा रहे हैं, तो फिर वह स्थायी शिक्षकों की नियुक्तियां क्यों करेगी? वे बताते हैं कि स्थायी शिक्षक की सैलरी तीन गेस्ट टीचर्स के बराबर है और ऊपर से स्थायी शिक्षकों को मिलने वाली तमाम सुविधाएं और भत्ते भी गेस्ट टीचर्स को नहीं देने पड़ते हैं।

सीधी-सी बात है कि सरकार शिक्षा पर कम खर्च करना चाहती है और कम बजट में शिक्षकों की बहाली करना चाहती है। यही वजह है कि वह स्थायी की जगह कॉन्ट्रैक्ट यानी ठेके पर नियुक्तियां करती है। दिल्ली में गेस्ट टीचर्स एसोसिएशन के प्रमुख डॉ. गोविंद का भी कहना है कि गेस्ट टीचर्स रखने की वजह यह है कि सरकार एक परमानेंट टीचर की सैलरी में चार गेस्ट टीचर रख लेती है। दिल्ली में लगभग 65 हजार टीचर की मांग है, लेकिन रेगुलर टीचर सिर्फ 33 हजार हैं और स्‍थायी भर्तियां बंद हैं।

नीति में कब से बदलाव

दिल्ली में गेस्ट टीचर्स की नियुक्ति शीला दीक्षित की सरकार में 2009 से शुरू हुई। हालांकि, पूरे देश में बड़े पैमाने पर कॉन्ट्रैक्ट पर शिक्षकों की नियुक्ति 2000-01 में सर्व शिक्षा अभियान के साथ शुरू हुआ। प्राथमिक शिक्षा पर जोर देने की नीति के कारण देश भर में बड़े पैमाने पर शिक्षकों की मांग बढ़ी, लेकिन इसके लिए स्थायी की जगह कॉन्ट्रैक्ट पर नियुक्ति की प्रक्रिया अपनाई गई, ताकि कम बजट में शिक्षकों की कमी को पूरा किया जा सके। आलम यह हुआ कि लाखों की संख्या में गैर-प्रशिक्षित शिक्षकों की बहाली हुई। डिस्ट्रिक्ट इन्‍फॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (डीआइएसई) की 2015-16 की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में लगभग 6.6 लाख कॉन्ट्रैक्चुअल टीचर सरकारी शिक्षण-व्यवस्था से जुड़े हैं। अलग-अलग राज्यों में उनकी सैलरी और सुविधाओं में काफी बड़ा अंतर है। विभिन्न राज्यों में इन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता है। मसलन, उत्तर प्रदेश में शिक्षा मित्र, ओडिशा में शिक्षा सहायक, बिहार में नियोजित शिक्षक, तो दिल्ली में गेस्ट टीचर्स। डिस्ट्रिक्ट इन्‍फॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन की 2015-16 की रिपोर्ट के मुताबिक, 11 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेश में एक चौथाई से अधिक कॉन्ट्रैक्ट टीचर हैं।

पटना का एक सरकारी स्कूल

बिहार में कॉन्ट्रैक्चुअल (संविदा) शिक्षकों की नियुक्ति 2006 के ‘नियोजित शिक्षक नियुक्ति नियमावली’ के तहत की गई। नीतीश सरकार ने शिक्षकों की कमी को देखते हुए पंचायत स्तर पर नियुक्ति के आदेश दिए। इससे मुखिया और नियोजन इकाई को टीचर्स की नियुक्ति के अधिकार मिल गए। पटना के एक हाइस्कूल में गेस्ट टीचर आशुतोष पांडे कहते हैं कि पंचायत स्तर पर जितने शिक्षक बहाल हुए हैं, उसमें मुखिया ने अपने ही लोगों को नियुक्त कर दिया। हाल में एक आंकड़ा आया कि प्राथमिक स्तर पर कुल 2 लाख 52 हजार शिक्षक हैं और इनमें लगभग एक लाख गलत तरीके से नियुक्त हुए हैं।

आशुतोष बताते हैं कि जब शिक्षकों की नियुक्ति की दोबारा मांग उठी तो सरकार ने कहा कि हमारे पास फंड नहीं है और सुप्रीम कोर्ट में पहले लंबित एक समान वेतन का फैसला आ जाता है तो इतनी तादाद में शिक्षकों को कैसे वेतन दिया जाएगा। तो उसने 2018 में अतिथि शिक्षकों की 1,000 रुपये प्रति दिन के हिसाब से नियुक्ति शुरू कर दी। वे बताते हैं कि बिहार में तीन तरह के शिक्षक हैं, परमानेंट, नियोजित और अतिथि शिक्षक। नियोजित को परमानेंट का दर्जा दे दिया गया है। अब दिल्ली की तर्ज पर गेस्ट टीचर्स रखे जा रहे हैं, जिनका हर साल कॉन्ट्रैक्ट रिन्यू होता है। यानी यहां भी सरकार कम बजट में शिक्षकों की कमी दूर करने के लिए कॉन्ट्रैक्ट पर नियुक्ति का रास्ता निकाल रही है।

यही हाल उत्तर प्रदेश का है। हालांकि, यहां सरकार ने गेस्ट टीचर्स को परमानेंट करने के लिए कुछ नीतिगत बदलाव किए, लेकिन मामला अदालत में जाकर फंस गया। दरअसल, राज्य सरकार ने बिना टीचर्स एबिलिटी टेस्ट पास किए लाखों कॉन्ट्रैक्ट टीचर्स को रेगुलर कर दिया। 2014 में लगभग 59 हजार शिक्षा मित्रों को रेगुलर किया गया। लेकिन 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने 2014 से रेगुलर किए गए लगभग 1.78 लाख शिक्षा मित्र की नियुक्ति को रद्द कर दिया। उत्तर प्रदेश सरकार ने 2010 में शिक्षा मित्र को परमानेंट करने के साथ ही योग्यता की शर्तों में ढिलाई की और नेशनल काउंसिल फॉर टीचर्स एजुकेशन की ओर से आयोजित अनिवार्य टेस्ट को खत्म कर दिया और लाखों शिक्षा मित्र रेगुलर हो गए। इससे उनकी स्थिति में बड़ा बदलाव आया। कल तक जिस शिक्षा मित्र को 3,500 रुपये मिलते थे, उसकी सैलरी लगभग 39 हजार रुपये महीना हो गई। वे पीएफ, छुट्टी का मानदेय, महंगाई भत्ता वगैरह के अधिकारी हो गए। लेकिन सरकार के इस फैसले को इलाहाबाद हाइकोर्ट में चुनौती दी गई और अदालत ने सरकार के फैसले को पलट दिया। 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने भी हाइकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। इस तरह गेस्ट टीचर्स का मामला अब भी उलझा हुआ है।

मध्य प्रदेश में पहली बार 1996 में गेस्ट टीचर यानी संविदा शिक्षक की नियुक्ति हुई। उन्हें फिर दो साल यानी 1998 तक पर्यवीक्षा अवधि में रखा गया। फिर 2004 में स्थायी कर दिया गया। 1996 से पहले के स्थायी शिक्षक राजकीय शिक्षा विभाग के तहत आते हैं, जबकि उसके बाद संविदा शिक्षकों की बहाली स्थानीय शासन यानी नगर निगम और नगर पंचायत के जरिए हुई।

सुविधाओं में अंतर

दिल्ली में लगभग 22 हजार गेस्ट टीचर हैं, जिन्हें 10 महीने के कॉन्ट्रैक्ट पर रखा जाता है। उन्हें प्रति दिन के हिसाब से सैलरी मिलती है। दिल्ली में गेस्ट टीचर्स एसोसिएशन के प्रमुख डॉ. गोविंद बताते हैं, “परमानेंट टीचर्स को ईएल, फिक्स सैलरी, एलटीसी और छुट्टी का मानदेय मिलता है, जबकि गेस्ट टीचर एक दिहाड़ी मजदूर की तरह काम करता है, उसे ये तमाम सुविधाएं नहीं मिलती हैं।” बिहार में नियोजित शिक्षकों की संख्या साढ़े तीन लाख है और उन्हें परमानेंट का दर्जा मिला हुआ है और उन्हें तय सैलरी मिलती है, लेकिन परमानेंट की तुलना में अब भी कम है।

अवनीश मिश्रा बताते हैं कि एडहॉक टीचर को परमानेंट की तुलना में सुविधाएं न के बराबर मिलती हैं। वे बताते हैं कि आज मेरी तबीयत खराब हो जाए और मैं मैक्स में जाऊं, जो कि यूनिवर्सिटी के पैनल में है, तो परमानेंट टीचर्स को 300 रुपये फीस देनी होगी, जबकि मुझे 1,000 रुपये देना पड़ेगा। गेस्ट टीचर को टर्म की कोई गारंटी नहीं होती। एक बार में चार महीने का ही लेटर मिलता है और हर बार जुलाई में टेंशन रहती है कि रिन्यू होगा या नहीं। यूजीसी भी लगातार लेटर भेजती रहती है कि खाली पड़ी स्थायी नियुक्तियों को भरें। लेकिन ऐसा नहीं किया गया, जिससे एडहॉक टीचर्स की बड़ी समस्या हो गई है। नियम है कि 10 फीसदी से ज्यादा गेस्ट टीचर नहीं रख सकते, लेकिन डीयू में अभी लगभग 40 फीसदी गेस्ट टीचर हैं।

अगर कॉन्ट्रैक्ट पर रखे गए शिक्षकों को पूरी तरह से परमानेंट किया जाता है, तो इसका सीधा असर सरकार के बजट पर पड़ेगा। झारखंड में एक कॉन्ट्रैक्ट टीचर को साढ़े छह से साढ़े सात हजार रुपये महीना मिलता है, जबकि एक रेगुलर टीचर की सैलरी लगभग 40 हजार रुपये है। वहीं, दिल्ली में पीजीटी के रेगुलर टीचर की पहली सैलरी लगभग 40 हजार रुपये, तो गेस्ट टीचर को प्रतिदिन 1445 रुपये के हिसाब से मिलते हैं और महीने में 25 से अधिक वर्किंग डे नहीं हो सकते हैं।

रामबाबू चौहान मध्य प्रदेश में स्थायी शिक्षक हैं और कहते हैं कि यहां गेस्ट टीचर का नाम संविदा शिक्षाकर्मी से बदलकर वरिष्ठ अध्यापक (लेक्चरर), सहायक अध्यापक कर दिया गया है। लेकिन नाम बदलने से उनकी स्थिति में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है। वह बताते हैं, “सरकार से फंड मिलने के बाद ही इन्हें सैलरी मिल पाती है। इनका जीआइएस भी नहीं कटता और स्थायी की तुलना में वेतन भी कम है।” स्थायी शिक्षक को प्रमोशन, भत्ते और एक निश्चित अवधि तक नौकरी की गारंटी मिली होती है, जबकि गेस्ट टीचर को छोटी अवधि के लिए नियुक्त किया जाता है और उसे बिना किसी नोटिस के हटाया भी जा सकता है। गेस्ट टीचर की नियुक्ति कम बजट में होती है। साथ ही, स्कूली शिक्षकों की बेहतरी के लिए बने कोठारी आयोग-1966, नेशनल पॉलिसी फॉर एजुकेशन-1986 के सुझावों को भी नजरअंदाज किया जाता है।

गुणवत्ता से समझौता

बिहार के नियोजित शिक्षकों का मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। जुलाई 2018 में सुनवाई के दौरान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में माना कि बिहार में नियमित और कॉन्ट्रैक्चुअल टीचर्स की गुणवत्ता में फर्क है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय की तरफ से कहा गया कि नियोजित शिक्षकों के लिए किसी प्रकार की कोई प्रतियोगी परीक्षा नहीं कराई गई। हालांकि, डॉ. गोविंद और रामबाबू चौहान का कहना है कि गेस्ट टीचर्स की नियुक्ति से शिक्षा की गुणवत्ता पर खास फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि इन्हें तय प्रक्रिया के तहत ही नियुक्त किया जाता है और वे सभी प्रशिक्षित होते हैं।

जबकि अवनीश मिश्रा का कहना है कि जब हम बतौर गेस्ट टीचर पढ़ाते हैं, तो पता होता है कि एक तय क्लास है। हमारे पास दो या चार महीने का समय है, तो ऐसे में टीचर-स्टूडेंट का संबंध नहीं बन पाता है। जब यह संबंध नहीं बनेगा, तो रिसर्च या बाकी चीजों में जो काम करना चाहिए वह सारे काम गेस्ट टीचर नहीं करेगा। फिर एक मुकम्मल शैक्षणिक माहौल नहीं बनने से असर तो पड़ता ही है।

यही वजह है कि इलाहाबाद हाइकोर्ट ने 2015 में सरकारी कर्मचारियों को अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजने का आदेश दिया। अदालत ने यह फैसला उत्तर प्रदेश के प्राथमिक स्कूलों की खराब स्थिति के मद्देनजर दिया था। फैसले में जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने कहा था कि जब सरकारी अधिकारियों, जन प्रतिनिधियों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ेंगे तभी इन स्कूलों की जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकार गंभीर होगी और स्कूल भी अच्छे से चलेंगे।

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