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शिवराज का सत्ता ‘विष’

मध्य प्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार से साफ है कि मुख्यमंत्री बनने के बावजूद शिवराज पर सिंधिया भारी पड़े
कांटों भरी दोस्तीः भाजपा में शामिल होते वक्त गले ‌मिलते शिवराज और ज्योति,रादित्य

मार्च में ज्योतिरादित्य सिंधिया जब भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो रहे थे, उस वक्त मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने नए साथी का स्वागत करते हुए उन्हें ‘विभीषण’ कहा था। चौहान ने उनको यह उपाधि रामायण के उस पात्र से दी थी, जो अपने भाई रावण को धोखा देकर भगवान राम की शरण में चला गया था। उस वक्त शिवराज का यह बयान लोगों के मन में यह सवाल छोड़ गया कि उन्होंने सिंधिया को विभीषण कह कर  उनकी प्रशंसा की या फिर उन पर तंज कसा था। हालांकि, इस बीच राज्य में कोरोना की बेकाबू रफ्तार ने रिकॉर्ड चौथी बार सत्ता में आए शिवराज के लिए नई चुनौतियां खड़ी कर दीं। जिस तरह से राज्य सरकार महामारी से निपटने के लिए कदम उठा रही थी, उसकी आलोचनाओं को संभालने में ही मुख्यमंत्री फंस गए। सरकार बनाने के करीब 100 दिन बाद मुख्यमंत्री को अपने मंत्रिमंडल विस्तार का मौका मिला। इसके पहले 21 अप्रैल को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते वक्त शिवराज सिंह चौहान ने अपने साथ पांच साथियों को मंत्री पद की शपथ दिलाई थी।

शिवराज ने शपथ के समय जिस तरह मंत्रियों का चयन किया था, उसी से लग गया था कि वह रामायण के दौर से निकलकर महाभारत के युद्ध क्षेत्र में पहुंच गए हैं। शिवराज के विरोधी उनकी चुटकी लेने से पीछे नहीं हट रहे हैं। उनका कहना है कि अब राज्य में शिवराज की दुश्मन कांग्रेस नहीं, बल्कि उनके नए साथी सिंधिया हैं। ऐसे में, लगता है कि भोपाल के सत्ता के खेल में चौहान, पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की तुलना में ज्यादा मुश्किल में फंस गए हैं। आने वाले समय में उनके लिए इस जटिल चक्रव्यूह को तोड़ना आसान नहीं होगा। राज्य में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार गिराने में सिंधिया की अहम भूमिका रही थी। इसलिए इस बात की पूरी संभावना थी कि वह इस एहसान के बदले भारतीय जनता पार्टी से सख्त मोल-तोल करेंगे। लेकिन भाजपा में शामिल होने के बाद जिस तरह से सिंधिया ने पार्टी नेतृत्व को अपनी ताकत दिखाई और ज्यादातर मांगें पूरी करवाई, उससे साफ है कि शिवराज सिंह चौहान को सत्ता पाने के लिए काफी बड़े समझौते करने पड़े हैं। इसकी टीस अब उनके चेहरे पर भी दिखने लगी है। अहम बात यह भी है कि सिंधिया अब राज्यसभा सांसद भी बन चुके हैं।

दिल्ली में तीन दिन तक मंत्रिमंडल पर माथापच्ची करने के बाद भोपाल पहुंचे शिवराज ने अपनी निराशा छुपाए बगैर एक जुलाई को कहा, “समुद्र मंथन से अमृत निकलता है, शिव विष पी जाते हैं।” उनके निराशा भरे शब्दों से साफ था कि वह भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को अपने पसंद के लोगों को मंत्रिमंडल में शामिल करने के लिए नहीं मना सके। यानी सिंधिया भाजपा नेतृत्व पर भारी पड़ गए। लेकिन विष पीने का बयान यह भी बताता है कि उनके और सिंधिया के बीच खाई चौड़ी होती जा रही है।

शिवराज के बयान के अगले दिन राजभवन में राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने 20 कैबिनेट और आठ राज्य मंत्रियों को शपथ दिलाई। मंत्रिमंडल में शामिल नए चेहरों से साफ हो गया कि अब चौहान के पास आगे अपने चहेतों को शामिल करने की कोई संभावना नहीं रह गई है। कुल 34 मंत्रियों (संवैधानिक तौर पर अधिकतम संख्या) के बाद शिवराज चाहकर भी किसी को मंत्री नहीं बना सकते। पार्टी के नाराज खेमे को खुश करने का मौका शिवराज के पास खत्म हो गया है। उनके लिए समस्या यहीं नहीं खत्म होती है। असल में, उनके मंत्रिमंडल के 14 सदस्यों की निष्ठा ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रति रहेगी, जबकि दूसरे मंत्री, जो भाजपा के वरिष्ठ नेता भी हैं, पार्टी में अंतर्कलह बढ़ाकर मुख्यमंत्री के लिए परेशानी खड़ी कर सकते हैं। (देखे बॉक्स 1 और 2) मुख्यमंत्री के एक बेहद करीबी नेता ने आउटलुक को बताया कि भले ही शिवराज मुखिया हैं, लेकिन उन्हें अपनी टीम चुनने में बहुत समझौता करना पड़ा है। मौजूदा मंत्रिमंडल से साफ तौर पर संदेश गया है कि सिंधिया सुपर सीएम बनकर उभरे हैं। यही नहीं, केंद्रीय नेतृत्व खुद अपने मुख्यमंत्री को कमजोर करना चाहता है। एक बात और समझनी होगी कि भाजपा के वरिष्ठ नेताओं और सिंधिया खेमे के साथियों को मंत्रिमंडल में शामिल करने से शिवराज की मुसीबत खत्म नहीं होने वाली है। उनकी परेशानी को इसी से समझा जा सकता है कि खबर लिखे जाने तक कैबिनेट विस्तार को एक हफ्ते बीत चुके थे, लेकिन अभी तक मंत्रालयों का बंटवारा नहीं हो पाया है। इसके लिए शिवराज दो दिन दिल्ली में केंद्रीय नेतृत्व और सिंधिया के साथ लंबी मीटिंग का दौर बिता चुके हैं। सूत्रों के अनुसार, वफादारों को मंत्रिमंडल में शामिल कराने के बाद सिंधिया उन्हें अहम मंत्रालय दिलाने के लिए भी सख्त मोल-तोल कर रहे हैं।

भाजपा के एक वरिष्ठ विधायक, जिन्हें इस बार मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली है, ने आउटलुक को बताया कि सिंधिया अपने वफादारों के लिए ग्रामीण विकास, ऊर्जा, सिंचाई, राजस्व और लोक निर्माण विभाग चाह रहे हैं। अगर चौहान उनकी मांग को पूरा करने के लिए मजबूर किए जाते हैं, तो साफ है कि वे अपने पुराने साथियों जैसे नरोत्तम मिश्रा, गोपाल भार्गव, यशोधरा राजे आदि को कोई अहम मंत्रालय नहीं दिला पाएंगे। ऐसा हुआ तो यह बात साफ हो जाएगी कि भाजपा नेतृत्व अपने मुख्यमंत्री को चौथे कार्यकाल में कमजोर और असहाय बनाना चाहता है।"

सिंधिया की लगभग सभी मांगों को पूरा करने के लिए तैयार बैठी भाजपा की मजबूरी इस समय सितंबर में होने वाले उपचुनाव हैं। 24 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में उसके लिए सिंधिया का साथ जरूरी है, क्योंकि इन 24 सीटों में से 22 सीटें सिंधिया समर्थकों के पास थीं। सिंधिया की नाराजगी लेकर भाजपा सरकार को खतरे में नहीं डालना चाहती है। इसके अलावा भाजपा का शीर्ष नेतृत्व शिवराज को भी साफ संदेश देना चाहता है कि उन्हें लाल कृष्ण आडवाणी के दौर जैसी छूट केंद्रीय नेतृत्व से नहीं मिलने वाली है। सूत्रों का कहना है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह, शिवराज को सिर्फ इसलिए बर्दाश्त करते रहे हैं, क्योंकि उन्हें लगता था कि राज्य के 29 सांसदों को वे कभी भी उनके लिए परेशानी का सबब बना सकते हैं। लेकिन विधानसभा चुनाव के नतीजों ने उनके इस भ्रम को तोड़ दिया है। भाजपा में एक धड़े का यह भी मानना है कि केंद्रीय नेतृत्व ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पर कतरने के लिए राज्य में दूसरे नेतृत्व को उभारने की तैयारी कर ली है। हालांकि यह भी उतना ही सच है कि पार्टी किसी भी हालत में नए नेतृत्व के नाम पर सिंधिया को बढ़ावा नहीं देगी।

मंत्रिमंडल विस्तार के बाद से सिंधिया लगातार अपने समर्थकों के साथ वर्चुअल मीटिंग कर रहे हैं और पार्टी कार्यकर्ताओं को उपचुनाव के लिए तैयार कर रहे हैं। गौर करने वाली बात यह है कि भाषणों में सिंधिया हमेशा अपने आपको चौहान के समकक्ष ही पेश कर रहे हैं। वह अपने समर्थकों को कह रहे हैं कि उन्हें या तो चौहान और मुझे चुनना होगा या फिर कांग्रेस नेता कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को चुनना होगा। मंत्रिमंडल विस्तार के बाद सिंधिया ने भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कमलनाथ और दिग्विजय सिंह पर भी निशाना साधा। उन्होंने उस मौके पर कहा, “टाइगर अभी जिंदा है।” जाहिर है कि सिंधिया उन नेताओं पर निशाना साध रहे थे, जो उन्हें कांग्रेस छोड़ने पर धोखेबाज कह रहे थे। उनके इस बयान के बाद कमलनाथ ने टिप्पणी की थी, “कागज के शेर या सर्कस के शेर?” कमलनाथ की इस चुटकी पर बिना देरी किए सिंधिया ने करारा जवाब दिया, “मेरे पिता (माधव राव सिंधिया) और मैं अकसर शेर का शिकार करते थे।”

इस बीच, चौहान उन पार्टी विरोधियों को मनाने की कवायद में लगे हैं, जिन्हें मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली है। साथियों की नाराजगी इसलिए भी बढ़ गई है, क्योंकि उनको सिंधिया के वफादारों की वजह से मंत्री पद नहीं मिल पाया। भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री अजय विश्नोई ने मंत्रिमंडल विस्तार से नाराज होकर मुख्यमंत्री को एक पत्र भी लिख डाला है। उनके अलावा भाजपा के दूसरे प्रमुख नेता गौरी शंकर बिसेन और राजेंद्र शुक्ल भी मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिलने से नाराज बताए जा रहे हैं। इन परिस्थितियों में भाजपा की उठा-पठक पर कांग्रेस प्रहार करने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है।

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