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हिमाचल प्रदेशः इम्तिहान की बेला

चार नगर निगमों के चुनाव को अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के सेमीफाइनल के रूप में देखा जा रहा है
सोलन में संकल्प पत्र जारी करते मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर

हिमाचल प्रदेश में 7 अप्रैल को चार नगर निगमों के चुनाव होने हैं। हाल के पंचायत चुनावों में भाजपा समर्थित उम्मीदवारों ने 11 जिला परिषदों में नौ में जीत हासिल की। पंचायत और ब्लॉक स्तर के 70 फीसदी पदों पर उसका कब्जा रहा। भाजपा की कोशिश है कि पार्टी निगम चुनावों में ही वही प्रदर्शन दोहराए। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की कैबिनेट पार्टी के चिह्न पर यह चुनाव लड़ने की मंजूरी पहले ही दे चुकी है।

जयराम ठाकुर सरकार ने अक्टूबर 2020 में तीन शहरों पालमपुर, सोलन और मंडी को नगर निगम बनाया था, जहां इस बार चुनाव का होने जा रहे हैं। इन तीनों के अलावा प्रदेश के दूसरे सबसे बड़े शहर धर्मशाला में भी नगर निगम के चुनाव होंगे। मंडी मुख्यमंत्री का गृह जिला है तो पालमपुर पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार का गृह शहर है। मंडी नगर निगम के फैसले से मंडी लोकसभा उपचुनाव की भी दिशा तय होगी। भाजपा सांसद रामस्वरूप शर्मा की आत्महत्या के कारण यह सीट खाली हुई है।

मंडी, सोलन और पालमपुर को नगर निगम बनाने के लिए जयराम सरकार को अलग तरकीब अपनानी पड़ी। दरअसल, नगर निगम बनाने के लिए कम से कम 40,000 की आबादी होना जरूरी है। लेकिन तीनों नए निगम इस कसौटी पर खरे नहीं उतरते थे। मंडी की आबादी केवल 26,431 है। तब 11 पंचायतों को इसमें मिला दिया गया। इससे मंडी 41,384 आबादी वाला शहर बन गया। इसी तरह, सोलन नगर परिषद की आबादी 39,256 है। इसमें नौ पंचायतों का विलय कर दिया गया, जिससे वहां की आबादी 47,418 हो गई। पालमपुर की आबादी भी 14 पंचायतों के विलय के बाद बढ़कर 40,385 हो गई है। धर्मशाला नगर निगम पर कांग्रेस का कब्जा है, हालांकि विधानसभा और लोकसभा सीटों पर भाजपा विजयी रही थी।

इस चुनाव में बड़े नेताओं की कतार और संसाधनों की बात करें, तो दोनों मामले में भाजपा फिलहाल आगे दिख रही है। प्रदेश के नेताओं का मानना है कि निगम चुनाव के प्रचार में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आएंगे। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा तो हैं ही, जो हिमाचल से हैं।

जहां तक कांग्रेस की बात है तो हिमाचल के पहले मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह परमार को हिमाचल का निर्माता कहा जाता है। उनके बाद वीरभद्र सिंह जैसे प्रभावी नेता भी हुए जो छह बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। लेकिन वीरभद्र 86 साल के हो गए हैं, और उनकी सक्रियता कम हो गई है। लेकिन कांग्रेस उन्हीं से आस लगाए बैठी है। नेतृत्व, संगठन और संसाधन हर मामले में कांग्रेस काफी पीछे नजर आती है।

प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुखविंदर सुक्खू कहते हैं, “हमारा नेतृत्व अब भी कोई करिश्मा करने के लिए वीरभद्र सिंह की ओर देख रहा है। हालांकि वे उम्रदराज हो चुके हैं और निष्क्रिय हैं। फिर भी हम दल को मजबूत करने की बात नहीं सोच रहे हैं।”

भाजपा ने चारों नगर निगमों में सभी मंत्रियों और विधायकों को चुनाव प्रचार में लगा दिया है। कमान मुख्यमंत्री ने खुद संभाल रखी है। कांग्रेस ने चुनाव प्रबंधन के लिए समितियां बनाई हैं, लेकिन उसके पास उम्मीदवारों को निधि देने के लिए संसाधनों का अभाव है। ऐसे में रसूख रखने वाले कांग्रेस उम्मीदवारों से ही कुछ उम्मीद की जा सकती है।

फिर भी, इस पहाड़ी राज्य में स्पष्ट राजनीतिक पूर्वानुमान लगाना आसान नहीं है। यहां हर पांच वर्ष के बाद सता परिवर्तन होता रहा है। ऐसे में नगर निगम चुनाव जयराम ठाकुर के लिए भी बड़ा इम्तिहान है कि उनकी सरकार तीन साल के बाद कहां खड़ी है।

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