Advertisement

वजूद बचाने की जद्दोजहद

कश्मीर घाटी में संविधान और अपनी विशेष स्वायत्तता बचाए रखने की ही चुनावी जंग, बालाकोट और पुलवामा भी बड़ा मुद्दा
श्रीनगर में बोट रैली

श्रीनगर संसदीय सीट के लिए 18 अप्रैल को आम चुनाव के दूसरे चरण के मतदान से उम्मीद है कि नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष डॉ. फारूक अब्दुल्ला राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी से अपनी सीट बचा ले जाएंगे। अब्दुल्ला के खिलाफ किसी भी पार्टी ने मजबूत उम्मीदवार नहीं उतारा। कांग्रेस ने उनके खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं उतारा। इसके बावजूद नेशनल कॉन्फ्रेंस अध्यक्ष ने कोई जोखिम नहीं उठाया। वे लोगों से मिल रहे हैं, पार्टी कार्यकर्ताओं और रैलियों को संबोधित कर रहे हैं और खुद तथा अपनी पार्टी को कश्मीर के एकमात्र मसीहा के तौर पर पेश कर रहे हैं। इन सबसे अधिक, वे खुद को अकीदतमंद मुस्लिम के रूप में पेश कर रहे हैं, जो दिन में पांच बार नमाज अदा करता है।

2017 के उपचुनाव में फारूक अब्दुल्ला ने श्रीनगर की यह संसदीय सीट जीती थी। उस वक्त श्रीनगर, बडगाम और गांदरबल के तीन जिलों में फैले 15 विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर 12.5 लाख मतदाताओं में से केवल 80,000 लोगों ने मतदान किया था। 7 फीसदी मतदान के साथ, पिछले तीन दशकों में यह अब तक का सबसे कम मतदान था। 2014 में, नेशनल कॉन्फ्रेंस के विरोध में जबर्दस्त लहर थी। लोगों को आसानी से अपनी ओर आकर्षित करने वाले अब्दुल्ला श्रीनगर निर्वाचन क्षेत्र से पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के तारिक हामिद कर्रा से 42,280 वोटों से हार गए थे। उस वक्त 26 फीसदी मतदान हुआ था। यह पहली बार था जब फारूक अब्दुल्ला कोई चुनाव हारे थे।

फारूक अब्दुल्ला अपनी बात लोगों तक पहुंचा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य में एनसी और पीडीपी के “दशकों पुराने वंशवादी शासन” को खत्म करने का आह्वान किया, तो अब्दुल्ला ने श्रीनगर की अपनी विभिन्न रैलियों में प्रधानमंत्री को इसका जवाब दिया। उन्होंने कहा, “भाजपा भावनात्मक मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाने की कोशिश कर रही है।” उन्होंने बालाकोट पर हवाई हमले का मुद्दा भी उठाया और पुलवामा में सीआरपीएफ पर हुए हमले के लिए खुफिया एजेंसियों की खामियों पर भी सवाल उठाए। हालांकि, पिछले एक महीने से कश्मीर घाटी में उनका पूरा ध्यान भारतीय संविधान में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले, अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए पर ही रहा है। भाजपा ने लगातार अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए को निशाना बनाया है और घोषणा-पत्र में इसे शामिल भी किया है। ऐसे में अब्दुल्ला ने लोगों से कहा कि केवल उनकी पार्टी ही भाजपा को इसमें बदलाव करने से रोक सकती है।

नेशनल कॉन्फ्रेंस के मुखिया फारूक अब्दुल्ला

वे श्रीनगर में भाजपा का “इन लोगों” और उनके सहयोगियों को “भाजपा के गुर्गे” के रूप में जिक्र करते हैं। वे कहते हैं कि वे लोग भारत के संविधान की रूपरेखा बदलना चाहते हैं, जो सभी को समान अधिकार और अवसर देता है। मोदी ने जैसे ही राज्य में 'दशकों पुराने वशंवाद' के खात्मे की बात की, अब्दुल्ला ने तुरंत अपने भाषण में कहा, “यह भारत का संविधान है जो किसी भी आस्‍था को मानने का अधिकार देता है। यह हमारे राज्य को कुछ संवैधानिक सुरक्षा का अधिकार देता है। यह हमारे राज्य को अनुच्छेद 35ए और 370 के माध्यम से विशेष दर्जा देता है। इन लोगों ने हमेशा हमारे विशेष दर्जे और विशेष संवैधानिक स्थिति के प्रति नफरत दिखाई है।” उन्होंने श्रीनगर की एक रैली में कहा, “ये लोग” ऐसे घोषणा-पत्र के साथ आए, जिसमें जाहिर तौर पर हमारे राज्य की पहचान के लिए नफरत है। अब्दुल्ला ने भाजपा और पीपुल्स कॉन्फ्रेंस का जिक्र करते हुए कहा, “उन्होंने जानबूझकर घोषणा-पत्र में अनुच्छेद 370 और 35ए के प्रावधानों के साथ खिलवाड़ करने की कसम खाई है। उनका एकमात्र एजेंडा यहां की जनसांख्यिकी को बदलना है। मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि वे आग से खेल रहे हैं। इसके लिए, उन्होंने हमारे राज्य में कई गुर्गे लगाए हैं। ऐसे लोगों को हाथों में ‘इंक पॉट’ और ‘सेब’ लिए हुए देखा जा सकता है। भाजपा और उनके सहयोगियों का एकमात्र उद्देश्य हमारे राज्य में भूमि और संपत्ति की खरीद को राज्य के विषय से बाहर करना है।” एनसी का मानना है कि सज्जाद गनी लोन की पीपुल्स कॉन्फ्रेंस राज्य में भाजपा की बी-टीम की तरह काम करती है। हालांकि, लोन इन आरोपों को नकारते रहे हैं। अब्दुल्ला का कहना है कि केवल उनकी पार्टी ही भारतीय संघ में राज्य की अलग पहचान बचाएगी। वे कहते हैं, “मेरी पार्टी किसी को भी राज्य के विशेष दर्जे के साथ खिलवाड़ नहीं करने देगी। हम राज्य की पहचान, अखंडता और बहुलतावादी चरित्र की रक्षा करते रहे हैं और करते रहेंगे।”

अपनी पार्टी की महिला कार्यकर्ताओं को वानवुन (पारंपरिक कश्मीरी शादी के गीत) गाने के लिए प्रोत्साहित कर चुनावी अभियान को रंगीन बनाने के लिए मशहूर अब्दुल्ला इन दिनों निराश नजर आते हैं। यहां तक कि एक चुनावी रैली में उन्होंने युवतियों को इबादत करने की भी सलाह दी। उन्होंने कहा, “इबादत जरूर करनी चाहिए। मेरे पिता मुझसे इबादत करने के लिए कहते थे। यह धीरज और सुकून देती है।” अब्दुल्ला अपने समर्थकों से कहते हैं कि वे यहां अनुच्छेद 370 को बचाने के लिए हैं। उन्‍होंने यह भी कहा कि यदि इसे हटाया जाता है, तो कश्मीर भारत से आजाद हो जाएगा। उनके विरोधियों का कहना है कि अब्दुल्ला वही शख्स हैं, जिन्होंने 1999 में भाजपा का सहयोगी बनना चुना था। उस वक्त जब विधानसभा में बहुमत से स्वायत्तता का प्रस्ताव पारित किया गया, तो उसे अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाले एनडीए ने सिरे से खारिज कर दिया था। तभी से स्वायत्तता की बहाली एक रिवाजी मुद्दा बन गया है, जो चुनावों के आस-पास जिंदा हो जाता है और फिर इसे भुला दिया जाता है।

हालांकि यह भी सही है कि अब्दुल्ला कभी मोदी के प्रशंसक रहे हैं। 2011 में अहमदाबाद की एक सभा में उन्होंने कहा था कि वे उस दिन के लिए तरस रहे हैं जब वे मोदी की आंखों में अल्लाह को देखेंगे। भाजपा की सहयोगी रही पीडीपी का भी अक्सर कहना था कि केवल प्रधानमंत्री मोदी ही कश्मीर का हल कर सकते हैं। सज्जाद लोन उन्हें अपना बड़ा भाई बता चुके हैं और कहते हैं कि अब अब्दुल्ला को “मोदी की आंख में अल्लाह” वाली टिप्पणी याद दिलाने के लिए कश्मीर में कोई नहीं है। इन दिनों अब्दुल्ला को मोदी की आंखों में विभाजनकारी होने के अलावा कुछ भी नहीं दिखता और श्रीनगर में उनके कार्यकर्ताओं को उन पर भरोसा है। अब देखिए आगे होता है क्या!

Advertisement
Advertisement
Advertisement