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अंदरखाने

सियासी दुनिया की हलचल
सुब्रमण्यम स्वामी

“राम के भारत में पेट्रोल 93 रुपये, सीता के नेपाल में 53 रुपये और रावण की लंका में पेट्रोल 51 रुपये है।

सुब्रमण्यम स्वामी, भाजपा सांसद

बढ़ती मुसीबत

बिहार में कांग्रेस पार्टी की मुसीबतें कम नहीं हो रही हैं, और न ही इसके नए राज्य प्रभारी की। हालिया विधानसभा चुनाव में बेहद खराब प्रदर्शन के बाद उन्हें आलाकमान ने यहां भेजा तो जरूर, लेकिन उन्हें हर जिले में विरोध के स्वर सुनने को मिल रहे हैं। पार्टी ने महागठबंधन के घटक दल के रूप में राज्य की 243 में से सिर्फ 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसके कारण अनेक नेता चुनाव लड़ने से वंचित हो गए। पार्टी के एक पूर्व नाराज विधायक ने केंद्रीय प्रभारी के आरा भ्रमण के दौरान खूब खरी-खोटी सुनाई। उन्हें पूर्व में भी विधान परिषद के बाहर गमले फोड़ते हुए देखा जा चुका है। गनीमत है, इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ।

खौफ में नेता

दिल्ली से सटे हरियाणा के सिंघु, कुंडली और टिकरी सीमा पर तेज हुए किसान आंदोलन से सत्तासीन नेताओं में डर बैठ गया है। किसी ने ऐसी कल्पना नहीं की होगी कि गणतंत्र दिवस पर नेता लोगों के बीच जाने से डरने लगेंगे। कई बार फेरबदल के बावजूद चाक-चौबंद सुरक्षा प्रबंधों के बीच, गणतंत्र दिवस से एक दिन पहले हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का पानीपत में ध्वाजारोहण कार्यक्रम आंदोलनरत किसानों के बहिष्कार के डर से बदल दिया गया। राज्यपाल को तो किसी बहिष्कार का डर नहीं था, पर उन्हें राजभवन में ही ध्वजारोहण इसलिए करना पड़ा क्योंकि जहां उन्हें जाना था वहां मुख्यमंत्री का कार्यक्रम तय कर दिया गया। सबसे ज्यादा खौफजदा राज्य के कृषि मंत्री जे.पी. दलाल ने तो ध्वजारोहण से ही किनारा कर लिया। खौफ इस कदर था कि प्रदेश भर में कार्यक्रमों के समापन के बाद मंत्रियों में इस बात को लेकर मंत्रणा होती रही कि सब कुछ ठीक रहा?

कलेक्टर बनने की लंबी लिस्ट

मध्य प्रदेश में कलेक्टर बनने के लिए लंबी प्रतीक्षा सूची बन गई है। हालात इतने खराब हैं कि सीधी भर्ती वाले आइएएस को भी समय पर कलेक्टरी नहीं मिल पा रही है। यह स्थिति दो सालों से लगातार बनी हुई है। आगे कई सालों तक इसमें सुधार के कोई संकेत भी नहीं दिख रहे हैं। जाहिर है, मध्य प्रदेश का कैडर मैनेजमेंट पूरी तरह गड़बड़ा गया है। प्रदेश में 52 जिले होने की वजह से इतने ही कलेक्टर एक बार में बनाए जा सकते हैं, जबकि कलेक्टर बनाए जा सकने वालों की संख्या सौ से भी अधिक है। ऐसे में बहुत से ऐेसे लोग होंगे जो शायद कलेक्टर बन ही न पाएं। आइएएस अधिकारी अब अफसोस कर रहे हैं कि मध्य प्रदेश कैडर क्यों चुना, क्योंकि दूसरे राज्यों में उनके बैच वाले आसानी से और लंबे समय के लिए कलेक्टर बन रहे हैं।

दबाव में मुखिया

मध्य प्रदेश में बहुत से निगम-मंडलों में नियुक्तियां होनी हैं। माना जा रहा था कि मंत्रिमंडल में स्थान न पाने और पार्टी में मजबूत पकड़ रखने वालों को जल्द ही इनमें नियुक्तियां मिल जाएंगी। मुख्यमंत्री पर लगातार दबाव बढ़ता जा रहा है, लेकिन दावेदारों की लंबी सूची है। यहां भी पार्टी संगठन के स्तर पर ही नाम तय होने हैं। मुख्यमंत्री अपने करीबी लोगों को स्थान दिलाना चाहते हैं। इसके अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया की ओर से स्पष्ट कर दिया गया है निगम-मंडलों में उनके समर्थकों को स्थान अवश्य दिया जाए। ऐसे में मुख्यमंत्री को अंतिम फैसला लेने में भारी परेशानी आ रही है।

बोलना पड़ गया भारी

झारखंड में प्रधान सचिव महोदय की दरबार में अच्छी पैठ है। उनका अपना रुतबा है। मौका नए लोगों को नियुक्ति पत्र बांटने का था। साहब ने कह दिया कि लोग डॉक्टर इसलिए बनते हैं ताकि मोटा दहेज मिले और काम भी न करना पड़े। मगर यह डॉक्टरों को रास नहीं आया। लोग विरोध और आंदोलन पर उतर आए। उनके संगठन ने भी सचिव महोदय की जमकर आलोचना की। अंतत: एक माह बीतेते-बीतते साहब को सरकार ने चलता कर मामूली विभाग दे दिया।

वर्दीधारी को झटके पर झटका

बिहार में बहुचर्चित वर्दीवाले साहब ने सरकारी सेवा, रिटायरमेंट के कुछ महीनों पहले स्वेच्छा से छोड़ दी थी, इस उम्मीद के साथ कि मंत्री बनेंगे। लेकिन टिकट तो मिला नहीं, अब इस पर भी सस्पेंस बरकरार है कि उन्हें विधान परिषद में मनोनीत किया जाएगा या नहीं। अगर उनकी पार्टी को विधानसभा में संख्या बल के आधार पर मंत्रिपद का बंटवारा करना पड़ता है, तो उनके मंत्री बनने के अरमानों को धक्का लग सकता है, क्योंकि उनसे ज्यादा अनुभवी रेस में हैं।

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