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अंदरखाने

सियासी दुनिया की हलचल
अमिताभ कांत

भारत में जरूरत से ज्यादा लोकतंत्र है, इसलिए कड़े आर्थिक सुधार करना काफी मुश्किल है अमिताभ कांत, सीईओ, नीति आयोग

 

खामोश हुए नेताजी

रोज मीडिया में छाए रहने वाले बिहार के नेताजी इन दिनों खामोश हैं। सूबे में चुनाव के बाद छोटा भाई, बड़ा भाई बना गया है। मगर यह क्या, पार्टी तो बड़ी हो गई, बड़े भाई छोटे हो गए। उनके पर कतर दिए गए। सूबे में पार्टी की कमान संभालने से लेकर लंबे समय तक मलाईदार विभाग संभाला। अचानक पार्टी ने पैदल कर दिया तो खामोश होना स्वाभाविक है। कहा यह भी जा रहा है कि उन्हें महामहिम बनाकर कहीं एडजस्ट किया जा सकता है। अब देखना है कि वह अवसर कब आता है। आता भी है तो उन्हें कितना पसंद आता है क्योंकि उन्होंने अपना बड़ा कारोबारी साम्राज्य फैला लिया है।

मैडम की नहीं चली

झारखंड में मैडम का एक बड़ा अस्पताल है। खैर, उसे होटल कहना बेहतर होगा। फाइव स्‍टार वाला अंदाज है। यहां इलाज से ज्यादा सेवा की व्यवस्था है। प्रवेश करते ही मीटर ऑन हो जाता है। यह सब काम साहब संभालते हैं। पूरा कॉरपोरेट स्टाइल है लेकिन कामगारों पर ध्यान नहीं है। कामगारों का भविष्‍य देखने वाले विभाग ने गड़बड़ी पकड़ ली और मोटा जुर्माना लगा दिया। जुर्माना लगा तो मैडम नाराज हो गईं। मैडम भी कोई ऐसी-वैसी नहीं, अफसर हैं। फोन घुमा दिया। मगर जिस विभाग ने यह कार्रवाई की उससे उनका कोई लेना-देना तो था नहीं। सो मान रख लिया, मगर 15 लाख रुपये पेनाल्‍टी तो देनी ही पड़ी। यानी मैडम का रुतबा काम नहीं आया। इसके बाद से मैडम खासी नाराज भी बताई जा रही हैं। जुर्माना लगाने वाले अपने मित्र से कह रहे थे आप लाख जुर्म करो सब खून माफ, यह नहीं चलेगा।

ब्यूरोक्रेसी पर नकेल

मध्य प्रदेश में शिवराज सरकार ब्यूरोक्रेसी पर नकेल कसने की तैयारी में है। इसके तहत 20 और 50 का फॉर्मूला लागू करने पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। इसकी भनक लगते ही कई अधिकारियों के होश उड़ गए हैं। नए फॉर्मूले में अगर सरकार को लगता है कि अधिकारी अच्छा काम नहीं कर रहे हैं, तो उन्हें सेवा मुक्त किया जा सकता है। खैर इसकी पहल कमलनाथ सरकार ने कर दी थी, जब तीन अध‌िकारी इसकी जद में आए थे और एक को सेवामुक्त होना पड़ा था। देखना यह है कि शिवराज की गाज किन लोगों पर गिरती है, या फिर कोई पेंच फंस जाता है। नई नीत‌ि में जिन अध‌िकारियों की नौकरी 20 साल हो चुकी है या जिनकी उम्र 50 साल से ज्यादा है, वे लोग स्क्रूटनी में आएंगे।

अब मिला मौका

किसान आंदोलन ने सत्ताधारी पार्टी में भी कई नेताओं को मौके दे दिए हैं। असल में अभी तक चुप बैठे कई नेताओं को मौका मिल गया है। बढ़ते किसान आंदोलन में कहां चूक हुई और आगे की क्या रणनीति बनाई जाए, इस पर ऐसे नेता आजकल पार्टी की बैठकों में काफी मुखर हो रहे हैं। उनका कहना है कि अगर सभी लोगों की सुनी गई होती तो यह स्थिति नहीं आती। एक नेता जी तो यहां तक कहते हैं कि इस समय हम बैकफुट पर हैं। मशीनरी लगी हुई है लेकिन इस बार किसानों का रुख देखते हुए राह आसान नहीं दिखती है।

युवा को मिलेगा मौका

मध्य प्रदेश कांग्रेस को नया चेहरा मिलने वाला है। इसकी लगभग तैयारी हो गई है। नए फॉर्मूले के तहत कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष बने रहेंगे लेकिन नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी किसी युवा चेहरे को दी जाएगी। इसके लिए कई लोगों पर नजर है। लेकिन आलकमान की सबसे बड़ी चिंता यह है कि ऐसा चेहरा ढूंढा जाए जो न केवल जनता में अच्छा संदेश पहुंचा सके बल्कि पार्टी की गुटबाजी को भी मैनेज कर सके। खास तौर से जो कमलनाथ और दिग्विजय दोनों को साध सके।

प्रचार तंत्र पर भरोसा

केंद्र सरकार के सामने इस समय किसान चुनौती बन कर खड़े हो गए हैं। विपक्ष भी हमलावर है। ऐसे में नए कृषि कानून को फायदेमंद बताने की भी होड़ सरकार में लग गई है। इसके लिए कृषि मंत्रालय और दूसरे संबंधित मंत्रालय बुकलेट तैयार करने में लग गए हैं। इसमें निजी क्षेत्र के साथ मिलकर खेती करने वाले किसानों की सफलता की कहानियां पेश की जा रही हैं। कोशिश है कि लोगों के सामने यह कहानियां पहुंचाकर जनता के मन को बदला जा सके।

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