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अंदरखाने

सियासी दुनिया की हलचल
अगर महामारी दैवीय घटना है तो हम 2017 से 2020 के दौरान अर्थव्यवस्था के कुप्रबंधन को क्या कहेंगे? क्या वित्त मंत्री “देवदूत” की तरह जवाब देंगी? पी.चिदंबरम, पूर्व वित्त मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता

बड़ी जिम्मेदारी

उत्तर प्रदेश में 2022 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इसको लेकर भाजपा ने जिले स्तर पर पदाधिकारियों की नियुक्ति कर दी है।  प्रदेश अध्यक्ष की कमान स्वतंत्र देव सिंह को ही दोबारा मिल गई है। लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा प्रदेश स्तर पर काफी ताकतवर एक पदाधिकारी को लेकर है। असल में उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को बड़ी जीत दिलाने में इस नेता की बड़ी भूमिका रही है। ऐसे में चर्चा है कि उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है। हालांकि नेता जी प्रदेश में इतने ताकतवर हो चुके हैं कि कई बार कहा जाता है कि वे लखनऊ से ज्यादा दिल्ली की सुनते हैं।

वर्दी की हनक हुई दूर

खाकी का खौफ दिखाकर न जाने कितनी ही मासूम जिंदगियों को उनके अपनों से जुदा करने वाला आज खुद खौफजदा है। हत्या के आरोप में घिरे पंजाब पुलिस के एक पूर्व महानिदेशक न जाने कितने दरवाजे खटखटा रहे हैं। फिलहाल तो राहत मिलती नहीं ‌िदख रही है लेकिन रसूखदारों का कोई ठिकाना नहीं है। यूं तो उनके 36 साल पुलिस कैरियर में गैर-कानूनी हिरासत में यातना और उगाही के आरोप भी उछलते रहे हैं लेकिन 29 साल पुराने एक मामले में वे ऐसे फंसे कि अब छुटकारा मुश्किल लग रहा है। यह मामला हिरासत में मौत का है। मामला खुलने पर अपने रसूख से वे इसकी सीबीआइ जांच टलवाने में भी कामयाब हो गए थे। लेकिन फिजा बदली और पीड़ित के परिजनों के लगातार इंसाफ की लड़ाई की वजह से आज वे उसी वर्दी से भागे फिर रहे हैं, जिसका रुतबा दिखाया करते थे।

टिकट कटने का डर

बिहार में चुनाव‍ सिर पर है। 15 साल बनाम 15 साल का मामला है। युवा ब्रिगेड को नैया पार लगाने की जिम्मेदारी है। चुनावी गणित के माहिर को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया है। तालमेल पर पूरा गणित फिट किया जा रहा है कि सिर्फ सीटों में हिस्सेदारी न हो बल्कि जीत की गारंटी हो। कोटे में कोटा का हिसाब लगाया जा रहा है। उनके गठबंधन में सामाजिक न्याय से आने वाली दो पार्टियां हैं। उन पार्टियों के प्रमुखों ने उसी रूप में पहचान बनाई है। एक नई पार्टी के प्रमुख तो अच्छे खासे पैसे वाले हैं। बीते चुनाव में सीटों का हिसाब लगा तो लोगों ने अपनी बिरादरी छोड़ दूसरों को टिकट बांट दिया। इस बार सीटों का हिसाब इस तरह लगाया जा रहा है कि सीट जो भी देंगे उसमें जाति विशेष के लोगों की बहुलता होनी चाहिए ताकि बड़े भाई की पहचान सामाजिक न्याय के पुरोधा वाली बनी रहे। ऐसे में बड़े भाई की पार्टी के मल्लाह और कुशवाहा जाति के नेता सशंकित हैं।

मेरे अंगने में तुम्‍हारा क्या काम

झारखंड कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप बालमुच्चू को कांग्रेस पार्टी के कार्यालय में देख सब भौंचक थे। समय बदला और उनकी कुर्सी चली गई। बीते चुनाव में जीत की संभावना का आकलन करते हुए पार्टी से निकल लिये, आजसू का दामन थाम लिया। जिसे पार्टी निकाल दे, वह फिर पार्टी दफ्तर में दिखे तो आश्चर्य लाजिमी है। पुराने कांग्रेसी नेता पीएन सिंह की पुण्यतिथि में शामिल होने बालमुच्चू पहुंचे थे। खैर, प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव से आमना-सामना हुआ तो उन्होंने कुशल क्षेम पूछ लिया। एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि कोई घर आये, स्वागत है। लेकिन यह भी कह गए कांग्रेस में अब उनका क्या काम है।

जंग जारी है

झारखंड में कार्यकारी पुलिस महानिदेशक के पद पर एमवी राव की तैनाती को लेकर यूपीएससी और राज्य सरकार के बीच तनातनी जारी है। सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में पुलिस महानिदेशक के पद पर तैनाती के लिए वरीयता का ध्यान रखते हुए दो साल की मियाद तय कर दी थी। पूर्व डीजीपी के.एन. चौबे, रघुवर सरकार के शासन के दौरान डीजीपी बने थे। नौ माह की सेवा के बाद ही हेमंत सरकार ने उनके बदले कार्यकारी डीजीपी के पद पर एमवी राव को बैठा दिया। पुराने डीजीपी के कार्यकाल और कार्यकारी डीजीपी का पद नहीं होने के हवाले से सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इसे सर्विस मैटर बताकर सुनने से इनकार कर दिया। लगा विवाद पर विराम लग गया। विवाद के दौरान ही एमवी राव को नियमित डीजीपी बनाने के लिए राज्य सरकार ने यूपीएससी को पांच अधिकारियों का पैनल भेजा था। पैनल को यूपीएससी ने खारिज करते हुए कई सवाल किये थे। अब पुन: यूपीएससी का नया पत्र आया है कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश मिलने पर ही नया पैनल बनायेंगे। जानकार बताते हैं कि पूर्व डीजीपी की यूपीएससी में पैठ है, विवाद आसानी से थमने वाला नहीं है।

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