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अंदरखाने

सियासी दुनिया की हलचल
एक तसवीर हजार शब्दों पर भारी होती है। यह कहावत राज्य सभा में चरितार्थ होती दिखी। मौका कांग्रेस से नए-नए भाजपा में शामिल हुए ज्योतिररादि त्य सिंधिरया के शपथ ग्रहण का था। वहां पर उनका सामना पुराने साथी दिग्विगजय सिंपह और गुलाम नबी आजाद से हुआ। जाहिजर ह

कुछ लोगों को लगता है कि राम मंदिर बनने से कोरोना खत्म हो जाएगा।

शरद पवार, अध्यक्ष, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी

कौन बनेगा पोस्टर ब्वॉय

मध्य प्रदेश में भले ही भाजपा ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के सहारे सत्ता हासिल कर ली है, लेकिन अब उसके साइड इफेक्ट दिखने लगे हैं। मामला उपचुनाव में पोस्टर ब्वॉय बनने का है। असल में जिन क्षेत्रों में उपचुनाव होने वाले हैं, वहां पर ज्यादातर प्रभाव ज्योतिरादित्य सिंधिया का है। ऐसे में स्थानीय नेता प्रचार में यह नहीं समझ पा रहे हैं कि पोस्टर पर प्रमुखता से सिंधिया की फोटो लगाई जाए या फिर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की। समाधान के लिए मामला जब दोनों नेताओं के पास पहुंचा तो वहां भी बात नहीं बनी। साफ है कि भले ही पार्टी एक हो गई है, लेकिन नेताओं के दिल अभी एक नहीं हुए हैं।

रिटायरमेंट की तैयारी

एक प्रमुख सरकारी बैंक के चेयरमैन इस साल दिसंबर में रिटायर होने वाले हैं। लेकिन उनकी रिटायरमेंट बाद की पारी की अभी से सुगबुगाहट होने लेगी है। ऐसी चर्चा है कि इसके लिए वह अभी से किसी अच्छे पद की तलाश में हैं। बैंक के वरिष्ठ अधिकारियों में भी यह बात होने लगी है कि साहब के तेवर पिछले कुछ समय से बदले नजर आ रहे हैं और वे रिटायरमेंट बाद की तैयारी में पूरी तरह से जुट गए हैं। देखना यह है कि उनकी मुराद पूरी होती है या नहीं। हालांकि पिछले चेयरमैन का रिकॉर्ड देखते हुए यह आसान दिखता है।

संन्यास का इरादा

लगता है कि भाजपा के बाद कांग्रेस में भी अब वरिष्ठ नेताओं को संन्यास की राह पकड़ाई जाएगी। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता, जो काफी लंबे समय से कांग्रेस परिवार के करीबी भी रहे हैं, उनके संन्यास लेने की चर्चा है। उनको लेकर पार्टी में कई बार कुछ वरिष्ठ नेताओं ने यह मांग उठाई थी, कि अब उन्हें सक्रिय राजनीति से किनारा कर लेना चाहिए। जिस तरह से सचिन पायलट का मामला सामने आया है, लगता है कि शीर्ष नेतृत्व इन संभावनाओं को तलाश रहा है। हालांकि कांग्रेस में ऐसा आसानी से हो जाए, ऐसा इतिहास तो नहीं रहा है।

अध्यक्ष के बहाने दो शिकार

हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष को लेकर भाजपा ने फिर से जाति के समीकरण का कार्ड खेला है। जाट चेहरे सुभाष बराला की जगह दूसरे जाट चेहरे ओमप्रकाश धनखड़ को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी गई है। हालांकि दौड़ में धनखड़ से कहीं दिग्गज जाट चेहरा कैप्टन अभिमन्यु का भी था, पर उन्हें दरकिनार करते हुए भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने धनखड़ पर दांव खेला है। अध्यक्ष पद के लिए अभिमन्यु पिछले छह महीने से दिल्ली में रहकर कड़ी लॉबिंग कर रहे थे। अभिमन्यु और किसी अन्य जाट नेता का खेल बिगाड़ने के लिए मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने हाइकमान से यहां तक कह दिया था कि बराला की जगह किसी अन्य जाट नेता को ही अध्यक्ष बनाना है तो क्या बराला ही इस पद पर नहीं बने रहे सकते। जाट चेहरे की काट में मुख्यमंत्री खट्टर ने ओबीसी वर्ग से ताल्लुक रखने वाले अपने खासमखास सांसद नायब सिंह सैनी का नाम भी प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए आगे बढ़ाया, पर इस खेल में खट्टर भी पूरी तरह से हाशिए पर आ गए। भाजपा हाइकमान ने भी धनखड़ को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर एक तीर से दो निशाने साधे। एक तो विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की टक्कर में उनके ही इलाके के जाट नेता को मौका दिया, वहीं सरकार के समानांतर पार्टी संगठन में हस्तक्षेप से मुख्यमंत्री खट्टर को दूर रखा।

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