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पंजाबः कैप्टन की पिच पर नहीं जमे सिद्धू

सिद्धू पुराना स्थानीय निकाय विभाग चाहते हैं, लेकिन यह विभाग अमरिंदर के खास ब्रह्म महिंद्रा के पास
कांग्रेस में भी नहीं हो सकी सिद्धू की शानदार वापसी

अमरिंदर सिंह सरकार में पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू की फिलहाल वापसी नहीं हो रही है। चंडीगढ़ के पास मुख्यमंत्री के सिसवां फार्म हाउस में 17 मार्च को कैप्टन-सिद्धू वार्ता में कैबिनेट में वापसी पर सहमति तो बनी, लेकिन मंत्रालय पर ठन गई। आउटलुक से कैप्टन ने कहा, “नवजोत को मैं तबसे जानता हूं, जब वे दो साल के थे। मैं कांग्रेस में शामिल हुआ तो उनके पिता सरदार भगवंत सिंह सिद्धू पटियाला जिले के कांग्रेस अध्यक्ष थे। मैं सिद्धू को तुरंत मंत्री की शपथ दिलाना चाहता हूं पर वे कुछ मोहलत चाहते हैं।”

दरअसल, सिद्धू चाहते हैं कि उन्हें उनका पुराना स्‍थानीय निकाय मंत्रालय मिले, पर यह अभी कैप्टन के करीबी ब्रह्म महिंद्रा के पास है। कैप्टन के गृह क्षेत्र पटियाला ग्रामीण से ब्रह्म महिंद्रा लगातार पांच बार के विधायक हैं। कैप्टन ने कहा, “क्या ब्रह्म महिंद्रा अच्छा काम नहीं कर रहे?” इशारा साफ था कि वे ब्रह्म महिंद्रा से यह विभाग लेकर सिद्धू को नहीं देना चाहते।

सिद्धू को साधने की डिप्लोमेसी सिरे चढ़ती न देख मुख्यमंत्री ने भी उन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया है। सिद्धू को भी लगता है कि कैप्टन के रहते पंजाब कांग्रेस में उनकी दाल नहीं गलने वाली। इसलिए वे ट्वीट करने में लगे हैं, जिनमें निशाने पर कैप्टन ही होते हैं। 26 मार्च को ट्विटर हैंडल @शैरीऑनटॉप पर सिद्धू ने लिखा, “हमारी अफवाहों का धुआं वहीं से उठता है, जहां हमारे नाम से आग लग जाती है।” 30 मार्च को लिखा, “अर्जुन, भीम सारे समा गए इतिहास में, पर शकुनि के पासे अब हैं सियासी लोगों के हाथ में। दांव खेला है पंजाब में।” कैप्टन से 17 मार्च को मुलाकात से एक दिन पहले सिद्धू ने लिखा था, “अच्छा इनसान मतलबी नहीं होता, बस दूर हो जाता है उन लोगों से, जिन्हें उनकी कदर नहीं होती।”

कांग्रेस आलाकमान सिद्धू को मुख्यधारा में लाना चाहता है, इसलिए सिद्धू और कैप्टन के बीच मतभेद खत्म कराने की कोशिश की जा रही है। मुख्यमंत्री के प्रमुख सलाहकार और चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने भी उन्हें चुनाव से पहले सिद्धू को साधने की सलाह दी। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और पंजाब प्रभारी हरीश रावत अक्टूबर 2020 से लगे हैं। उनके प्रयासों से सिद्धू-कैप्टन की दो मुलाकातें हुईं भी, लेकिन अब मामला मंत्रालय पर अटक गया है। कैप्टन 2022 के विधानसभा चुनाव से नौ महीने पहले मंत्रिमंडल में कोई बड़ा फेरबदल करके किसी मंत्री को नाराज कर सिद्धू को एडजस्ट नहीं करना चाहते।

सिद्धू से जुलाई 2019 में स्थानीय निकाय मंत्रालय इन आरोपों के साथ छीना गया कि लोकसभा चुनाव में पंजाब में कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया। हालांकि पार्टी ने प्रदेश की 13 में से आठ सीटों पर जीत दर्ज की थी। तब कैप्टन ने उन्हें पावर मंत्री बनाकर एक तरह से पावरलेस कर दिया था। नाराज सिद्धू ने इस्तीफा दे दिया। सवा साल तक वे अपने हलके अमृतसर के कांग्रेसियों से भी दूर रहे। विधानसभा सत्रों में भी नहीं आए। यही नहीं, अपना अमृतसर निवास छोड़ करीब एक साल कटरा वैष्णो देवी मंदिर के निकट एकांतवास में गुजारा। वे अक्टूबर 2020 में पंजाब में राहुल गांधी की ट्रैक्टर रैली में कांग्रेस के मंच पर आए। प्रियंका गांधी के साथ भी दिखे और फरवरी में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की।

कांग्रेस में यह चर्चा अक्सर होती है कि सिद्धू के पास कोई चारा नहीं है। तीन बार अमृतसर से भाजपा का लोकसभा सांसद रहने के बाद सिद्धू ने राज्यसभा की सदस्यता ठुकरा कर भाजपा में वापसी का रास्ता बंद कर लिया। वैसे भी कृषि कानूनों के विरोध में किसानों के आंदोलन से 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए खाता खोलना भी मुश्किल है।

आम आदमी पार्टी (आप) के अरविंद केजरीवाल से भी सिद्धू के संपर्क की चर्चा है, पर पंजाब में आप का जनाधार 2017 के विधानसभा चुनाव जैसा नहीं दिख रहा। 20 विधायकों के साथ विपक्ष की भूमिका निभा रही आप का यहां कोई मुख्यमंत्री चेहरा नहीं है। पार्टी सिद्धू को आगे करती है तो आप में बगावत हो सकती है। मुख्यमंत्री का सपना पाले आप सांसद भगवंत मान को पार्टी में सिद्धू की एंट्री मंजूर नहीं।

सिद्धू ने 2017 में भाजपा छोड़ी थी। तब केजरीवाल से कई दौर की मुलाकात भी की, लेकिन मुख्यमंत्री के रूप में पेश करने पर पेंच फंस गया। तब सिद्धू प्रियंका गांधी के रास्ते कांग्रेस में आ गए। कैप्टन के कद को देखते हुए कांग्रेस आलाकमान ज्यादा दबाव डालने की स्थिति में नहीं है। इसलिए सिद्धू के पास फिलहाल कांग्रेस में ही बने रहने का विकल्प बचा है।

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