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जनादेश 2022/इंटरव्यू/ शंकर सिंह वाघेला : “संघ कहां? सिर्फ भाजपा”

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से राजनीति शुरू कर जनसंघ होते हुए इस विधानसभा चुनाव से चार महीने पहले उन्होंने प्रजा शक्ति डेमोक्रेटिक पार्टी बनाने का लंबा सफर तय किया है
शंकर सिंह वाघेला

गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री और यूपीए-1 में केंद्रीय मंत्री रह चुके 82 वर्षीय शंकर सिंह वाघेला राज्य के सबसे ज्यादा उम्रदार और तजुर्बेदार नेता हैं। इस उम्र में अब तक सक्रिय नेताओं में वे गुजरात में इकलौते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से राजनीति शुरू कर जनसंघ होते हुए इस विधानसभा चुनाव से चार महीने पहले उन्होंने प्रजा शक्ति डेमोक्रेटिक पार्टी बनाने का लंबा सफर तय किया है। स्थानीय लोगों में ‘बापू’ नाम से पुकारे जाने वाले वाघेला का मानना है कि देश में लोकतंत्र को बचाने के लिए भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से हटाना सबसे जरूरी काम है और इस विधानसभा चुनाव के बाद वे इसी अभियान में जुटेंगे। गांधीनगर के अपने भव्य आवास ‘वसंत वागडो’ पर उन्होंने समकालीन राजनीति पर आउटलुक के लिए अभिषेक श्रीवास्तव के साथ लंबी चर्चा की। प्रस्तुत हैं खास अंश

आपका राजनीतिक सफर करीब पचास साल का है। इस लंबे सफर में गुजरात की राजनीति तीस साल से एक ही पार्टी में अटकी हुई है। इस गतिरोध को आप किस तरह देखते हैं?

गुजरात मूल रूप से दक्षिणपंथी विचारधारा का राज्य है। इसमें राष्ट्रवाद और धर्म प्राथमिकता होती है। यह सकारात्मक हो तो अलग बात है लेकिन जब नकारात्मक हो जाए तो लोग उसमें अपनी सुरक्षा का अहसास करने लग जाते हैं। भाजपा ने तीस साल से दिमाग में निगेटिव डाला है, कि हम हैं तो आप बचे हुए हो वरना मुसलमान आपको मार डालेंगे। भाजपा ने इसकी भयंकर मार्केटिंग की। भाजपा की मार्केटिंग जनता के लिए अनुत्पादक निवेश है लेकिन जो करता है उसके लिए उत्पादक है। गुजरात ने यह चीज जल्दी पकड़ ली। कांग्रेस ने अस्पताल बनाया, शिक्षा दी, अच्छे रास्ते दिए। इन्होंने स्टैच्यू बनाया, महात्मा मंदिर बनाया, लीला होटल बनाया। उसमें कुछ है ही नहीं। लोगों को रोटी खानी है। ये जो आइडियोलॉजी का फर्क है न, उसमें लोग कुछ देर के लिए असुरक्षा में आ जाते हैं। 

ये सब तीस साल में पनपा है या फिर गुजरात की संस्कृति में ऐसा कुछ है?

यहां के कल्चर में ही है। देखिए, कल्चर में फिर आपको टाइट कम्पार्टमेंट करना पड़ता है। कांग्रेस ने मार्केटिंग नहीं की, रिजल्ट दिया। विकेंद्रित अर्थव्यवस्था, विकेंद्रित प्रशासन, हमने दिया। जिलों का विभाजन किया, कैबिनेट को बाहर ले गए प्रजा के लिए, लेकिन मार्केटिंग नहीं की। इन्होंने किया कुछ नहीं और बस मार्केटिंग की। 

आपकी शुरुआत आरएसएस और जनसंघ से हुई थी। उस समय आप दक्षिणपंथी विचारधारा के थे लेकिन आज आप इनकी आलोचना कर रहे हैं। विचारधारा तो तब भी वैसी ही थी, फिर आज फर्क क्या आया है?

उस समय आरएसएस में राजनीतिक दल जनसंघ का दिन-प्रतिदिन का दखल नहीं था। ये धीरे-धीरे हुआ है। आज तो आरएसएस पूरा भाजपा बन चुका है। मैं आरएसएस की हालत सेवा दल जैसी देख रहा हूं। आरएसएस वाले अभी भाजपा की चापलूसी कर रहे हैं। जिन्होंने पांच सितारा कल्चर नहीं देखा था, वे विमान में यात्रा करते हैं, एसी होटल में रहते हैं। उन्होंने कभी ये सब देखा ही नहीं था। ये जो फर्क आया है न, ये इनको ले डूबेगा। आरएसएस को भाजपा ने खत्म कर दिया। आखिर भागवत को सिक्योरिटी क्यों लेनी है? पूरे देश को सिक्योरिटी देने वाला आदमी सिक्योरिटी पर रहेगा? इनको शर्म नहीं आती? पब्लिक के पैसे से दाहिने-बाएं पुलिस वाला रखना? बात करते हैं कि हम देश को सलामत रखेंगे। हिंदू राष्ट्र बनाएंगे। कहां से हिंदू राष्ट्र?

तो ये हिंदू राष्ट्र वाला मामला क्या है?    

वो है ही नहीं। हिंदू धर्म जैसा कुछ नहीं होता है। कहां है हिंदू धर्म? जैन हिंदू नहीं है, सिख नहीं है, बौद्ध नहीं है। हिंदू धर्म में वैष्णव धर्म है। वैष्णव में दो धाराएं हैं, जय श्री गोकुलेश और जय श्री कृष्ण। इनका धर्म तो वैष्णव है। स्वामीनारायण में छह-सात शाखाएं हैं। ऐसे ही कोई भी लीजिए। पहले ये हैं, बाद में हिंदू। हिंदू तो प्लेस है, जैसे अमेरिकन। कौन सा हिंदू धर्म कहां बना? मनुस्मृति हिंदू धर्म था? रामायण हिंदू धर्म था? दलित के कान में सीसा डालना हिंदू धर्म के लक्षण हैं? युधिष्ठिर हिंदू धर्म है? अपनी पत्नी को जुए में डालना हिंदू धर्म है?

आरएसएस जिस हिंदू धर्म की बात करती है वो क्या है?

हिंदू मतलब हिंदुस्तान का हिंदू, जैसे भारत से भारतीय। ये मतलब है इनका।

ये बात लोगों तक पहुंच पाती है?

नहीं पहुंच पाती है, क्योंकि खुद भाजपा वालों को भी ये बात समझ में नहीं आती है। एक बात जैसे संविधान में आती है, ‘लेटर एंड स्पिरिट।’। ये लेटर में हिंदू बोलते हैं लेकिन स्पिरिट में कट्टर हिंदू यानी मुस्लिम विरोधी, ईसाई विरोधी बात फैलाते हैं। आप हिंदू की बात करो तो मैं जरूर स्वागत करूंगा लेकिन उनकी वास्तविक मंशा हिंदू हितैषी वाली नहीं है, मुसलमान विरोधी है। यह असली दिक्कत है।

इसका मतलब कि राहुल गांधी ने हिंदुइज्म बनाम हिंदुत्व की जो बहस चलाई थी वो सही थी?

वो अलग बात है। जो चीज नहीं मालूम उसमें नहीं पड़ना चाहिए। धर्म के बारे में कांग्रेस कभी भी बात करेगी तो फंस जाएगी। ये इनका काम ही नहीं है। ये लोग धार्मिक नहीं हैं, मानववादी हैं जबकि भाजपा प्रो-हिंदू के नाम पर एंटी-मुस्लिम बात करती है। तीस साल भाजपा ने लोगों को गुजरात में एंटी-मुस्लिम बनाया है। रेल का डिब्बा जला, हिंदू मर गए। वे कहेंगे हिंदू मरे नहीं, उन्हें मुसलमानों ने मारा। ऐसे ही पाकिस्तान, पुलवामा, गोधरा, सब होता आया है। ये आंकड़े गिनवाते हैं। वोट मिला, चला गया, बात पूरी।

इस बार गुजरात के चुनाव में फिर वही होगा?

लगता तो नहीं है, लेकिन लोगों का दिमाग खराब होता है तो वे मार्केटिंग में फंस जाते हैं। जब गुजरात में मुसलमान विरोध ही खड़ा करना है तो क्या फर्क पड़ता है कि पचास मरे या तीस। मर गए बस। लेकिन इस बार भाजपा बहुत डाउन है। भारत का वोटर इस बार निगेटिव है, इसलिए भाजपा के विरोध में वोट करेगा। मेरी ऐसी धारणा बढ़ती जा रही है।

और इसकी वजह क्या है?

एंटी-इनकम्बेंसी। और कोई वजह नहीं। सत्ताईस साल हो गए, दूर-दूर तक झूठ के अलावा कुछ नहीं है।

इसका फायदा किसे होगा? कांग्रेस को या आम आदमी पार्टी को?

आम आदमी पार्टी का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। वो तो सोडे की बोतल है। उड़ जाएगा ऊपर। चार सौ पांच सौ करोड़ रुपये खर्च किए हैं उसने, बस प्रचार है उसका। कहां से पैसा आता है पता नहीं। तीन-चार महीने से एक हजार लोग यहां पर हैं। कौन पेमेंट कर रहा है इनका?

बहुत लोग कहते हैं कि भाजपा और आम आदमी पार्टी का कुछ लेना-देना है?

भाजपा पैसा नहीं देती है इनको। हां, कांग्रेस को हटाने के लिए भाजपा ने इनको शुरू करवाया था। वो टोपी वाला बाबा आरएसएस का चमचा था। फिर वो पुलिसवाली, वो आर्मी चीफ हरियाणा वाला, बाबा रामदेव, सब इसमें शामिल थे। शीला का पंद्रह साल का शासन हटाने के लिए इन सबका इस्तेमाल किया गया। आरएसएस ने पूरा ऑर्गनाइज किया, भाजपा ने सब फाइनेंस किया।

यह बात आपको तभी पता थी या बाद में समझ में आई?

हमको तो शुरू से पता है। हम जानते हैं सब इनके धंधे, लेकिन मेरे बोलने से माहौल नहीं बनेगा। मार्केटिंग इतनी बड़ी है कि मेरे बोलने से कुछ नहीं होता। बहुत पीड़ा होती है। देश की जनता के साथ, दरिद्र नारायण के साथ धोखा नहीं करना चाहिए।

आपने कहा कि आरएसएस अब भाजपा हो गया है। यह बात क्या आरएसएस के शीर्ष नेतृत्व में भी कुछ लोगों को लगती होगी

ऐसा है, लेकिन वे लोग वहां माइनॉरिटी में हैं। वहां जो सही बात कहता है, उसे गलत मान लिया जाता है। सही आदमी अकेला पड़ जाता है।

क्या आप 2024 तक भाजपा और आरएसएस के बीच किसी किस्म का कोई टकराव देखते हैं?

नहीं, बिलकुल नहीं। रीढ़ की हड्डी नहीं है आरएसएस में। आरएसएस के प्रचारक को कहा जाता है आदेश। यही आदेश देश से बड़ा हो जाता है। इसी कारण से आरएसएस में लोगों का भरोसा खत्म हो जाएगा, आरएसएस खत्म हो जाएगा, लेकिन इसके लोग कहीं नहीं जाने वाले हैं। इनकी भर्ती ही ऐसी होती है। इनको आदेश लेना ही पढ़ाया जाता है।

2024 में मोदी सरकार वापस आएगी?

मैं समझता हूं कि भाजपा डाउन होती जाएगी। लोगों को अहसास हो रहा है कि उनके मुख्यमंत्री का कोई मतलब नहीं है। वो पीछे-पीछे घूमता है पीएम की कार के, चाहे पटेल हो या योगी। ये तो स्टेट का अपमान है।

चौबीस में विपक्षी एकता बन पाएगी?

बन जाएगी। इसमें कांग्रेस का मेन रोल होगा।

गुजरात में नतीजों का कोई ठोस अनुमान?

वोटर निगेटिव है। अभी साइलेंट है, धीरे-धीरे लोग बोलेंगे। भाजपा की अस्सी से ज्यादा सीट नहीं बढ़ने वाली। आम आदमी के नीचे कुछ नहीं है, इसलिए उसकी कोई संभावना नहीं है।

आपने जो पार्टी बनाई है इस साल उसकी क्या भूमिका है इस चुनाव में?

उसको तो सिंबल ही नहीं मिला। पांच साल हो गए। हमने बार-बार मांगा। पूरा हिसाब दे दिया। पता नहीं क्यों नहीं दे रहे हैं। होता है सब, चलता रहता है।

कांग्रेस में आपकी वापसी की कोई संभावना

देखिए, वो परस्पर समझदारी है हमारी और कांग्रेस की। अभी तो मैं एंटी-भाजपा के हिसाब से कांग्रेस के पक्ष में प्रचार कर रहा हूं। हमारे सुपुत्र कांग्रेस से खड़े हैं। कांग्रेस में मेरी भूमिका क्या होगी, मैं चुनाव के बाद फैसला करूंगा। हां, अब चुनाव नहीं लड़ना है। वोट मांगने में अब शर्म आती है। अब मेरा काम है कि चौबीस में देश में लोकतंत्र को कैसे बचाया जाए। ये सबसे जरूरी है। डेमोक्रेसी बचाने के लिए और भाजपा चौबीस में न जीते, उसके लिए पूरे देश में परिभ्रमण कर के समान विचार वाले ऐसे लोगों को साथ लेना है जो पीछे न हटें। अपने बारे में ऐसी कोई भूमिका पर मैं विचार कर रहा हूं।

परिभ्रमण मतलब, कोई यात्रा निकालेंगे?

यात्रा जैसा नहीं। जाना, लोगों से मिलना। यात्रा तो राहुल की चल रही है। पहली बार राहुल गांधी ह्यूमन टच से लोगों से मिल रहे हैं। पार्टी में इसकी कमी थी। इससे ये फर्क पड़ेगा कि राहुल गांधी पप्पू नहीं है, उसे भाजपा की मार्केटिंग ने बनाया है। देश की राजनीति पर इससे फर्क पड़ेगा। कांग्रेस पार्टी पर फर्क पड़ेगा। वह अच्छा आदमी है, गंदा नेता नहीं है। राजनीति उसका धंधा नहीं है। देश सेवा उसका काम है।

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